रांची: कभी प्याज रुलाती है, तो कभी टमाटर लाल कर दे रहा है। कभी बंपर पैदावर किसानों के माथे पर बल ला देती है, तो पैदावार की कमी या अनियमित आपूर्ति उपभोक्ताओं को रुलाने लगती है। जिस टमाटर को देखकर मन खुश हो जाता था, आज वह विलेन की भूमिका में है। टमाटर की कीमतें न केवल जेब पर डाका डाल रही हैं, बल्कि जायका भी खराब हो गया है। उपभोक्ता जब टमाटर खरीदने जाते हैं तो पेटियों में टमाटर को बस निहारते रह जाते हैं। टमाटर उन्हें चिढ़ाता रहता है। टमाटर के शतक के करीब पहुंचते ही मंत्री तक लाल हो जाते हैं। बैठक के बाद निर्देश भी दिये जाते हैं। यह अच्छी पहल है। महंगाई पर काबू करने के लिए सरकार को पहल करनी ही चाहिए। आम आदमी की चिंता तो सरकार को होनी ही चाहिए। लेकिन सवाल उठता है कि यह चिंता उस वक्त भी की जानी चाहिए, जब यह टमाटर सड़कों पर फेंका जाता है। इसकी कीमत तक किसानों को नहीं मिल पाती है। जब यही टमाटर किसानों को लाल करता है, तो किसी के माथे पर बल नहीं आता।
झारखंड में टमाटर की कीमतों में भारी उछाल : झारखंड में टमाटर की कीमतों में हाल के दिनों में भारी उछाल आया है। टमाटर बाजार में 80 से 100 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेचा जा रहा है। कुछ महीने पहले की बात करें, तो यही टमाटर सड़कों पर फेंका जा रहा है। शहर में भी इसकी कीमत तीन रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गयी थी।
…तो बदल जाती किसानों की जिंदगियां : बरियातू डॉक्टर कॉलोनी में पिठोरिया से सब्जी बेचने आये रामकिशुन महतो ने कहा कि झारखंड में प्रत्येक वर्ष टमाटर का भारी उत्पादन होता है। लेकिन टमाटर को सड़कों पर फेंका गया, क्योंकि लोगों के पास शीतगृहों की सुविधाओं की कमी थी और राज्य सरकार की ओर से कोई सहायता नहीं मिली। यहां तक की हम इस वर्ष सब्जियों की परिवहन लागत भी निकालने में असमर्थ रहे, जिसके कारण हमें टमाटरों को सड़कों पर फेंकना पड़ा। नंदलाल मुंडा नामक किसान ने कहा कि किसानों की जिंदगियां बदली जा सकती थीं, यदि राज्य सरकार इनके टमाटरों के संरक्षण का इंतजाम करती। झारखंड उन राज्यों में है, जहां अच्छी गुणवत्ता के टमाटर और मटर की पैदावार की जाती है।
गोदाम की व्यवस्था से बनेगी बात : किसान अपनी उपज के उचित दाम को लेकर परेशान रहेगा तो उपभोक्ता सब्जियों और दूसरे खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों से परेशान रहेंगे। किसानों को बुनियादी सुविधाओं को उपलब्ध कराने के लिए आगे आना होगा। सब्जियों के लिए प्रखंड-जिला स्तर पर खास गोदामों की व्यवस्था करनी चाहिए ताकि किसान उपज को सुरक्षित रख सकें।
आगे क्या होगा : इस वर्ष खरीफ सीजन में पिछले साल की अपेक्षा 35 से 40 फीसद कम टमाटर की खेती की गयी है। उम्मीद की एक किरण ये है कि टमाटर की आसमान छूती कीमतों की वजह से किसान टमाटर की खेती की तरफ जा सकते हैं। लेकिन ज्यादातर इलाकों में नर्सरी में टमाटर लगाने का समय खत्म हो चुका है। इसके साथ ही यदि नवंबर के महीने में टमाटर की पैदावर अच्छी नहीं हुई, तो उपभोक्ताओं को सिर्फ टमाटर देखकर संतोष करना होगा।
हमें भी समझना होगा किसानों का दर्द : टमाटर से ज्यादा लाल तो किसान गुस्से से होते हैं। उनका ये गुस्सा भी नाजायज नहीं होता। जब अपनी मेहनत का मोल नहीं मिलता, तो हांड़ मांस खपाकर उगाया टमाटर सड़क पर फेंक दिया करते हैं। इस मसले को सिर्फ सरकार के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है। हम और आप सब्जी मंडी में जाते हैं, तो दस जगह पूछते हैं। मोलभाव करते हैं। लेकिन आपने शराब की दुकान पर किसी को मोलभाव करते नहीं देखा होगा। यही फर्क है मानसिकता में। इसी मानसिकता को बदलने की जरूरत है। किसानों की जरूरत को भी सबको समझना होगा।
तात्कालिक कारण: टमाटर की आसमान छूती कीमतों के पीछे वैसे तो कई वजह है। लेकिन सबसे प्रमुख कारण है बारिश। भारी बारिश की वजह से झारखंड समेत टमाटर उत्पादक राज्यों में 70 फीसदी से ज्यादा फसल बर्बाद हो चुके हैं।
पानी की कमी: टमाटर के दाम बढ़ने का दूसरा तात्कालिक कारण है कई राज्यों में पानी की किल्लत। दरअसल, भारी बारिश के पहले कई सूखे की स्थिति पैदा हो गयी थी, जिसके चलते भी टमाटर के साथ दूसरी सब्जियों को भारी नुकसान हुआ।
दीर्घकालिक कारण: टमाटर के दाम में भारी बढ़ोतरी के पीछे जहां प्रकृति जिम्मेदार है, उससे कम जिम्मेदार सरकार नहीं है।
भंडारण का अभाव: सब्जियों के भंडारण का भारी अभाव है। राज्य गठन के बाद अब तक सब्जियों के उचित भंडारण व्यवस्था नहीं हो पायी है। भंडारण के पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने के चलते सब्जियां बर्बाद हो जाती हैं।
बिचौलिये का खेल:किसान की सबसे बड़ी बिडंबना रही है कि वह साहूकारों और बिचौलिये की जाल में जकड़े हुए हैं। दरअसल, बिचौलिये नुकसान होने का हवाला देकर भारी मात्रा में सब्जियों का स्टॉक कर लेते हैं, फिर ऊंची कीमत पर बाजार में उसे खपाते हैं।
टमाटर और सब्जियों के संदर्भ में भी ऐसा हो सकता है।