बेगूसराय। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव (जन्माष्टमी) नजदीक आते ही चप्पा-चप्पा श्रीकृष्णमय हो गया है। जन्माष्टमी उत्सव को लेकर ठाकुरबाड़ियों में तैयारी जोरों पर है, इस अवसर पर लगने मेला की तैयारी अंतिम चरण में है, पंडालों को आकर्षक तरीके से सजाया जा रहा है। पूजा पंडाल का निर्माण कर लिया गया है, शेष कार्य कार्य युद्धस्तर पर जारी हैं।
दूर-दूर से आये प्रसिद्ध कलाकारों द्वारा श्रीकृष्ण, राधा सहित अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमा को अंतिम रूप दिया जा रहा है। तोरण द्वार बनाए जा रहे हैं, जिसमें किसी को इंडिया गेट तो किसी गेटवे ऑफ इंडिया, अक्षरधाम और महाकाल मंदिर का स्वरूप दिया जा रहा है। 19 अगस्त की मध्य रात्रि वेला में श्रीकृष्ण के जन्म लेते ही चप्पा-चप्पा ”हरे कृष्णा-हरे कृष्णा” से गूंज उठेगा। इसको लेकर बिहार के बेगूसराय में लगने वाले भारत के दूसरे सबसे बड़े मेले की तैयारी अंतिम चरण में पहुंच गई है। देश के विभिन्न शहर और विदेशों में रहने वाले लोग अपने घर आ चुके हैं।
सब जानते हैं कि श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा, वृन्दावन में भारत का सबसे बड़ा जन्माष्टमी मेला लगता है। लेकिन, बहुत कम लोगों को पता होगा कि भगवान श्रीकृष्ण के जन्मभूमि मथुरा के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मेला बेगूसराय जिला के तेघड़ा में लगता है। तेघड़ा एवं उसके आसपास लगने वाला श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मेला बिहार का सबसे बड़ा और भारत का दूसरा सबसे बड़ा श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मेला है। यहां मेला देखने के लिए बिहार ही नहीं, नेपाल, बंगाल, राजस्थान, दिल्ली, यूपी, असम, उड़ीसा, झारखंड के साथ विदेशों में रहने वाले प्रवासी भारतीय भी आते हैं।
1928 में तेघड़ा में मात्र एक जगह से शुरू मेला आज 14 पंडालों में सज रहा है। अब तो तेघड़ा से चकिया तक करीब 20 किलोमीटर में 50 से अधिक जगहों पर पूजा-अर्चना हो रही है। तेघड़ा का ऐतिहासिक श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मेला ना सिर्फ देश का दूसरा सबसे बड़ा मेला है, बल्कि यह धर्मनिरपेक्षता की अदभूत मिसाल प्रस्तुत करता है। पांच दिवसीय इस मेले में धर्म और जाति का कोई मायने नहीं रह जाता है।
तेघड़ा इलाके के बुजुर्गों बताते हैं कि 1927 में तेघड़ा और आसपास के इलाकों में प्लेग महामारी के रूप में फैल गई थी। लोगों ने दूसरे जगह जाकर रहना शुरू कर दिया था, महामारी से बचने के लिए तेघड़ा के लोगों ने कई यज्ञ, अनुष्ठान, तंत्र-मंत्र का सहारा लिया, लेकिन कोई प्रभाव नहीं पड़ा। इसी बीच 27-28 फरवरी 1927 को भारत भ्रमण के लिए निकली चैतन्य महाप्रभु की मंडली तेघड़ा पहुंची, तो यहां की दुर्दशा देख चौंक गई। लोगों की स्थिति देख कर मंडली ने श्रीकृष्ण जन्मोत्सव (जन्माष्टमी) मनाने की सलाह दी।
चैतन्य महाप्रभु की मंडली के सलाह पर 1928 पहली बार वंशी पोद्दार के नेतृत्व में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया गया। इसके बाद तेघड़ा में लोगों को प्लेग से निजात मिला और तब से मेला अनवरत जारी है। समय के साथ मेला का आकार भी बढ़ता चला तथा तेघड़ा मेला में मंडपों की संख्या भी बढ़ती चली गई। तेघड़ा से शुरू होकर यह मेला रेलवे कॉलोनी बरौनी, गढ़हारा, बीहट, चकिया, सुशील नगर, लाखो, वनद्वार, पहसारा होते हुए मंसूरचक तक पहुंच गया है।
तमाम जगहों पर मेला के आकर्षण का केंद्र आकाशी झूला, मौत का कुआं, जादूगर, ड्रैगन ट्रेन, मीना बाजार आदि सज रहा है। विधि व्यवस्था को लेकर स्थानीय प्रशासन जागरूक है, सभी गतिविधियां हो गई है। कुल मिलाकर कहें तो कोरोना संक्रमण के कारण दो साल की बंदी के बाद इस वर्ष एक बार फिर भारत के दूसरा मथुरा बन चुके तेघड़ा की हर गली कृष्णमय हो गई है।