विशेष
यूपी में भाजपा के भीतर मची हलचल का सियासी मतलब
-लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद से ही मचा है घमासान
-सीएम योगी को सात साल में पहली बार मिल रही है कड़ी चुनौती

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
देश की सियासत का सिरमौर राज्य उत्तरप्रदेश का सियासी माहौल इन दिनों गर्म है। यहां लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों के बाद सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के भीतर घमासान मचा हुआ है। दरअसल, यहां संगठन और सरकार के बीच तकरार की खबरें हैं। 2017 में पहली बार यूपी के सीएम बने योगी आदित्यनाथ को पहली बार पार्टी के भीतर से ही बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। वह भी ऐसे समय में, जब राज्य विधानसभा की 10 सीटों के लिए उपचुनाव अगले कुछ दिनों में होनेवाला है। योगी आदित्यनाथ को पार्टी के उस खेमे से चुनौती मिल रही है, जिसे संघ का वरदहस्त प्राप्त है और इसका नेतृत्व उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य कर रहे हैं। मौर्य ने लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के लिए पूरी तरह से योगी सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। उनके अलावा कई विधायकों और पार्टी पदाधिकारियों ने भी इसी तरह के आरोप लगाये हैं। मौर्य ने तो प्रदेश की विस्तारित कार्यकारिणी की बैठक में कह दिया कि संगठन हमेशा सरकार से बड़ा होता है। उनके इस बयान के बाद चर्चा तेज हो गयी कि उनके और सीएम योगी आदित्यनाथ के बीच सब सही नहीं है। इसी के बाद मौर्य दिल्ली तलब किये गये और उनकी पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात हुई।

हालांकि मौर्य को पार्टी अध्यक्ष की तरफ से सख्त हिदायत दी गयी कि किसी भी सूरत में सरकार और संगठन के तालमेल को लेकर ऐसी कोई बयानबाजी नहीं की जाये, जिससे पार्टी हित का नुकसान हो। पार्टी चाहती है कि इस पर लगाम लगे और सरकार-संगठन के बीच एकता का संदेश दिया जाये। लेकिन इस डैमेज कंट्रोल के बावजूद यूपी में सरकार और संगठन के बीच का रिश्ता पटरी पर नहीं लौट सका है। क्या है यूपी की सियासत में मची इस हलचल के मायने और इसके संभावित परिणाम, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

वह 14 जुलाई 2024 की तारीख थी। लखनऊ में भाजपा की बैठक चल रही थी। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में यूपी सरकार के दो शीर्ष नेताओं ने प्रदेश में पार्टी के खराब प्रदर्शन की अलग-अलग वजहें गिनवायीं। सीएम योगी आदित्यनाथ ने अति आत्मविश्वास को यूपी में खराब प्रदर्शन का कारण बताया, वहीं केशव प्रसाद मौर्य में यूपी सरकार के कुछ निर्णयों को कठघरे में खड़ा किया। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने संगठन के सरकार से बड़े होने की बात कही। दोनों ने यूपी में खराब प्रदर्शन के अलग-अलग कारण बताये, लेकिन केशव प्रसाद मौर्य के बयान को योगी सरकार के खिलाफ टिप्पणी के रूप में देखा गया। मौर्य कहना चाह रहे थे कि यूपी की योगी सरकार पार्टी से बड़ी हो गयी है। दूसरी तरफ योगी के बयान को इस रूप में लिया गया कि केंद्रीय नेतृत्व अति आत्मविश्वास में था। इन दोनों के बयानों और अलग-अलग मुलाकातों के बाद यूपी में भाजपा को लेकर कई तरह के सवाल उठने लगे। योगी और केशव प्रसाद मौर्य के बयानों का अलग-अलग मतलब निकालने वाले लोग भी अपनी जगह पर सही है। इसमें कोई दो राय नहीं कि लोकसभा चुनाव के समय पूरी भाजपा अति आत्मविश्वास में थी।

उसका घोड़ा चार सौ पार की स्पीड से भाग रहा था। इसका असर यह हुआ कि कार्यकर्ता यह मान बैठे कि बैठे-बैठाये चार सौ पार हो ही जायेगा। वहीं यूपी सरकार के कुछ निर्णयों को कठघरे में खड़ा करनेवाले भी अपनी जगह पर सही हैं। विकास के नाम पर कुछ निर्णय निश्चित रूप से ऐसे लिये गये, जिनमें बड़े पैमाने पर लोगों की रोजी-रोजी छिन गयी। चूंकि वे वर्षों से सरकारी जमीन पर अपनी जमीन और झोंपड़ी बना कर रह रहे थे, विकास कार्य के कारण उन्हें उस जमीन से दरबदर होना पड़ा। दुकान हटी तो रोजगार भी छिन गया। यह काशी में भी हुआ और अयोध्या में भी। इसका नकारात्मक असर पड़ा।

योगी और केशव प्रसाद मौर्य का सियासी सफरनामा
सीएम योगी आदित्यनाथ कभी कोई चुनाव नहीं हारे हैं, जबकि केशव प्रसाद मौर्य सिर्फ एक-एक बार विधानसभा और लोकसभा चुनाव जीत सके हैं। मौर्य विश्व हिंदू परिषद और संघ की पृष्ठभूमि से आते हैं, वहीं योगी की पहचान संघ के साये से अलग हिंदुत्व वाली राजनीति की रही है।

ऐसे गरमाता रहा यूपी का सियासी माहौल
यूपी में योगी आदित्यनाथ बनाम केशव प्रसाद मौर्य की जो अटकलें लगायी जा रही हैं, उसे समझने के लिए कुछ तारीखों पर गौर किया जाना जरूरी है। इसमें पहली तारीख है 04 जून, जब लोकसभा के चुनावी नतीजों में यूपी में भाजपा के हिस्से में महज 33 सीटें आयीं, यानी 2019 की तुलना में 29 कम। उसके बाद से राज्य में कई जगहों पर सरकार और भाजपा नेताओं के बीच विवाद और बहस होने की खबरें आयीं। इन घटनाओं में अधिकांश ऐसे नेता शामिल थे, जो मौर्य या संघ की पृष्ठभूमि के माने जाते हैं।
इसके बाद 14 जुलाई को लखनऊ में भाजपा कार्यसमिति की बैठक हुई, जिसमें लोकसभा चुनाव परिणाम की समीक्षा हुई। उसमें मौर्य ने कहा, संगठन, प्रदेश और देश के नेतृत्व के सामने कह रहा हूं कि संगठन सरकार से बड़ा है। संगठन से बड़ा कोई नहीं होता है। इसके बाद 16 जुलाई को दिल्ली में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से केशव प्रसाद मौर्य और यूपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने मुलाकात की। पार्टी अध्यक्ष की सख्त हिदायत के बावजूद अगले ही दिन मौर्य ने सोशल मीडिया पर कहा, संगठन सरकार से बड़ा। कार्यकर्ताओं का दर्द मेरा दर्द है, संगठन से बड़ा कोई नहीं, कार्यकर्ता ही गौरव है। उस दिन शाम को सीएम योगी आदित्यनाथ ने राज्यपाल से मुलाकात की और राजभवन से इसे शिष्टाचार मुलाकात बताया गया।

यूपी, योगी और अटकलें
पिछले डेढ़ महीने के दौरान अलग-अलग तारीखों पर हुई इन मुलाकातों और बयानबाजियों से अटकलें तेज हुई हैं। सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या सीएम के तौर पर योगी आदित्यनाथ की कुर्सी सुरक्षित है? इस सवाल को सबसे पहले बड़े स्तर पर दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान उठाया था। केजरीवाल ने 11 मई को एक चुनावी सभा में कहा था कि अगर भाजपा चुनाव जीत गयी, तो लिखवा लो कि दो महीने के अंदर उत्तरप्रदेश का मुख्यमंत्री बदल देंगे ये लोग। योगी आदित्यनाथ की राजनीति खत्म करेंगे। उनको भी निपटा देंगे। अरविंद केजरीवाल के उस बयान का भाजपा आलाकमान की तरफ से खंडन नहीं करना भी कई सवालों को जन्म दे गया। ऐसे में भाजपा की अगुवाई में नरेंद्र मोदी के लगातार तीसरी बार सत्ता में आने और यूपी में भाजपा के खराब प्रदर्शन के बाद यही सवाल फिर उठने लगा है। भाजपा आलाकमान यूपी में पार्टी की बड़ी जीत नहीं होने से अंदर ही अंदर नाराज है।
कुछ लोग इसके लिए योगी आदित्यनाथ की तरफ इशारा करते हैं और कुछ शीर्ष नेतृत्व की तरफ। केशव प्रसाद मौर्य के ताजा बयान और सक्रियता को इसी कड़ी से जोड़ कर देखा जा रहा है।

योगी पर अपनों के बढ़ते हमले
योगी की कार्यशैली पर सवाल उठानेवालों में निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद भी शामिल रहे। 16 जुलाई को संजय निषाद ने कहा कि बुलडोजर माफिया के खिलाफ इस्तेमाल होना चाहिए। अगर ये बेघर और गरीब लोगों के खिलाफ इस्तेमाल होगा, तो एकजुट होकर ये लोग हमें चुनाव में हरवा देंगे। योगी आदित्यनाथ की राजनीति में बुलडोजर की खास अहमियत है। चुनाव प्रचार के दौरान योगी की रैलियों में कई जगहों पर बुलडोजर भी खड़े किये गये थे। इससे पहले भाजपा की सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) की नेता और एनडीए सरकार में मंत्री अनुप्रिया पटेल ने भी योगी आदित्यनाथ से अपनी शिकायत सार्वजनिक की थी। अनुप्रिया की इस चिट्ठी के बाद कुछ जानकारों ने कहा था कि यह योगी आदित्यनाथ के खिलाफ जमीन तैयार किये जाने का संकेत है।

कैसी है योगी की चुनावी राजनीति
यूपी की इस सियासी हलचल को समझने के लिए योगी आदित्यनाथ की चुनावी राजनीति को समझना भी जरूरी है। 2024 लोकसभा चुनाव में भाजपा भले ही यूपी में पहले के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन ना कर पायी हो, मगर योगी आदित्यनाथ अपने गढ़ गोरखपुर के आसपास की सीटें बचाने में सफल रहे। वहीं कौशांबी, प्रयागराज और प्रतापगढ़ में भाजपा को हार मिली। इन तीनों सीटों पर केशव प्रसाद मौर्य का असर माना जा रहा था।
भाजपा केशव प्रसाद मौर्य को पार्टी के ओबीसी चेहरे के तौर पर पेश करती रही है, लेकिन इन चुनावों में मौर्य पार्टी को वह सफलता नहीं दिलवा पाये, जिसकी उम्मीद भाजपा को थी।

क्या होगा इस सियासी हलचल का परिणाम
यूपी में भाजपा के भीतर मची इस हलचल के बीच बड़ा सवाल यह है कि इसका परिणाम क्या होगा। अब यह लगभग तय है कि योगी आदित्यनाथ को बदले जाने का खतरा भाजपा नहीं उठायेगी। यह भी सच है कि सात साल में पहली बार योगी को पार्टी के भीतर से ऐसी चुनौती मिल रही है। ऐसे में उनके कंधे पर अगले कुछ दिनों में विधानसभा की 10 सीटों पर पार्टी को जीत दिलाने की चुनौती है। इन 10 में से नौ सीटें विधायकों के लोकसभा चुनाव में लड़ने और जीतने के बाद खाली हुई हैं। एक सीट सीसामऊ सपा विधायक रहे इरफान सोलंकी को एक आपराधिक मामले में दोषी करार दिये जाने के बाद खाली हुई है। इन 10 विधानसभा सीटों में से पांच में सपा को 2022 में जीत मिली थी। एक सीट तब सपा के साथ गठबंधन में रहे राष्ट्रीय लोकदल ने जीती थी। अब यह पार्टी भाजपा के साथ है। तीन सीट भाजपा और एक सीट निषाद पार्टी ने जीती थी।
सीएम योगी ने इन सीटों पर होनेवाले उप चुनाव के लिए अपनी एक ‘सुपर 30’ टीम बनायी है, जिनमें दोनों डिप्टी सीएम को शामिल नहीं किया गया है। यदि योगी इस उप चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करते हैं, तो फिर वह अपने विरोधियों को हमेशा के लिए चुप करा देंगे, लेकिन यदि ऐसा नहीं होता है, तो फिर यूपी की सियासत में कुछ नया मोड़ आने की संभावना तो बनती हुई दिखाई देती ही है।

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