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    Home»Top Story»सीपी सिंह के क्षेत्र में सबसे अधिक बढ़े वोटर, दिनेश मरांडी के क्षेत्र में सबसे कम
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    सीपी सिंह के क्षेत्र में सबसे अधिक बढ़े वोटर, दिनेश मरांडी के क्षेत्र में सबसे कम

    shivam kumarBy shivam kumarAugust 12, 2024No Comments4 Mins Read
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    रांची। लोकसभा चुनाव के बाद रांची विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं की तादाद राज्य में सबसे अधिक बढ़ी है। वहीं लिट्टीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र में सबसे कम इजाफा हुआ है। लोकसभा चुनाव के लिए तैयार मतदाता सूची में दर्ज मतदाताओं की संख्या और विशेष पुनरीक्षण कार्यक्रम के बाद मतदाता सूची के प्रारूप प्रकाशन के आंकड़ों की तुलना से इसका पता चलता है। रांची विधानसभा सीट से अभी विधायक पूर्व नगर विकास मंत्री और पूर्व विधानसभाध्यक्ष सीपी सिंह तथा लिट्टीपाड़ा विधानसभा सीट से विधायक कद्दावर आदिवासी नेता रहे साइमन मरांडी के पुत्र दिनेश विलियम मरांडी हैं।

    लोकसभा चुनाव के दौरान झारखंड की मतदाता सूची में दो करोड़ 56 लाख 73 हजार 706 मतदाताओं के नाम मतदाता सूची में दर्ज थे। जो 25 जून से 24 जुलाई तक चले विशेष मतदाता पुनरीक्षण कार्य़क्रम के बाद बढ़कर दो करोड़ 59 लाख पांच हजार 627 हो गए हैं। इस तरह मतदाताओं की तादाद में दो लाख 31 हजार 921 का इजाफा हुआ है। आगामी झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए मतदाता सूची का मूल प्रारूप यही रहेगा। डोर-टू-डोर सर्वे के बाद प्रारूप में गड़बड़ी सर्वे आने के बाद इनमें बदलाव संभव है। इसके अलावा गलती से मतदाता सूची से नाम हट जाने, किसी के देहांत या फिर तबादले अथवा दूसरे कारणों से राज्य के अंदर एक जगह से दूसरी जगह जाकर स्थायी निवास बनाने या दूसरे प्रदेश से राज्य में आने या यहां से जाने के कारण भी ऐसा संभव होगा।

    झारखंड मतदाताओं के कहां ज्यादा बढ़ने का क्या है राज
    झारखंड में रांची विधानसभा सीट पर 4583 मतदाता बढ़ने के बाद दूसरे नंबर पर सबसे अधिक मतदाता कांके विधानसभा क्षेत्र में बढ़े हैं। कांके में लोकसभा चुनाव के बाद 4092 मतदाता बढ़े हैं। कांके के बाद तीसरे नंबर पर वोटरों की संख्या में सबसे अधिक इजाफा धनबाद विधानसभा क्षेत्र में हुआ है। यहां 3567 वोटर बढ़े हैं। उसके बाद हजारीबाग में 3545 और मांडर में 2996 वोटरों की तादाद बढ़ी है।

    पिछले चार महीने में ही मतदाताओं की ज्यादा बढ़ी संख्या वाले विधानसभा क्षेत्रों पर अगर हम गौर फरमाएं तो पाते हैं कि इनमें टॉप 5 में से चार राज्य के बड़े शहर हैं। इस सूची में पहले और दूसरे नंबर की विधानसभा सीटें रांची और कांके तो राजधानी का हिस्सा हैं। यहां प्रशासनिक और कारोबारी गतिविधियां भी बड़े पैमाने पर संचालित की जाती हैं। इस कारण इन दोनों विधानसभा क्षेत्रों में नए बसने वाले लोग लगातार आते रहते हैं। इसी तरह टॉप 5 की तीसरे और चौथे नंबर की विधानसभा सीटें धनबाद और हजारीबाग भी राज्य के बड़े शहर हैं। धनबाद को तो राज्य का कोल कैपिटल भी कहा जाता है। हजारीबाग भी ज्यादा बढ़ते शहरीकरण वाला शहर है। टॉप-5 के पांचवें पायदान वाली विधानसभा सीट मांडर का भी कई कारणों से शहरीकरण हो रहा है। चार महीने में मतदाताओं की संख्या का बढ़ना चुनावी रुझान की जगह राज्य में वास के लिए पसंदीदा बनते ठिकानों की प्रवृत्ति को ज्यादा दिखा रहा है।

    झारखंड आदिवासी सीटों पर कम क्यों बढ़े मतदाता
    लोकसभा चुनाव के बाद सबसे कम 15 मतदाता लिट्टीपाड़ा विधानसभा सीट पर बढ़े हैं। लिट्टीपाड़ा सीट आदिवासियों के लिए रिजर्व है। यानी यहां से केवल आदिवासी उम्मीदवार ही विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं। इसके बाद मतदाताओं की संख्या में दूसरा सबसे कम इजाफा घाटशिला विधानसभा सीट पर हुआ है। यहां केवल 76 मतदाता बढ़े हैं। यह भी आदिवासियों के लिए रिजर्व विधानसभा सीट है। इसी तरह मतदाताओं का आंकड़ा तीसरा सबसे कम बढ़ने का गवाह बनी विधानसभा सीट बिशुनपुर भी ट्राइबल रिजर्व सीट है। यहां पिछले चार महीनों में केवल 82 मतदाता बढ़े हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा सीट बरहेट भी मतदाताओं की संख्या बढ़ने के मामले में बॉटम-5 सीटों में चौथे पायदान पर है। यह भी आदिवासी सीट है। यहां लोकसभा चुनाव के बाद केवल 131 मतदाता बढ़े हैं। विधानसभाध्यक्ष रवींद्रनाथ महतो की विधानसभा सीट नाला मतदाताओं की संख्या के ग्राफ बढ़ने वाली विधानसभा सीटों में सबसे नीचे के पायदान वालों में से एक है। यहां भी बरहेट के बराबर केवल 131 मतदाता ही बढ़े हैं। बॉटम-5 में केवल यही आदिवासी रिजर्व सीट नहीं है।

    झारखंड में कहीं पलायन, पिछड़ापन वोटरों की संख्या कम बढ़ने का कारण तो नहीं
    मतदाताओं की कम संख्या बढ़ने वाली विधानसभा सीटों की बॉटम-5 में से चार विधानसभा सीटें आदिवासी समुदाय के लिए रिजर्व हैं। इनमें से अधिकतर इलाके दूरदराज के क्षेत्रों में स्थित है। घाटशिला के कुछ केंद्रों को छोड़ दिया जाय तो अधिकतर जगहों पर लोगों के बाहर से आकर बसने का आकर्षण नहीं के बराबर है। क्योंकि इनके मुख्यालय वाले स्थानों को छोड़कर रोजगार-धंधों के विकास की संभावना काफी कम है। यहां से काम की तलाश में पलायन भी काफी ज्यादा है। इस कारण आबादी बढ़ने या कुछ नए लोगों के आने के कारण मतदाताओं की बढ़ी तादाद में पलायन काफी कमी करा देता है।

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    shivam kumar

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