विशेष
पार्टी का हर एक नेता और कार्यकर्ता उन्हें अपने दिल के करीब पा रहा है
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
हिमंता जो बोलते हैं, वह करते हैं, और जो नहीं बोलते, वह तो डेफिनिटेली करते हैं। जब से भाजपा के फायर ब्रांड नेता हिमंता को झारखंड विधानसभा चुनाव का सह प्रभारी बनाया गया है, वह लगातार झारखंड भाजपा को नयी धार देने में लगे हुए हैं। झारखंड को जानने और पहचानने में लगे हुए हैं। हिमंता जनता से जुड़ना जानते हैं। उसके महत्व को वह पहचानते हैं। वह मात्र एक राजनीतिक शख्सियत के तौर पर जनता से नहीं जुड़ते, वह दिल से जनता से जुड़ते हैं। उन रिश्तों को आत्मसात करते हैं। वह कोशिश करते हैं कि वह जनता का दिल ही नहीं जीतें, वह उसका विश्वास भी जीतें। हिमंता और मुद्दा दोनों साथ-साथ चलते हैं। जमीनी मुद्दों की पहचान करने की ताकत, उनको अलग श्रेणी के नेताओं की कतार में लाकर खड़ा करता है। झारखंड में आसन्न विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सियासी गतिविधियां उफान पर हैं। पिछले दो महीने से जिस एक शख्स ने राज्य में भाजपा की राजनीति को अलग धार दी है, उसका नाम है हिमंता बिस्वा सरमा। कहा जाता है कि राजनीति हमेशा अवधारणाओं पर निर्भर करती है और मानवीय संवेदनाओं का इसमें कोई स्थान नहीं होता, लेकिन असम के मुख्यमंत्री और झारखंड में भाजपा के चुनाव सह-प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा ने झारखंड को जितनी तेजी से आत्मसात किया है, वह अकल्पनीय है। जून के तीसरे सप्ताह में नयी जिम्मेदारी मिलने के बाद से भाजपा के इस फायरब्रांड नेता ने झारखंड में नयी छाप छोड़ी है। हिमंता की राजनीति इसलिए भी अनोखी है, क्योंकि उसमें आक्रामकता के साथ-साथ मानवीय संवेदनाओं और रिश्तों का रंग भी होता है। इसका एक उदाहरण उस समय मिला, जब हिमंता बिस्वा सरमा पाकुड़ के गायबथान पहुंच गये, जहां एक आदिवासी परिवार की जमीन पर वर्ग विशेष के लोगों ने कब्जा कर लिया था और उसके साथ मारपीट की थी। हिमंता बिस्वा सरमा उस गांव में पहुंच गये और उस परिवार की आर्थिक मदद भी करवा दी। वह बेंगाबाद भी पहुंच गये, जहां के एक हवलदार की एक शातिर अपराधी ने इलाज के क्रम में शेख भिखारी अस्पताल में हत्या कर दी थी। पिछले सप्ताह जब रांची में भारतीय जनता युवा मोर्चा ने आक्रोश रैली का आयोजन किया, तो उसमें हिमंता बिस्वा सरमा की आक्रामक रणनीति का स्वरूप भी दिखा। वह जिस तरह पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं में जोश भरते हैं, मुद्दे उठाते हैं और असम में अपनी सरकार के कामकाज को झारखंड के परिप्रेक्ष्य में तुलना करते हैं, तो ऐसा लगता है, मानो वह कोई मनपसंद खेल की बाजी चल रहे हैं। चाहे घुसपैठ का मुद्दा हो या राज्य की जनता की सुरक्षा का, आरक्षण का मुद्दा हो या बेरोजगारी का, हिमंता अपनी बात इतनी स्पष्टता से सामने रखते हैं कि सामने वाला स्तब्ध हो जाता है। यही कारण है कि पिछले चुनाव के बाद राजनीतिक रूप से शांत पड़ गयी झारखंड भाजपा आज नये जोश में दिखने लगी है। इनकी एक खासियत है। वह वन मैन शो की भूमिका में विश्वास नहीं करते हैं। यही कारण है कि वह प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी, नेता प्रतिपक्ष अमर बाउरी, संगठन महामंत्री कर्मवीर सिंह, पार्टी के सांसद और विधायकों के साथ घुल मिल गये हैं। वह आम कार्यकर्ता की तरह पेश आते हैं और किसी भी मुद्दे को बहुत ही बारीकी से समझने की कोशिश करते हैं। इसमें वह पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ आत्मीय संबंध बना कर उनका विश्वास जीतने की कोशिश करते हैं। हर कोई उनसे बात करने में अपने को सहज महसूस करता है। कौन हैं हिमंता बिस्वा सरमा और क्या है उनकी आक्रामक राजनीति की शैली, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
तारीख थी 17 जून, 2024। लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित हुए महज 13 दिन हुए थे। मोदी सरकार का तीसरा कार्यकाल शुरू ही हुआ था। संसदीय चुनाव में अपेक्षित सफलता नहीं मिलने का मलाल भाजपा को था, लेकिन लगातार तीसरी बार सरकार बनाने का जोश भी था। इसी जोश के तहत पार्टी ने उन राज्यों की तरफ ध्यान मोड़ा, जहां विधानसभा के चुनाव होने थे। इन राज्यों में झारखंड भी था। पार्टी ने शिवराज सिंह चौहान को प्रदेश का चुनाव प्रभारी बनाया और उनकी मदद के लिए सह प्रभारी के रूप में अपने फायरब्रांड नेता हिमंता बिस्वा सरमा को जिम्मेदारी सौंपी। ये दोनों नेता अगले ही दिन रांची आये और काम में जुट गये।
महज दो महीने बाद 25 अगस्त को नामकुम के गांव में पीएम मोदी के लोकप्रिय कार्यक्रम मन की बात का प्रसारण सुनने के लिए भाजपा के प्रदेश महासचिव और राज्यसभा सांसद डॉ प्रदीप वर्मा ने खिजरी विधानसभा क्षेत्र के लोगों के लिए पीएम मन की बात को सुनने के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन किया था। उसमें भाजपा के कई नेता एकत्र हुए थे, उनमें एक नाम हिमंता बिस्वा सरमा का भी था। उस कार्यक्रम में असम के मुख्यमंत्री खिजरी के एक गांव हुवांगहातू पंचायत के लोगों के साथ इस तरह घुल-मिल गये थे कि लगता ही नहीं था कि वह किसी दूसरे प्रदेश के हैं। उन्होंने बुजुर्ग महिलाओं के पैर छूकर आशीर्वाद लिया। मांदर भी बजाया और हुवांगहातू पंचायत के ग्राम प्रधान शंकर सिंह मुंडा के घर में मुंडारी पारंपरिक भोजन ग्रहण किया। बता दें कि मुंडारी पारंपरिक आहार राज्य की खाद्य संस्कृति का महत्वपूर्ण भाग है। उन्होंने सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लिया।
हिमंता बिस्वा सरमा ने पिछले दो महीने में झारखंड को जितना समझा और जाना है, वह अपने आप में अद्भुत है। झारखंड के लोगों से मिलना, उनके सामाजिक सरोकारों से खुद को जोड़ना और उनकी संस्कृति में खुद को ढाल लेना कम बड़ी बात नहीं है। हिमंता जिस काम को हाथ में लेते हैं, उसे अंजाम तक पहुंचाने का प्रयास निरंतर करते रहते हैं। कोई अगर उनके काम में बाधा पहुंचाने का प्रयास करता है, उन्हें घेरने की कोशिश करता है, उसे वह उसी के औजार से परास्त भी करने का दम रखते हैं।
कौन हैं हिमंता बिस्वा सरमा
2015 में भाजपा में शामिल हुए हिमंता बिस्वा सरमा इस समय भाजपा के प्रमुख रणनीतिकार माने जाते हैं। वह पार्टी के फायरब्रांड नेता हैं और बेहद बेबाक ढंग से अपनी बात कहने के लिए जाने जाते हैं। देश के पूर्वोत्तर हिस्से में भाजपा के मुख्य रणनीतिकार हिमंता बिस्वा सरमा पार्टी के लिए अपरिहार्य होते जा रहे हैं। उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बाद भाजपा के राजनीतिक और चुनावी रूप से सबसे चतुर दिमाग का मालिक माना जाता है। वह कठिन परिस्थितियों में भी सफल चुनावी अभियान चलाने की अपनी अनोखी क्षमता और स्थानीय जरूरतों के मुताबिक खुद को ढाल लेने की ताकत के कारण अलग पहचान रखते हैं। इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री के रूप में अपनी प्रशासनिक क्षमता के कारण भी वह बेहद लोकप्रिय हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कांग्रेस छोड़ने के बाद भाजपा में शामिल होकर उन्होंने बहुत जल्द अपने आपको भाजपा की राजनीति में पूरी तरह फिट कर लिया। हिमंता बिस्वा सरमा शायद हाल के वर्षों में मोदी-शाह द्वारा हासिल की गयी सबसे अच्छी उपलब्धि हैं और आज उनकी सबसे बड़ी संपत्तियों में से एक हैं।
झारखंड के करीब आते जा रहे हैं हिमंता
झारखंड की सत्ता फिर से भाजपा को दिलाने के उद्देश्य से सह-प्रभारी बनाये गये हिमंता बिस्वा सरमा ने बड़ी तेजी से खुद को झारखंड के रंग में रंग लिया है। वह झारखंड भाजपा के एक-एक नेता और कार्यकर्ता से निजी रूप से जुड़ चुके हैं। इतना ही नहीं, झारखंड के अलग-अलग इलाकों के अलग-अलग मुद्दों के बारे में भी अपनी राय बना चुके हैं। यही कारण है कि संथाल परगना में जहां वह घुसपैठियों और आदिवासी संस्कृति की बात करते हैं, वहीं पलामू और कोयलांचल में पिछड़ेपन का मुद्दा उठाते हैं। रांची में वह झारखंड सरकार की नाकामियों पर करारा प्रहार करते हैं, तो ग्रामीणों के साथ बड़ी आसानी से घुल-मिल जाते हैं।
झारखंड भाजपा में अलग लेवल का जोश
पिछले सप्ताह भाजपा की युवा शाखा भारतीय जनता युवा मोर्चा ने रांची में जन आक्रोश रैली का आयोजन किया था। कहा जा रहा है कि इसे आकार हिमंता बिस्वा सरमा ने ही दिया था। रैली को लेकर एक अलग तरह की रणनीति बनाने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। सियासी नजरिये से देखा जाये, तो विपक्षी भाजपा ने पांच साल में पहली बार इतनी बड़ी रैली का आयोजन किया था। 2019 के विधानसभा चुनाव में सत्ता से बाहर हो गयी इस पार्टी ने पिछले पांच साल में इस तरह का धारदार आंदोलन नहीं किया था। हालांकि 8 सितंबर 2021 को पार्टी ने विधानसभा घेराव का आयोजन जरूर किया था, लेकिन पार्टी चाह कर भी उस पर सियासी रंग नहीं चढ़ा सकी। विधानसभा घेराव का वह कार्यक्रम लाठी चार्ज, आंसू गैस और वाटर कैनन के इस्तेमाल के बाद खत्म हो गया था। भाजपा के बारे में कहा जाने लगा था कि वह विपक्ष की भूमिका भूल चुकी है। उसके नेता और कार्यकर्ता अब सत्ताप्रेमी हो गये हैं। इसलिए वे सड़क पर उतरने से हिचकते हैं। इस छवि से उबरने और कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए भाजपा के लिए आक्रोश रैली महत्वपूर्ण थी। पार्टी ने इसे सफल बनाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी। पार्टी का हर छोटा-बड़ा नेता इसके लिए सक्रिय था। भाजपा ने इस रैली के सहारे भाजपा कार्यकर्ताओं में धार पैदा कर दी है। भाजपा ने आक्रोश रैली के बहाने उन मुद्दों पर भी आम लोगों का ध्यान खींचा है, जो अक्सर उन्हें परेशान करते हैं। बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और योजनाओं में गड़बड़ी जैसे मुद्दों को सामने लाकर भाजपा ने एक एजेंडा सेट कर दिया है।
कमाल की है प्रशासनिक क्षमता
हिमंता बिस्वा सरमा असम के मुख्यमंत्री भी हैं। लेकिन झारखंड में पार्टी का काम करने का मतलब यह नहीं है कि वह अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों पर ध्यान नहीं देते। इसका एक उदाहरण यह है कि हाल ही में असम में बलात्कार की एक घटना हुई। हिमंता ने राज्य के डीजीपी को फोन किया और केवल इतना कहा कि असम को किसी भी हाल में बंगाल नहीं बनने देंगे। उसी दिन असम पुलिस ने चंद घंटे में आरोपी को गिरफ्तार कर लिया। आरोपी को क्राइम सीन पर ले जाया गया। उसके अंदर इतना डर समा गया कि क्राइम सीन से वह भाग कर तालाब में कूद गया। असम में ऐसा माहौल बना और लोग इतने जागरूक हुए कि बलात्कारी के गांववालों ने ऐसा प्रण ले लिया कि उसके शव को गांव में नहीं दफनाने देंगे। इसी तरह कुछ दिन पहले बांग्लादेश से घुसपैठियों का एक समूह भारत आने की कोशिश कर रहा था। असम पुलिस ने तत्काल 26 लोगों को गिरफ्तार कर लिया। हिमंता बिस्वा सरमा की सरकार अपराध और दूसरे मुद्दों को लेकर कितनी संवेदनशील है, यह इन दो उदाहरणों से समझा जा सकता है।
अब हिमंता बिस्वा सरमा भाजपा को झारखंड की सत्ता में वापसी की कोशिश कर रहे हैं। इसमें उन्हें कितनी सफलता मिलती है, यह तो समय ही बतायेगा, लेकिन इतना तय है कि झारखंड के तमाम नेताओं को साथ लेकर वह पार्टीजनों के बीच एक सकारात्मक माहौल बनाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। वह हर छोटे बड़े नेताओं को सम्मान की दृष्टि से देख रहे हैं। उनके मन में जितना सम्मान पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को लेकर है, वही सम्मान एक अदना कार्यकर्ता और भाजपा के हर नेता, सांसद, विधायक के प्रति भी है। इसमें कोई संदेह नहीं कि हिमंता बिस्वा सरमा ने झारखंड भाजपा के भीतर नया जोश भर दिया है।