विशेष
रामगढ़ में एएसआइ की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत ने उठाये कई सवाल
-पलामू और तोपचांची थाना में हुई आत्महत्या की घटनाओं की याद हुई ताजा
-पिछले एक दशक में झारखंड में दो दर्जन से अधिक पुलिसकर्मी दे चुके हैं जान
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड पुलिस की वर्दी एक बार फिर दागदार हुई है। इस बार रामगढ़ में तैनात एक एएसआइ राहुल कुमार सिंह की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत ने झारखंड पुलिस को सवालों के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है। इससे पूर्व करीब ढाई साल पहले जनवरी, 2022 में पलामू जिले में तैनात एक इंस्पेक्टर लालजी यादव ने निलंबन के चार दिन बाद ही थाना परिसर में फांसी के फंदे से लटक कर आत्महत्या कर ली थी। उनसे पहले लगभग इसी तरह की परिस्थिति में 2016 के जून महीने में धनबाद के तोपचांची थाना के तत्कालीन प्रभारी उमेश कच्छप ने थाना परिसर में ही फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली थी। वह भी कुछ दिन पहले अपने थाना क्षेत्र में हुई एक फायरिंग मामले को लेकर तनाव में थे। इन तीनों घटनाओं में वक्त का फासला भले ही आठ साल का है, लेकिन परिस्थितियां लगभग एक जैसी हैं और सभी घटनाओं ने सवाल भी एक जैसे ही छोड़े हैं। राहुल कुमार सिंह के परिजनों की मानें, तो थाना प्रभारी और दूसरे उच्चाधिकारियों द्वारा की जा रही मानसिक प्रताड़ना से वह बेहद परेशान थे और इसी कारण उनकी मौत हुई, जबकि लालजी यादव के परिजनों ने भी कुछ इसी तरह के आरोप लगाये थे। इसी तरह उमेश कच्छप के परिजनों ने भी अधिकारियों पर कई गंभीर आरोप लगाये थे। इन तीनों घटनाओं में एक बात समान है कि किसी भी आरोप की जांच तक नहीं हुई। इस तरह अपने ही अधिकारियों की असमय मौत ने झारखंड पुलिस की वर्दी को एक बार फिर दागदार बना दिया है, हालांकि बीच में पुलिसकर्मियों और कनीय अधिकारियों द्वारा आत्महत्या की कई घटनाएं हुई हैं। रामगढ़ की घटना की पृष्ठभूमि में यह जानना जरूरी है कि आखिर कनीय पुलिस अधिकारी इतने तनावग्रस्त क्यों हैं और क्या है झारखंड पुलिस के अफसरों की कार्यशैली। इन सवालों का जवाब दे रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
रामगढ़ पुलिस के एएसआइ राहुल कुमार सिंह की 21 जुलाई को संदिग्ध परिस्थिति में मौत हो गयी। वह यातायात थाना रामगढ़ में पदस्थापित थे और रामगढ़-बरकाकाना मार्ग पर बंजारी मंदिर चेक पोस्ट पर तैनात थे। शाम को उन्हें अचानक उल्टी हुई और वह बेहोश होकर जमीन पर गिर गये। उन्हें सदर अस्पताल रामगढ़ ले जाया गया, जहां चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था। बाद में उनके शव का रिम्स में पोस्टमार्टम किया गया, जिसमें कहा गया है कि उनकी मौत जहर के कारण हुई। इसके बाद उनकी मौत के कारणों को लेकर कई सवाल उठाये जा रहे हैं। मृत एएसआइ के परिजनों का आरोप है कि इसके पीछे एसपी डॉ विमल कुमार और रामगढ़ थाना प्रभारी अजय कुमार साहू हैं। इन दोनों की प्रताड़ना के कारण राहुल कुमार सिंह बेहद तनाव में थे। पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद एसपी डॉ विमल कुमार को आनन-फानन में हटा दिया गया है और थानेदार इंस्पेक्टर अजय कुमार साहू को निलंबित कर दिया गया है।
इस युवा एएसआइ की रहस्यमय परिस्थितियों में हुई मौत से झारखंड पुलिस की वर्दी एक बार फिर कलंकित हो गयी है। यह पहली बार नहीं है, जब किसी कनीय पुलिस अधिकारी ने मौत को गले लगाया है और उसका आरोप वरीय अधिकारियों पर लगा हो। इससे पहले 2022 के जनवरी में पलामू के नवा बाजार थाने के निलंबित थाना प्रभारी लालजी यादव ने थाना परिसर में ही आत्महत्या कर ली थी। उस घटना के पीछे कहा गया था कि एसपी द्वारा खुद को निलंबित किये जाने के बाद से वह बेहद तनाव में थे। उनके निलंबन का कारण यह था कि उन्होंने डीटीओ द्वारा जब्त वाहनों को थाने में रखने से इनकार किया था। ऐसा ही आरोप लालजी यादव के परिजनों ने पलामू पुलिस के उच्चाधिकारियों के सामने भी लगाया था। लालजी यादव 2012 बैच के दारोगा थे और उनके बारे में कहा जाता था कि वह तेज-तर्रार छवि के थे और गलत कार्यों का हमेशा विरोध करते थे। आम लोग उनका बेहद सम्मान करते थे। उन्हें अपने ही विभाग के कुछ अधिकारियों ने इतना प्रताड़ित किया कि वह तनाव में आ गये और आत्महत्या कर ली।
पलामू की घटना से पहले 17 जून, 2016 को धनबाद जिले के तोपचांची थाना के तत्कालीन प्रभारी उमेश कच्छप ने भी आत्महत्या कर ली थी। उमेश कच्छप अपने थाना क्षेत्र में कुछ दिन पहले हुई फायरिंग की एक घटना के बाद से तनाव में थे। उस घटना में वह खुद शामिल नहीं थे, लेकिन कुछ आइपीएस उन पर मनमाफिक रिपोर्ट बनाने के लिए दबाव डाल रहे थे। कहा जाता है कि फायरिंग की वह घटना जीटी रोड पर अवैध वसूली के क्रम में हुई थी, जिसमें एक डीएसपी ने एक ट्रक ड्राइवर को गोली मार दी थी। उमेश कच्छप पर डीएसपी को बचाने के लिए दबाव डाला जा रहा था, जिसके कारण वह बेहद तनाव में थे।
उठ रहे हैं कई सवाल
इन तीनों घटनाओं में बहुत कुछ एक जैसा है और राहुल कुमार सिंह की रहस्यमय मौत ने लगभग वही सवाल खड़े किये हैं, जो लालजी यादव और उमेश कच्छप की मौत ने उठाये थे। आखिर ईमानदार और तेज-तर्रार छवि के कनीय पुलिस अधिकारियों पर इतना तनाव हावी कैसे हो जाता है। क्या पुलिस महकमे में कुछ अधिकारी वाकई ऐसे हैं, जो अपनी चमड़ी बचाने के लिए किसी भी हद तक गिर सकते हैं।
मानव मनोविज्ञान कहता है कि कोई इंसान अपनी जान तभी लेता है, जब उसे यह विश्वास हो जाता है कि उसके सामने के सारे विकल्प खत्म हो गये हैं। ऐसा व्यक्ति किसी एक कारण या घटना से प्रभावित नहीं होता, बल्कि यह उसके लिए तात्कालिक कारण हो सकता है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि प्रतिष्ठा या इज्जत पर आंच आती देख भी कई लोग इतने अधिक तनावग्रस्त हो जाते हैं कि वे आत्महत्या कर लेते हैं या फिर उनकी जान चली जाती है। राहुल कुमार सिंह, लालजी यादव और उमेश कच्छप की मौत के पीछे यही प्रत्यक्ष कारण नजर आता है।
किसी भी मामले की जांच का नतीजा सामने नहीं आया
यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर राहुल कुमार सिंह, लालजी यादव और उमेश कच्छप इतने तनावग्रस्त क्यों थे। उनकी मौत की असली वजह क्या थी। विडंबना यह है कि इन सभी मामलों की जांच का नतीजा कभी सामने नहीं आया। न ही परिजनों के आरोपों के बारे में कभी कोई आधिकारिक बयान आया और न ही मामले की जांच रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई हुई। रामगढ़ की घटना के बाद एसपी का तबादला और थानेदार को निलंबित तो किया गया, लेकिन क्या राहुल कुमार सिंह की मौत की असली वजह दुनिया के सामने आयेगी, यह सवाल आज सभी पूछ रहे हैं।
पुलिसकर्मियों में बढ़ रहा है तनाव
झारखंड पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि बीते एक दशक के दौरान तनाव के कारण पुलिसवालों में आत्महत्या या शारीरिक-मानसिक रूप से अस्वस्थ होने की प्रवृत्ति बढ़ी है। पुलिसकर्मियों पर मानसिक और पारिवारिक तनाव इस कदर हावी है कि वे न तो अपनी अस्वस्थता पर ध्यान दे पाते हैं और न ही अपनी जान लेने से पीछे हट रहे हैं। इसकी मुख्य वजह प्रशासनिक दबाव, परिवारिक विवाद, मानसिक तनाव और प्रेम प्रसंग को माना जा सकता है, क्योंकि कई ऐसे मामले भी सामने आये हैं, जिनमें काम के दवाब और प्रेम में असफल होने के कारण भी पुलिसकर्मियों ने आत्महत्या की है।
इसका मतलब यह है कि पुलिस की कार्यशैली में ही कुछ कमी है, जिसके कारण पुलिसकर्मी तनाव में आ जाते हैं। राज्य पुलिस में चार साल पहले 2020 में एक सम्मान अभियान चलाया गया था, जिसका मकसद पुलिसकर्मियों की समस्याओं का निदान करना था। उसके बाद ही आठ घंटे और सप्ताह में छह दिन की ड्यूटी का प्रावधान सख्ती से लागू करने का फैसला किया गया था। पुलिसकर्मियों के मानसिक तनाव को दूर करने के लिए उनकी काउंसिलिंग की भी व्यवस्था की गयी थी, लेकिन पुलिस अपनी कार्यशैली बदलने और आत्ममंथन के लिए तैयार नहीं हुई, जिसका नतीजा यह हुआ कि तमाम उपाय बेकार साबित हो गये।
इतना तय है कि एएसआइ राहुल कुमार सिंह की रहस्यमय मौत के बाद झारखंड पुलिस के निचले स्तर के अधिकारियों में यह प्रवृत्ति खत्म नहीं होगी। इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सबसे पहले पुलिस को खुद को बदलना होगा। अपने ही वरीय अधिकारियों द्वारा अनावश्यक दबाव बनाने और राजनीतिक-प्रशासनिक दृष्टिकोण से कार्रवाई करने की प्रवृत्ति पर तत्काल सख्ती से रोक लगानी होगी। अधिकारियों को समझना होगा कि ऊपर से लेकर नीचे तक के खाकी वर्दी वाले एक टीम के सदस्य हैं और किसी के रैंक से उसकी काबिलियत नहीं आंकी जा सकती। जब तक ऐसा नहीं होगा, रामगढ़ जैसी वारदात होती रहेगी और झारखंड पुलिस की वर्दी पर अपने ही साथियों के खून के छींटे पड़ते रहेंगे।