विशेष
चुन-चुन कर हिंदुओं को निशाना बना रहे हैं कट्टरपंथी
भारत को अलर्ट रहने की जरूरत, घुसपैठिये एक्टिव
बांग्लादेशी सीमा पर हरकत, सीमावर्ती राज्यों को सतर्क रहने की जरूरत
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
बांग्लादेश में आरक्षण को लेकर हो रहे हिंसक आंदोलन के बाद शेख हसीना सरकार के सत्ता से बाहर होने का सीधा असर भारत पर पड़ना तय है। सबसे बड़ी समस्या सुरक्षा को लेकर जतायी जा रही है। इस हिंसा का कारण केवल बांग्लादेश सरकार की आरक्षण नीति ही नहीं है। इसके पीछे भारत विरोधी देशों का भी हाथ माना जा रहा है। कुछ का तो यहां तक दावा है कि बांग्लादेश की इस स्थिति के पीछे अमेरिका का हाथ है, वहीं कुछ आइएसआइ को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। कारण तो कई हैं, लेकिन सबसे बड़ा कारण यह माना जा रहा है कि अमेरिका इन इलाकों में अपना दखल मजबूत करना चाहता है। समझा जा सकता है कि इसके पीछे की मंशा क्या है। जो भी हो, भारत को अब सतर्क रहने की जरूरत है। बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के अपदस्थ होने के बाद भारतीय सुरक्षा एजेंसियां पूरी तरह से हाइ अलर्ट पर हैं। बांग्लादेश से सटी भारतीय सीमाओं पर पूरी सतर्कता से निगरानी की जा रही है। बीएसएफ ने अपनी निगरानी क्षेत्र वाली सीमाओं पर अलर्ट जारी किया है। किसी तरह की घुसपैठ न हो, इसके मद्देनजर सुरक्षा बल को पूरी तरह से नजर बनाये रखने को कहा गया है। सभी संवेदनशील एंट्री प्वाइंट को चिह्नित कर वहां खास चौकसी रखने का निर्देश दिया गया है। खुफिया जानकारी मिली है कि बांग्लादेश में जारी अशांति के दौरान कई प्रतिबंधित इस्लामी आतंकवादी संगठन जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश और अंसारुल्लाह बांग्ला टीम के सदस्य जेलों से भाग गये हैं। इनके भारत में प्रवेश करने की आशंका से एजेंसियां चौकन्ना हैं। ये आतंकी संगठन भारत-बांग्लादेश के बीच सीमावर्ती राज्यों में सक्रिय हैं। सूत्रों की मानें, तो 31 जुलाई को बांग्लादेश में भारत के राजदूत प्रणय वर्मा ने प्रधानमंत्री शेख हसीना से मुलाकात की थी। उस वक्त हसीना ने प्रणय को अपनी जान के खतरे के बारे में बताया। इस बातचीत में हसीना ने दावा किया था कि विरोधी ताकतें उन्हें मारने की प्लानिंग कर रही हैं। आंदोलनकारियों के जुलूस के पीएम हाउस की ओर निकलने के बाद शेख हसीना ने देश छोड़ दिया। वे सेना के हेलीकॉप्टर से भारत चली आयीं। आजादी के बाद बांग्लादेश सबसे बड़े संकट से जूझ रहा है। तख्तापलट के बाद कट्टरपंथियों के वर्चस्व से अस्थिर अराजक माहौल वहां के हिंदू समुदाय के लिए बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है। बांग्लादेश में हिंदुओं के घर, मकान, दुकान, आॅफिस, व्यावसायिक प्रतिष्ठान, मंदिर, गुरुद्वारे, महिलाएं और बच्चे सुरक्षित नहीं हैं। कट्टरपंथी लगातार इन्हें निशाना बना रहे हैं। हिंसा और आगजनी के बीच अब उपद्रवी चुन-चुन कर हिंदुओं को निशाना बना रहे हैं। घरों में आग लगायी जा रही है। दुकानों को लूटा जा रहा है। 27 जिलों में हिंदुओं के घरों और दुकानों को निशाना बनाया गया है। लोगों का कहना है कि ऐसा कोई इलाका या जिला नहीं बचा है, जहां सांप्रदायिक हमले न हुए हों। कैसे बांग्लादेश हमारे देश के लिए खतरा बना हुआ है, कैसे वहां के अल्पसंखयक हिंदुओं का अस्तित्व खतरे में है और कैसे अब बांग्लादेशी घुसपैठिये एक्टिव हो सकते हैं, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवादताता राकेश सिंह।
आरक्षण की आड़ में राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय साजिश
बांग्लादेश में आरक्षण को लेकर हो रहे हिंसक आंदोलन के बाद शेख हसीना सरकार के सत्ता से बाहर होने का सीधा असर भारत पर पड़ना तय माना जा रहा है। भारत की कई व्यापारिक परियोजनाएं बांग्लादेश के साथ क्रियान्वयन के स्तर पर हैं। अब इसका सीधा असर देश की कई कंपनियों पर भी पड़ेगा। उपद्रव के बाद वहां से पलायन होता है, तो इसका सीधा दबाव भारत पर पड़ना तय है। पड़ोसी देश में अस्थिरता और अराजकता का असर भारत की सुरक्षा पर भी पड़ेगा। जानकारों की मानें, तो इस पूरे घटनाक्रम के पीछे बांग्लादेश सरकार की आरक्षण नीति है, लेकिन इसके पीछे राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय साजिशों से भी इंकार नहीं किया जा सकता। आरक्षण के जिन्न से निपटने में शेख हसीना सरकार फेल हो गयी। बांग्लादेश के आजाद होने के बाद वहां की सरकार ने स्वाधीनता सेनानियों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया। इसके बाद उनकी संतानों और अब चौथी पीढ़ी को आरक्षण दिया जा रहा है। इसका विरोध वहां के लोग ही कर रहे हैं। हाइकोर्ट के फैसले के बाद शेख हसीना ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक सभी को इंतजार करने को कहा, लेकिन इससे पहले ही कट्टरपंथियों ने उपद्रव शुरू कर दिया। जानकारों की मानें, तो बांग्लादेश की सेना भी इस आंदोलन को हवा दे रही है। सेना ने ही तख्ता पलट कराया है और अब वही शासन की बागडोर संभालने को तैयार है। सेना के प्रमुख शेख हसीना के रिश्तेदार ही हैं। एशियाई देशों में देखा गया है कि सैन्य शक्तियों ने लोकतांत्रिक सरकारों का तख्ता पलट करने में अहम भूमिका निभायी है। भारत इसका अपवाद है, क्योंकि भारत में सैन्य शक्तियों का प्रमुख भी राष्ट्रपति को बनाया गया है। बांग्लादेश के मौजूदा अराजक माहौल की वजह से बड़ी तादाद में शरणार्थियों के भारत आने का खतरा बढ़ रहा है। भारत सरकार को ऐसी स्थिति से निपटने के लिए अतिरिक्त सतर्कता बरतनी होगी। राज्य सरकारों की मदद से शुरूआती स्तर पर ही समस्या को नियंत्रित करना होगा, जिससे बांग्लादेशी शरणार्थी भारत की आबादी के लिए खतरा न बनें। भारत के आसपास के देशों में सत्ता का संघर्ष कई सालों से निरंतर चल रहा है। पूरब-पश्चिम और दक्षिण तीनों ही दिशा में अस्थिरता बढ़ रही है। इससे हिंद महासागर में चीन के दखल की आशंका भी बढ़ रही है। इस अस्थिरता के लिए चीन की साम्राज्यवादी सोच को भी जिम्मेदार माना जा रहा है। भारत सरकार के लिए जरूरी है कि बांग्लादेश में जिसके भी हाथ में सत्ता की बागडोर आये, उसके साथ समन्वयवादी तरीका अपना कर अपनी सीमाओं को सुरक्षित करे।
घुसपैठिये एक्टिव
बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के अपदस्थ होने के बाद भारतीय सुरक्षा एजेंसियां पूरी तरह से हाइ अलर्ट पर हैं। बांग्लादेश से सटी भारतीय सीमाओं पर पूरी सतर्कता से निगरानी की जा रही है। बीएसएफ ने अपनह निगरानी क्षेत्र वाली सीमाओं पर अलर्ट जारी किया है। किसी तरह की घुसपैठ न हो, इसके मद्देनजर सुरक्षा बलों को पूरी तरह से नजर बनाये रखने को कहा गया है। बीएसएफ ने 4,096 किलोमीटर लंबी सीमा पर एहतियात बरतने के निर्देश दिये हैं। बीएसएफ के महानिदेशक दलजीत सिंह चौधरी और उनके साथ अन्य वरिष्ठ अधिकारी भारत-बांग्लादेश सीमा सुरक्षा की समीक्षा करने के लिए पश्चिम बंगाल पहुंचे और आला अधिकारियों के साथ बैठक के बाद आवश्यक दिशा निर्देश जारी किये। डीजी ने उत्तर 24 परगना जिले की सीमा का दौरा भी किया। पिछले दिनों पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले से लगती भारत-बांग्लादेश सीमा पर अमुदिया सीमा चौकी के पास 10-15 बांग्लादेशी घुसपैठियों ने भारत में घुसने की कोशिश की थी। ऐसे सभी संवेदनशील एंट्री प्वाइंट को चिह्नित कर वहां खास चौकसी बरतने को कहा गया है। बांग्लादेश की तरफ से नदिया जिले के मलुआपाड़ा, हलदरपाड़ा, बानपुर और मैटियारी में घुसपैठ की कोशिश की आशंका को देखते हुए खास निगरानी की जा रही है। मुर्शिदाबाद जिले के चरमराशी और मालदा जिले में सासनी सीमा चौकी के इलाके भी संवेदनशील बताये जा रहे हैं। बीएसएफ ने बॉर्डर गार्ड्स बांग्लादेश के साथ भी संपर्क कायम किया है।
आतंकियों से खतरा
खुफिया जानकारी मिली है कि बांग्लादेश में जारी अशांति के दौरान कई प्रतिबंधित इस्लामी आतंकवादी संगठन जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश और अंसारुल्लाह बांग्ला टीम के सदस्य जेलों से भाग गये हैं। इनके भारत में प्रवेश करने की आशंका से एजेंसियां चौकन्ना हैं। ये आतंकी संगठन भारत बांग्लादेश के बीच सीमावर्ती राज्यों में सक्रिय हैं। कई मौकों पर भारत में सुरक्षा एजेंसियों ने पश्चिम बंगाल और असम से इन संगठनों के सदस्यों को गिरफ्तार किया है। संदेह है कि मौजूदा उथल-पुथल का फायदा उठा कर इन आतंकवादी संगठनों के सदस्य भारत में घुसपैठ कर सकते हैं। भारत और बांग्लादेश के बीच 4,096 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा है, जिसमें असम में 262, त्रिपुरा में 856, मिजोरम में 318, मेघालय में 443 और पश्चिम बंगाल में 2,217 किलोमीटर की सीमा शामिल है। इन सभी स्थानों पर राज्य सरकारों को भी अलर्ट भेजा गया है।
आंदोलन के नाम पर हिंदुओं को बनाया जा रहा निशाना
बांग्लादेश में हालात इतने बदतर हो गये हैं कि हिंदुओं के घरों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया जा रहा है। भीड़ ने यहां के कम से कम 27 जिलों में हिंदुओं के घरों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर हमला किया और उनके कीमती सामान भी लूट लिये। महिलाओं और बच्चों पर अत्याचार किया जा रहा है। मंदिरों को भी तोड़ा और जलाया जा रहा है। स्थिति की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि हाटीबंधा उपजिला के पुरबो सरदुबी गांव में रात के वक्त 12 हिंदू घरों को जला दिया गया। वहीं, सदर उपजिला में कई हिंदू घरों में तोड़फोड़ और लूटपाट की गयी।
हिंदुओं का अस्तित्व खतरे में
आजादी के बाद बांग्लादेश सबसे बड़े संकट से जूझ रहा है। तख्तापलट के बाद कट्टरपंथियों के वर्चस्व से अस्थिर अराजक माहौल वहां के हिंदू समुदाय के लिए बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है। बांग्लादेश में निहित संपत्ति अधिनियम (जिसे पहले पाकिस्तानी शासन के दौरान शत्रु संपत्ति अधिनियम के रूप में जाना जाता था) के कारण 1965 और 2006 के बीच हिंदुओं की करीब 26 लाख एकड़ भूमि का अधिग्रहण हुआ था। इससे 12 लाख हिंदू परिवार प्रभावित हुए। बांग्लादेश के प्रमुख मानवाधिकार संगठन की रिपोर्ट के अनुसार 2016 में जनवरी और जून के बीच बांग्लादेश में हिंदुओं को निशाना बना कर की गयी हिंसा में 66 घर जला दिये गये थे, 24 लोग घायल हो गये और कम से कम 49 मंदिरों को नष्ट कर दिया गया था। हिंदुओं के खिलाफ कट्टरपंथी आंदोलन 1980 से 1990 के बीच और अधिक बढ़ा। 1992 में अयोध्या में विवादित ढांचा ध्वंस के बाद चटगांव और ढाका में कई हिंदू मंदिरों में आग लगा दी गयी थी। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान हिंदुओं को विशेष रूप से निशाना बनाया गया, क्योंकि कई पाकिस्तानी उन्हें अलगाव के लिए दोषी मानते थे। इससे हिंदू आबादी बुरी तरह प्रभावित हुई। 1951 की आधिकारिक जनगणना के अनुसार बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) की कुल आबादी में हिंदू 22 प्रतिशत थे। यह संख्या 1991 तक घट कर 15 प्रतिशत रह गयी। 2011 की जनगणना में यह संख्या केवल 8.5 प्रतिशत रह गयी। 2022 में यह आठ प्रतिशत से भी कम हो गयी है। वहीं मुसलमानों की आबादी 1951 में 76 प्रतिशत से 2022 में 91 प्रतिशत से अधिक हो गयी है। हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार 1964 और 2013 के बीच 1.1 करोड़ से अधिक हिंदू धार्मिक उत्पीड़न के कारण बांग्लादेश से भाग गये। इसमें कहा गया है कि बांग्लादेश में हर साल 2.3 लाख हिंदू देश छोड़ कर चले जाते हैं। 2011 की जनगणना से पता चला कि 2000 से 2010 के बीच देश की आबादी से दस लाख हिंदू गायब हो गये।
कैसे हसीना आयीं भारत
31 जुलाई को बांग्लादेश में भारत के राजदूत प्रणय वर्मा ने प्रधानमंत्री शेख हसीना से मुलाकात की थी। सूत्रों के मुताबिक, उस वक्त हसीना ने प्रणय वर्मा को अपनी जान के खतरे से अवगत कराया था। इस बातचीत में हसीना ने दावा किया कि विरोधी ताकतें कैसे पीएम हाउस पर हमला कर उन्हें मारने की प्लानिंग कर रही हैं। इसके बाद प्रणय वर्मा ने यह जानकारी नयी दिल्ली के साथ साझा की। बांग्लादेश में हुई इस उठापठक से पहले ही तीन दिनों की सार्वजनिक छुट्टी घोषित कर दी गयी। सेना को स्थिति संभालने की जिम्मेदारी सौंपी गयी। आर्मी चीफ वकार-उज-जमान हाल ही में नियुक्त किये गये हैं। वह बांग्लादेश में प्रधानमंत्री के रिश्तेदार न होते, तो इस तरह के पद पर नहीं बैठ सकते थे। हसीना सरकार के सूत्रों के मुताबिक, मौजूदा आर्मी चीफ के नयी दिल्ली से भी अच्छे संबंध हैं। सूत्रों के मुताबिक, हसीना ने भारत सरकार से मदद की अपील की थी, लेकिन सरकार इस मामले में सीधे दखल देकर किसी विवाद में नहीं पड़ना चाहती थी। इसलिए विदेश मंत्रालय ने उन्हें भारत आने की सलाह दी। आंदोलनकारियों के जुलूस के पीएम हाउस की ओर निकलने के बाद शेख हसीना ने देश छोड़ दिया। वह सेना के हेलीकॉप्टर से भारत चली आयीं। शेख हसीना ने ढाका छोड़ने के बाद सीधे भारत की तरफ उड़ान भरी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उत्तरप्रदेश में गाजियाबाद के हिंडन एयरबेस पर एनएसए अजीत डोभाल और शेख हसीना के बीच करीब एक घंटे बातचीत हुई। साथ में भारतीय वायुसेना के वेस्टर्न एयर कमांड के एयर मार्शल पीएम सिन्हा भी मौजूद रहे। शेख हसीना को एयरबेस के सेफ हाउस में रखा गया है। उनकी सिक्योरिटी में वायुसेना के गरुड़ कमांडो तैनात हैं। देश छोड़ने से पहले शेख हसीना राष्ट्र के नाम संबोधन देना चाहती थीं, लेकिन हालात बिगड़ने की आशंका के चलते सेना ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। हालांकि प्रधानमंत्री के देश छोड़ने के बाद ही आर्मी चीफ ने देश को संबोधित किया। तब तक ढाका की सड़कों पर लोग उतर आये थे। लंबे समय से सत्ता में रहने वाली अवामी लीग जनवरी में लगभग एकतरफा लड़ाई जीत कर फिर से सत्ता में आयी। आठ महीने पूरे होने से पहले ही लगभग पूरा देश इसके खिलाफ हो गया। जिस बंगबंधु की बेटी को बांग्लादेश में विकास का प्रतीक माना जाता था, वो सभी की आंखों में खटकने लगी। शेख हसीना के बेटे और पूर्व आधिकारिक सलाहकार सजीब वाजेद जॉय ने कहा है कि वे अब राजनीति में वापसी नहीं करेंगी। उन्होंने अपने परिवार की अपील पर अपनी सुरक्षा के लिए देश छोड़ा है। जॉय ने कहा कि उनकी मां इस बात से निराश हैं कि उनकी कड़ी मेहनत और बांग्लादेश को बदलने के बाद भी एक बड़ा धड़ा उनके खिलाफ उठ खड़ा हुआ। कहा जा रहा है कि शेख हसीना के देश छोड़ कर भाग जाने से जनता का गुस्सा कम होगा। इस मूवमेंट को भले ही विद्यार्थियों का आंदोलन कहा जा रहा है, लेकिन इसके बैकग्राउंड में बांग्लादेश की राजनीतिक स्थितियां हैं। बांग्लादेश की कट्टरपंथी जमात और विपक्षी दल इस आंदोलन को हवा दे रहे हैं, ऐसे में जब तक अंतरिम सरकार नहीं बनती और आरक्षण के मामले में कोई फैसला नहीं लिया जाता, तब तक बांग्लादेश में सड़कों पर आंदोलन कर रहे लोग घर नहीं जानेवाले हैं।