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विधानसभा चुनाव में भीतरी-बाहरी के मुद्दे से पार्टी को ही होगा बड़ा नुकसान
इसके बाद अंतरकलह के कारण भी चुनावी संभावना पर पड़ सकता है असर
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड में विधानसभा चुनाव की तैयारियों की गहमा-गहमी के बीच एक मुद्दा बड़े जोर-शोर से उठ रहा है और वह है घुसपैठ का मुद्दा। भाजपा ने पहले संताल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा उठाया और अब यह गाड़ी भीतरी-बाहरी के विवाद के स्टेशन पर अटक गयी है। पहले कांग्रेस की विधायक शिल्पी नेहा तिर्की और फिर उनके पिता और प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने इस मुद्दे पर जो बयान दिया, उससे कांग्रेस बुरी तरह घिर गयी है। हालांकि पार्टी ने डैमेज कंट्रोल के तहत इन बयानों से खुद को अलग कर लिया, लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि झारखंड विधानसभा की सामान्य सीटों पर कांग्रेस को इसी मुद्दे के कारण नुकसान उठाना पड़ सकता है। आसन्न विधानसभा चुनाव के परिप्रेक्ष्य में पार्टी की एक और चिंता इसी मुद्दे से जुड़ी हुई है। भीतरी-बाहरी के मुद्दे को लेकर पार्टी में अभी से ही गुटबाजी साफ दिखने लगी है। इन दोनों मुद्दों के रूप में विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस के सामने है। हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में दो सीटों पर जीत हासिल करने और 15 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल करने के बावजूद झारखंड कांग्रेस इस विधानसभा चुनाव में 2019 का प्रदर्शन दोहरा सकेगी, इसको लेकर अभी से ही संदेह व्यक्त किया जाने लगा है। इस एक मुद्दे के कारण कांग्रेस के भीतर पैदा हुई दुविधा और खेमेबाजी, पार्टी के भीतर का वर्तमान माहौल और उसकी संगठनात्मक स्थिति के अलावा पार्टी की रणनीति को देख कर तो यही लगता है कि कांग्रेस को इसके लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। क्या है इन मुद्दों को लेकर झारखंड कांग्रेस की तैयारी और चुनौती, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड में आसन्न विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच इन दिनों घुसपैठ का मुद्दा पूरे उफान पर है। भाजपा द्वारा उठाये गये इस मुद्दे ने जहां सत्ताधारी इंडी गठबंधन को रक्षात्मक रुख अपनाने पर मजबूर कर दिया है, वहीं सत्ता में साझीदार कांग्रेस अपने एक विधायक और फिर अपने कार्यकारी अध्यक्ष द्वारा बाहरी-भीतरी का मुद्दा इसमें जोड़ने के बाद से मुश्किल में घिर गयी है। पार्टी की विधायक शिल्पी नेहा तिर्की और बाद में उनके पिता सह झारखंड कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की के बयानों ने कांग्रेस के सामने दुविधा की स्थिति पैदा कर दी है। पार्टी ने हालांकि इन दोनों बयानों को संबंधित नेताओं का निजी बयान बताते हुए इससे किनारा कर लिया है, लेकिन आसन्न चुनाव में इसका नुकसान उसे उठाना ही होगा।
क्या कहा था शिल्पी नेहा तिर्की ने
मांडर से कांग्रेस की विधायक शिल्पी नेहा तिर्की ने भाजपा द्वारा बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा उठाने पर कहा कि रांची, जमशेदपुर और धनबाद, रामगढ़, बोकारो समेत झारखंड के बड़े शहरों में बिहार-उत्तरप्रदेश से बाहरी लोग आकर बस गये हैं। रामगढ़ में बिहार के लोग मुखिया तक बन जा रहे हैं। भाजपा इस पर क्यों नहीं बोलती। उनके पिता और झारखंड कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने भी उनके इस बयान का समर्थन किया। इस बयान के बाद कुछ लोगों ने शिल्पी नेहा तिर्की से यह सवाल भी पूछा कि आप अपने प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर से क्यों नहीं पूछतीं। वह कहां के रहनेवाले हैं।
डैमेज कंट्रोल में जुटी कांग्रेस
विधायक शिल्पी नेहा तिर्की के बयान के बाद विवाद बढ़ता देख कांग्रेस डैमेज कंट्रोल में जुट गयी। पार्टी ने इस बयान से किनारा करते हुए साफ कर दिया कि यह उनका निजी बयान है। लेकिन बात बनती नहीं दिख रही है। कांग्रेस के भीतर इस मुद्दे को लेकर अब खेमेबंदी होने लगी है और इसका नुकसान विधानसभा चुनाव में होना स्वाभाविक है।
सामान्य सीटों पर कांग्रेस को होगी मुश्किल
भीतरी-बाहरी के इस मुद्दे के कारण कांग्रेस को सामान्य सीटों पर नुकसान उठाना पड़ सकता है। झामुमो के लिए यह मुद्दा उसकी घोषित लाइन के अनुरूप है और वैसे भी आदिवासी सीटों पर उसे किसी से चुनौती मिलती नहीं दिख रही है। इसलिए अब कांग्रेस को ही इस मुद्दे पर एक लाइन लेनी होगी, जो उसे असमंजस में फंसा रही है। यदि पार्टी भीतरी-बाहरी पर कोई एक लाइन लेती है, तो यह उसके लिए आत्मघाती साबित होगा। पार्टी के भीतर इसी को लेकर मंथन चल रहा है। बंधु तिर्की का खेमा चाहता है कि पार्टी इस मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट करे और इसी बहाने वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर के खिलाफ माहौल बन सके, जबकि राजेश ठाकुर अपनी पूरी ताकत बंधु तिर्की के दांव को विफल करने में लगाये हुए हैं। वैसे भी जानकारों का मानना है कि इस मुद्दे के उठने के बाद कांग्रेस को सामान्य सीटों पर मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
झारखंड कांग्रेस में अंतरकलह
झारखंड में लोकसभा की दो सीटों पर जीत हासिल करने के बावजूद प्रदेश कांग्रेस में अंतरकलह कम नहीं हुआ है। प्रदेश नेतृत्व से असंतुष्ट खेमे का कहना है कि सात में से पांच सीटों पर कांग्रेस की हार हुई है। यह बहुत अच्छी स्थिति नहीं है। इसलिए प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की मांग एक बार फिर तेज होने लगी है। पिछले दिनों पार्टी की ओर से बुलायी गयी विस्तारित कार्यसमिति की बैठक से लेकर कांग्रेस विधायक दल की बैठक तक में प्रदेश प्रभारी की उपस्थिति में यह मुद्दा जोरशोर से उठाया गया। बैठक में प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की के साथ-साथ कई आदिवासी विधायकों और मंत्रियों ने विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश कमेटी में बदलाव की बात कही। बंधु तिर्की ने तो सात में से पांच सीट गंवाने की नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर से इस्तीफे तक की मांग कर दी। हालांकि अब जो सूचना मिल रही है, उसके अनुसार राजेश ठाकुर की पकड़ अभी भी मजबूत है और बंधु तिर्की अपने मकसद में कामयाब होते नहीं दिख रहे। वैसे कांग्रेस का एक धड़ा यह भी चाहता है कि इन दोनों की लड़ाई में किसी दूसरे को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंप दी जाये। ऐसे लोग डॉ प्रदीप यादव, जलेश्वर महतो और शहजादा अनवर का नाम आगे कर रहे हैं।
कैसा था लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन
हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में झारखंड की 14 में से पांच सीटों पर इंडिया गठबंधन ने जीत हासिल की थी। इनमें तीन सीटें झामुमो ने और दो सीटें कांग्रेस ने जीतीं। कांग्रेस ने सात, झामुमो ने पांच और राजद और भाकपा माले ने एक-एक सीट पर प्रत्याशी उतारा था। झामुमो को 13 और कांग्रेस को 15 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल हुई। इन 28 में से केवल पांच सामान्य सीटें थीं। झारखंड कांग्रेस ने यह कह कर लोकसभा चुनाव परिणाम को ऐतिहासिक बताया कि 20 साल बाद कांग्रेस को राज्य में दो सीटें मिली हैं। यह उसके लिए बड़ी कामयाबी है।
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को जिन विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली, उनमें गुमला (एसटी), बिशुनपुर (एसटी), लोहरदगा (एसटी), खरसावां (एसटी), तमाड़ (एसटी), मांडर (एसटी), तोरपा (एसटी), खूंटी (एसटी), सिसई (एसटी), सिमडेगा (एसटी), कोलेबिरा (एसटी), खिजरी (एसटी), मनिका (एससी), मधुपुर और महागामा (सामान्य सीट) शामिल हैं।
कांग्रेस के सामने क्या है चुनौती
कांग्रेस ने आसन्न चुनाव में 33 सीटों पर प्रत्याशी उतारने का मन बनाया है। सीट शेयरिंग के लिहाज से यह बहुत मुश्किल नहीं है, क्योंकि झामुमो भी करीब 35 सीटों पर उम्मीदवार दे सकता है। बाकी सीटें राजद और वाम दलों के लिए छोड़ी जा सकती हैं। कांग्रेस ने इस पर विचार के लिए दिल्ली में बैठक भी बुलायी है। कांग्रेस को पिछले विधानसभा चुनाव में 31 सीटें मिली थी, जबकि झामुमो के हिस्से में 43 सीटें आयी थीं।
इन तमाम परिस्थितियों के बीच अब यह साफ हो गया है कि झारखंड कांग्रेस की गाड़ी अब तक संतुलित नहीं है। अनर्गल बयानबाजी और खेमेबंदी पर पार्टी नेतृत्व ने ध्यान नहीं दिया, तो उसके लिए अपनी चुनावी नैया को पार लगाना मुश्किल हो जायेगा।