विशेष
विभिन्न मोर्चों के गठन के बाद पार्टी के भीतर और बाहर उठ रहे हैं सवाल
युवा से लेकर किसान मोर्चा तक में नहीं मिला है पूरे प्रदेश का प्रतिनिधित्व
दुमका समेत पांच जिलों को नहीं मिला किसी भी मोर्चे में एक भी स्थान
रांची को सभी मोर्चों में लगभग 44 फीसदी प्रतिनिधित्व, संथाल, कोल्हान उपेक्षित
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड में आसन्न विधानसभा चुनाव की गहमा-गहमी के बीच इन दिनों एक विवाद सियासी फिजा में तैर रहा है। यह विवाद झारखंड की सत्ता फिर से हासिल करने की कोशिश में जुटी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी, यानी भाजपा की प्रदेश इकाई को लेकर है। पार्टी ने राज्य में अपने चुनावी अभियान को धारदार बनाने के उद्देश्य से विभिन्न मोर्चों का गठन किया है। प्रदेश अध्यक्ष की सहमति से इन मोर्चों के अध्यक्षों ने अपनी-अपनी टीम की सूची जारी की है। विवाद इन सूचियों पर छिड़ गया है और इससे झारखंड भाजपा के विभिन्न मोर्चों की किरकिरी हो रही है। यह विवाद अनुचित भी नहीं है, क्योंकि इन सभी सूचियों को देखने से साफ होता है कि पार्टी के मोर्चों में प्रदेश के सभी जिलों का प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। इतना ही नहीं, कम से कम पांच ऐसे जिले हैं, जिन्हें किसी भी मोर्चे में कोई प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है। वहीं हर कमेटी में रांची का दबदबा साफ देखा जा रहा है। अकेले रांची ने सभी मोर्चों में लगभग 43 फीसदी सीटों पर कब्जा जमा लिया है। पार्टी के भीतर और बाहर भी यह चर्चा हो रही है कि इन मोर्चों की सूची प्रदेश मुख्यालय में बैठ कर तैयार कर ली गयी है और इनमें अधिकांश जगह उन नेताओं को दी गयी है, जो या तो मुख्यालय में ही जमे रहते हैं या फिर काम से अधिक गणेश परिक्रमा में भरोसा करते हैं। इन सूचियों के कारण पार्टी के अंदर गुटबाजी भी शुरू हो गयी है और आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया है। क्या है भाजपा के इन मोर्चों के गठन की हकीकत, किस तरह की गड़बड़ी की बात सामने आ रही है और इसका क्या परिणाम हो सकता है, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड में विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी की झारखंड प्रदेश इकाई की गाड़ी इन दिनों गंभीर विवाद के दलदल में फंस गयी है। झारखंड की सत्ता को एक बार फिर से हासिल करने के लिए जीन-जान से जुटी पार्टी और इसके नेतृत्व के सामने यह विवाद अनायास ही पैदा नहीं हुआ है, बल्कि ऐसा लगता है कि इसे जान-बूझ कर एन चुनाव से पहले पैदा किया गया है। यह विवाद है पार्टी के मोर्चों के गठन की। हाल ही में झारखंड भाजपा ने अपने सात मोर्चों का गठन किया है और इसमें जिलों के प्रतिनिधित्व को लेकर सवाल उठने लगे हैं।
भाजपा के भीतर सात मोर्चे हैं
भारतीय जनता पार्टी के अंदर सात मोर्चा हैं। इनमें अल्पसंख्यक मोर्चा, किसान मोर्चा, युवा मोर्चा, महिला मोर्चा, ओबीसी मोर्चा, अनुसूचित जाति मोर्चा और अनुसूचित जनजाति मोर्चा शामिल हैं। ये सभी मोर्चे पार्टी के भीतर अनुषंगी इकाई के रूप में काम करते हैं और केंद्रीय स्तर पर भी इनके संगठन हैं। ये मोर्चे ग्रास रूट स्तर पर अपने-अपने क्षेत्र में काम करते हैं। जैसे महिला मोर्चा महिलाओं के बीच और युवा मोर्चा युवाओं के बीच काम करता है।
क्या हुआ है झारखंड में
झारखंड में बाबूलाल मरांडी के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद लोकसभा चुनाव से कुछ समय पहले मोर्चा के अध्यक्षों को इधर-उधर किया गया था, लेकिन अधिकांश मोर्चा के अध्यक्ष पुराने ही रह गये। युवा मोर्चा, महिला मोर्चा और अनुसूचित जाति मोर्चा के अध्यक्ष बदले गये, जबकि किसान मोर्चा, अल्पसंख्यक मोर्चा, अनुसूचित जनजाति मोर्चा और ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष पुराने ही रह गये। चार दिन पहले इन लोगों में से पांच ने अपनी-अपनी टीम को पुनर्गठित किया है, जिस पर प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने मुहर लगायी है। इनमें महिला मोर्चा, किसान मोर्चा, युवा मोर्चा, अनुसूचित जाति मोर्चा और ओबीसी मोर्चा हैं। इसी पुनर्गठन को लेकर विवाद पैदा हुआ है। कहा जा रहा कि इन मोर्चों में न तो जिलों को समुचित प्रतिनिधित्व दिया गया है और न सक्षम लोगों को रखा गया है। इतना ही नहीं, हर मोर्चे में रांची को जरूरत से अधिक प्रतिनिधित्व दिया गया है।
पांच जिलों को किसी भी मोर्चे में जगह नहीं
विवाद की शुरूआत इस बात को लेकर हुई है कि पांच जिलों को किसी भी मोर्चे में जगह नहीं मिली है। ये जिले हैं सिमडेगा, कोडरमा, सरायकेला-खरसावां, दुमका और साहिबगंज। सरायकेला-खरसावां जिला पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा का गृह क्षेत्र है, जबकि दुमका राज्य की उपराजधानी है। केंद्रीय मंत्री अन्नपूर्णा देवी केंद्रीय मंत्री और कोडरमा की सांसद हैं, जबकि पार्टी जिस घुसपैठ को इस चुनाव में अपना सबसे बड़ा हथियार बना रही है, उससे सबसे अधिक प्रभावित साहिबगंज भी है। सिमडेगा को आदिवासियों का गढ़ माना जाता है। इन जिलों को किसी भी मोर्चे में कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिलना पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है।
सबसे अधिक प्रतिनिधित्व रांची को
इन पांच मोर्चों में अध्यक्ष को मिला कर कुल 108 लोगों को शामिल किया गया है। इनमें सबसे अधिक 45 लोग रांची के हैं, जबकि Þचतरा और धनबाद के आठ-आठ लोग इन पांच मोर्चों में हैं। इसके अलावा इन मोर्चों में जमशेदपुर से सात, पलामू और बोकारो के छह-छह, गिरिडीह के पांच, हजारीबाग और जामताड़ा के चार-चार, चाइबासा, लातेहार, देवघर और गोड्डा के दो-दो और खूंटी, गुमला, लोहरदगा, गढ़वा, रामगढ़ और पाकुड़ के एक-एक नेता को जगह मिली है।
महिला मोर्चा में 14 जिलों को कोई प्रतिनिधित्व नहीं
सबसे अधिक आश्चर्य महिला मोर्चा को लेकर हुआ है। आरती सिंह इसकी अध्यक्ष हैं। उन्होंने अपनी टीम में 21 महिलाओं को जगह दी है, लेकिन 14 जिलों का कोई प्रतिनिधि इस मोर्चे में नहीं है। महिला मोर्चे में रांची की 12 महिलाएं हैं, जबकि पलामू की दो और चाइबासा, चतरा, गिरिडीह, बोकारो, धनबाद, जामताड़ा, पाकुड़ और गोड्डा की एक-एक महिलाएं इसमें शामिल हैं।
युवा मोर्चा में भी 14 जिलों का प्रतिनिधि नहीं
इसी तरह युवा मोर्चा के अध्यक्ष शशांक राज ने अपनी 19 सदस्यीय टीम में खुद को मिला कर रांची को सात सीटें दी हैं, जबकि चतरा को तीन और जमशेदपुर और धनबाद को दो-दो सीटें दी गयी हैं। इस मोर्चे में खूंटी, सिमडेगा, चाइबासा, सरायकेला-खरसावां, लातेहार, रामगढ़, हजारीबाग, कोडरमा, बोकारो, देवघर, दुमका, साहिबगंज, पाकुड़ और गोड्डा को कोई प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है।
किसान मोर्चा पर भी रांची का कब्जा
झारखंड भाजपा के किसान मोर्चा के अध्यक्ष पवन साहू हैं। नवगठित समिति में उन्हें मिला कर 18 सदस्य हैं। इनमें से सात रांची के हैं, जबकि हजारीबाग के चर्चित व्यवसायी टोनी जैन समेत दो सदस्य इसमें हैं। इनके अलावा खूंटी, जमशेदपुर, पलामू, चतरा, गिरिडीह, बोकारो, धनबाद, जामताड़ा और गोड्डा के एक-एक प्रतिनिधि इस मोर्चे में शामिल किये गये हैं। इस कमेटी में 13 जिलों का कोई प्रतिनिधित्व ही नहीं है।
अनुसूचित जाति मोर्चा में 12 जिलों को प्रतिनिधित्व नहीं
झारखंड प्रदेश अनुसूचित जाति मोर्चा में अध्यक्ष किशुन दास समेत 26 सदस्य हैं। इनमें से 10 तो अकेले रांची के हैं, जबकि 12 जिलों का एक भी प्रतिनिधि इसमें शामिल नहीं है। किशुन दास सिमरिया से विधायक हैं और उन्होंने अपने मोर्चे में धनबाद को तीन स्थान दिया है, जबकि चतरा और बोकारो के दो-दो लोग इसमें शामिल किये गये हैं। जिन जिलों को इस मोर्चे में जगह नहीं मिली है, उनमें खूंटी, गुमला, लोहरदगा, सिमडेगा, चाइबासा, सरायकेला-खरसावां, गढ़वा, कोडरमा, दुमका, जामताड़ा, साहिबगंज और गोड्डा शामिल हैं।
ओबीसी मोर्चा में भी रांची का दबदबा
झारखंड प्रदेश ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष अमरदीप यादव बनाये गये हैं। उन्होंने अपनी टीम का पुनर्गठन किया है और इसमें 22 सदस्यों को शामिल किया है। यदि जिलावार प्रतिनिधित्व देखा जाये, तो इस मोर्चे में भी रांची का दबदबा है। रांची के आठ लोगों को इस मोर्चे में जगह दी गयी है। ओबीसी मोर्चे में जमशेदपुर के तीन, बोकारो-हजारीबाग के दो-दो और लोहरदगा, चाइबासा, पलामू, लातेहार, गिरिडीह, धनबाद, देवघर और जामताड़ा को एक-एक सीट मिली है। 12 जिलों से कोई प्रतिनिधि इसमें शामिल नहीं किया गया है।
रांची, पलामू, गिरिडीह और धनबाद को हर मोर्चे में जगह
इन पांच मोर्चों के पदधारियों की सूची से यह बात भी साफ हो जाती है कि राज्य के 24 में से केवल चार जिले ऐसे हैं, जिन्हें हर मोर्चे में जगह मिली है। ये जिले हैं, रांची, पलामू, गिरिडीह और धनबाद। जमशेदपुर और चतरा को चार-चार मोर्चों में जगह मिली है, जबकि हजारीबाग और बोकारो को तीन-तीन मोर्चों में प्रतिनिधित्व मिला है। अगर देखा जाये, तो हर मोर्चा राज्य के 24 जिलों में से सिर्फ दस या बारह जिलों में सिमट गया है।
असंतोष के स्वर तेज
झारखंड भाजपा में इन मोर्चों के गठन को लेकर असंतोष के स्वर तेज हो गये हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं का कहना है कि यदि ग्रास रूट लेवल के कार्यकर्ताओं को मोर्चों में भी स्थान नहीं मिलेगा, तो उनके भीतर का उत्साह खत्म हो जायेगा। इतना ही नहीं, हर मोर्चे में रांची के दबदबे पर भी सवाल उठाये जा रहे हैं। प्रदेश मुख्यालय होने के कारण रांची के लोगों को ज्यादा तरजीह दी गयी है, लेकिन छोटे कार्यकर्ताओं का कहना है कि मोर्चों में रांची के लोगों को अधिक प्रतिनिधित्व देना कहीं से भी उचित नहीं है। उदाहरण के लिए वे अनुसूचित जाति मोर्चा का नाम गिनाते हैं, जिसमें रांची के नौ सदस्यों को रखा गया है, जबकि रांची में केवल एक सीट कांके अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। इसी तरह सरायकेला-खरसावां को किसी भी मोर्चे में एक भी स्थान नहीं दिया जाना यह साबित करता है कि यहां पार्टी का संगठन ढीला-ढाला है। कोडरमा में सांसद महिला हैं, लेकिन वहां का कोई नेता किसी भी मोर्चे में शामिल नहीं है। मोर्चों के गठन में दुमका की उपेक्षा पर भी गंभीर प्रतिक्रिया हुई है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि एक तरफ पार्टी आदिवासी इलाके में अपनी स्थिति सुधारना चाहती है, तो दूसरी तरफ मोर्चों के गठन में कोल्हान और संताल परगना की उपेक्षा कर रही है। ऐसे में पार्टी की गाड़ी कैसे स्पीड पकड़ेगी।
भाजपा के पांच मोर्चों में जिलों का प्रतिनिधित्व
जिला महिला मोर्चा किसान मोर्चा युवा मोर्चा ओबीसी मोर्चा कुल
(22)(18)(20)(26)(23)(108)
रांची 12 07 07 10 09 45
सिमडेगा 00 00 00 00 00 00
सरायकेला-खरसावां 00 00 00 00 00 00
कोडरमा 00 00 00 00 00 00
दुमका 00 00 00 00 00 00
साहिबगंज 00 00 00 00 00 00