दावेदारों की फेहरिश्त से जूझ रही हैं सभी राजनीतिक पार्टियां
कोयला राजधानी में आम मतदाताओं में पसरी है खामोशी
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥
भागवत गीता के तृतीय अध्याय, श्लोक 21 में कहा गया है कि श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण यानी जो-जो काम करते हैं, दूसरे मनुष्य (आम इंसान) भी वैसा ही आचरण, वैसा ही काम करते हैं। श्रेष्ठ पुरुष जो प्रमाण या उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, समस्त मानव-समुदाय उसी का अनुसरण करने लग जाते हैं। श्रीकृष्ण सिर्फ कर्म करने की प्रेरणा देते हैं। इसलिए मानव को केबल और केबल कर्म में लीन रहना चाहिए जिससे वह श्रेष्ठ पुरुष का उदाहरण प्रस्तुत करे ताकि मानव उसी का अनुसरण करने लगे।
झारखंड विधानसभा चुनाव का बिगुल कभी भी बज सकता है। झारखंड में सभी 81 सीटों पर राजनीतिक समीकरण बैठाने की जुगत जहां धीरे-धीरे आकार लेता जा रहा है, वहीं सभी 81 विधानसभा सीटों से अगला विधायक कौन? पर चर्चा और जातीय समीकरण की गोटी भी उछाल पर है। राजनीतिक दलों के कर्णधार पर सीटों पर भावी विधायक की दावेदारी पुख्ता के लिए जिला स्तरीय, मंडल स्तरीय, बूथ स्तरीय दावेदारों के नाम मांगे जा रहे हैं ताकि प्रदेश संगठन इसपर विचार करे। वहीं धन बल और प्रभावशाली व्यक्तित्व भी व्यक्तिगत स्तर पर राजनीतिक प्रवेश चाहते हुए विधानसभा चुनाव लड़ने की स्पर्धा में जोरशोर से शिरकत कर रहे हैं। पेड सोशल मीडिया के जरिए अपने व्यक्तित्व का बखान इसकदर कर रहे हैं जैसे वह कोई ठोस राजनीतिज्ञ, प्रभावशाली समाजसेवी या फिर बहुत बड़ा रोबिनहुड या स्कॉलर हो। लेकिन, झारखंड की जनता का मूड इसबार कुछ अलग चाह रहा है। बीते लोकसभा चुनाव के दरम्यान झारखंड की जनता ने संकेत दे दिए हैं कि वे कर्म की कसौटी पर परखेंगे तभी अपना मत देंगे। झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में भी जनता उन्हीं को वोट करने का मन बनाया है जो उनकी कसौटी पर खड़ा हो। ऐसे में राजनीतिक दलों के सामने विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी का चयन भी चुनौती से भरा है। झारखंड के धनबाद जिला के छह विधानसभा जिनमें गिरिडीह लोकसभा के दो बाघमारा और टुंडी विधानसभा सीट तथा धनबाद लोकसभा के चार विधानसभा सिंदरी, निरसा, झरिया और धनबाद विधानसभा सीट से अगला विधायक कौन ? की कड़ी में आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर झारखंड में भाजपा की अभेद्य किला धनबाद विधानसभा सीट पर क्या है राजनीतिक समीकरण, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता मनोज मिश्र।
झारखंड की सियासत में धनबाद जिला का योगदान और यहां का तूफान दोनों की पहचान लोकप्रिय और चर्चित होने के साथ प्रसांगिक भी है। धनबाद जिला के सभी विधानसभा पर कभी कांग्रेस का कब्जा था लेकिन समय रहते संगठन ने युवाओं को मौका नहीं दिया और परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस की विरासत धनबाद लालझंडे तले आ गया और वामपंथी का गढ़ बन गया। समय बदला और समय की मांग ने लालझंडा को उखाड़ फेंका और धनबाद जिला केसरिया रंग में रंग गया। केसरिया रंग में रंगा धनबाद को भाजपा का गढ़ माना जाता है। हालांकि, समय समय पर धनबाद जिला चेताया है कि समय की मांग ही हमें मंजूर है।
सत्तारूढ़ जेएमएम पार्टी का गठन भी धनबाद में ही हुआ लेकिन अब तक जेएमएम टुंडी विधानसभा से ही जीत दर्ज कर पाया है। वर्तमान में धनबाद जिला के छह विधानसभा में से चार सिंदरी, निरसा, बाघमारा और धनबाद विधानसभा सीट से भाजपा के विधायक हैं। वहीं झरिया सीट से कांग्रेस के विधायक और टुंडी से जेएमएम के विधायक हैं।
विधानसभा चुनाव में अभी देरी है लेकिन धनबाद जिला की सभी छह सीटों के लिए दावेदारी शुरू है। दावेदारों की लिस्ट लंबी होती जा रही है। विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा, कांग्रेस, राजद, जदयू, जेएमएम पार्टी के दावेदार विधानसभा सीटों पर अपनी दावेदारी पुख्ता कर रहे हैं। विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने उम्मीदवारों से बायोडाटा मांगा है। वहीं भाजपा में दावेदार धमासान मचाए हुए हैं। भीतरी लड़ाई सतह पर आने लगी है। वहीं पार्टी छोड़ने और शामिल होने का सिलसिला भी शुरू हो गया है। बाघमारा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की मंशा रखने वाले रोहित यादव ने अपने समर्थकों के साथ राजद छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया है। इधर, स्वच्छ अपनी छवि बनाने की भी होड़ लगी है। बैनर पोस्टर, सोशल मीडिया पर पेड न्यूज तथा पेड यूट्यूबर के जरिए चेहरा चमकाने पर लाखों खर्च अभी से शुरू हो गया है।
इनसब के बीच सबसे अधिक चर्चा धनबाद विधानसभा सीट को लेकर है। धनबाद विधानसभा सीट बीजेपी नेताओं के लिए हॉट सीट बन गई है। टिकट के लिए बीजेपी नेता आपस में विरोधी दलों की तरह एक दूसरे पर हमला कर रहे हैं। कोई विधायक के पूरे कार्यकाल पर सवाल उठा रहा है तो कोई उसपर पलटवार कर रहा है। वहीं कांग्रेस पार्टी के दावेदारों की लिस्ट भी धनबाद विधानसभा सीट पर लंबी होती जा रही है। विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने उम्मीदवारों से बायोडाटा मांगा है जिसमें अबतक 6 कांग्रेसियों ने धनबाद सीट के लिए दावेदारी पेश की है। दावेदारी जमा करने का अंतिम तिथि 28 अगस्त है।
इधर, धनबाद विधानसभा के विभिन्न इलाकों में समाजसेवी सह प्रख्यात उद्योगपति एलबी सिंह दौरा शुरू कर चुके हैं। इनकी मंशा धनबाद विधानसभा सीट से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ने की है। इसके लिए एलबी सिंह अब वर्तमान भाजपा विधायक राज सिन्हा को सीधे जुबानी हमले से टारगेट भी कर रहें हैं। वहीं जनता के बीच जाकर उनकी समस्याओं को सुनने और उसके निदान की भी बात कह रहे हैं। यहां बता दें कि धनबाद कोयलांचल क्षेत्र में अपने व्यवसाय के लिए पहचान रखने वाले रसूखदार एलबी सिंह पहले कभी भी जनता के बीच नहीं गए। इनकी बीसीसीएल में आउटसोर्सिंग के जरिए कोयला उत्खनन का कार्य चलता है। आउटसोर्सिंग स्थल के आसपास बसी आबादी के साथ अक्सर विवाद होता रहा है। ग्रामीण और इनकी कंपनी के बीच उपजे विवादों और मारपीट को बयां नहीं किया जा सकता।
धनबाद सीट के दावेदारी में एक ऐसे भी दावेदार हैं जो सालों तक कांग्रेस के प्रदेश स्तर पर जिम्मेदारी निभायी लेकिन, विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अपनी अलग पहचान बनाने में जुटे हुए हैं। हालांकि, इनकी पहचान अपनी गली तक सीमित है। वहीं धनबाद सीट से एक अस्पताल निदेशक भी भाग्य आजमाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। हालांकि, इनकी आलोचनाओं का बाजार सबसे अधिक गर्म है। लोग यहां तक कह रहे हैं कि मुर्दे तक से पैसा उगाही करनेवाला यह इंसान जनता का क्या भला करेगा।
इधर, झारखंडी भाषा खतियान संघर्ष समिति ने राज्य की करीब 50 से अधिक विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी मैदान में उतारने का एलान कर दिया है। इसका प्रभाव धनबाद जिला के सभी छह विधानसभा सीटों पर पड़ेगा। धनबाद विधानसभा सीट भी अछूता नहीं है। दावेदारों का टारगेट जेबीकेएसएस पार्टी भी है। सफेदपोश दावेदार इस फिराक में हैं कि उन्हें यदि भाजपा या कांग्रेस से टिकट नहीं मिली तो जेबीकेएसएस पार्टी में शामिल होकर चुनाव लड़ेंगे। ज्ञात हो कि जयराम महतो ने बीते दिनों घोषणा करते हुए कहा था कि सिंदरी, टुंडी, बाघमारा में उनके पार्टी का जनादेश है वहां प्रत्याशी देंगे और धनबाद सीट पर जनाधार कम है लेकिन यहां भी प्रत्याशी देंगे और जो चेहरा सामने आएगा वह चौंकाने वाला होगा। यही वजह है कि सफेदपोश धनबाद सीट के दावेदार अभी अपना पता नहीं खोल रहे हैं और समय की ताक में है। इधर, जदयू भी जिन तीन सीटों पर दावेदारी पेश कर रहा है उनमें टुंडी, झरिया और धनबाद शामिल है।
भाजपा विधायक राज सिन्हा के सामने चुनौतियों का अंबार:
भाजपा से तीसरी बार धनबाद सीट से विधायक बनने का सपना ही नहीं हकीकत बुनने की दिशा में प्रयास कर रहे धनबाद के निर्वतमान भाजपा विधायक राज सिन्हा के लिए विधानसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले चुनौतियों का अंबार खड़ा है। भाजपा कार्यकतार्ओं के निशाने पर है। संगठन के भीतरघात से विधायक राज सिन्हा के खिलाफ प्रदेश स्तरीय नेता की उपस्थिति में दो-दो बार मुदार्बाद के नारे लगे, हटाओ भाजपा बचाओ का आवाज बुलंद किया गया। वहीं एलबी सिंह अब विधायक राज सिन्हा को सीधे जुबानी हमले से टारगेट भी कर रहें हैं। विधायक राज सिन्हा और एलबी सिंह के बीच जुबानी हमला शुरू हो गया है। बीते 20 अगस्त को सड़क पर जलजमाव को लेकर धैया में विधायक राज सिन्हा ने कई लोगों के साथ जल सत्याग्रह किया तो समाज सेवी सह कोयला उद्यमी एलबी सिंह ने आरोपों की बौछार कर दी। एलबी सिंह ने निक्कमा जनसेवक करार देते हुए कहा कि वे 10 साल विधायक रहे। अगर काम किया होता तो जल सत्याग्रह करने की नौबत नहीं आती। हालांकि, दूसरी ओर धनबाद विधानसभा क्षेत्र के वर्तमान विधायक राज सिन्हा आश्वस्त हैं कि भाजपा उन्हें तीसरी बार मौका देगी। उन्होंने धनबाद सीट से दावेदारों और टिकट के सवाल पर मीडिया से कहा कि पार्टी निर्णय लेगी किसको टिकट देना है और किसको नहीं। जनता जिस पर मुहर लगाएगी, वही चुनाव जीतेगा। चुनाव जीतने के लिए अलग से तैयारी नहीं करना है। हम जब से विधायक बने हैं गली, नाली और मुहल्ले में ही घूमते रहे हैं और जनता के बीच ही रहे हैं। जनता फिर जिताएगी तो जीतेंगे। उन्होंने, एलबी सिंह के बयान पर पलटवार करते हुए कहा कि पार्टी का नया चेहरा है। ऐसा आसमान में बहुत उड़ता रहता है।
यहां बता दें कि निर्वतमान विधायक राज सिन्हा साल 2009 में पहली बार भाजपा के टिकट से धनबाद विधानसभा सीट चुनाव लड़े लेकिन उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। साल 2009 में भाजपा के राज सिंहा को 34.47 प्रतिशत वोट मिले जबकि कांग्रेस के मन्नान मलिक को 35.02 प्रतिशत वोट मिले थे। वहीं निर्दलीय नीरज सिंह को 11.21 प्रतिशत वोट मिले थे। पहली बार चुनाव में उतरे निर्दलीय प्रत्याशी नीरज सिंह भाजपा के लिए हार का कारण बने और राज सिंहा चुनाव मामूली वोट के अंतर से हार गए। कांग्रेस से मन्नान मलिक चुनाव जीते। साल 2014 में भाजपा ने फिर एकबार राज स़िहा को टिकट दिया और भाजपा 58.18 प्रतिशत वोट शेयरिंग के साथ जीती। राज सिंहा पहली बार धनबाद के विधायक बने। कांग्रेस के मन्नान मलिक को 34.84 प्रतिशत वोट मिला था। भाजपा और राज सिंहा के लिए गनीमत रही कि नीरज सिंह जो भाजपा के लिए साल 2009 में हार के कारण बने थे, वे कांग्रेस में शामिल होकर झरिया सीट से अपने चचेरे भाई के खिलाफ चुनाव लड़े ओर हार गए। भाजपा को फायदा मिला कि धनबाद सीट और झरिया दोनों जीती। साल 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने तीसरी बार धनबाद सीट से राज सिन्हा पर भरोसा जताया और वे जीते। इसबार भी राज सिंहा के सामने पुराने प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के मन्नान मलिक थे। जिसका फायदा उन्हें मिला और वे दूसरी बार धनबाद के विधायक चुने गए। साल 2019 में राज सिंहा को 52.31 प्रतिशत वोट मिला जो साल 2014 के मुकाबले 6 प्रतिशत कम था। वहीं कांग्रेस के मन्नान मलिक को 39 प्रतिशत वोट मिले। कांग्रेस का मत करीब 9 प्रतिशत बढ़ा।
इस बार साल 2024 विधानसभा चुनाव में परिस्थितियां अलग है। धनबाद में जहां मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच होता रहा है। वहीं इसबार खतीहानी नेता जयराम महतो की पार्टी त्रिकोणीय मुकाबला बना सकता है। भाजपा में राज सिंहा के खिलाफ विरोधी नारे लग रहे हैं। वहीं पूर्व सांसद पीएन सिंह से भी रिश्ते में खटास की खबर के जबकि निर्वतमान धनबाद सांसद ढुल्लू महतो से 36 का आंकड़ा है। सोने पर सुहागा यह कि भाजपा खेमे से आधा दर्जन लोग दावेदारी पर जोड़ अजमाइश कर रहे हैं। प्रभावशाली व्यक्तित्व धन बल से भी प्रभाव बना रहे हैं। इनसब के बीच राज सिंहा के लिए टिकट का रास्ता कठिन होता दिखाई दे रहा है।
कांग्रेस खेमे में दावेदारों की लंबी लिस्ट पर राजनीतिक रसूख एक का भी नहीं:
धनबाद विधानसभा सीट पर चुनावी मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच रही है। आगामी विधानसभा चुनाव-24 के मद्देनजर धनबाद सीट से कांग्रेस खेमे में दावेदारों की लंबी लिस्ट तो है पर इनमें से एक की भी राजनीतिक रसूख नहीं कहा जा सकता है। अभी तक धनबाद सीट से कांग्रेस के दावेदारों में पंकज कुमार, रवि चौधरी, बैभव सिन्हा, रविरंजन सिंह, गौरीशंकर प्रसाद, महेश शर्मा सहित छह लोगों ने कांग्रेस से टिकट की दावेदारी के लिए पर्चा भरा है। दो दिनों के भीतर कुछ और नाम शामिल होंगे। लेकिन अबतक जो नाम सामने आए हैं उनमें से बैभव सिंहा राजनीतिक बिरासत रखते हैं और कोयलांचल के पहले माफिया डॉन कहे जाने वाले कांग्रेस नेता बीपी सिंहा के पोते हैं। वहीं रवि चौधरी एक सफल बिजनेस मैन और शिक्षा जगत में अपने टेक्निकल कॉलेज, बीएड कॉलेज, मेडिकल कॉलेज, समेत विभिन्न शिक्षा व्यवसाय के लिए झारखंड और बिहार में पहचान रखते हैं। रवि चौधरी और वैभव सिंहा दोनों ही भूमिहार जाति से तालुक रखते हैं। दमदार चेहरा की बात करें तो भाजपा के मुकाबले कांग्रेस में दमदार चेहरे की कमी है। संगठन में गुटबाजी के कारण दमदार चेहरे नहीं बने जो उभरे उन्हें खींचतान कर नीचे ढकेल दिया गया।
अनुपमा की धनबाद पर नजर तो गुड्डू की चर्चा:
धनबाद सीट से कांग्रेस के टिकट से कांग्रेस नेता धनबाद लोकसभा की प्रत्याशी रही अनुपमा सिंह की दावेदारी की भी चर्चा है। लोकसभा चुनाव हारने के बाद से ही संकेत दिए गए कि अनुपमा सिंह धनबाद विधानसभा सीट से आगामी विधानसभा चुनाव लड़ सकती है। लोकसभा चुनाव के बाद से ही अनुपमा सिंह धनबाद जिला में जमी हुई है। यहां अनुपमा इंटक संगठन को मजबूती देते हुए धनबाद जिला के जनता से संवाद बना रही हैंं। अटकलें हैं कि अनुपमा सिंह धनबाद विधानसभा सीट से चुनाव लड़ सकतीं हैं। बता दें कि अनुपमा सिंह के पति अनूप सिंह उर्फ कुमार जयमंगल झारखंड के बेरमो से कांग्रेस के विधायक हैं और वे इसबार भी बेरमो से चुनावी मैदान में होंगे।
इधर, कांग्रेस की झरिया विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह के देवर रघुकुल के अभिषेक सिंह उर्फ गुड्डू जी का नाम धनबाद विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की लिस्ट में चर्चा में है। सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस आलाकमान बीते लोकसभा चुनाव में ही अभिषेक सिंह पर दांव लगाना चाहती थी। कांग्रेस के सर्वेक्षण टीम ने अभिषेक सिंह के नाम पर एक सर्वे भी किया था लेकिन रघुकुल परिवार से लोकसभा चुनाव ना लड़ने का फैसला पर अभिषेक सिंह का नाम कांग्रेस सर्वेक्षण टीम ने पीछे खींच लिया। सूत्र बताते हैं कि पूर्व डिप्टी मेयर व कांग्रेस नेता दिवंगत नीरज सिंह के साथ परछाई की तरह गुड्डू जी उर्फ अभिषेक सिंह का नाम जोड़ा जाता था। अभिषेक सिंह की छवि साफ सुथरी रही है और नीरज सिंह के विचारों और संकल्प से पोषित रहा है। कांग्रेस से धनबाद विधानसभा सीट से गुड्डू जी उर्फ अभिषेक सिंह की दावेदारी भी पुख्ता बताया जा रहा है।
भविष्य तलाश रहे चुनिंदा चेहरे
धनबाद विधानसभा सीट से विधानसभा चुनाव की मंशा पाले और विधायक बनने का सपना लिए कुछ चेहरे अपना वजूद तलाश रहे हैं। इन चेहरों में जो सबसे चर्चा में चेहरा है वह है असर्फी हॉस्पिटल के मालिक हरेंद्र सिंह का। हरेंद्र सिंह इनदिनों समाजसेवा का आवरण ओढ़ कर चुनावी दंगल लड़ने का मंसूबा बनाया है। राजपूत जाति से आते हैं लेकिन समाज में पखड़ ढ़ाक के तीन पात के बराबर है। गरीब और मध्य वर्ग के लोग हरेंद्र सिंह को अस्पताल मालिक के तौर पर जानते पहचानते तो हैं पर समाजसेवी नहीं मानते। हरेंद्र सिंह धन बल का जबरदस्त उपयोग कर विधायक बनने के लिए प्रयास शुरू कर दिया है। सोशल मीडिया पेड न्यूज को हथियार बना कर छवि सुधारने का कोशिश जारी है। देखा जाए तो हरेंद्र सिंह की पहचान बड़े घरानों के बीच ही सीमित है। आम लोग इन्हें नहीं के बराबर जानते हैं। बड़े अस्पताल के संचालक होने के कारण उनका नेटवर्क सिर्फ बड़े लोगों के बीच ही सीमित है। भाजपा के एक राष्ट्रीय नेता से नजदीकी संपर्क है, लेकिन जीत दिलाने के नाकाफी है। राजनीति की दुनिया के नया खिलाड़ी हैं, संगठन का अनुभव नहीं है। बड़े लोगों से संपर्क और कुछ गिने चुने लोगों से चुनाव में जीत नहीं दिला सकता है। चुनाव में जीत उसे ही हासिल होता है, जिसे अमीर से लेकर मीडिल क्लास और गरीब परिवार के सभी लोग जानते हैं। इनके अलावा प्रशांत सिंह, अमरेश सिंह, रणजीत सिंह, विनय सिंह आदि नाम भी भाजपा से टिकट के दावेदारों के लिस्ट में शामिल हैं। ये सभी चेहरे भाजपा संगठन से जुड़े चेहरे हैं। इन सभी चेहरों के नजर में संगठन सर्वोपरि है। भाजपा संगठन के प्रति निष्ठा रखते हैं और उम्मीद है कि भाजपा आलाकमान इनपर भरोसा जताएगी। इन नामों में अमरेश सिंह भाजपा की राजनीति में पिछले दस वर्षों से सक्रिय हैं। लोकसभा चुनाव 2019 और 2024 दोनों में भाजपा के प्रत्याशी के साथ काफी सक्रिय रहे हैं। भाजपा के एक राष्ट्रीय नेता के करीबी हैं। वहीं वर्तमान सांसद ढुल्लू महतो के भी नजदीकी हैं। खुद को बड़े नेता के रूप में जनता के बीच अभी तक मजबूत पकड़ नहीं बना सके हैं। हाल के दिनों में कार्यक्रमों में सक्रियता बढ़ी है। सोशल मीडिया पर सालों से काफी एक्टिव रहते हैं। वहीं प्रशांत सिंह धनबाद के पूर्व सांसद पशुपतिनाथ सिंह के पुत्र हैं। झारखंड हाइकोर्ट के अधिवक्ता हैं। बार काउंसिल आॅफ इंडिया के सदस्य भी हैं। बार काउंसिल के सदस्य के रूप में तो सक्रिय रहे हैं, लेकिन कोयलांचल में भाजपा की राजनीति में सक्रियता नहीं के बराबर है। वर्तमान सांसद ढुल्लू महतो से भी बेहतर संबंध नहीं हैं। हालांकि, साल 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान से प्रशांत सिंह का नाम धनबाद विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने को लेकर चर्चा में रहा है। इधर, रणजीत सिंह की बात करें तो वे भाजपा के उभरते नेता हैं। ज्यादातर इलाकों में उन्होंने काफी बेहतर काम किया है. जिला से लेकर प्रदेश के नेताओं से बेहतर संबंध हैं। लोगों की मानें तो पार्टी के कई नेताओं के अनुसार टिकट के लिए और परिपक्व होने की जरूरत है। आम जनता के बीच बड़ी पहचान बनाने की जरूरत है। तभी टिकट मिलने के साथ-साथ विधायक बनने की उम्मीद रहती है।
प्रदेश भाजपा की राजनीति में तेजी से उभरे विनय सिंह का नाम भी चर्चा में है। झारखंड बीजेपी के प्रवक्ता हैं। श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन से भी जुड़े हैं और अच्छे वक्ता हैं। भाजपा के बड़े नेताओं से बेहतर संबंध हैं। हालांकि धनबाद विधानसभा क्षेत्र में सक्रियता नहीं के बराबर है। टिकट हासिल करने और चुनाव जीतने के लिए काफी संघर्ष करने की जरूरत है। चुनाव जीतने के लिए आम लोगों के बीच पहचान बनानी पड़ती है और जनता का भरोसा जीतना पड़ता है।
चंद्रशेखर अग्रवाल का फैसला, भाजपा ने टिकट नहीं दिया, तो लड़ेंगे निर्दलीय
भाजपा के वरिष्ठ नेता धनबाद के मेयर चंद्रशेखर अग्रवाल पहचान के मोहताज नहीं है। उनकी राजनीतिक छवि और मेयरों के तौर पर किए गए धनबाद के विकास कार्यों की सराहना सभी करते हैं। सूत्र बताते हैं कि चंद्रशेखर अग्रवाल ने फैसला लिया है कि भाजपा धन बल पर यदि धनबाद विधानसभा सीट पर किसी को टिकट देती है तो वे इसका विरोध करेंगे और निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने धनबाद सीट से भाजपा में बाहुबली और धन बल के रसूखदारों से भाजपा को सचेत भी किया है। श्री अग्रवाल का मानना है कि भाजपा नीति और नीयत साफ रखते हुए संगठन के किसी व्यक्ति को टिकट देती है तो ठीक नहीं तो विरोध करेंगे।
मयूर की चर्चा- कौआ चला हंस की चाल:
धनबाद सीट से विधायक का सपना बुन रहे धनबाद के एक युवा की चर्चा कहावत के जरिए किया जा रहा है। सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर पेड न्यूज और यूट्यूबर के भरोसे धनबाद की जनता को विकास और नैतिकता का रोडमैप बखान करते युवा नेता मयूर शेखर झा के बारे में कहा जा रहा है कि कौआ चले हंस की चाल अपना चाल भी बिसारा..दरअसल, यह इसलिए कहा जा रहा है कि मयूर शेखर झा पिछले कुछ महीनों तक कांग्रेस के प्रदेश कॉर्डिनेटर के तौर पर जाने जाते थे। लेकिन, इनदिनों कांग्रेस का बैनर पोस्टर हटा कर अपने आप को धनबाद का हितैषी साबित करने पर तुले हुए हैं और सोशल मीडिया को सहारा बनाया है। पेशे से पत्रकार रह चुके मयूर शेखर झा साल 2019 के लोकसभा चुनाव के दरम्यान कांग्रेस की टिकट से लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे। दाल नहीं गली तो बिना बैनर अब नैतिकता का पिठ सोशल मीडिया के जरिए पढ़ा कर विधायक बनना चाहते हैं। समाज में पकड़ नहीं है और ना ही कोई वजूद खड़ा किया है लेकिन अपने आप को धनबाद का विकास पुरूष के तौर पर स्थापित करना चाहते हैं।
धनबाद क राजनीतिक गणित:
इनसब के बीच धनबाद विधानसभा सीट की राजनीतिक गणित की बात करें तो धनबाद में करीब 4.4 लाख वोटर हैं। यहां नौकरी और व्यवसाय के लिए बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश से आकर बसे 60-65 फीसदी शहरी वोटर ही हमेशा प्रभावी होते हैं जो जीत-हार का फैसला करते हैं।