Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Thursday, July 31
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»विशेष»बिहार की सत्ता के रास्ते में ‘एम’ फैक्टर का रोल है अहम
    विशेष

    बिहार की सत्ता के रास्ते में ‘एम’ फैक्टर का रोल है अहम

    shivam kumarBy shivam kumarJuly 29, 2025Updated:July 30, 2025No Comments11 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email

    विशेष
    नीतीश और लालू, दोनों को है इसी फैक्टर के सहारे मैदान जीतने की उम्मीद
    इस ‘एम’ फैक्टर ने पहले भी बिहार के सियासी रण को रोमांचक बनाया है

    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    बिहार के आसन्न चुनाव के मद्देनजर जो गतिविधियां अभी चल रही हैं, उनमें सबसे महत्वपूर्ण है अपने-अपने हथियारों को दुरुस्त करना, ताकि आनेवाले दिनों में इनके सहारे चुनाव मैदान में बाजी मारी जा सके। इन सियासी गतिविधियों के बीच बिहार में एक ‘एम’ फैक्टर है, जो हमेशा से राज्य की सत्ता का रास्ता दिखाता है। यह ‘एम’ फैक्टर किसी जाति या संप्रदाय, मसलन मुसलमान का सूचक नहीं है, बल्कि इस फैक्टर के तहत वे समूह शामिल हैं, जो ‘एम’ अक्षर से शुरू होते हैं। इस फैक्टर के साथ सबसे अहम बात यह है कि नीतीश और लालू, दोनों के पास ‘एम’ फैक्टर के अपने-अपने हथियार हैं। उदाहरण के लिए नीतीश के पास जहां मोदी, मंदिर, मुखिया आदि हैं, तो लालू के पास मुस्लिम और महिला जैसे फैक्टर हैं। दोनों ही गठबंधन, सत्तारूढ़ एनडीए और विपक्षी महागठबंधन अपने-अपने ‘एम’ फैक्टरों के हथियारों का अधिक से अधिक इस्तेमाल कर बिहार की सत्ता तक के रास्ते को तय करने की रणनीति तैयार कर रहा है। इन सबके बीच यह देखना भी बेहद दिलचस्प है कि बिहार की राजनीति में इन ‘एम’ फैक्टरों की कितनी अहमियत है और ये वाकई चुनाव में निर्णायक होते हैं या नहीं। लेकिन इस सवाल का जवाब का अभी देना मुश्किल है कि बिहार के आगामी चुनाव में इस ‘एम’ फैक्टर का कितना अहम रोल रहेगा। क्या है बिहार का ‘एम’ फैक्टर और नीतीश-लालू, दोनों के पास कितने ‘एम’ हैं, जिनके सहारे वे चुनावी वैतरणी पार करने की जुगत में हैं, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    राजनीति में हर फैक्टर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। बात अगर बिहार की हो तो जाति वाली राजनीति में भी ‘एम’ फैक्टर काफी ऊपर रहता है। अगर गौर से देखा जाये, तो पिछले 35 सालों से बिहार में लालू यादव और नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द ही राजनीति घूमती रही है। ऐसे में इन दोनों के ‘एम’ फैक्टर के बारे में जानना बेहद दिलचस्प हो सकता है।
    पहले बात नीतीश कुमार की करते हैं। वैसे तो नीतीश कुमार का कोर वोट बैंक कोइरी-कुशवाहा है। कुर्मी वोट पर उनका एकाधिकार रहा है। हालांकि लालू यादव जातीय समीकरण के साथ मुस्लिम को जिस प्रकार से साधते रहे हैं, उसके बाद नीतीश कुमार ने एक साथ कई ‘एम’ फैक्टर पर काम करना शुरू किया है। कुछ पर तो नीतीश कुमार पहले से काम करते रहे हैं, जिसका उन्हें चुनाव में लाभ भी मिलता रहा है। इस बार नीतीश कुमार के पास जो ‘एम’ फैक्टर मौजूद हैं, वे बेहद प्रभावशाली भूमिका निभा सकते हैं।

    नीतीश के ‘एम’ फैक्टर में पहला मंदिर
    इनमें पहला है मंदिर। यह आज देश का सबसे बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। राम मंदिर को लेकर बीजेपी को कई राज्यों में लाभ मिला। चूंकि बिहार में भी 80% से अधिक हिंदू हैं, नीतीश कुमार और एनडीए को लगता है कि लालू यादव के जातीय समीकरण को मंदिर जैसे धार्मिक मुद्दे से ध्वस्त किया जा सकता है। बीजेपी के लिए तो पहले भी यह बड़ा मुद्दा रहा है, लेकिन अब नीतीश कुमार की पहल भी इस ओर दिख रही है। वह विधानसभा चुनाव से पहले हर हाल में मां सीता की मंदिर बनाना चाहते हैं। सीतामढ़ी के पुनौरा धाम में बनने वाले मां जानकी के मंदिर से उत्तर बिहार की 116 विधानसभा सीटों पर सीधा असर होगा। ऐसे तो यह मंदिर मुद्दा 243 सीटों पर ध्रुवीकरण में असरदार होगा। इस मंदिर के लिए नीतीश कुमार सरकार ने एक हजार करोड़ की राशि खर्च करने की घोषणा की है। कैबिनेट में 882 करोड़ की राशि मंजूर भी की है। मंदिर न्यास पर सरकार का कब्जा हो, उसके लिए सरकार ने अध्यादेश तक लाया है।

    सबसे बड़ा राजनीतिक ब्रांड मोदी
    नीतीश के पास जो दूसरा सबसे ताकतवर ‘एम’ है, उसका नाम मोदी है। मोदी आज सबसे बड़े राजनीतिक ब्रांड हैं। हर चुनाव में उनके चेहरे को आगे रखा जाता है। देश ही नहीं, दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता के तौर पर उनकी पहचान है। बिहार में इस साल पीएम मोदी का पांच बार दौरा हो चुका है। 85 हजार करोड़ की योजना का तोहफा वह बिहार को दे चुके हैं। चुनाव में सबसे अधिक डिमांड मोदी की होती है। नीतीश कुमार को अच्छी तरह से पता है कि हारी हुई बाजी को भी नरेंद्र मोदी पलट सकते हैं। 2020 में एनडीए की सरकार बनाने में पीएम मोदी की बड़ी भूमिका रही। इस साल भी मोदी जब भी बिहार आये हैं, नीतीश कुमार उनके साथ रहे हैं। लोगों में उनके प्रति आकर्षण और उत्साह कम नहीं हुआ है। इसलिए मोदी आज नीतीश कुमार की सबसे बड़ी जरूरत हैं। खासकर तेजस्वी यादव और विपक्ष के नेता जिस प्रकार से उनपर हमलावर हैं, मोदी का चेहरा उनके लिए नैया पार करने में बड़ा मददगार हो सकता है। इसलिए मंदिर के साथ नीतीश कुमार मोदी ब्रांड पर भी पूरा फोकस कर रहे हैं। कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते ही हैं, अब पार्टी कार्यालय में भी अपने साथ मोदी की तस्वीर लगा रहे हैं। नीतीश कुमार मोदी ब्रांड को अपने साथ जोड़ रहे हैं।

    महिलाओं की ताकत भी नीतीश के पास
    नीतीश कुमार के पास तीसरा ‘एम’ फैक्टर है महिला। यह नीतीश कुमार के लिए वरदान की तरह है। आधी आबादी का वोट सबसे अधिक नीतीश कुमार और एनडीए को मिलता है। बिहार में आधी आबादी का वोटिंग पुरुषों के मुकाबले 6% से भी अधिक होती है। यह एक बड़ा कारण है कि नीतीश कुमार महिला वोटर को लेकर इस बार भी बड़ी उम्मीद लगाये हुए हैं और लगातार बड़े फैसले ले रहे हैं। नीतीश कुमार को 2005 में सत्ता में लाने वाला सबसे बड़ा फैक्टर महिलाएं थीं। इस फैक्टर पर नीतीश कुमार शुरू से काम करते रहे हैं। पंचायत में आरक्षण से लेकर नौकरियों में आरक्षण तक का बड़ा फैसला लिया है। जीविका योजना शुरू करने के लिए विश्व बैंक से लोन तक लिया। साइकिल योजना, पोशाक योजना आधी आबादी को साधने के लिए ही लागू किया। साथ ही महिलाओं के कहने पर ही शराबबंदी भी लागू की। महिलाओं का वोट नीतीश और सहयोगियों को अधिक मिलता रहा है। जदयू-बीजेपी गठबंधन को सबसे बड़ी जीत साल 2010 में मिली थी। तब गठबंधन को 39.1 फीसदी मत मिले थे। 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव से हाथ मिलाया और जीत दर्ज की। इस चुनाव में भी 42 फीसदी महिलाओं का वोट मिला। यानी महिलाओं का वोट नीतीश कुमार को मिले कुल वोट प्रतिशत जितना ही रहा है। यही सच्चाई इससे पहले के चुनावों में भी नजर आयी। पिछले लोकसभा चुनाव में एनडीए को महिलाओं का करीब 40% वोट मिला था।

    महादलित वोट बैंक
    नीतीश का चौथा ‘एम’ फैक्टर है महादलित वोट बैंक। बिहार में महादलितों का वोट 19% से अधिक है। ऐसे तो दलित की राजनीति करने वाले बड़े नेताओं में चिराग पासवान और जीतन मांझी हैं। इस बार दोनों एनडीए के साथ हैं। इसके बावजूद नीतीश कुमार की इस वोट बैंक पर पकड़ रही है। 2020 में चिराग पासवान के अकेले चुनाव लड़ने के कारण महादलित वोट बैंक में सेंधमारी हो गयी थी, जिसका नुकसान एनडीए को हुआ। जदयू तो कई सीटों पर चुनाव हार गया और पहली बार जदयू 43 सीट लाकर तीसरे नंबर की पार्टी हो गयी। एनडीए को किसी तरह 125 सीट आयी। महागठबंधन को भी 110 सीट मिली थी। बिहार में महादलितों में 22 जातियां हैं, जिनमें से नीतीश कुमार ने पासवान को छोड़कर 21 को शुरू में महादलित बना दिया। रामविलास पासवान के कारण पासवान को महादलित से बाहर रखा था। बाद में रामविलास पासवान के साथ ट्यूनिग बेहतर होने पर पासवान को भी महादलित में शामिल कर लिया, तो नीतीश कुमार के लिए यह एक बड़ा वोट बैंक रहा है। पिछले दिनों नीतीश कुमार ने टोला सेवक को लेकर बड़ा फैसला लिया था।मुस्लिम वोट भी मिलता रहा है नीतीश को
    मुस्लिम वोट बैंक भी बिहार में बड़ा फैक्टर रहा है। नीतीश कुमार को 2010 में 210 सीटों पर प्रचंड जीत दिलाने में इस फैक्टर की बड़ी भूमिका रही है। हालांकि 2020 में मुस्लिम का बड़ा खेमा नीतीश कुमार से इसलिए नाराज हो गया, क्योंकि नीतीश कुमार फिर से बीजेपी के साथ हो गये। अभी वक्फ कानून के लागू होने के बाद यह नाराजगी और बढ़ी है, लेकिन नीतीश कुमार इस वर्ग के लिए भी बड़े फैसले ले रहे हैं। 2020 में जदयू ने 11 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे। उसमें से एक भी जीत नहीं पाया। लोकसभा चुनाव में भी किशनगंज से जदयू का मुस्लिम उम्मीदवार हार गया। बिहार विधानसभा में एनडीए की तरफ से एकमात्र मुस्लिम विधायक जमा खान हैं, जो बसपा से चुनाव जीते थे। वह बाद में जदयू में शामिल हो गये। उन्हें मंत्री भी बनाया गया है। नीतीश कुमार मुस्लिम को लेकर भी शुरू से बीजेपी के साथ रहते हुए भी अलग रुख अपनाते रहे हैं। यही कारण है कि लालू प्रसाद यादव का ‘एम-वाइ’ समीकरण ध्वस्त हो गया। हालांकि वक्फ कानून लागू होने के बाद से मुस्लिमों में नाराजगी है। फिर भी पसमांदा मुसलमान से नीतीश कुमार को उम्मीद है। अभी हाल ही में नीतीश कुमार ने अल्पसंख्यक आयोग और मदरसा बोर्ड का गठन भी किया है।

    मुखिया भी निभाते हैं अहम भूमिका
    बिहार में त्रिस्तरीय पंचायत प्रतिनिधियों में मुखिया की बड़ी भूमिका होती है। आठ हजार से अधिक पंचायत बिहार में हैं। ग्रामीण इलाकों में वोटर को अपने पक्ष में करने में मुखिया बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। इसलिए उनकी नाराजगी दूर करने के लिए कई बड़े फैसले नीतीश कुमार ने लिये हैं। इनका पावर भी बढ़ाया गया है और मानदेय भी बढ़ा दिया गया है।

    लालू के पास सबसे बड़ा ‘एम’ फैक्टर
    जहां तक लालू के ‘एम’ फैक्टर का सवाल है, तो मुस्लिम वोट लालू का मजबूत किला रहा है। 1990 के दशक में जब लालू प्रसाद यादव ने बिहार की सत्ता संभाली थी, तब से लगातार मुस्लिम-यादव (एम-वाइ) समीकरण लालू प्रसाद यादव के साथ रहा। यादव के बाद लालू प्रसाद यादव की सबसे बड़ी ताकत मुस्लिम वोट बैंक ही था। बिहार के बड़े मुस्लिम चेहरा, चाहे शहाबुद्दीन हों, अब्दुल बारी सिद्दीकी हों, तस्लीमुद्दीन हों, सभी लालू यादव के साथ रहे। सभी का अपने-अपने क्षेत्र में बड़ा दबदबा था। इनके अलावा भी कई चेहरे थे। 2005 में नीतीश के सत्ता संभालने के बाद लालू के मुस्लिम वोट बैंक में बड़ा बदलाव हुआ। उसके बावजूद मुस्लिम वोट बैंक का बड़ा हिस्सा लालू यादव के साथ जुड़ा रहा है और आज भी है। नीतीश कुमार ने भले ‘एम’ फैक्टर के सहारे लालू यादव को घेरा, फिर भी लालू यादव नीतीश कुमार पर कई बार भारी पड़े हैं। 2020 का परिणाम इसका उदाहरण है। नीतीश उसी की काट में इस बार बड़ा गेम प्लान कर रहे हैं और कई ‘एम’ फैक्टर को अपने साथ जोड़ कर विधानसभा चुनाव जीतने की रणनीति उन्होंने बनायी है।

    महिला फैक्टर पर भी तेजस्वी रेस
    महिला फैक्टर पर तेजस्वी यादव भी काम कर रहे हैं। माई-बहिन मान योजना जैसे कई तरह के वादे कर रहे हैं। हालांकि नीतीश कुमार महिलाओं को लुभाने के लिए लगातार फैसले ले रहे हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि आगे आने वाले दिनों में भी कई बड़े फैसले लेंगे। ऐसे में तेजस्वी की ओर से किये गये वादे का कितना असर होता है, यह भी देखने वाली बात होगी।

    सबसे बड़ा फैक्टर मजदूर
    मजदूर वर्ग भी बिहार में बड़ा फैक्टर रहता है। पलायन के दर्द से बिहार जूझ रहा है। इस दर्द को भी भुनाने की कोशिश में तेजस्वी यादव जुटे हुए हैं। मजदूरों के साथ युवाओं को भी जोड़ने की कोशिश में लगे हुए हैं। कुल मिलाकर देखें तो लालू और तेजस्वी के साथ यही तीन बड़े ‘एम’ फैक्टर हैं। वैसे नीतीश कुमार ने ‘एम’ फैक्टर का बड़ा कुनबा तैयार किया है, जो भारी पड़ता दिख रहा है।

    ‘एम’ फैक्टर का राजनीतिक असर
    ‘एम’ फैक्टर को लेकर जानकारों का कहना है कि इस पर तो नीतीश कुमार शुरू से काम करते रहे हैं। इसी कारण 20 साल से वह सत्ता में है। अब कई ‘एम’ फैक्टर उन्होंने अपने साथ जोड़ लिया है। इस बार लालू प्रसाद यादव पर नीतीश कुमार का कई ‘एम’ फैक्टर भारी पड़ रहा है। इसी कारण नीतीश कुमार सत्ता में बने हुए हैं।

    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleदिल्ली पुलिस के खुलासे के बाद ममता बनर्जी पर बरसे शुभेंदु अधिकारी
    Next Article बेतला नेशनल पार्क में विश्व बाघ दिवस पर कार्यक्रम आयोजित, वित्त मंत्री, पर्यटन मंत्री समेत अन्य जनप्रतिनिधि व वन अधिकारी रहे मौजूद
    shivam kumar

      Related Posts

      बिहार की चुनावी पिच पर हाथ आजमायेंगे कई नौकरशाह

      July 30, 2025

      झारखंड की कोख को छलनी कर रहा है अवैध कोयला खनन

      July 28, 2025

      तेजस्वी की चुनाव बहिष्कार की धमकी बेमतलब

      July 26, 2025
      Add A Comment
      Leave A Reply Cancel Reply

      Recent Posts
      • देवघर के बाबा बैद्यनाथ धाम में अबतक 40.57 लाख श्रद्धालुओं ने किया जलार्पण
      • रांची से अगवा छात्रा बरामद, हथियार के साथ पांच गिरफ्तार
      • राज्यपाल पहुंचे देवघर, रेलवे स्टेशन पर अधिकारियों ने किया स्वागत
      • रांची सहित आसपास के इलाकों में हुई बारिश से लोगों की बढ़ी परेशानी
      • बिहार की चुनावी पिच पर हाथ आजमायेंगे कई नौकरशाह
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version