विशेष
झारखंड के इस महारथी ने एक तीर से साध लिये दो निशाने
भाजपा को हो गयी टेंशन, तो नीतीश की पार्टी को मिली धार
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड के चर्चित निर्दलीय विधायक सरयू राय जदयू में शामिल हो गये हैं। इसके साथ ही राज्य में आसन्न विधानसभा चुनाव का माहौल अचानक से बदल गया है। यह कहा जा सकता है कि सरयू राय ने अपने एक फैसले से एक तीर से दो निशाने साध लिये हैं। उनके जदयू में शामिल होने से एक तरफ जहां भाजपा में टेंशन बढ़ गयी है, वहीं बिहार के सीएम नीतीश कुमार की पार्टी को झारखंड में नयी ताकत मिली है। इसके साथ ही सरयू राय ने जदयू में शामिल होकर अपना सियासी कद कई गुना बढ़ा लिया है। जदयू अब झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ सौदेबाजी के लिए तैयार हो गयी है। केंद्र की एनडीए सरकार में जदयू के कद को देखते हुए सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि झारखंड में भाजपा उसके साथ कैसा रिश्ता रखना चाहेगी। सरयू राय ने 2019 के चुनाव में भाजपा से टिकट नहीं मिलने के बाद जितना नुकसान रघुवर दास को कराया था, उससे कम नुकसान भाजपा को नहीं हुआ था। उसका असर जमशेदपुर पश्चिमी के साथ-साथ झारखंड की कुल चार सीटों पर पड़ा था। इतना ही नहीं, सरयू राय की मदद से जदयू को झारखंड में अपना खोया हुआ गौरव वापस पाने और यहां अपना आधार बढ़ाने में मदद भी मिलेगी। अब जदयू भाजपा पर जमशेदपुर पूर्वी के अलावा अपने जनाधार वाली कुछ और सीट छोड़ने के लिए दबाव बनायेगी, जिसका सामना भाजपा कैसे करती है, यह देखनेवाली बात होगी। इससे साफ है कि सरयू राय के जदयू में शामिल होने से झारखंड का सियासी परिदृश्य अचानक से बदल सा गया है। क्या है सरयू राय के इस कदम के मायने और क्या हो सकता है इसका परिणाम, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
बहुत पुरानी कहावत है कि सौ सुनार की, एक लोहार की। झारखंड के चर्चित निर्दलीय विधायक सरयू राय जब अपने पुराने मित्र बिहार के सीएम नीतीश कुमार की पार्टी जदयू का दामन थाम रहे थे, तो बहुत से लोगों को बरबस ही यह कहावत याद आ गयी। सरयू राय जदयू में शामिल हो गये, हालांकि उनकी पार्टी भारतीय जनतंत्र मोर्चा का उसमें अभी विलय नहीं हुआ है। एक-दो दिन में इसका निर्णय भी हो जायेगा।
सरयू राय ना तो किसी परिचय के मोहताज हैं और ना ही किसी दल विशेष के मोहताज। लेकिन क्या ये बातें आज के समय में बदल गयी हैं। यह सच है कि झारखंड की राजनीति में सरयू राय अपनी अलग पहचान रखते हैं। चारा घोटाला में लालू यादव से लेकर, मधु कोड़ा और भाजपा की सरकार में रघुवर दास तक के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले सरयू राय हमेशा बड़ा खुलासा करनेवाले नेता के तौर पर जाने पहचाने जाते हैं। अभी कुछ दिन पहले की ही बात है, जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ उनकी मुलाकात का खुलासा करते हुए उन्होंने जदयू के साथ मिल कर चुनाव लड़ने का एलान किया था। अब अचानक से सरयू राय के जदयू में शामिल होने की तस्वीर सामने आ गयी है। मतलब सरयू राय अब जदयू नेता के तौर पर पहचाने जायेंगे।
निर्दलीय रहते हुए भाजपा सरकार के सीएम रघुवर दास को चुनावी मैदान में पटखनी देनेवाले सरयू राय आखिर इस बार क्यों दल के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते हैं, यह सवाल बहुत महत्वपूर्ण है और इसे समझने की जरूरत है। इसका जवाब भी एक सवाल ही है कि क्या सरयू राय जदयू के एक तीर से दो निशाना तो नहीं लगाना चाह रहे हैं। आखिर सरयू राय के मन में क्या चल रहा है और इसके पीछे की राजनीतिक वजह क्या हो सकती है। राजनीति के जानकारों की मानें तो सरयू राय के पास अब बहुत ज्यादा विकल्प नहीं है।
आसान नहीं है निर्दलीय चुनाव जीतना
जमशेदपुर पूर्वी या पश्चिमी सीट अब सरयू राय के लिए बहुत आसान नहीं रह गयी है। यही वजह है कि सरयू राय अब गठबंधन का उम्मीदवार बनना चाहते हैं। चूंकि भाजपा में उनकी वापसी की संभावना नहीं बन पा रही थी, इसलिए उन्होंने राजनीति में अपने पुराने सहयोगी का साथ लिया। जदयू में शामिल होने के बाद अब भाजपा के सामने परेशानी बढ़ गयी है। सरयू राय के लिए अगर जदयू अड़ गया, तो भाजपा से अब तक चुनाव लड़ने वाले नेता पीछे छूट जायेंगे। सरयू राय को पता है कि बात चाहे जमशेदपुर पूर्वी की हो या पश्चिमी की, एनडीए और इंडी गठबंधन की लड़ाई में वह तीसरा कोण बना कर बहुत राजनीतिक रूप से बहुत अधिक जमीन तैयार नहीं कर पायेंगे। वैसे भी निर्दलीय विधायक की हैसियत से उनको वह स्थान नहीं मिल पाता, जिसके वह हकदार हैं। भाजपा में उनके कद का इस्तेमाल नहीं हो पाया था, जबकि सरयू राय अच्छे संगठनकर्ता भी हैं और विषयों की समझ भी। जदयू में आ जाने से उन्हें झारखंड स्तर पर फलक मिलेगा। झारखंड में जदयू के जनाधार को बढ़ाने के नजरिये से देखा जाये, तो सरयू राय के साथ आने से जदयू को झारखंड में लाभ मिलना तय है।
इस बार बागी भी चुनाव मैदान में
इसलिए सरयू राय ने बहुत ही ठंडे दिमाग से बड़ा राजनीतिक दांव खेल दिया है। एनडीए का उम्मीदवार बन कर वह इंडी गठबंधन के उम्मीदवार को कड़ी चुनौती जरूर दे सकते हैं। सीट शेयरिंग की घोषणा से पहले सरयू राय की इस राजनीतिक चाल को एनडीए गठबंधन के अंदर बहुत गंभीरता से लिया जा रहा है। सरयू राय झारखंड के कद्दावर नेता के रूप में पहचान रखते हैं। ऐसे में नीतीश कुमार के जदयू को झारखंड में मजबूत करने की जिम्मेदारी भी आज नहीं तो कल सरयू राय पर होगी और उन्हें झारखंड स्तर पर काम करने का मौका मिलेगा।
बढ़ गयी भाजपा की टेंशन
सरयू राय के जदयू में शामिल होने से भाजपा की टेंशन बढ़ गयी है। सरयू राय की पार्टी भारतीय जनतंत्र मोर्चा ने विधानसभा चुनाव में 15 से 17 सीटों पर प्रत्याशी उतारने का एलान किया है। अब उनके जदयू में जाने के बाद जदयू निश्चित रूप से छह से सात सीटों पर मजबूत दावा पेश करेगा। ऐसे में भाजपा के सामने परेशानी यह है कि अब तक झारखंड की 81 विधानसभा सीटों के बंटवारे में उसे केवल आजसू को हिस्सेदारी देनी होती थी, लेकिन इस बार जदयू के रूप में तीसरा दावेदार भी होगा। यानी पहले जहां एक रोटी में दो हिस्सेदार थे, अब तीन होंगे और इस तरह हरेक का हिस्सा पहले से कम हो जायेगा।
भाजपा की दूसरी परेशानी यह है कि अब उसे सरयू राय के साथ सीधे बातचीत करनी होगी। नीतीश कुमार अब झारखंड में अपनी पार्टी को धार देने के लिए सरयू राय को निश्चित रूप से जिम्मेदारी देंगे। ऐसे में सीट शेयरिंग से लेकर अन्य मुद्दों पर भाजपा को सरयू राय का सामना करना होगा। इसके अलावा भाजपा का रघुवर दास खेमा अब पूरी तरह से नेपथ्य में चला जायेगा, क्योंकि सरयू राय इस खेमे के विरोध को अपनी राजनीति का एक बड़ा मोड़ बना चुके हैं।
छात्र राजनीति की उपज हैं सरयू राय
सरयू राय 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान बहुत ज्यादा सुर्खियों में आये थे। उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास को जमशेदपुर पूर्वी से शिकस्त दी थी। मगर उनकी राजनीति दशकों पुरानी है। सरयू राय भी आपातकाल के छात्र आंदोलन की उपज हैं। लालू यादव, नीतीश कुमार, रामबिलास पासवान, और सुशील मोदी के साथ ही सरयू राय ने भी राजनीतिक पारी शुरू की। कैलाशपति मिश्रा और लालकृष्ण आडवाणी के चहते सरयू राय जल्द ही भाजपा की उस स्टेट कोर टीम में शामिल हुए, जिसमें सुशील कुमार मोदी, नवीन किशोर प्रसाद सिन्हा और नंदकिशोर यादव पहले से धाक जमा चुके थे। 1993 में भाजपा ने उन्हें प्रदेश प्रवक्ता बना दिया। तब बिहार में जनता दल की सरकार थी और लोग लालू प्रसाद यादव के ठेठ देसी अंदाज के दीवाने थे। मंडल और कमंडल की राजनीति के बीच सरयू राय ने लालू प्रसाद यादव के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। सरयू राय ने चारा घोटाले का खुलासा करते हुए लालू यादव के खिलाफ 44 प्वाइंट की चार्जशीट पेश कर दी। चारा घोटाले की आंच की तपिश आज भी लालू परिवार को परेशान करती है।
मंडल की राजनीति बदल गयी, भ्रष्टाचार को बना दिया मुद्दा
एकीकृत बिहार विधानसभा के भीतर सुशील मोदी चारा घोटाले को लेकर हमलावर रहे तो बाहर की कमान सरयू राय ने ही संभाली थी। भाजपा के आला नेता मानते हैं कि सरयू राय के होमवर्क और दस्तावेज एकत्र करने के कारण ही चारा घोटाले के मामले को कोर्ट तक पहुंचाया जा सका। अगर चारा घोटाला नहीं होता, तो बिहार की राजनीति कुछ और होती। इस घोटाले में लालू यादव की गिरफ्तारी के कारण बिहार की राजनीति मंडल से छिटक कर भ्रष्टाचार की सड़क पर दौड़ने लगी। बिहार में जनता दल का कुनबा बिखर गया। 1998 में सरयू राय विधान पार्षद बने और बिहार के बंटवारे तक भाजपा को धार देते रहे। झारखंड बनने के बाद सरयू राय का कद बढ़ गया, मगर अपने करीबी मित्र सुशील मोदी की तरह वह डिप्टी सीएम नहीं बन पाये। 2009 में विधानसभा चुनाव में हार से उनकी दावेदारी भी कमजोर पड़ गयी।
विधानसभा चुनाव में टिकट कटा तो बागी हुए
2014 में मोदी लहर के बाद जब विधानसभा चुनाव हुए, तो वह दोबारा जीते और रघुवर दास के मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री बने। उस दौर में भाजपा में आडवाणी युग का समापन हो रहा था। यूपी, बिहार और झारखंड में नये नेतृत्व को स्थापित किया जा रहा था। आडवाणी के करीबी माने जाने वाले नेता किनारे लगाये गये। 2019 में रघुवर दास की सिफारिश पर सरयू राय का टिकट ही काट दिया गया। नाराज सरयू ने इसके विरोध में रघुवर दास के खिलाफ ही ताल ठोंक दिया। चुनावी लड़ाई में सरयू राय जीत गये।
जाहिर है कि सरयू राय ने जदयू का दामन थाम कर सियासत का वह दांव खेल दिया है, जिसका असर आसन्न विधानसभा चुनाव में तो दिखेगा ही, साथ ही झारखंड की भावी सियासत में भी उसकी धमक महसूस की जायेगी।