विशेष
प्रशांत किशोर ने सत्ता मिलने पर एक घंटे में शराबबंदी खत्म करने का वादा किया
तेजस्वी यादव ताड़ी बेचने पर लगे प्रतिबंध को हटाने की बात कह साध रहे वोट बैंक
पहली बार किसी चुनाव में शराब जैसे मुद्दे को भी भुनाने में लग गये हैं राजनीतिक दल
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
बिहार के आसन्न विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सियासी गतिविधियां चरम पर हैं, तो चुनावी मुद्दे भी तेजी से तय हो रहे हैं। पूरी दुनिया में जाति आधारित राजनीति के लिए चर्चित बिहार में अन्य मुद्दों के अलावा इस बार शराब भी एक मुद्दा बन गया है। राज्य में ‘दारू पॉलिटिक्स’ की खूब चर्चा हो रही है। केंद्र सरकार ने जाति जनगणना कराने का फैसला किया, तो उम्मीद की गयी थी कि बिहार चुनाव में इसकी सबसे ज्यादा चर्चा होगी, एनडीए के नेता अपने को पिछड़ों, दलितों, वंचितों का हमदर्द बता कर चुनाव प्रचार में जायेंगे। लेकिन जाति के अलावा इस बार सबसे बड़ा मुद्दा शराब का होगा। बिहार चुनाव की घोषणा से पहले प्रशांत किशोर और तेजस्वी यादव यानी विपक्ष के दोनों बड़े नेताओं ने शराबबंदी को मुद्दा बना दिया है। प्रशांत किशोर ने 2016 में नीतीश कुमार सरकार द्वारा लागू शराबबंदी को बेकार बताते हुए सत्ता मिलने पर एक घंटे में इसे खत्म करने की बात कही है, तो तेजस्वी यादव ने पासी समाज का वोट हासिल करने के लिए ताड़ी की बिक्री पर लगी रोक को हटाने का वादा किया है। उन्होंने घोषणा की कि उनकी सरकार बनी, तो ताड़ी को शराबबंदी से बाहर करेंगे और ताड़ी बेचने को नियमित करेंगे यानी उद्योग का दर्जा देंगे। प्रशांत किशोर ने इसका समर्थन किया और कहा कि तेजस्वी एक कदम आगे बढ़े हैं। यह पहली बार है, जब किसी चुनाव में शराब की इतनी चर्चा हो रही है और इस पर वोट मांगे जा रहे हैं। क्या है बिहार की ‘दारू पॉलिटिक्स’ और क्या हो सकता है इसका असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर लगातार गरमाते सियासी माहौल में इस बार शराब भी घुलती जा रही है। राज्य में शराबबंदी राजनीतिक बहस का बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। 2016 में नीतीश कुमार ने राज्य में शराबबंदी लागू कर ऐतिहासिक कदम उठाया था और इसकी बदौलत हासिल लोकप्रियता ने उन्हें ‘सुशासन बाबू’ के रूप में स्थापित किया था। नीतीश कुमार को केवल शराबबंदी के लिए बिहार की महिलाओं का जबरदस्त समर्थन मिला था, लेकिन इस बार वही शराबबंदी नीति पर झकझूमर चल रहा है। बिहार की सत्ता के दोनों प्रमुख दावेदार, राजद नेता तेजस्वी यादव और चुनावी रणनीतिकार का पेशा छोड़ राजनीति के मैदान में उतरे प्रशांत किशोर ने शराबबंदी की कड़ी आलोचना की है। प्रशांत किशोर ने कहा है कि बिहार में उनकी पार्टी जन सुराज की सरकार बनी, तो एक घंटे में शराबबंदी हटा देंगे। उधर तेजस्वी यादव ने कहा है कि वह ताड़ी को शराबबंदी के दायरे से बाहर करेंगे।
प्रशांत किशोर ने शराबबंदी कानून खत्म करने का वादा किया
चुनावी रणनीतिकार से राजनीतिक मैदान में आनेवाले पीके, यानी प्रशांत किशोर ने साफ कहा है कि उनकी सरकार बनने पर एक घंटे में बिहार से शराबबंदी कानून को खत्म कर दिया जायेगा। यह बात उन्होंने अपनी राज्यव्यापी पदयात्रा के दौरान कई बार कही और अब भी लगातार कह रहे हैं। उनकी अपनी दलील है। उनका कहना कि बिहार में शराब दुकानों पर ताला लगा है, लेकिन शराब की होम डिलीवरी हो रही है। एक सौ रुपये वाली शराब के लिए तीन सौ रुपये देने पड़ रहे हैं। ऐसे में इसे खत्म किया जायेगा, ताकि लोगों को सही कीमत पर शराब उपलब्ध हो सके। पीके का कहना है कि शराबबंदी से बिहार जैसे राज्य को 20 हजार करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ है। शराबबंदी के बाद यह रकम शराब माफिया, भ्रष्ट अधिकारियों और कारोबारियों की जेब में जा रहा है, जबकि इस कानून के कारण डेढ़ लाख से अधिक लोग जेल में बंद हैं।
तेजस्वी ने ताड़ी पर से प्रतिबंध हटाने का वादा किया
दूसरी तरफ नेता प्रतिपक्ष और महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव ने भी शराबबंदी कानून का कड़ा विरोध किया था। उन्होंने शराबबंदी कानून के दुरुपयोग किये जाने और इसे निष्प्रभावी करार दिया। उनका कहना है कि इस कानून का उपयोग अब पुलिस और भ्रष्ट ताकतों द्वारा वसूली के लिए किया जा रहा है। उन्होंने स्पष्ट किया था कि अगर उनकी सरकार बनी, तो ताड़ी को इस कानून के दायरे से बाहर कर दिया जायेगा, लेकिन शराबबंदी बनी रहेगी। तेजस्वी यादव ने ताड़ी को गरीबों की पारंपरिक आजीविका का हिस्सा बताते हुए कहा था कि इसे प्रतिबंधित करने का कोई औचित्य नहीं है।
महागठबंधन में शराबबंदी पर मतभेद
शराबबंदी के मुद्दे पर महागठबंधन के भीतर भी अलग-अलग सुर नजर आ रहे हैं। तेजस्वी यादव जहां केवल ताड़ी को शराबबंदी कानून से बाहर करने की बात कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस पूरी शराबबंदी खत्म करने की वकालत कर रही है। हम पार्टी के अध्यक्ष जीतनराम मांझी पहले भी शराबबंदी कानून को खत्म करने की मांग कर चुके हैं। पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी भी कई बार शराबबंदी के खिलाफ बयान दे चुके हैं। उनका मानना है कि इस कानून से गरीबों को सबसे ज्यादा परेशानी हुई है, जबकि अमीर चोरी-छिपे शराब खरीद रहे हैं।
बिहार के लोगों का मिजाज
शराबबंदी पर बिहार के आम लोगों का मिजाज विभाजित नजर आता है। राज्य के मतदाताओं का एक बड़ा तबका शराबबंदी के पक्ष में नजर तो आता है, लेकिन इसके लिए बनाये गये कानून से पूरी तरह सहमत नहीं है। उत्तर और मध्य बिहार में शराबबंदी के कानून को पूरी सख्ती से लागू किया गया है। इससे लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। लेकिन दूसरी तरफ महिलाएं और बुजुर्ग शराबबंदी के पक्ष में हैं। उनका कहना है कि नीतीश कुमार ने बिहार को एक बड़े अभिशाप से मुक्त कर दिया है और इस पर दोबारा विचार करने की जरूरत नहीं है। महिलाएं तो कह रही हैं कि शराबबंदी से उनका घर टूटने से बच गया है। ऐसे में यदि शराबबंदी खत्म की जाती है, तो बिहार में सामाजिक अशांति फैल जायेगी।
आगामी चुनाव में शराबबंदी का असर
बिहार की सत्ता के दावेदारों के बीच शराबबंदी के मुद्दे पर छिड़ी बहस के बीच यह जानना दिलचस्प है कि आखिर चुनाव में यह मुद्दा कितना प्रभावी होगा। राजनीति के जानकारों का कहना है कि शराबबंदी को चुनावी मुद्दा बनाने या इसे खत्म करने का वादा कर तात्कालिक लाभ तो मिल सकता है, लेकिन लंबी अवधि में इसका बड़ा नुकसान पूरे बिहार को उठाना होगा। इसलिए बेहतर यही होगा कि इस मुद्दे को छुआ ही नहीं जाये।