दम तोड़ता बहरागोड़ा ट्रॉमा सेंटर, जर्जर भवन, डॉक्टरों की कमी और टूटी सुविधाएं
जमशेदपुर / बहरागोड़ा (झारखंड): तीन राज्यों—झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा की सीमाओं पर स्थित बहरागोड़ा प्रखंड में बने राज्य के पहले ट्रॉमा सेंटर की हालत बेहद दयनीय है। वर्ष 2008 में करीब 1.5 करोड़ रुपये की लागत से NH-49 पर कोटशोल (माटिहाना) मौजा में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम पर बने इस ट्रॉमा सेंटर का उद्देश्य था कि सड़क दुर्घटनाओं में घायल लोगों को तत्काल चिकित्सा सुविधा मिल सके। लेकिन उद्घाटन के 14 साल बाद भी यह केंद्र मूल उद्देश्य को पूरा नहीं कर सका।
चिकित्सकों और विशेषज्ञ स्टाफ की भारी कमी के कारण यह ट्रॉमा सेंटर लगभग निष्क्रिय हो चुका है। आर्थोपेडिक और सर्जन जैसे विशेषज्ञ डॉक्टरों की तैनाती कभी नहीं हुई। वर्तमान में केवल एक चिकित्सक को नियुक्त किया गया है, जो सप्ताह में सिर्फ सोमवार और मंगलवार को ओपीडी सेवाएं देते हैं।
भवन की स्थिति भी बेहद खराब हो चुकी है। दीवारों से पानी टपकता है, दरवाजे दीमक चाट चुके हैं और चिकित्सा उपकरणों में जंग लग गया है। ट्रांसफार्मर भी लंबे समय से खराब पड़ा है।
एनएच-18 और एनएच-49 पर लगातार हो रही सड़क दुर्घटनाओं में पिछले एक वर्ष में 10 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। प्राथमिक इलाज के लिए घायलों को बहरागोड़ा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लाया जाता है, लेकिन वहां से उन्हें जमशेदपुर या ओडिशा के बारीपदा रेफर कर दिया जाता है, और कई मरीज रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं।
प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. उत्पल मुर्मू ने बताया कि ट्रॉमा सेंटर में डॉक्टरों, स्वास्थ्यकर्मियों और मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी है। इस विषय में जिला प्रशासन को रिपोर्ट भेज दी गई है।
यदि सरकार इस ट्रॉमा सेंटर को पुनः सक्रिय करती है तो यह न केवल दर्जनों लोगों की जान बचा सकता है, बल्कि क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवा की बड़ी कमी को भी दूर कर सकता है।