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गांव-गिरांव को जोड़ पायी भाजपा, तो पार लगा सकती है अपनी चुनावी नाव
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राहुल सिंह।
झारखंड में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक गतिविधियां पूरे उफान पर हैं। 2019 में सत्ता खो चुकी भाजपा इसे दोबारा हासिल करने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा रही है, तो दूसरी तरफ उसकी रफ्तार रोकने के लिए सत्तारूढ़ गठबंधन और खासकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी पूरा जोर लगाये हुए हैं। इस राजनीतिक झकझूमर में फिलहाल भाजपा ने अपना सब कुछ झोंक दिया है, पिछले साढ़े तीन महीने से उसने अपना पूरा ध्यान झारखंड पर ही लगा रखा है। भाजपा के लिए झारखंड चुनाव कितना अहम है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके दो शीर्षस्थ नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह इस राज्य को पूरा समय दे रहे हैं। खासकर अमित शाह तो दो महीने में दूसरी बार झारखंड आये और पार्टी की परिवर्तन यात्रा को हरी झंडी दिखायी। इससे पहले पीएम मोदी भी झारखंड आकर बड़ी सियासी हलचल पैदा कर चुके हैं। वास्तव में अमित शाह ने विद्रोह की धरती भोगनाडीह से झारखंड भाजपा की परिवर्तन यात्रा को हरी झंडी दिखा कर प्रदेश में परिवर्तन का अलख जगा दिया है। उनका एक दिवसीय दौरा झारखंड भाजपा के लिए एक बूस्टर डोज है, क्योंकि दो महीने पहले अमित शाह ने 20 जुलाई को रांची में जो रणनीति बनायी थी, उसी को गति देने के ध्येय से उनका यह दौरा था।
अमित शाह ने अपने संबोधन में जिस आक्रामकता का परिचय दिया, उससे साफ हो गया कि झारखंड चुनाव के लिए भाजपा का प्लान क्या है और वह कौन-कौन से हथियार का इस्तेमाल करने जा रही है। अमित शाह की यात्रा को सत्ता तक का रास्ता कैसे तय कराया जाये, यह अब प्रदेश भाजपा का जिम्मा है। संथाल झामुमो का गढ़ है और उसमें प्रदेश भाजपा कितनी सेंधमारी कर पायेगी, यह तो समय के गर्भ में है, लेकिन यह भी सच कि भाजपा को अपना रुख गांव-गिरांव की ओर करना होगा। क्या है अमित शाह के दौरे का सियासी मतलब और क्या हो सकता है इसका असर भोगनाडीह से बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड में इसी साल होनेवाले विधानसभा चुनावों के लिए सभी दल अपनी-अपनी तैयारियों में जुटे हैं। इस बार झामुमो से सत्ता छीनने के लिए भाजपा पूरे दमखम से लगी हुई है। इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व कितना गंभीर है, इसका अंदाजा इसी बात से मिल जाता है कि पार्टी के शीर्षस्थ नेता लगातार झारखंड का दौरा कर रहे हैं। अभी 15 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी झारखंड आये थे और वह बेहद खराब मौसम में 130 किलोमीटर की सड़क यात्रा कर जमशेदपुर पहुंच कर बड़ी सियासी हलचल पैदा कर गये। इसके बाद पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए पार्टी के चाणक्य और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी 20 सितंबर को झारखंड आये। उन्होंने विद्रोह की धरती साहिबगंज के भोगनाडीह से भाजपा की परिवर्तन संकल्प यात्रा को हरी झंडी दिखा कर इसका शुभारंभ किया। इसके अलावा उन्होंने गिरिडीह के झारखंड धाम में भी इस यात्रा को हरी झंडी दिखायी और जनसभा को संबोधित किया।
क्या है परिवर्तन यात्रा
झारखंड भाजपा द्वारा निकाली गयी परिवर्तन यात्रा का मुख्य लक्ष्य झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार से पिछले पांच वर्षों का हिसाब लेना है। भाजपा ने इस यात्रा को बेटी, रोटी और माटी की रक्षा, युवाओं के भविष्य और झारखंड में परिवर्तन लाने के संकल्प के रूप में प्रस्तुत किया है। यह यात्रा राज्य के सभी 81 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरेगी और छह सांगठनिक प्रमंडलों में आयोजित होगी। 20 सितंबर से तीन अक्टूबर के बीच भाजपा की परिवर्तन यात्रा कुल करीब साढ़े पांच हजार किलोमीटर की दूरी तय करेगी। यात्रा के दौरान 80 स्वागत कार्यक्रम और 65 सार्वजनिक रैलियां होंगी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस यात्रा को हरी झंडी दिखा कर रवाना किया। उनके अलावा भाजपा के तमाम बड़े नेता इसमें अलग-अलग समय और जगहों पर जुड़ेंगे। इस यात्रा का थीम है- ‘न सहेंगे न कहेंगे बदल कर रहेंगे’।
हेमंत सोरेन के मजबूत किले पर वार
कोल्हान और संथाल दोनों पर ही भाजपा और झामुमो की पैनी नजर है। झामुमो के इसी गढ़ में से एक कोल्हान में पहले पीएम ने सभा की, तो दूसरी जगह संथाल परगना और गिरिडीह में अमित शाह ने हुंकार भरी है। इससे समझा जा सकता है कि भाजपा ने हेमंत सोरेन सरकार की चौतरफा घेरेबंदी की रणनीति अपनायी है। इसलिए अमित शाह ने सबसे पहले संथाल परगना को चुना, ताकि हेमंत सोरेन के सबसे मजबूत किले पर वार किया जा सके।
भाजपा पहले ही सेट कर चुकी है एजेंडा
वैसे झारखंड चुनाव के लिए भाजपा ने पहले ही अपना एजेंडा सेट कर दिया है। भाजपा लगातार झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठ, डेमोग्राफी चेंज और आदिवासियों की घटती संख्या का मुद्दा उठा रही है। अमित शाह ने भोगनाडीह में जिस तरह भ्रष्टाचार, बांग्लादेशी घुसपैठ और राज्य सरकार की वादाखिलाफी का मुद्दा उठाया, उससे यह बात भी साफ हो गयी है कि भाजपा आसन्न विधानसभा चुनाव में इन हथियारों के सहारे सत्तारूढ़ गठबंधन को पटखनी देने की कोशिश में है।
कोल्हान और संथाल में भाजपा कमजोर
अमित शाह से पहले पीएम मोदी कोल्हान में लोगों को संबोधित कर चुके हैं। अब अमित शाह ने संथाल में झामुमो को चुनौती दी है। दरअसल 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा कोल्हान और संथाल में पूरी तरह से पिछड़ गयी थी। 14 सीटों वाले कोल्हान में जहां भगवा पार्टी एक सीट के लिए भी तरस गयी थी, वहीं 18 सीटों वाले संथाल में सिर्फ चार सीटें ही हासिल कर पायी थी। यही वजह है कि इस बार पार्टी इन दो प्रमंडलों में पूरा दमखम लगा रही है।
अमित शाह के दौरे ने भाजपा को दिया बूूस्टर डोज
वास्तव में अमित शाह के झारखंड दौरे ने झारखंड भाजपा को बूस्टर डोज दिया है। अपने भाषण के दौरान अमित शाह ने जिस तरह कई मुद्दों को रेखांकित किया, उसने झारखंड भाजपा के नेताओं को एक लाइन दे दी है। अपनी यात्रा में अमित शाह हमेशा की तरह आत्मविश्वास से लबरेज दिखे। उन्होंने कहा कि वह दीवार पर लिखा हुआ पढ़ सकते हैं और पूर्ण विश्वास के साथ कह सकते हैं कि वर्ष 2024 में एक बार फिर झारखंड में भाजपा की सरकार बनेगी।
उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री रहे बाबूलाल मरांडी, रघुवर दास और अर्जुन मुंडा ने कुछ भी ऐसा नहीं किया, जिससे पार्टी कार्यकर्ताओं को सिर झुकाना पड़े। इसके अलावा चंपाई सोरेन, लोबिन हेंब्रम, सीता सोरेन और गीता कोड़ा जैसे कद्दावर नेताओं के भाजपा में आने का सकारात्मक असर भी उनकी बातों में साफ दिखाई दिया। अमित शाह यह संकेत दे गये कि संथाल और कोल्हान में भाजपा चंपाई सोरेन, लोबिन हेंब्रम, सीता सोरेन और गीता कोड़ा को अपने अस्त्र के रूप में इस्तेमाल करेगी। इनके सहारे वह संदेश देना चाहेगी कि झामुमो में सब कुछ ठीकठाक नहीं है।
विधानसभा चुनाव के मुद्दे भी तय कर गये शाह
अमित शाह ने झारखंड में अपने दो कार्यक्रमों में विधानसभा चुनाव के मुद्दे भी तय कर दिये। इनमें राज्य की इंडी गठबंधन की सरकार की पांच साल की तमाम विफलताओं और भ्रष्टाचार के साथ आदिवासियों के लिए मोदी सरकार द्वारा किये गये कामों को गिनाना शामिल है। अमित शाह ने जिस तरह भ्रष्टाचार और कुशासन के मुद्दों पर राज्य की गठबंधन सरकार को घेरा, उससे एक बात साफ हो गयी कि झारखंड भाजपा अब पूरी तरह आक्रामक मोड में रहेगी। इसके अलावा अमित शाह ने झारखंड के विकास के लिए भाजपा के संकल्प को दोहरा कर मतदाताओं के उस वर्ग को भी अपने साथ जोड़ने की कोशिश की, जो पिछले कुछ वर्षों में भाजपा से दूर जा रहा था।
कुल मिला कर अमित शाह की यात्रा झारखंड भाजपा के लिए टॉनिक का काम कर गयी। उनके दौरे से भाजपा के अंदर कुछ नेताओं के बीच कानाफूसी भी अब बंद होगी। वह कार्यकर्ताओं को भी यह संदेश दे गये कि भाजपा के लिए कार्यकर्ता कितने अहम हैं।
लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद से ही भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व झारखंड विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गया था और उसने अपने दो कद्दावर नेताओं, शिवराज सिंह चौहान और हिमंता बिस्वा सरमा को झारखंड में तैनात कर अपना रुख साफ कर दिया था। इन दोनों नेताओं ने प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के साथ मिल कर पिछले साढ़े तीन महीने में जिस तरह पार्टी की चुनावी तैयारियों को नया रूप दिया है, उसमें अमित शाह का दौरा बूस्टर डोज का काम करेगा। अब यह प्रदेश भाजपा पर निर्भर है कि वह अमित शाह द्वारा जलाये गये परिवर्तन के अलख को कितना तेज कर पाती हैं। एक बात तय है कि झारखंड भाजपा के नेता इस परिवर्तन यात्रा से गांव-गिरांव को जितना अधिक जोड़ सकेंगे, उनकी चुनावी नाव का पार लगना उतना ही आसान होता जायेगा।