विशेष
-महागठबंधन पांच साल का काम गिनायेगा, तो भाजपा बोलेगी काम हुआ नहीं
-डेमोग्राफी चेंज और झारखंड में जमीन लूट का मुद्दा उठायेगी भाजपा
-सत्ता पक्ष केंद्र का सौतेला व्यवहार और 1.36 लाख करोड़ के बकाया का मुद्दा उठायेगा
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के साथ महागठबंधन ने चुनावी बिगुल फूंक दिया है। हेमंत की अगुवाई में महागठबंधन आक्रामक मूड में विधानसभा चुनाव में उतरने को तैयार है, तो वहीं भाजपा ने भी महागठबंधन की रणनीतियों को ध्वस्त करने के लिए हथियारों से लैस रथ सजा लिया है। महारथियों को टास्क दिया जा रहा है। वहीं महागठबंधन का सबसे मजबूत और प्रभावशाली घटक जेएमएम अब चुनावी रण के लिए पूरी तरीके से तैयार है। झामुमो हेमंत सोरेन के खिलाफ हुई नाइंसाफी और महागठबंधन सरकार के पांच साल के दौरान हुए काम के आधार पर जनता के बीच जायेगी। वह बतायेगी कि चुनाव के दौरान हेमंत सोरेन ने जो-जो वादा किया था, उसमें से कितने काम सफलतापूर्वक हो गये और कौन-कौन से काम पाइपलाइन में हैं। वहीं भाजपा के पास भी मुद्दों की कमी नहीं है। भाजपा भी सरकार के पांच साल का हिसाब जनता के समक्ष रखेगी। गिनवायेगी कि सरकार ने बोला क्या और किया क्या। झारखंड के परिपे्रक्ष्य में लोकसभा चुनाव का मुद्दा अलग था और विधानसभा चुनाव का मुद्दा पूरा अलग होनेवाला है। लोकसभा चुनाव में भाजपा-आजसू जहां रक्षात्मक मुद्रा में थे, वहीं विधानसभा चुनाव में झामुमो-कांग्रेस-राजद का महागठबंधन रक्षात्मक रहेगा, क्योंकि वह सत्ता में है। इस विधानसभा में सत्तारूढ़ महागठबंधन अपनी पांच साल की उपलब्धियों के साथ आरक्षण, सरना धर्म कोड, आदिवासी अस्मिता और स्थानीयता जैसे भावनात्मक मुद्दों पर जोर देगा, तो भाजपा-आजसू का जोर महागठबंधन सरकार की वादाखिलाफी, बेरोजगारी, तुष्टिकरण और भ्रष्टाचार के साथ परिवारवाद जैसे मुद्दों पर रहेगा। लेकिन इस बार भाजपा के पास जो सबसे अहम मुद्दे हैं, वे हैं झारखंड में डेमोग्राफिक बदलाव और झारखंड में जमीन लूट। भाजपा इस मुद्दे को किसी भी तरीके से हाथ से नहीं जाने देना चाहेगी, वह जोर-शोर से यह कहेगी कि जल-जंगल-जमीन बचानेवालों के शासनकाल में यह सब हो रहा है। कहने का तात्पर्य यह है कि विधानसभा चुनाव में मुद्दों की कोई कमी नहीं होगी और इस लिहाज से यह चुनाव बेहद रोमांचक होगा। अब यह दलों और गठबंधनों पर निर्भर करेगा कि कौन अपने मुद्दे पर वोटरों को कितना गोलबंद करता है। झारखंड विधानसभा चुनाव में क्या हो सकते हैं मुद्दे और उनका क्या हो सकता है असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड के तेजी से बदलते राजनीतिक परिदृश्य में अब विधानसभा चुनाव से जुड़ी गतिविधियां भी जोर पकड़ने लगी हैं। इसके अलावा दोनों पक्ष अपने-अपने चुनावी हथियार की धार को चमकाने में लग गये हैं। महज एक महीने पहले संपन्न लोकसभा चुनाव में झारखंड से जुड़े मुद्दे कम ही उठाये गये, लेकिन अगले चार-पांच महीने में होनेवाले विधानसभा चुनाव में यही मुद्दे केंद्र में होंगे। इस बार विधानसभा चुनाव की एक खासियत यह होगी कि यह लोकसभा चुनाव से पूरी तरह अलग होगा, क्योंकि लोकसभा चुनाव में जहां भाजपा-आजसू रक्षात्मक थी, वहीं विधानसभा चुनाव में वह हमलावर रहेगी। वहीं हेमंत सोरेन की जेल यात्रा शायद अब उतनी प्रभावी नहीं रहेगी, जितनी लोकसभा चुनाव के दौरान थी, क्योंकि उन्होंने झारखंड की फिर से कमान संभाल ली है। अब सरकार को जनता के बीच अपना रिपोर्ट कार्ड लेकर जाना होगा। पूरे हुए वादों को गिनाना होगा। जो वादे पूरे नहीं हुए, उसका स्पष्ट कारण बताना होगा। फिर जनता निर्णय लेगी कि उसके हिसाब से सरकार ने काम किया है या नहीं। वहीं जनता भी भाजपा सेअपेक्षा रखेगी कि वह उसके लिए पिटारे में क्या लानेवाली है। भाजपा को सटीक मुद्दों के साथ मैदान में उतरना होगा। सिर्फ सरकार की खामियों को गिना कर उसकी चुनावी नैया पार नहीं होगी।
क्या होंगे सत्ताधारी गठबंधन के मुद्दे
झारखंड में लोकसभा चुनाव की जंग हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद बेहद रोमांचक रही, लेकिन अब हेमंत जेल से बाहर आकर सत्ता संभाल चुके हैं, तो सत्ताधारी गठबंधन के लिए यह मुद्दा अब आदिवासी अस्मिता में बदल गया है। हेमंत सोरेन के अलावा कांग्रेस और राजद ने 28 जून के बाद से जिस तरह इस मुद्दे को उठाया है, उससे तो यही लगता है कि विधानसभा चुनाव में उसके पास यह एक प्रमुख हथियार होगा। चूंकि हेमंत सोरेन एक बार फिर राज्य की सत्ता संभाल चुके हैं, तो वह 2019 के बाद से करीब चार साल तक के अपने कार्यकाल की उपलब्धियों को भी जनता के सामने मजबूती से रखेंगे। ‘आपकी सरकार, आपके द्वार’ और नशामुक्ति जैसे लोकप्रिय अभियानों के अलावा अबुआ आवास और दूसरी कल्याणकारी योजनाओं को सत्ता पक्ष भुनाने का पूरा प्रयास करेगा। हेमंत सोरेन के नेतृत्व में महागठबंधन के पास जो सबसे प्रभावी चुनावी हथियार है, वह झारखंड की जनभावना से जुड़ा है। इसमें आरक्षण, सरना धर्म कोड, केंद्र पर 1.36 लाख करोड़ का बकाया, स्थानीयता नीति और केंद्रीय योजनाओं में झारखंड के हिस्से में कटौती जैसे मुद्दे शामिल हैं। सत्ताधारी महागठबंधन को पता है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे उसके लिए कुछ मुश्किल पैदा करेंगे, तो इसकी काट के लिए वह केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा केंद्रीय एजेंसियों का दुरूपयोग कर विपक्ष के नेताओं को जेल में बंद करने का मुद्दा उठा सकता है। खासकर हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी को झारखंडी अस्मिता से जोड़ने का प्रयास हो रहा है। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने इसे लेकर ‘झारखंड झुकेगा नहीं’ का नारा दिया है। इसके अलावा महागठबंधन के पास जल-जंगल-जमीन और स्थानीयता के मुद्दों के साथ स्थानीय मुद्दों को केंद्र में रखने की रणनीति बनाया है। 2019 में सत्ता संभालने के बाद वैश्विक महामारी के दौरान राज्य सरकार द्वार किये गये कार्यों की भी याद हेमंत सोरेन दिला सकते हैं।
इन मुद्दों पर महागठबंधन को घेरेगी भाजपा-आजसू
जहां तक विपक्षी भाजपा-आजसू का सवाल है, तो उसके पास विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा भ्रष्टाचार और परिवारवाद ही रहेगा। भाजपा ने लोकसभा चुनाव में भी भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा बना कर आक्रामक प्रचार अभियान छेड़ा था, हालांकि उसका बहुत अधिक असर नहीं पड़ा। जनवरी में हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद सामने आये टेंडर घोटाले में कांग्रेसी मंत्री आलमगीर आलम की गिरफ्तारी ने भाजपा को बड़ा मुद्दा दिया है। इसके अलावा जमीन घोटाला, खनन घोटाला और कोयला-पत्थर-बालू की तस्करी ऐसा मुद्दा है, जिस पर भाजपा-आजसू ने महागठबंधन पर बड़ा हमला करने की योजना बनायी है। चुनाव के दौरान भाजपा इस बात पर भी जोर देगी कि जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का विलाप कर रहे झामुमो-कांग्रेस ने सत्ता में आने के बाद जनता को बरगलाया है। इसके बाद खनिजों से ही जुड़े डीएमएफटी (डिस्ट्रिक्ट मिनरल्स फाउंडेशन ट्रस्ट) का सवाल उठा कर भाजपा-आजसू महागठबंधन सरकार को कठघरे में खड़ा करेगी। इन दो बड़े मुद्दों के अलावा भाजपा-आजसू के पास पांच साल के दौरान राज्य में बढ़ी बेरोजगारी, महागठबंधन की वादाखिलाफी और दूसरे मुद्दे भी होंगे। भाजपा ने चतरा, लातेहार, पलामू और खूंटी इलाके में नक्सलियों के संरक्षण में अवैध तरीके से अफीम की खेती और इसकी तस्करी के मुद्दे पर भी सरकार को घेरने की रणनीति बनायी है।
संविधान और आरक्षण का सवाल
इन मुद्दों के अलावा कांग्रेस और झामुमो द्वारा भाजपा पर संविधान को बदलने की साजिश् रचने का आरोप भी मढ़ा जा सकता है। इसके जवाब में एससी-एसटी और ओबीसी आरक्षण का मुद्दा उठाते हुए भाजपा के पास यह कहने को होगा कि कांग्रेस तुष्टिकरण के लिए एससी, एसटी और ओबीसी के हिस्से का आरक्षण अपने वोट बैंक में बांट देना चाहती है। इसके साथ ही भाजपा महागठबंधन द्वारा 2019 में युवाओं से किये गये वादों को याद करायेगी और राज्य में कानून व्यवस्था को लेकर मुखर होगी। इसके बाद सबसे अहम मुद्दा नगर निकाय चुनाव का है, जिसे भाजपा-अजसू भुनाने को तैयार है। झारखंड में डेमोग्राफी परिवर्तन और जोर-शोर से जमीन लूट के सिलसिले को भी भाजपा भुनाने वाली है। किस तरीके से झारखंड में डेमोग्राफी परिवर्तन हुआ है, वह बड़ा ही डरावना है। उसका आंकड़ा आदिवासियों के लिए बड़ा ही भयावह है। अगर सरकार इस मुद्दे पर विचार नहीं करेगी, तो आने वाले 25 सालों में आदिवासियों का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। बांग्लादेश घुसपैठ पर अभी-अभी झारखंड हाइकोर्ट के आदेश से विपक्ष को बल मिलेगा। वहीं जिस पैमाने पर झारखंड में जमीन की लूट चल रही है, उससे आम लोग बेहद सताये हुए महसूस कर रहे हैं। उनकी जमीन को साजिश रच कर जमीन दलाल हथिया रहे हैं। एक बहुत बड़ा रैकेट इस षडयंत्र में शामिल है। भाजपा इस मुद्दे को आनेवाले विधानसभा चुनाव में प्रमुखता से उठायेगी।
इस तरह साफ है कि झारखंड विधानसभा का आसन्न चुनाव मुद्दों के लिहाज से बेहद आक्रामक और रोमांचक होगा। दोनों पक्षों के पास मुद्दों की कोई कमी नहीं है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इन मुद्दों पर लोग कितना भरोसा करते हैं। इसका जवाब तो चुनाव के बाद ही मिल सकता है।