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2019 में झामुमो-कांग्रेस ने नौ सीटें जीत कर भेद दिया था भाजपा का किला
इस बार चुनावी बाजी पलटने के लिए जी-तोड़ कोशिश में जुटी है भगवा पार्टी

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड का दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल राजनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि राजधानी रांची इसका एक जिला है। राजनीतिक और प्रशासनिक मुख्यालय होने के नाते रांची समेत पूरा दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल हमेशा सुर्खियों में रहता है। पांच जिलों की तीन लोकसभा और 15 विधानसभा सीटों वाले इस प्रमंडल की राजनीति कभी एकतरफा नहीं होती है। विधानसभा चुनाव के दृष्टिकोण से इस प्रमंडल को कभी भाजपा का गढ़ माना जाता था, लेकिन 2019 में झामुमो-कांग्रेस ने इस किले को भेद दिया था। प्रमंडल की 15 सीटों में से इन दोनों दलों ने मिल कर नौ सीटें जीत कर भाजपा को महज पांच सीटों पर रोक दिया था, जबकि एक सीट आजसू के खाते में गयी थी। हालांकि उस चुनाव में भाजपा ने जिन दो आदिवासी सीटों पर जीत हासिल की थी, वे इसी प्रमंडल में आती हैं। दक्षिणी छोटानागपुर झारखंड का सबसे शिक्षित और विकसित प्रमंडल माना जाता है, हालांकि यहां की 71 प्रतिशत आबादी आदिवासियों की है। इस प्रमंडल ने झारखंड बनने से पहले और बाद में कई अवसरों पर इलाके को नयी दिशा दी है और इस बार भी यहां राजनीति की नयी इबारत लिखे जाने की संभावना दिखाई दे रही है। पुरानी पीढ़ी के अवसान और नयी पीढ़ी के उदय के लिए तैयार झारखंड का दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल आसन्न विधानसभा चुनाव में नये इतिहास की रचना करेगा, इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए। क्या है प्रमंडल की 15 विधानसभा सीटों का राजनीतिक परिदृश्य और क्या हो सकते हैं यहां के चुनावी मुद्दे, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

झारखंड विधानसभा के आसन्न चुनाव के लिए जारी राजनीतिक गतिविधियों के बीच राज्य की हृदयस्थली, यानी राजधानी रांची और दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल भी अभी से ही चुनावी तपिश झेल रहा है। वैसे तो यह प्रमंडल हर दिन किसी नयी राजनीतिक गतिविधि का गवाह बनता है, लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग है, क्योंकि इस प्रमंडल ने जहां भाजपा को झटका दिया है, वहीं कांग्रेस को नयी ताकत दी है।

दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल पांच जिलों, रांची, खूंटी, गुमला, लोहरदगा और सिमडेगा में फैला हुआ है। राजनीतिक दृष्टि से देखा जाये, तो इन पांच जिलों में लोकसभा की तीन और विधानसभा की 15 सीटें आती हैं। दो विधानसभा सीटें, रांची लोकसभा क्षेत्र का ईचागढ़ और खूंटी लोकसभा क्षेत्र का खरसावां सरायकेला-खरसावां जिले में पड़ती हैं। इन तीन लोकसभा सीटों में रांची, गुमला और लोहरदगा शामिल हैं। इनमें से दो पर कांग्रेस का कब्जा है, जबकि रांची सीट भाजपा के पास है। कांग्रेस के कब्जेवाली सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। जहां तक विधानसभा सीटों का सवाल है, तो 15 सीटों में पांच-पांच सीट कांग्रेस और भाजपा के पास, चार सीट झामुमो के पास और एक सीट आजसू के पास है। विधानसभा सीटों में 11 आदिवासियों के लिए और एक अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। अनारक्षित सीटों में रांची, सिल्ली और हटिया शामिल हैं।

दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल का चुनावी इतिहास
झारखंड राज्य गठन के बाद झारखंड में अब तक चार विधानसभा चुनाव हुए हैं। इनमें से तीन चुनावों में इस प्रमंडल की सबसे ज्यादा सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की है। इसलिए दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल को भाजपा का गढ़ कहा जाने लगा था। लेकिन 2019 में कांग्रेस और झामुमो ने इस गढ़ को भेद दिया था। इस प्रमंडल का राजनीतिक इतिहास बताता है कि 2005 के चुनाव में भाजपा को सात, 2009 में पांच और 2014 में आठ सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस को 2005 और 2009 में तीन-तीन सीटें मिलीं, लेकिन 2014 में एक भी सीट जीतने में उसे कामयाबी नहीं मिली थी। 2019 के विधानसभा चुनाव में यह पूरा खेल पलट गया और इस प्रमंडल में झामुमो-कांग्रेस के गठबंधन ने जोरदार वापसी की। उस बार भाजपा केवल पांच सीट ही जीत सकी, जबकि कांग्रेस ने पांच और झामुमो ने चार सीटें जीत कर उसके गढ़ को ध्वस्त कर दिया था। आजसू पार्टी को भी एक सीट मिली थी। 2019 के बाद इस प्रमंडल की दो सीटों, लोहरदगा और कोलेबिरा में उप चुनाव हुए और दोनों बार ही कांग्रेस को सफलता मिली। 2019 के चुनाव में भाजपा ने राज्य की 28 आदिवासी सीटों में से जिन दो सीटों, खूंटी और तोरपा से जीत हासिल की थी, वे दोनों इसी प्रमंडल में हैं।

प्रमंडल का जातीय समीकरण
2011 की जनगणना के अनुसार दक्षिणी छोटानागपुर की आबादी 55 लाख से अधिक है। इनमें 72 फीसदी से अधिक आदिवासी हैं, जबकि छह फीसदी अल्पसंख्यक, पांच फीसदी अनुसूचित जाति और ओबीसी और बाकी 17 प्रतिशत सामान्य जाति के हैं। जातियों के राजनीतिक झुकाव को देखने से पता चलता है कि यहां कभी आदिवासी भी भाजपा के समर्थक हुआ करते थे, लेकिन 2014 के बाद हुए पत्थलगड़ी आंदोलन और बाद में तत्कालीन भाजपा सरकार के खिलाफ पैदा हुए आक्रोश ने आदिवासियों को भाजपा से अलग कर दिया। खूंटी, सिमडेगा, गुमला और लोहरदगा जिलों में भाजपा का जनाधार कम होता गया, जबकि झामुमो और कांग्रेस ने लगातार यहां अपनी पैठ बढ़ायी। पिछले पांच साल में सत्ता से बाहर रही भाजपा ने इलाके में खूब मेहनत की है और इस बार उसे भरोसा है कि वह परिणाम को अपने पक्ष में कर लेगी।

2024 का परिदृश्य
दक्षिण छोटानागपुर प्रमंडल की 15 सीटों पर फिलहाल स्थिति साफ नहीं है। चुनावी मुद्दे तो धीरे-धीरे आकार ले रहे हैं, लेकिन इन मुद्दों पर वोट कितना पड़ेगा, यह अब तक तय नहीं है। सत्तारूढ़ झामुमो-कांग्रेस-राजद का गठबंधन मजबूती से चुनाव मैदान में उतरने के लिए तैयार है और उसके पास पिछले पांच साल की उपलब्धियों का हिसाब भी है। हाल के दिनों में शुरू की गयीं योजनाओं ने चुनावी परिदृश्य को बहुत हद तक प्रभावित किया है। हालांकि अब तक मिल रहे संकेतों में इस गठबंधन के भीतर सीट शेयरिंग को लेकर खटपट सुनाई दे रही है और इस कारण कुछ इधर-उधर हो जाये, तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। दूसरी तरफ भाजपा और आजसू को दोबारा एक हो जाने के बाद से राजनीतिक परिदृ्श्य रोचक हो गया है। भाजपा और आजसू ने 2019 में अलग होकर चुनाव लड़ा था, लेकिन इस बार दोनों की संयुक्त ताकत सत्तारूढ़ गठबंधन के सामने बड़ी चुनौती पेश करेगी। पिछले पांच साल में भाजपा ने जिस संकल्प और मजबूती से खुद को जनता के बीच रखने की कोशिश की है, उसका उसे सकारात्मक परिणाम मिलेगा। आजसू पार्टी की ग्रास रूट आधारित राजनीति का लाभ भी दोनों पार्टियों को जरूर मिलेगा। इस बीच गठबंधन के तीसरे सहयोगी जदयू की इंट्री ने गठबंधन में सीट शेयरिंग का मुद्दा उलझने के आसार पैदा कर दिये हैं, लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि यह मुद्दा चुनाव से पहले सुलझ जायेगा। ऐसा इसलिए भी होगा, क्योंकि अभी तक जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय को छोड़ कर जदयू के पास ऐसा कोई नेता नहीं है, जो मजबूती के साथ चुनाव लड़ सके।

इन परिस्थितियों में यह तय है कि आसन्न विधानसभा चुनाव दक्षिण छोटानागपुर की 15 सीटों पर किसी भी दल के लिए आसान नहीं होगा। इन सीटों पर न केवल दलों और प्रत्याशियों का जनाधार तौला जायेगा, बल्कि पिछले पांच साल के दौरान हुए विकास के कामों पर भी लोगों की राय अहम होगी। एक तरफ जहां भाजपा की कोशिश होगी कि खूंटी और तोरपा की सीटें वह बरकरार रखे, वहीं आजसू यह चाहेगी कि तमाड़ सीट पर वह पुन: अपना झंडा गाड़े, हालांकि यह इतना आसान भी नहीं है। जहां तक लोहरदगा और गुमला जिले के अंतर्गत आनेवाली सीटों का सवाल है, तो अभी तक के हिसाब से वहां झामुमो-कांग्रेस का पलड़ा भारी है। हालांकि वहां भाजपा वापसी की पुरजोर कोशिश कर रही है। भाजपा यह चाहेगी कि बिशुनपुर और गुमला और सिसई सीट उसके कब्जे में आये, लेकिन यह इतना आसान नहीं है। ऐसा तभी होगा, जब कोई बड़ा उलटफेर होगा।

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