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    Home»Top Story»झारखंड में विपक्ष के आक्रोश और जोश पर ‘370 अटैक’
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    झारखंड में विपक्ष के आक्रोश और जोश पर ‘370 अटैक’

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskAugust 7, 2019No Comments5 Mins Read
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    पांच अगस्त को जिस समय केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर को धारा 370 से मुक्त करने का ऐलान कर रहे थे, लगभग उसी समय दिल्ली से 12 सौ किलोमीटर दूर झारखंड की राजधानी रांची की सड़क पर झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन अपने कार्यकर्ताओं के साथ राज्य की रघुवर सरकार के खिलाफ युवा आक्रोश मार्च निकाल रहे थे। दिन बीतते-बीतते जब जम्मू-कश्मीर पर हुए फैसले की तस्वीर साफ हुई, हेमंत समेत झारखंड के दूसरे विपक्षी दलों के सुर बदलने लगे। हेमंत सोरेन की पार्टी झामुमो ने जहां केंद्र सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए सकारात्मक आलोचना की, वहीं झारखंड विकास मोर्चा सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी ने इस फैसले की खुले दिल से सराहना की। कांग्रेस की ओर से दिन में तो कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी, लेकिन शाम होते-होते इस पार्टी के कई नेता निजी तौर पर फैसले का स्वागत करते दिखे। यह स्थिति पूरे राज्य की रही। झारखंड के हर कोने से इस फैसले पर जश्न मनाने की खबरें आयीं।
    पहली बार सरकार के साथ
    झारखंड ही नहीं, पूरे देश में यह पहली बार हुआ है कि कुछ अपवादों को छोड़ कर विपक्षी दलों ने आम तौर पर सरकार के फैसले का साथ दिया है। सबसे खास बात यह है कि सरकार के फैसले का विरोध करनेवाले भी खुल कर सामने आने से कतरा रहे हैं। झारखंड में तो स्थिति और भी अलग रही। मुख्य विपक्षी दल की ओर से जो बयान आया, उसमें फैसले का स्वागत करते हुए इसकी सकारात्मक आलोचना की गयी थी। इसमें कहा गया कि खाना तो बहुत अच्छा है, लेकिन इसमें अचार और पापड़ होता, तो और बढ़िया होता। उधर भाजपा के हर फैसले के खिलाफ आग उगलनेवाले बाबूलाल मरांडी ने कश्मीर को धारा 370 से मुक्त किये जाने के फैसले को साहसिक कदम बताते हुए इसका स्वागत कर दिया। झामुमो विधायक कुणाल षाड़ंगी और आजसू से इस्तीफा दे चुके विधायक विकास मुंडा ने तो मुक्त कंठ से धारा 370 हटाने को क्रांतिकारी कदम बता दिया है, वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राजेंद्र सिंह के पुत्र जयमंगल सिंह उर्फ अनूप ने भी व्यक्तिगत तौर पर इसे देशहित में लिया गया फैसला बताया है। हाल के दिनों में ऐसा पहली बार हुआ है और इस नजरिये से यह फैसला परिवर्तनकारी है।
    झारखंड की राजनीति पर असर
    लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त झेल चुके विपक्षी दलों के खेमे में दो महीने के भीतर ही इस फैसले के बाद मायूसी छा गयी है। राज्य में इसी साल के अंत में विधानसभा का चुनाव होना है और झामुमो, झाविमो और कांग्रेस मिल कर मैदान में उतरने की तैयारी में जुटे हैं। ऐसे में कश्मीर पर इस ऐतिहासिक फैसले ने उन्हें सकते में डाल दिया है। विपक्षी दलों की परेशानी यह हो गयी है कि उन्हें अब नये सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी। यह रणनीति बनाते समय उन्हें इस बात का ध्यान रखना पड़ेगा कि राज्य भर में कश्मीर के फैसले का जिस तरह से स्वागत किया गया है, उसके बाद भी वोट हासिल करना कितना मुश्किल होगा। यह सही है कि झारखंड के मुद्दे अलग हो सकते हैं, लेकिन अब तो वोट डालते समय लोगों के दिलो-दिमाग पर कश्मीर का फैसला तो हावी रहेगा ही।
    समर्थन पर मजबूर क्यों हुए विपक्षी
    सवाल यह उठता है कि झारखंड में विपक्षी दलों को इस फैसले का स्वागत करने के लिए क्यों मजबूर होना पड़ा है। इसका जवाब बेहद आसान है, लेकिन राजनीतिक नजरिये से वही जवाब बेहद उलझानेवाला हो सकता है। कश्मीर पर हुए फैसले ने आम जनमानस को भाजपा के पक्ष में मोड़ दिया है। चार-पांच महीने बाद जब ये लोग वोट डालने जायेंगे, तो उनके सामने 370 मुक्त जम्मू-कश्मीर की छवि होगी। विपक्षी दलों को इस बात का ध्यान है कि ऐसे में स्थानीय मुद्दों को आम जनता के सामने मजबूती से पेश करने में बेहद कठिनाई होगी। इसलिए उन्होंने धारा के विरुद्ध नहीं, बल्कि धारा के साथ चलने में ही भलाई समझी है। सवाल का राजनीतिक जवाब इसलिए उलझानेवाला है कि लोग जब विपक्षी दलों से सवाल करेंगे कि आखिर उन्हें वोट क्यों दिया जाये, तो उनके पास जवाब ही नहीं होगा। दूसरे शब्दों में कहें, तो विपक्षी दलों के पास वोट मांगने का कोई मुद्दा नहीं रह गया है।
    मुद्दे की तलाश में हैं झामुमो और झाविमो
    झारखंड के विपक्षी दलों में कश्मीर पर फैसले से जो सन्नाटा पसरा है, उसके खतरे भी हैं। जब विपक्ष बिना किसी मुद्दे के विधानसभा चुनाव में उतरेगा, तो वह वोट के लिए लोगों की भावनाएं भड़काने की कोशिश कर सकता है। मसलन जल-जंगल-जमीन और विस्थापन जैसे मुद्दे उठा कर वह लोगों के बीच भ्रम की स्थिति पैदा कर सकता है। विपक्ष के इन हथकंडों से जहां सत्ता पक्ष को सतर्क रहने की जरूरत होगी, वहीं आम लोगों को भी इसे समझना होगा।
    इसलिए कश्मीर पर मोदी सरकार के फैसले ने झारखंड की राजनीति के रंग को पूरी तरह बदल कर रख दिया है। इस स्थिति में यह देखना दिलचस्प होगा कि विपक्षी दल इस हमले का जवाब देने के लिए क्या रणनीति अपनाते हैं। वैसे भी विधानसभा चुनाव में विपक्ष के पास सिवाय बदलाव के कोई और मुद्दा नहीं है, जिसके आधार पर वे अपने पक्ष में समर्थन मांग सकें। बिखरती हुई एकता और कश्मीर के फैसले से लगा झटका झारखंड के विपक्षी दलों को किस हालत में पहुंचाता है, इसका जवाब तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन इतना तय है कि इस झटके से उबरने के लिए उन्हें बहुत मेहनत करनी होगी।

    '370 Attack' on Opposition's fury and enthusiasm in Jharkhand
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