Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Saturday, September 6
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»Jharkhand Top News»आदिवासी बहुल गांवों के विकास के दावों की पोल खोल रहे हैं तोरपा के कई गांव
    Jharkhand Top News

    आदिवासी बहुल गांवों के विकास के दावों की पोल खोल रहे हैं तोरपा के कई गांव

    shivam kumarBy shivam kumarSeptember 6, 2025No Comments6 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email

    बिजली, सड़क, पानी, चिकित्सा जैसी बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं आदिवासी
    बरसात के दिनों में चार महीने टापू बन जाते हैं कई गांव, बच्चे स्कूल नहीं जा पाते
    अनिल मिश्रा
    खूंटी। अधिकारी चाहे आदिवासियों और आदिवासी बहुल गांवों के विकास के कितने ही दावे कर लें, पर गांवों की जमीनी सच्चाई इससे इतर नजर आती है। आजादी के 78 वर्षों के बाद भी सुदूर दुर्गम पर्वतीय इलाकों के गांवों की न तो तस्वीर बदली है और न ही गांव वांलों की तकदीर। खूंटी जिले के सैकड़ों गांव अधिकारियों के दावों की पोल खोल रहे हैं। आज भी ऐसे गांव हैं, जहां के लोग बिजली, सड़क, पानी, चिकित्सा जैसी बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं। आदिवासियों और उनके गांवों के विकास के लिए हर साल करोड़ों रुपये बहाये जाते हैं, पर इसका कितना लाभ उन्हें मिल रहा है और गांव वालों का दर्द क्या है, इसे देखने और समझने वाला कोई नहीं है। उदाहरण के तौर पर हम तोरपा प्रखंड के एक पिछड़े गांव को ले सकते हैं। तोरपा प्रखंड के सबसे अंतिम छोर और पश्चिमी सिहंभूम की सीमा पर बसे हैं सींढीं टापू टोला और सींढीं गिरजाटोला। इन दोनों टोलों में लगभग दस परिवार रहते हैं। दोनों गांव दो तरफ से नदियों से तो दो ओर पहाड़ों से घिरे हैं। गांव में जाने के लिए कोई सड़क नहीं हैं। गांव तक पहुंचने के लिए पंगडंडी के सहारे पैदल पांव चलना पड़ता है। किसी के बीमार होने पर एंबुलेंस तक गांव में नहीं पहुंच पाती। गांव के लोग मरीज को खाट पर ढोकर तोरपा या खूंटी के अस्पताल तक ले जाते हैं। सालों भर दोनों टोलों के लोग आवागमन की समस्या से जूझते रहते हैं। लोग ऊंची-नीची पगडंडियों से होकर आना-जाना करते हैं। कारो व बनई नदी में पुल नहीं होने के कारण ग्रामीणों को काफी परेशानियो ंका सामना करना पड़ता है। पुल न होने का दर्द मरीजों के चेहरे और उनके स्वजनों पर तो नजर आता ही है, सबसे विकट समस्या गर्भवती महिलाओं को झेलनी पड़ती है। वाहनों के लिए रास्ता न होने के कारण उन्हें खाट पर लादकर अस्पताल पहुंचाया जाता है, जो कभी-कभी उनके लिए जानलेवा साबित होता है। अधिक परेशानी होने पर घर में ही महिला का प्रसव कराया जाता है।

    बारिश में चार महीने बच्चे स्कूल नहीं जाते
    नदियों पर पुल न होने का सबसे अधिक कष्ट छोटे-छोटे स्कूली बच्चों को होता है। बरसात के मौसम में चार महीने तक बच्चे स्कूल नहीं जा पाते। बरसात में दोनों गांव चार महीनों तक टापू बना रहता है। चार महीने टापू के रूप में तब्दील होने के कारण ही संभवत: गांव का नामकरण सींढीं टापू टोला किया गया है। बरसात के दिनों में लोग गांव से बाहर नहीं निकल पाते हैं। बरसात के दिनों में नदियां अपने रौद्र रूप में रहती हैं, जिसे पार करना असंभव होता है। गांव के लोग बताते हैं कि हर साल बरसात के मौसम में यही स्थिति रहती है। पहले से ही पूरे बरसात के लिए गांव वाले राशन, पानी जमा करके रखते हैं, ताकि खाने-पीने की दिक्कत न हो। चावल, दाल, नमक, तेल, आलू, सोयाबीन बड़ी, साबुन, जरूरी दवा आदि का स्टॉक रख लेते हैं।

    तीन दिन तक गांव नहीं लौट पाये थे तीन परिवार
    एक सप्ताह पूर्व नदी में बाढ़ आ जाने के कारण टापू टोला के तीन परिवार के आठ लोग तीन दिनों तक गांव नही लौट पाये थे। इस गांव के लोगों का खेत नदी के पार में है। तीनों परिवार के लोग खेती करने सुबह में गये हुए थे। तभी मूसलाधार बारिश होने लगी। दोपहर बाद खेती-बारी का काम खत्म कर वापस गांव जाने के लिए निकले। तभी नदी का जलस्तर अचानक बढ़ गया। ग्रामीणों को लौटकर दूसरे गांव में शरण लेनी पड़ी थी।
    सीढ़ीं गिरजाटोली और टापू टोली के लोग वर्षों से बनई और कारो नदी पर पुल बनाने की मांग करते आ रहे हैं, पर आजादी के 78 वर्ष बाद भी उनकी मांग पूरी नहीं हो सकी। पुल के लिए कई बार सरकारी अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों को ज्ञापन सौंपा गया, पर किसी ने इस ओर ध्यान नदीं दिया। अपनी उपेक्षा से गांव के लोग आहत हैं। ग्रामसभा में एक स्वर से अधिकारियों से बनई नदी में पुल बनवाने व गांव तक जाने के लिए सड़क बनवाने की मांग की गयी।

     

    क्या कहते हैं ग्रामीण?
    ग्रामीण आनंद मसीह बोदरा का कहना है कि ग्रामसभा में एक स्वर से अधिकारियों से बनई नदी पर पुल बनवाने व गांव तक जाने के लिए सड़क बनवाने की मांग की गयी। लेकिन अबतक कोई सुनवाई नहीं हुई। लोगों को सालों भर नदी पार करने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। बरसात में महिलाओं व बच्चों को ज्यादा परेशानी होती है। बीमार पड़ने पर भगवान भरोसे रहना पड़ता है। इस नदी पर पुल बनाना बहुत जरूरी है।
    ग्रामीण जसुदा बोदरा ने कहा कि सदियों से उपेक्षा का दंश झेल रहे हैं। गांव तक जाने के लिए न सड़क है और न पुल। बीमार होने पर एबुलेंस भी गांव तक नही पहुंच पाती है। पता नहीं सरकार कब हमारी सुधि लेगी।
    पावल बरजो ने बताया कि टापू टोला गांव तक जाने के लिए बनई नदी तथा कारो नदी पार करना पड़ता है। दोनों नदियों पर पुल नहीं है। बरसात के दिनों में गांव में कैद होकर रहना पड़ता है। काफी परेशानी होती है।
    बसंत गुडिया ने बताया कि यह समस्या कोई नई नहीं है। हर वर्ष बरसात में गांव टापू बन जाता है। परेशानी तब और होती है जब कोई बीमार पड़ जाये। एहतियात के तौर पर सामान्य दवाइयां घर में रख लेते हैं। बाकि भगवान भरोसे छोड़ देते हैं।

    सलीम बोदरा ने कहा कि गांव तक जाने के लिए न सड़क है न पुल। पगडंडियों के सहारे आने-जाने में काफी परेशानी होती है। बरसात के दिनों में तो साइकिल चलाना भी मुश्किल होता है। सड़क और पुल बनना बहुत जरूरी है।
    ग्रामीण असरिता बोदरा ने बताया कि बरसात के दिनों में चार महीना बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं। बच्चे गांव में खेलकूद करके समय बिताते हैं। बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है। सरकार को जल्द इस ओर ध्यान देना चाहिए।

    बीडीओ का समस्या के समाधान का आश्वासन
    दोनों गांवों की इस समस्या के संबंध में पूछे जाने पर तोरपा के प्रखंड विकास पदाधिकारी नवीन चंद्र झा ने कहा कि यह उनके संज्ञान में है। इस संबंध में विभागीय अधिकारियों से पत्राचार किया गया है। समस्या के जल्द समाधान का प्रयास किया जा रहा है।

     

    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleरागिनी बनाम पूर्णिमा: नीरज सिंह हत्याकांड में अदालत के फैसले के बाद अब न्याय और राजनीति की जंग होगी और तेज
    Next Article केंद्र को आठ साल बाद दिखी आम जनता की तकलीफ : राजेश ठाकुर
    shivam kumar

      Related Posts

      राज्य सरकार पूरी तरह से कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार में लिप्त : रघुवर दास

      September 6, 2025

      केंद्र को आठ साल बाद दिखी आम जनता की तकलीफ : राजेश ठाकुर

      September 6, 2025

      रागिनी बनाम पूर्णिमा: नीरज सिंह हत्याकांड में अदालत के फैसले के बाद अब न्याय और राजनीति की जंग होगी और तेज

      September 6, 2025
      Add A Comment
      Leave A Reply Cancel Reply

      Recent Posts
      • राज्य सरकार पूरी तरह से कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार में लिप्त : रघुवर दास
      • केंद्र को आठ साल बाद दिखी आम जनता की तकलीफ : राजेश ठाकुर
      • आदिवासी बहुल गांवों के विकास के दावों की पोल खोल रहे हैं तोरपा के कई गांव
      • रागिनी बनाम पूर्णिमा: नीरज सिंह हत्याकांड में अदालत के फैसले के बाद अब न्याय और राजनीति की जंग होगी और तेज
      • साहिबगंज में ट्रांसफार्मर में अचानक लगी आग, मची अफरा-तफरी
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version