विशेष
-साहिबगंज, गोड्डा, पाकुड़ और जामताड़ा में घुसपैठियों की भरमार
-यह राजनीतिक नहीं, सामाजिक चिंता का विषय है

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड की हृदय स्थली, यानी संथाल परगना के इलाके में पिछले कुछ दिनों से काफी कुछ ऐसा चल रहा है, जिससे चिंताएं बढ़ जाती हैं। यह इलाका उन हिस्सों से सीधे जुड़ा है, जहां अक्सर सीमा-पार से होने वाली गतिविधियों की खबरें आती हैं। ऊपर से सब सामान्य, लेकिन सतह के नीचे जैसे काफी कुछ खदबदाता हुआ। खतरे की आहट-सा। इसने झारखंड के संताल परगना में आदिवासियों के अस्तित्व को बचाये रखने के लिए चुनौती पेश कर दी है। यहां लगातार आदिवासियों की आबादी का प्रतिशत घटने लगा है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने दो दिन पहले जब संताल परगना की डेमोग्राफी के बदलने और आदिवासियों की आबादी घटने का मुद्दा उठाया और राज्य सरकार से इसके कारणों की एसआइटी जांच की मांग उठायी, तो एकबारगी ऐसा लगा कि यह एक राजनीतिक मुद्दा है, लेकिन आंकड़ों के गहन अध्ययन और परिस्थितियों के आकलन से साफ हो जाता है कि संताल परगना में घुसपैठ की समस्या राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि प्रशासनिक और सामाजिक चिंता का विषय है। आज हकीकत यह है कि संताल परगना के सभी जिलों में बांग्लादेशी मुसलमान न केवल आ रहे हैं, बल्कि घर बार तक बसा रहे हैं।

यहां बड़ा सवाल यह है कि क्या यह कथित घुसपैठ महज रोटी-कपड़ा-मकान जैसी मूलभूत जरूरतों के लिए हो रही है या एक पूरा तंत्र स्थापित हो चुका है, जो इलाके की डेमोग्राफी बदल कर एक बड़े खतरे की वजह बन सकता है। अचानक यह आज का मुद्दा नहीं है। झारखंड गठन के बाद से लगातार घुसपैठ जारी है। हाल के वर्षों में कई बार इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया गया, हाइकोर्ट तक में मामला गया, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। क्या है बदलती डेमोग्राफी का कारण और क्या हो सकता है इसका असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

झारखंड के संताल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठियों की बढ़ती तादाद राजनीतिक रूप से गैर भाजपा राजनीतिक दलों के लिए चिंता की बात भले ही न हो, लेकिन इसके खतरनाक दुष्परिणाम भी समय-समय पर सामने आते रहे हैं। घुसपैठिये भोलीभाली आदिवासी लड़कियों को प्रेम जाल में फंसा कर उनसे शादी रचाते रहे हैं। नतीजतन आदिवासी बहुल संताल की डेमोग्राफी में अब आदिवासी अल्पसंख्यक होते जा रहे हैं, जबकि घुसपैठियों की आबादी बेतहाशा बढ़ रही है। दो दिन पहले 30 जून को संताल हूल दिवस के मौके पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने 1951 की पहली जनगणना से लेकर 2011 की जनगणना के आंकड़ों का हवाला देकर यह बात दोहरायी कि संताल परगना में आदिवासियों की आवादी लगातार कम हो रही है, जबकि मुसलमानों की आबादी बढ़ती जा रही है। इससे पहले जनहित याचिका के जरिये इस मुद्दे को हाइकोर्ट के संज्ञान में भी लाया जा चुका है। हाइकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य और केंद्र सरकार से जवाब मांगा है कि घुसपैठ की जानकारी होने के बावजूद उन्होंने इसे रोकने के लिए क्या कदम उठाये हैं।

क्या कहा बाबूलाल मरांडी ने
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि संताल परगना क्षेत्र में आदिवासियों की जनसंख्या का निरंतर घटना और मुसलमानों की जनसंख्या में अप्रत्याशित वृद्धि खतरे की घंटी है। 2001 की जनगणना के दौरान संताल परगना के पाकुड़ जिले में आदिवासियों की आबादी 46 फीसदी थी, जो 2011 की जनगणना के अनुसार चार फीसदी घट कर महज 42 फीसदी रह गयी। वहीं मुसलमानों की आबादी 33 फीसदी थी, जो 2011 की जनगणना के अनुसार तीन फीसदी बढ़ कर 36 फीसदी हो गयी। पाकुड़ और साहिबगंज जिले की डेमोग्राफी में आये अस्वाभाविक बदलाव के कारणों की समीक्षा करना अत्यावश्यक है। इसलिए स्पेशल टास्क फोर्स का गठन कर इस गंभीर मामले की विवेचना की जाये और आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए मजबूत कदम उठाये जायें।

भाजपा विधायक ने भी की शिकायत
बाबूलाल मरांडी की तरह राजमहल के विधायक अनंत ओझा ने भी इलाके में लगातार बढ़ रही मुस्लिम आबादी की शिकायत चुनाव आयोग से की है। उनके अनुसार राजमहल प्रखंड के बूथ पर 117 फीसदी की वृद्धि देखने को मिली है। 2019 में इस बूथ पर मतदाताओं की संख्या 689 थी, जो 2024 में बढ़ कर 14 सौ के पार पहुंच गयी है। जिन बूथों पर बढ़ोतरी हुई है, उनमें से अधिकांश गंगा के पार दियारा क्षेत्र में स्थित हैं और इनकी सीमा पश्चिम बंगाल से सटी हुई है। विधायक ने बताया कि 2014 से 2019 के बीच जिन इलाकों में नौ हजार वोट बढ़ा था, वहां 2019 से 2024 के बीच 24 हजार वोट बढ़ गये, जो कि आशंकित करता है। राजमहल विधानसभा में जहां पश्चिम बंगाल के सीमाई इलाकों में वोट बेतहाशा बढ़े हैं, वहीं हिंदू बहुल बूथ पर ये वोट कम हो गये हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि 2024 के लोकसभा चुनाव में कई ऐसे हिंदू वोटर थे, जिनके पास वैध मतदाता पहचान पत्र होने के बाद भी उन्हें वोट नहीं डालने दिया गया, क्योंकि उनका नाम लिस्ट से गायब था।

संताल के दो जिलों में तिहाई से भी अधिक मुस्लिम
संताल परगना के कुछ जिले बांग्लादेश सीमा से महज 40-50 किलोमीटर की दूरी पर हैं। इसलिए बांग्लादेशी घुसपैठियों के लिए झारखंड में प्रवेश करना आसान रहता है। वे आते हैं, शादी-ब्याह करते हैं और फिर यहीं अपना कुनबा फैलाते हैं। अब तो हालत यह हो गयी है कि संताल परगना के साहिबगंज और पाकुड़ जिलों में आदिवासी आबादी उतनी नहीं बढ़ रही, जितनी तेजी से मुस्लिम आबादी बढ़ते-बढ़ते अब तिहाई से भी अधिक हो गयी है। जनसंख्या के आंकड़ों के अनुसार 2001 की जनगणना में साहिबगंज की कुल आबादी नौ लाख 27 हजार थी। इसमें मुसलमानों की आबादी दो लाख 70 हजार थी। 2011 की जनगणना यानी 10 साल बाद साहिबगंज की कुल आबादी 11 लाख 50 हजार में मुस्लिम आबादी तीन लाख आठ हजार हो गयी, जो तिहाई से मामूली कम है। इससे बुरा हाल पाकुड़ का है। 2011 में पाकुड़ जिले की कुल आबादी नौ लाख थी, जिसमें तीन लाख 23 हजार मुसलमान थे। 10 साल पहले यानी 2001 में पाकुड़ में मुस्लिम आबादी दो लाख 32 हजार थी।

मिनी एनआरसी का प्रस्ताव केंद्र को भेजा गया था
संताल परगना के चार जिलों में घुसपैठियों की संख्या पर रोक का कोई प्रयास झारखंड के स्तर पर कभी नहीं हुआ। अलबत्ता पूर्ववर्ती सरकार ने 2018 में घुसपैठियों की बढ़ती संख्या को लेकर एनआरसी लागू करने का प्रस्ताव जरूर केंद्र को भेजा था, लेकिन व्यापक विरोध के कारण यह ठंडे बस्ते में चला गया। 2019 में राज्य में सत्ता परिवर्तन हो गया। इसके बाद कभी घुसपैठ को समस्या की नजर से नहीं देखा गया, हालांकि इस बीच दो ऐसी घटनाएं हुईं, जिससे आदिवासी समाज में उबाल था। दो लड़कियों को प्रेम जाल में फंसा कर मुस्लिम घुसपैठियों ने शादी की। बाद में उनकी जघन्य तरीके से हत्या कर दी गयी। संताल परगना के छह जिलों में चार- साहिबगंज, गोड्डा, पाकुड़ और जामताड़ा में घुसपैठियों की भरमार है।
ये आदिवासी युवतियों से शादी रचा कर अपना कुनबा तो बढ़ाते ही हैं, स्थानीय होने के कागजात भी हासिल कर लेते हैं।

राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरनाक बांग्लादेशी घुसपैठिये
बांग्लादेशी घुसपैठिये और रोहिंगिया मुसलमान राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन गये हैं। जब भी देश में कोई आतंकी घटना होती है, तो उसके तार बिहार और झारखंड से जुड़ जाते हैं। एनआइए के छापे अक्सर इन दो राज्यों में पड़ते हैं और कोई न कोई गिरफ्तार होता है। एक रणनीति के तहत ये उन दलों का साथ देने लगते हैं, जिनकी सरकार यहां होती है। घुसपैठ की इस समस्या से उन इलाकों की हिंदू आबादी भी परेशान है। झारखंड में तो हालत यह है कि जहां मुस्लिम आबादी अधिक है, वहां सरकारी स्कूलों के नाम भी उर्दू में जबरन लिखवा दिये गये हैं। इतना ही नहीं, रविवार की जगह शुक्रवार को साप्ताहिक अवकाश स्कूलों में रहता है। इस पर बहुत हंगामा भी हुआ, लेकिन अभी भी कुछ जगहों पर ऐसा हो रहा है।

इसलिए अब घुसपैठ और बदलती डेमोग्राफी झारखंड के लिए गंभीर चिंता का विषय है। इस पूरे मामले की तत्काल जांच हो और इस पर रोक लगाने के लिए प्रभावी कदम उठाये जायें, तभी झारखंड के आदिवासियों का अस्तित्व सुरक्षित रह सकेगा।

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