विशेष
अपर्णा सेनगुप्ता को सीट बचाने के लिए करनी होगी कड़ी मेहनत
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड में विधानसभा चुनाव -2024 की आहट तेज है, इसी साल चुनाव होने हैं। तीन महीने का समय बचा है। इस लिहाज से झारखंड में सत्ता की महाभारत को लेकर रणनीति बनाये जा रहे हैं। सत्तारूढ़ इंडिया गठबंधन के घटक दल सत्ता में पुन: वापसी को लेकर रणनीति पर काम कर रहे हैं तो विपक्ष एनडीए गठबंधन सतारूढ़ इंडिया गठबंधन को उखाड़ फेंकने की रणनीति बनाने और उस पर अमल करने की जद्दोजहद में जुटा है। महाभारत युद्ध की तरह एनडीए और इंडिया गठबंधन ने एक-दूसरे के खिलाफ व्यूह रचना की तैयारी शुरू कर दी है। महाभारत में आपने सिर्फ चक्रव्यूह का ही नाम सुना होगा, लेकिन महाभारत के युद्ध में कई प्रकार की व्यूह रचना का उल्लेख मिलता है। चक्रव्यूह, गरुड़ व्यूह, क्रौंच व्यूह, मकरव्यूह, कछुआ व्यूह, अर्ध चंद्रकार व्यूह , मंडलाकार व्यूह, चक्रशकट व्यूह, वज्र व्यूह, औरमी व्यूह, श्रीन्गातका व्यूह….जैसे व्यूह पक्ष और विपक्ष दोनों ने ही बनाये थे। युद्ध को लड़ने के लिए पक्ष या विपक्ष अपने हिसाब से व्यूह रचना करता था। व्यूह रचना का अर्थ है कि किस तरह सैनिकों को सामने खड़ा किया जाये। आसमान से देखने पर यह व्यूह रचना दिखायी देती है। जैसे क्रौंच व्यूह है, तो आसमान से देखने पर क्रौंच पक्षी की तरह सैनिक खड़े हुए दिखाई देंगे। इसी तरह चक्रव्यूह को आसमान से देखने पर एक घूमते हुए चक्र के समान सैन्य रचना दिखायी देती है। आप सोच रहे होंगे कि महाभारत के व्यूह की बात क्यों कह रहे हैं। दरअसल, साल 2024 के अंत तक होनेवाला झारखंड विधानसभा चुनाव इतना महत्वपूर्ण है कि सत्तारूढ़ इंडिया गठबंधन और एनडीए गठबंधन, दोनों ही इस चुनाव में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने की तैयारी में हैं। झारखंड की सत्ता के महाभारत में सत्तारूढ़ जेएमएम-कांग्रेस-राजद-माले आक्रामक तेवर के साथ एक-एक विधानसभा सीट की गणित को बारीकी से समझ रहा है और प्रत्याशी चुनने के लिए भी सभी समीकरण, नीति तथा व्यूहरचना पर काम कर रहा है। वहीं एनडीए गठबंधन, भाजपा और आजसू के साथ जदयू और लोजपा भी झारखंड में अपनी उपस्थिति मजबूत करने को लेकर व्यूहरचना में जुटा हुआ है। भ्रष्टाचार, आदिवासियों पर जुल्म, राज्य में बदहाल कानून व्यवस्था, संथाल परगना की बदलती डेमोग्राफी जहां भाजपा एवं सहयोगी एनडीए घटक दलों का हथियार है। वहीं भाजपा की तानाशाही, झारखंड की उपेक्षा, झारखंड की अस्मिता, झारखंड के मूलवासियों की लड़ाई, इडी-सीबीआइ जैसे हथियार का आक्रामक प्रयोग सत्तारूढ़ जेएमएम-कांग्रेस गठबंधन का हथियार बन चुका है। सत्ता के महाभारत में धनबाद कोयलांचल की छह विधानसभा सीटें महत्वपूर्ण हैं। वर्तमान में धनबाद जिला के छह में से दो पर इंडिया गठबंधन का कब्जा है, जबकि चार विस सीटों पर भाजपा का कब्जा है। सतारूढ़ इंडिया गठबंधन सभी छह सीटों पर जीत हासिल करना चाहता है। इसको लेकर घटक दलों से बातचीत का दौर जारी है। वहीं व्यूहरचना के तहत मार्क्सवादी समन्वय समिति (एमसीसी) का विलय सीपीआइ एमएल में हो गया और इसकी औपचारिक घोषणा भी हो गयी। इस समीकरण से धनबाद जिला की दो विधानसभा सीटें सिंदरी और निरसा में व्यापक असर पड़ेगा। भाजपा को निरसा में जीती सीट बचाने के लिए रणनीति, व्यूहरचना तथा समीकरण पर काम करना होगा। निरसा लालझंडे का गढ़ माना जाता है और साल 2019 में पहली बार यहां कमल खिला और अपर्णा सेनगुप्ता विधायक बनीं। आगामी विधानसभा चुनाव में अपर्णा सेनगुप्ता के लिए राह आसान नहीं है। निरसा विधानसभा सीट को लेकर क्या है जमीनी हकीकत और प्रत्याशियों को लेकर ग्राउंड रिपोर्ट बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता मनोज मिश्र।
हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम। तस्मात उत्तिष्ठ कौंतेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥
श्री मद्भागवत गीता के द्वितीय अध्याय, श्लोक 37 में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि जीवन के संघर्ष से घबराने से नहीं, अपितु उसका सामना करने से सफलता मिलती है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि कर्म के युद्ध में यदि तुम (अर्जुन) वीरगति को प्राप्त होते हो, तो तुम्हें स्वर्ग मिलेगा और यदि विजयी होते हो, तो धरती का सुख पा जाओगे… इसलिए उठो, हे कौंतेय (अर्जुन), और निश्चय करके युद्ध करो।
निरसा विधानसभा सीट झारखंड की महत्वपूर्ण विधानसभा सीट है और यह एक सामान्य श्रेणी की विधानसभा सीट है। झारखंड और पश्चिम बंगाल की सीमा पर स्थित धनबाद के निरसा विधानसभा क्षेत्र में वर्ष 1957 से लेकर साल 2019 तक वामदल का कब्जा रहा है। वामदल के प्रत्याशी यहां से विधायक बनते रहे हैं। साल 2019 में पहली बार यहां कमल खिला और भाजपा से अपर्णा सेनगुप्ता विधायक बनीं। साल 2019 के विस चुनाव में भाजपा को निरसा में 42.1 प्रतिशत यानी 89082 वोट मिले थे और अपर्णा सेनगुप्ता विजयी हुई, जबकि, एमसीओ के अरूप चटर्जी सीटिंग विधायक रहते हुए हार गये।
इस बार निरसा विधानसभा सीट के परिणाम किस पार्टी के पक्ष में होंगे, यह जनता को तय करना है। लेकिन सच्चाई यह भी है कि निरसा में कई समस्याओं को अब तक तक दूर नहीं किया गया है। केएमसीएल, हार्डकोक सहित कई पुराने उद्योग बंद पड़े हैं। 10 वर्ष से बरबेंदिया पुल का निर्माण अधूरा पड़ा हुआ है। पिछले सात वर्ष से कुमारडुबी ओवर ब्रिज के निर्माण की गति कछुआ चाल जैसी है। मैथन और पंचेत डैम के रहते इलाके को लोगों को पेयजल के संकट से जूझना पड़ा है। रोजगार के अभाव में लोग पलायन करने को विवश हैं।
निरसा विधानसभा क्षेत्र में तीन लाख से अधिक मतदाता हैं, जिसमें एससी/एसटी मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है। निरसा में 17 प्रतिशत अनुसूचित जाति (एससी) तथा 15 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति (एसटी) के मतदाता हैं। यानी कि 32 प्रतिशत यानी करीब 1.2 लाख एससी/एसटी मतदाता निरसा विधानसभा क्षेत्र में हैं। वहीं निरसा विधानसभा में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 14.4 प्रतिशत यानी करीब 45-50 हजार मतदाता हैं। निरसा विधानसभा में बाउरी की संख्या 8.2 प्रतिशत यानी 25-30 हजार, सिंह मतदाताओं की संख्या करीब 17 हजार, मंडल मतदाताओं की संख्या 16 हजार, महतो 11 हजार, गोराई 10 हजार, रे 8 हजार, यादव 7 हजार, दास 6 हजार, प्रसाद 5 हजार, शर्मा 5 हजार हैं। वहीं निरसा विधानसभा क्षेत्र में मरांडी 7 हजार, मुर्मू 6 हजार, हेम्ब्रम 5 हजार, टुडू 5 हजार तथा मांझी-मुसहर मतदाताओं की संख्या 5 हजार है। जबकि, हांसदा, किस्कू 3-3 हजार मतदाता हैं। इसके अलावा निरसा विधानसभा में भुइयां, गोप, मोदी मतदाताओं की संख्या भी 5-5 हजार है। जबकि, रवानी, कुमार, पासवान, ठाकुर, रविदास आदि कुल 17-20 हजार मतदाता हैं।
निरसा विधानसभा में शहरी मतदाताओं की संख्या 38.6 प्रतिशत यानी करीब 1.30 लाख है, तो वहीं ग्रामीण मतदाताओं की संख्या 61.39 यानी करीब 2 लाख है। प्रत्याशियों की जीत हार का फैसला ग्रामीण वोटरों के हाथों में रहता है। बीते लोकसभा चुनाव के दरम्यान निरसा के वोटरों ने भाजपा पर अपार स्नेह जताते हुए ढुल्लू महतो के पक्ष में बंपर मत दिया था। निरसा की जनता ने भाजपा को करीब 1 लाख 40 हजार वोट दिया था। ग्रामीण क्षेत्रों में बंपर वोटिंग देखने को मिली, जिसका फायदा भाजपा के पक्ष में गया। वहीं साल 2019 के लोस चुनाव में भी भाजपा को 69 फीसदी यानी 1 लाख 29 हजार के करीब वोट मिला था, जिसका फायदा साल 2019 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को मिला और भाजपा लालखंड निरसा में पहली बार कमल खिलाने में सफल साबित हुई। भाजपा की अपर्णा सेनगुप्ता ने दो बार निरसा से लगातार विधायक रहे अरूप चटर्जी को करीब 25 हजार मतों के अंतर से हराया। भाजपा का यहां साल 2014 के मुकाबले 17 प्रतिशत वोट भी बढ़ा। साल 2019 विधानसभा चुनाव में भाजपा को निरसा विस क्षेत्र में 42.2 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि, साल 2014 में भाजपा को 25.1 प्रतिशत वहीं, साल 2009 में 21.2 प्रतिशत वोट मिले थे। यहां बता दें कि साल 2014 में भाजपा ने गणेश मिश्रा को टिकट दिया था और उन्होंने एमसीओ के अरूप चटर्जी को कड़ी टक्कर दी थी और महज 1 हजार 35 वोट से हार गये थे। गणेश मिश्रा को 50546 मत मिले जबकि अरूप चटर्जी को 51581 मत मिले थे। वहीं साल 2009 में भाजपा ने अशोक कुमार मंडल को टिकट दिया था और उन्हें 33088 यानी 21.21 प्रतिशत मत मिले, जबकि अरूप चटर्जी को 68965 यानी 43.8 प्रतिशत वोट मिले थे।
निरसा की परिस्थितियां अलग, समीकरण अलग
साल 2024 के विधानसभा चुनाव में निरसा की परिस्थिति, समीकरण और जनादेश साल 2019 के मुकाबले में अलग कहा जा सकता है। साल 2019 में राज्य में भाजपा गठबंधन यानी एनडीए की सरकार थी। वहीं वर्तमान में इस बार राज्य में इंडिया गठबंधन की सरकार है। साल 2019 में जहां एमसीओ के टिकट से अरूप चटर्जी चुनावी मैदान में उतरे थे, वहीं साल 2024 विस चुनाव में सीपीआइएमएल के टिकट से चुनावी मैदान में होंगे। दरअसल, एमसीओ का विलय सीपीआइ एमएल में हो गया है। संकेतों के मुताबिक अरूप चटर्जी सीपीआइ एमएल के टिकट से चुनावी दंगल में शामिल होंगे। वहीं कहा यह भी जा रहा है सीपीआइ एमएल ने इंडिया गठबंधन के सामने निरसा और सिंदरी सीट की मांग रखी है। यदि इंडिया गठबंधन निरसा और सिंदरी सीट सीपीआइ एमएल को देने का फैसला लेती है तो अरूप चटर्जी बेहद मजबूत स्थिति में होंगे और एनडीए के लिए अरूप चटर्जी का तोड़ बड़ी चुनौती होगी।
एनडीए के लिए अरूप चटर्जी का तोड़ बड़ी चुनौती
इंडिया गठबंधन का निरसा विस से संयुक्त उम्मीदवार यदि अरूप चटर्जी होते हैं तो एनडीए के लिए अरूप चटर्जी का तोड़ बड़ी चुनौती होगी। ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि भले साल 2019 का चुनाव अरूपी चटर्जी हार गये, लेकिन अरूप चटर्जी के वोट शेयरिंग में 5 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गयी। साल 2019 में अरूप चटर्जी को 30 प्रतिशत वोट मिले ,जबकि साल 2014 में 25.6 प्रतिशत वोट मिले थे। हालांकि, साल 2009 में अरूप चटर्जी को 43.8 प्रतिशत वोट मिले थे। अरूप चटर्जी का लक्ष्य साल 2009 में मिले वोट की बराबरी का है। इसके लिए वे पिछले पांच सालों से निरसा विस क्षेत्र में जहां संगठन को मजबूत करने, कैडर बढ़ाने, युवाओं तथा महिलाओं को अपने पक्ष में करने के जम कर पसीना बहाया है। वहीं वोट शेयरिंग के लक्ष्य को पाने को लेकर समीकरण जुटाने, व्यूह रचना करने से भी पीछे नहीं हैं। निरसा में भाजपा और एमसीओ के बाद जेएमएम के वोटर हैं। यदि इंडिया गठबंधन का संयुक्त प्रत्याशी अरूप चटर्जी होते हैं तो 15 प्रतिशत वोट में बढ़ोतरी सामान्य बात होगी। और यह स्थिति भाजपा के लिए अनुकूल नहीं कही जा सकती है। वहीं अरूप चटर्जी का दावा है कि उन्होंने अपने क्षेत्र के लिए कई काम किये हैं और आगे भी विकास का काम जारी रखेंगे।
निरसा से अमर बाउरी के लड़ने की अटकलें
निरसा विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के नेता प्रतिपक्ष चंदनकियारी विधायक अमर बाउरी को आगामी विधानसभा चुनाव 2024 लड़ने की चर्चा है। इसकी वजह भी खास है। दरअसल, निरसा में एससी/एसटी के करीब सबा लाख वोटर हैं। और एससी/एसटी मतदाता अमर बाउरी को अपना हितैषी और नेता मानते हैं। अमर बाउरी झारखंड भाजपा के सबसे बड़े दलित चेहरा हैं। अरूप चटर्जी के मुकाबले कमजोर पड़ रही भाजपा को निरसा में अमर बाउरी संबल दे सकते हैं। अमर बाउरी निरसा से लगातार जुड़ते रहे हैं। अमर बाउरी को निरसा से प्रत्याशी बनाये जाने पर भाजपा के कोर वोटर के साथ दलित वोटरों का साथ मिलेगा। और भाजपा निरसा में अपनी जीत दोहरा सकती है। वहीं इससे भाजपा और आजसू गठबंधन में चंदनकियारी विस सीट के संग्राम पर भी विराम लग जायेगा। चंदनकियारी सीट से आजसू के उमाकांत रजक का रास्ता साफ हो जायेगा। ज्ञात हो कि चंदनकियारी सीट को लेकर ही साल 2019 के चुनाव में भाजपा और आजसू के बीच तकरार बढ़ी और दोनों ही पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ीं और परिणाम विपरीत आया। निरसा से अमर बाउरी को टिकट मिलने से चंदनकियारी का मसला सुलझ जायेगा और भाजपा अपनी जीती सीट भी बचा सकती है।
क्या करेंगे अशोक मंडल, बड़ा सवाल
अशोक कुमार मंडल एक ऐसा नाम, जिन्होंने भाजपा पार्टी को निरसा विधानसभा में मजबूत बनाया। लालखंड में भाजपा को खड़ा करने में पूरा योगदान दिया। इनको फायदा मिला और भाजपा ने साल 2009 में निरसा से चुनावी मैदान में उतारा। अरूप चटर्जी के 68965 वोट के मुकाबले अशोक मंडल को 33388 वोट मिले और वे चुनाव हार गये। इस चुनाव में एआइएफबी के टिकट से चुनाव लड़ी अपर्णा सेनगुप्ता तीसरे स्थान पर थीं और उन्हें 17597 वोट मिले थे। लेकिन, साल 2014 में अशोक कुमार मंडल ने पाला बदल लिया और जेएमएम से चुनावी मैदान में उतरे, लेकिन इस बार वह तीसरे स्थान पर खिसक गये। आगामी विधानसभा चुनाव-2024 में अटकलें हैं कि जेएमएम निरसा से प्रत्याशी नहीं उतारेगा और अरूप चटर्जी को समर्थन देगा। ऐसे में सवाल है कि अब अशोक कुमार मंडल क्या करेंगे? हालांकि, होगा क्या यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन कहा जा रहा है कि अशोक मंडल झारखंडी भाषा खतियान संघर्ष समिति (जेबीकेएसएस) से चुनाव लड़ सकते हैं। यहां बता दें कि अशोक मंडल लगातार छह बार विधानसभा चुनाव हारते रहे हैं, लेकिन हौसला पस्त नहीं हुआ है।
अपर्णा सेनगुप्ता की घटती जा रही है साख
मौजूदा निरसा भाजपा विधायक अपर्णा सेनगुप्ता की साख दिनोंदिन घटती जा रही है। अपर्णा 2005 में अपने पति सुशांतो सेनगुप्ता की पार्टी फॉरवर्ड ब्लॉक से चुनाव जीत कर मंत्री रह चुकी हैं। लेकिन, साल 2009 एवं साल 2014 के चुनाव में निरसा केजनादेश ने अपर्णा सेनगुप्ता को तीसरे स्थान पर खड़ा कर दिया था। अपर्णा सेनगुप्ता एआइएफबी के टिकट से चुनाव लड़ीं, लेकिन, निरसा के जनादेश में उन्हें दोनों ही बार 11 फीसदी वोट मिला। अपर्णा सेनगुप्ता के मुकाबले भाजपा के गणेश मिश्रा और अशोक मंडल को दोगुना अधिक वोट मिला था। साल 2019 में अपर्णा सेनगुप्ता ने भाजपा का दामन थामा और प्रचंड बहुमत से विजयी हुईं। लेकिन, झारखंड में एनडीए की सरकार नहीं बनने से अपर्णा को फायदा नहीं मिला, जिसका खामियाजा निरसा की जनता को भुगतना पड़ा है। बीते लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा उम्मीदवार ढुल्लू महतो के चुनावी प्रचार प्रसार के दौरान मौजूदा विधायक अपर्णा सेनगुप्ता का भारी विरोध जगह जगह देखा गया। अपर्णा सेनगुप्ता जनादेश की कसौटी पर खरा नहीं उतर पायी हैं। निरसा की जनता बदलाव के मूड में दिख रही है। अपर्णा के लिए निरसा जीत की राह बेहद मुश्किल दिख रही है।
1957 में टुंडी से अलग हुई निरसा विधानसभा सीट
टुंडी और निरसा को मिला कर विधानसभा का गठन निरसा विधानसभा 1952 में किया गया था। 1957 के चुनाव में टुंडी को निरसा से अलग कर अलग विधानसभा क्षेत्र ही बना दिया गया। पश्चिम बंगाल राज्य से सटा झारखंड का सबसे अधिक पंचायत वाला निरसा विधानसभा है। यहां तीन प्रखंड हैं। निरसा, एग्यारकुंड व कलियासोल। तीनों प्रखंड को मिला कर कुल 68 पंचायतें है, साथ ही करीब 286 राजस्व गांव हैं। पश्चिम बंगाल से सटे इस विधानसभा में कई भाषाओं के लोग रहते हैं, लेकिन बंगलाभाषी लोगों की संख्या अधिक है। निरसा-टुंडी विधानसभा के अस्तित्व में आने के बाद मजदूर नेता के रूप में काम करने वाले कार्यकर्ता को पहला विधायक बनने का गौरव मिला था। यहां से परचम कांग्रेस के रामनारायण शर्मा ने 1951 में लहराया था। पांच बार कांग्रेस की कमान यहां रही तो मासस ने भी यहां पांच बार से प्रतिनिधित्व किया है। कृपाशंकर चटर्जी भी निर्दलीय दो बार चुनाव 1977 और 1980 में जीत चुके हैं। कुल मिला कर यहां मजदूर नेता की ही जीत होती रही है। वहीं पहली बार साल 2019 में निरसा में कमल खिला है।