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    Home»देश»दिल्ली»अब जमीअत उलमा-ए-हिंद ने भी विधि आयोग को यूसीसी पर भेजीं आपत्तियां
    दिल्ली

    अब जमीअत उलमा-ए-हिंद ने भी विधि आयोग को यूसीसी पर भेजीं आपत्तियां

    adminBy adminJuly 6, 2023No Comments3 Mins Read
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    – यूसीसी नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता और संविधान की आत्मा को नष्ट करने का प्रयासः मदनी

    नई दिल्ली। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के बाद अब जमीअत उलमा-ए-हिंद ने भी भारतीय विधि आयोग को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर अपनी आपत्तियां भेजी हैं। जमीअत अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि समान नागरिक संहिता पर दोबारा बहस शुरू करने को हम राजनीतिक साजिश का हिस्सा मानते हैं। यह मुद्दा सिर्फ मुसलमानों का नहीं, बल्कि सभी भारतीयों का है।

    उन्होंने कहा कि हमारा शुरू से ही मानना रहा है कि हम 1300 वर्षों से इस देश में स्वतंत्र रूप से अपने धर्म का पालन करते आ रहे हैं। इसके पहले तमाम सरकारें आईं और गईं, लेकिन भारतीय अपने धर्म पर जीते और मरते रहे। हम किसी भी स्थिति में अपने धार्मिक मामलों और इबादत के तरीकों से समझौता नहीं करेंगे और कानून के दायरे में रहकर अपने धार्मिक अधिकारों की रक्षा के लिए हर संभव कदम उठाएंगे।

    मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि समान नागरिक संहिता पर जोर देना संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों के विपरीत है। सवाल मुसलमानों के पर्सनल लॉ का नहीं, बल्कि देश के धर्मनिरपेक्ष संविधान को यथावत बनाए रखने का है। हमारा पर्सनल लॉ कुरान और सुन्नत पर आधारित है, जिसमें कयामत के दिन तक संशोधन नहीं किया जा सकता है। ऐसा कहकर हम कोई असंवैधानिक बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि धर्मनिरपेक्ष संविधान के अनुच्छेद 25 ने हमें ऐसा करने की आजादी दी है। यूसीसी मुसलमानों के लिए अस्वीकार्य है और देश की एकता और अखंडता के लिए हानिकारक है।

    उन्होंने कहा कि समान नागरिक संहिता शुरू से ही एक विवादास्पद मुद्दा रहा है। हमारा देश सदियों से विविधता में एकता का प्रतीक रहा है, जिसमें विभिन्न धार्मिक और सामाजिक वर्गों और जनजातियों के लोग अपने धर्म की शिक्षाओं का पालन करके शांति और एकता के साथ रहते आए हैं। इन सभी ने न केवल धार्मिक स्वतंत्रता का आनंद लिया है, बल्कि कई बातों में एकरूपता न होने के बावजूद इनके बीच कभी कोई मतभेद पैदा नहीं हुआ और न ही इनमें से किसी ने कभी दूसरों की धार्मिक मान्यताओं और रीति-रिवाजों पर आपत्ति जताई। भारतीय समाज की यही विशेषता उसे दुनिया के सभी देशों से अलग बनाती है।

    मौलाना ने कहा कि यह गैर-एकरूपता सौ-दो सौ साल पहले या आज़ादी के बाद पैदा नहीं हुई, बल्कि यह भारत में सदियों से मौजूद है। ऐसे में समान नागरिक संहिता लागू करने का क्या औचित्य है। जब पूरे देश में नागरिक कानून (सिविल लॉ) एक जैसा नहीं है, तो पूरे देश में एक पारिवारिक कानून (फैमिली लॉ) लागू करने पर जोर क्यों दिया जा रहा है? उन्होंने अंत में कहा कि हम सरकारों से सिर्फ इतना कहना चाहते हैं कि कोई भी फैसला नागरिकों पर नहीं थोपा जाना चाहिए, बल्कि कोई भी फैसला लेने से पहले आम सहमति बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए, ताकि फैसला सभी को स्वीकार्य हो।

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