विशेष
चुनावी बरसात में उभरे दावेदारों की टर्र-टर्र से कार्यकर्ता और समर्थक नाराज
सक्रिय कार्यकर्ताओं की अनदेखी हुई, तो भाजपा को हो सकती है परेशानी
दावेदारों की लंबी फेहरिस्त, लेकिन कइयों की समाज और संगठन में भूमिका शून्य

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड में विधानसभा के चुनाव अक्टूबर-नवंबर में संभावित हैं। इसे लेकर सभी पार्टियों ने अपनी ताकतें झोंक दी हैं। कांग्रेस की बात करें तो पार्टी की स्क्रीनिंग कमेटी झारखंड पहुंच चुकी है। उसने रांची, पलामू, हजारीबाग और धनबाद में पार्टी नेताओं के साथ संभावित प्रत्याशी को लेकर चर्चा शुरू कर दी है। वहीं सीएम हेमंत सोरेन ने भी अपना फोकस कोल्हान की तरफ दे दिया है। वहीं, दूसरी तरफ भाजपा ने तैयारियां तेज कर दी हैं। बुधवार को भाजपा ने राज्य की 81 विधानसभा सीटों के लिए कार्यकर्ताओं से रायशुमारी की। इस दौरान कई जगहों पर भाजपा कार्यकर्ता आपस में ही भिड़ गये। पार्टी सूत्रों के अनुसार, इसी हफ्ते पार्टी की प्रदेश चुनाव समिति की बैठक में रायशुमारी में सामने आये नामों पर चर्चा होगी और इसके बाद यह समिति अपनी अनुशंसा के साथ लिस्ट केंद्रीय चुनाव समिति को अग्रसारित कर देगी। इस बीच 15 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जमशेदपुर में कार्यक्रम होने वाला है। यहां वह करोड़ों की विकास और कल्याणकारी योजनाओं की सौगात देंगे। इसके बाद 21 सितंबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह झारखंड आयेंगे और पार्टी की ओर से राज्यव्यापी परिवर्तन यात्रा की शुरूआत करेंगे। इन दोनों शीर्ष नेताओं के झारखंड दौरे के साथ ही राज्य में भाजपा का चुनावी अभियान तेज हो जायेगा। इन सबके बीच बात करें भाजपा का गढ़ माने जानेवाले धनबाद क्लस्टर की, तो यहां आसन्न विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी चयन को लेकर सभी छह विधानसभा क्षेत्रों में ऊहापोह की स्थिति है। भाजपा के सक्रिय कार्यकर्ता दबे शब्दों में ही सही, लेकिन कह रहे हैं कि सक्रिय कार्यकर्ताओं की अनदेखी हो रही है। उन्हें तवज्जो नहीं दी जा रही है। देखा जाये, तो धनबाद भाजपा क्लस्टर के सभी छह विधानसभा क्षेत्र के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं और समर्थकों का मानना है कि धनबाद भाजपा में अब सक्रिय नेता कार्यकर्ताओं की नहीं, अपितु चाटुकार, बाहुबली तथा धनबल के धनी की तूती बोलती है। फलस्वरूप संगठन में असंतोष, व्याकुलता का भाव है। गुटबाजी, बयानबाजी, विरोधाभास खुल कर सामने आने लगे हैं। धनबाद भाजपा क्लस्टर के सभी छह विधानसभा क्षेत्रों में से धनबाद विधानसभा क्षेत्र में भावी प्रत्याशी कौन होगा, इसको लेकर सबसे अधिक भूचाल देखा जा रहा है। वहां जो बुधवार को रायशुमारी हुई, उसमें गंभीर आरोप सामने आ रहे हैं। यहां के कुछ धन्नासेठ पैसे के बल पर रामशुमारी में अपना नाम डलवाने का अच्छा-खासा इंतजाम कर लिया था। धनबाद भाजपा क्लस्टर में रायशुमारी में उपजे विवाद और टिकट के दावेदारी को लेकर ऊहापोह तथा पेंच पर रोशनी डाल रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता मनोज मिश्र।

विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में टिकट के दावेदारों के बीच घमासान मचा हुआ है। बुधवार, 11 सितंबर 24 को सभी 81 विधानसभा क्षेत्रों में रायशुमारी हुई, जिसमें कई जगह हंगामा और मारपीट की खबरें आयीं। धनबाद क्लस्टर भी इससे अछूता नहीं है। धनबाद में विधायक राज सिन्हा और कोयला कारोबारी लालबाबू सिंह के समर्थकों के बीच झड़प हुई। वहीं निरसा में भाजपा महिला मोर्चा की दो नेत्री आपस में भिड़ गयीं। रायशुमारी में विवाद की स्थिति देख भाजपा के ही लोग कहते सुने गये कि रायशुमारी से पार्टी में गुटबाजी बढ़ेगी। समर्थक तथा कार्यकर्ता यहां तक कह रहे थे कि धनबाद में रायशुमारी का कोई औचित्य नहीं बचा है। आरोप लगाया कि लोकसभा चुनाव में रायशुमारी के दौरान सबसे अधिक 70 प्रतिशत भाजपाइयों ने पूर्व सांसद पशुपतिनाथ सिंह के पक्ष में मतदान किया और अपनी सहमति जतायी। लेकिन यहां ऐसे प्रत्याशी को टिकट दिया, जिसकी चर्चा रायशुमारी में ना के बराबर थी आरोप लगाया कि धनबाद विधानसभा क्षेत्र से चुनावी बरसात में टर्र-टर्र करनेवाले नेता उपजे हैं, जो धनबल, बाहुबल का उपयोग कर टिकट पाना चाहते हैं। रायशुमारी के दौरान यह देखने को भी मिला। धन्नासेठों ने रायशुमारी में हर नुस्खे अपनाये।

नये चेहरे चुनावी मैदान में उतरने को आतुर
झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर पहले से ही इस बात के कयास लगाये जा रहे हैं कि भाजपा इस बार नये चेहरे मैदान में उतार सकती है। ये भाजपा ने आसन्न हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान जमीन पर भी किया। पार्टी ने 30 से अधिक नये चेहरों को मैदान में उतारा है, वहीं 14 विधायकों के टिकट भी काटे हैं। इसके साथ ही पार्टी ने चार विधायकों की सीटों में भी बदलाव किया है। कयास तेज हैं कि झारखंड में भाजपा और आरएसएस ने मिल कर सरकार बनाने के लिए जो कुछ वो कर सकते हैं, वो किया जायेगा। फलस्वरूप, धनबाद विधानसभा क्षेत्र से भावी विधायक की दौड़ में विधायक राज सिन्हा, निवर्तमान मेयर चंद्रशेखर अग्रवाल के अलावा नये चेहरे कोयला कारोबारी एलबी सिंह, अशर्फी अस्पताल के सीइओ हरेंद्र सिंह, भाजपा के वरिष्ठ नेता सत्येंद्र कुमार, शिक्षाविद राकेश कुमार, रंजीत कुमार सिंह आदि शामिल हैं। ये सभी दावेदार भी अपनी गोटी बैठाने की जुगत में सभी हथकंडे अपनाने पर आतुर हैं। इसका परिणाम बुधवार, 11 सितंबर 24 को रायशुमारी के दौरान दिखा, जहां विधायक राज सिन्हा और कोयला कारोबारी लालबाबू सिंह के समर्थकों के बीच झड़प हो गयी। धनबाद बैंक मोड़ मंडल के पदाधिकारी सह धनबाद विधायक राज सिन्हा के करीबी मंजीत सिंह ने बताया कि बैंक मोड़ मंडल के पदाधिकारियों की जब रायशुमारी हो रही थी, तब कई ऐसे लोग थे, जिनका बैंक मोड़ मंडल से कोई संबंध नहीं है, वे पहुंच गये। विरोध करने पर हंगामा करने लगे और दुर्व्यवहार किया। धक्का-मुक्की भी की गयी। मंजीत ने कहा कि हंगामा करने वाले कांग्रेस के धनबाद प्रखंड के उपाध्यक्ष मोजीब खान और राजद के मिथुन यादव हैं। वहीं विरोधी गुट ने विधायक समर्थक कार्यकर्ताओं पर फर्जी वोटिंग का आरोप लगाया, तो विधायक समर्थकों ने एलबी सिंह पर कई गंभीर आरोप मढ़ दिये। आरोप- प्रत्यारोप का दौर देर तक चला। हालांकि पूरे मामले में विधायक राज सिन्हा और एलबी सिंह ने टिप्पणी से इनकार किया। यहां बता दें कि एलबी सिंह, हरेंद्र सिंह के भाई गोपाल सिंह, राकेश कुमार, रंजीत कुमार सिंह भी वोटरों को रिझाने जिला भाजपा कार्यालय पहुंचे थे। एलबी सिंह के हथियारंबद निजी अंगरक्षक भाजपा कार्यालय में सक्रिय रहे। इसे लेकर भी कार्यकर्ताओं में आक्रोश दिखा।

भाजपा-आरएसएस मंथन से दिखेगा असर
लोकसभा चुनाव में भाजपा को आरएसएस की अनदेखी का भारी सामना करना पड़ा, वहीं कुछ जातियों का साथ ना मिलने की वजह से भी पार्टी की परफॉर्मेंस पर असर पड़ा। इसी वजह से 2014 तथा 2019 में 11 लोकसभा सीट जीतने वाली भाजपा 2024 में सिर्फ आठ लोकसभा सीटों पर ही जीत दर्ज कर पायी। वोटिंग प्रतिशत भी गिरा। इससे सीख लेते हुए भाजपा में विधानसभा चुनाव में आरएसएस के साथ बैलेंस और जातीय समीकरणों का ध्यान रखा जा रहा है। भाजपा लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव के लिए आरएसएस के साथ लगातार मंथन कर रही है। लोकसभा चुनाव में दोनों के बीच सामंजस्य की कमी देखने को मिली थी, विधानसभा चुनाव में ये दोबारा ना दिखे, उसके लिए भाजपा संगठन और आरएसएस में बड़ी शिद्दत से काम किया जा रहा है। भाजपा के झारखंड प्रभारी केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान बीते सोमवार को अचानक सुबह सवेरे धनबाद पहुंचे और संघ के नेताओं के साथ चिंतन-मंथन कर रांची चले गये। संघ सदस्यों के साथ गोपनीय बैठक के दौरान भाजपा नेता और कार्यकर्ताओं की एंट्री नहीं थी। माना जा रहा है कि झारखंड के 81 में से 30 से ज्यादा उम्मीदवार भाजपा को आरएसएस के रिकमेंडेशन पर दिये जायेंगे। यानी भाजपा और आरएसएस इस बार झारखंड में जीत के लिए तालमेल के साथ काम कर रहा है। बताया जा रहा है कि भाजपा और आरएसएस ने मिल कर जातीय समीकरणों का भी खास ख्याल रखा है।

संघ के साथ भाजपा का धनबाद सीट पर बनेगा तालमेल?
राजनीतिक मामलों के जानकार कहते हैं कि भाजपा और आरएसएस के बीच लोकसभा चुनाव के बाद हुई कोआॅर्डिनेशन कमेटी की बैठक में ये बात सामने आयी थी कि दोनों के बीच तालमेल की कमी रही। उसके बाद हुई बैठकों में तय हो गया था कि बिना संघ की हरी झंडी के विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार तय नहीं किये जायेंगे। हरियाणा में भाजपा का जो टिकट वितरण हुआ है, उसमें भी ये बात साफ हो गयी है। करीब सभी विधानसभा क्षेत्रों में आरएसएस के इनपुट के बिना टिकट वितरण नहीं हुआ है। उम्मीदवारों को तय करने में संघ का इनपुट रहा है। कयास लगाये जा रहे हैं कि झारखंड विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों को तय करने में संघ का इनपुट रहेगा। हालांकि कई मामलों में संघ और पार्टी के बीच टकराव की भी बातें सामने आयी हैं। ऐसे में धनबाद सीट को लेकर संघ और भाजपा के बीच तालमेल बिठाने में विशेष सावधानी की जरूरत है। मिली जानकारी के मुताबिक, संघ इस बार धनबाद से संघ के प्रतिनिधि को चुनावी दंगल में उतारना चाहता है। संघ के साथ केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह की मुलाकात के बाद धनबाद सीट से शिक्षाविद् राकेश कुमार का नाम अचानक चर्चा में आ गया है। हालांकि, भाजपाइयों का कहना है कि राकेश कुमार कभी भी सक्रिय राजनीति या भाजपा संगठन से जुड़े नहीं रहे हैं। कार्यकर्ता कहते हैं कि यदि धनबाद विधायक राज सिन्हा का टिकट काट कर भाजपा किसी धनाढ्य या बाहुबली को टिकट देती है या फिर पार्टी किसी अपरिचित चेहरे को उम्मीदवार बनाती है, तो भाजपा के लिए स्थिति अनुकूल नहीं होगी।

सोशल इंजीनियरिंग पर देना होगा जोर
जानकारों और भाजपा समर्थक कहते हैं कि धनबाद सीट पर सोशल इंजीनियरिंग पर फोकस करना होगा। विरोध के बावजूद धनाढ्य या बाहुबली या फिर अपरिचित चेहरे को टिकट दिया गया, तो सोशल इंजीनियरिंग महत्वपूर्ण होगी। भाजपा के जातीय समीकरण को लेकर उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव में ये बात सामने आयी थी कि कुर्मी, चित्रांश, राजपूत और किसान भाजपा से नाराज हैं। दूसरा दलित समाज का कुछ वोट बैंक भी भाजपा से खिसक कर कांग्रेस की तरफ चला गया था। ब्राह्मण और भूमिहार भी नाराज थे। विधानसभा चुनाव में ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार और दलितों ने भाजपा को दरकिनार किया, तो धनबाद सीट बचाना भाजपा के लिए मुश्किल साबित होगा। टिकट वितरण में जातियों को संतुलित करने की कोशिश भाजपा को करनी ही होगी। वर्षों से तपे-तपाये कार्यकर्ताओं-नेताओं में से ही किसी को चुनाव मैदान में उतारना होगा।

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