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वोटर अधिकार यात्रा में उमड़ी भीड़ से महागठबंधन उत्साहित, उधर घर-घर घुस चुका आरएसएस
-बिहार में आरएसएस के 16 हजार स्वयंसेवक एक्टिव, घूम रहे गांव-गांव, टोला-टोला
राकेश सिंह
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने देशभर से 10 हजार स्वयंसेवक बिहार में तैनात कर दिये हैं। ये सभी स्वयंसेवक पटना, मुजफ्फरपुर, सीवान, भागलपुर सहित सीमांचल और मगध के गांवों-शहरों में एक्टिव हैं। चाय की टपरी से लेकर गांव की चौपाल, मंदिरों से लेकर आम आदमी तक अपने विचारों को लेकर पहुंच रहा है आरएसएस। हर गांव में करीब 10 से 15 स्वयंसेवक ग्रास रूट लेवल पर काम कर रहे हैं। आरएसएस की इसी स्ट्रैटेजी से भाजपा ने पहले हरियाणा और फिर दिल्ली में सरकार बनायी थी। लेकिन झारखंड में उसे सफलता हासिल नहीं हो पायी थी, क्योंकि यहां आरएसएस से ज्यादा केंद्र से भेजे गये बड़े चेहरे हावी हो गये थे, जिन्होंने राज्य के बड़े चेहरों को शिथिल कर दिया था। लेकिन इस बार भाजपा ने झारखंड के लोकसभा और विधानसभा चुनावों से सबक लेते हुए अपनी रणनीति में सुधार किया है।
उत्तर और दक्षिण बिहार में साइलेंटली काम
आरएसएस ने बिहार को दो प्रांत उत्तर बिहार और दक्षिण बिहार में बांटा है। उत्तर बिहार का काम मुजफ्फरपुर और दक्षिण बिहार का काम पटना से संचालित हो रहा है। जानकारी के मुताबिक बिहार में पिछले दो महीने से देशभर के 10 हजार स्वयंसेवकों ने डेरा डाल रखा है। राज्य में भी करीब छह हजार कार्यकर्ता हैं। कुल 16 हजार स्वयंसेवक इस वक्त जमीन पर एक्टिव हैं। आरएसएस का काम करने का अपना स्टाइल है। आरएसएस साइलेंटली काम करता है और रिजल्ट देने में भरोसा करता है। हर राज्य की जनता अलग है, मुद्दे भी अलग हैं, इसलिए रणनीति भी अलग होती है। आरएसएस सोशल मीडिया पर नहीं, जमीन पर उतरता है। स्वयंसेवक घर-घर पहुंचते हैं। लोगों का मन टटोलते हैं, उनसे जुड़ते हैं।
रूठों को मनाना, कन्फ्यूज मतदाताओं को बताना
आरएसएस की एक टीम घर-घर जाकर मतदाताओं की लिस्ट तैयार कर चुकी हैं। ये टीमें उन वोटरों को मना रही हैं, जिसके मन में भाजपा या एनडीए के लिए थोड़ी भी दुविधा है। स्वयंसेवक कन्फ्यूज वोटर को बिहार के लिए सही पार्टी चुनने में मदद कर रहे हैं। वैसे आरएसएस के प्रांत प्रचारक इस बात का जिक्र करते हैं कि वे पार्टी का नाम लिये बगैर काम करते हैं, उसके प्रचारक कहते हैं कि जो राज्य और लोगों का विकास कर सके, उसे वोट दीजिये। फिलहाल आरएसएस की स्ट्रैटेजी के हिसाब से घर-घर जाकर लोगों की कैटेगरी के हिसाब से लिस्ट बनाने का काम लगभग पूरा हो चुका है। ये लिस्ट तीन हिस्सों में बंटी है। पहली भाजपा के पक्के वोटर, दूसरी कन्फ्यूज वोटर और तीसरी रूठे वोटर। वहीं आरएसएस की दूसरी टीमों ने लिस्ट के मुताबिक लोगों से संपर्क करना शुरू कर दिया है। ये टीमें वोटरों को मुद्दे, उनके फायदे-नुकसान के बारे में बताती हैं।
किस पार्टी ने क्या वादा किया था, कितना पूरा किया, किस पार्टी ने बिहार को नुकसान पहुंचाया और किसने बेहतर काम किया। इन टीमों का काम कन्फ्यूज वोटरों के दिमाग में स्पष्टता लाना है। आरएसएस ने एक प्रयोग हरियाणा में किया था। एनडीए या भाजपा के नाराज वोटरों को मनाने के लिए कुछ वरिष्ठ स्वयंसेवकों की टीमें बनायी गयी थीं। इनका काम लोगों की शिकायतें सुनना था। वे उनसे मिलते, उनकी बातें सुनते थे। उन्हें गुस्सा उतारने देते थे। इसी रणनीति के हिसाब से बिहार में आरएसएस सक्रिय है।
महिला वोटरों पर फोकस, उनके लिए अलग स्ट्रैटजी
बिहार में महिला वोटर निर्णायक हैं। उनके लिए अलग से रणनीति बनी है। आरएसएस से जुड़े महिला संगठन ये काम को अंजाम दे रहे हैं। ये टीमें अलग-अलग उम्र की महिलाओं से मिल रही हैं। घरेलू और पेशेवर महिलाओं के लिए अलग टीमें हैं। आरएसएस ने एक सर्वे भी किया है। उसी के हिसाब से कैटेगरी बनायी गयी है। सर्वे को आधार मानते हुए साथ महिलाओं की लिस्ट तैयार की गयी है। उनके साथ टीमें बैठक कर रही हैं। महिलाओं से पूछा जा रहा है कि उनकी सीट पर कौन सा नेता बेहतर है। पूछा जा रहा है कि उनका नेता कैसा हो और उन्हें किसकी सरकार चाहिए। महिलाएं घर से लेकर बाहर तक हर चीज से प्रभावित होती हैं और करती भी हैं। घर का राशन, पब्लिक ट्रांसपोर्ट, सड़कों का माहौल, इनसे जुड़े ऐसे कुछ सवाल महिलाओं से पूछे जा रहे हैं। फिर उनके जवाब पर मंथन किया जा रहा है। इससे कोई एक चेहरा या फिर उनकी पसंद की सरकार की इमेज निकल कर सामने आये। इसी के आधार पर प्रत्याशियों का भाग्य भी तय होता है कि टिकट मिले तो किसे मिले।
बिहार में आरएसएस की जड़ें बहुत गहरी हैं। यहां आरएसएस की शुरूआत से ही शाखाएं चल रही हैं। जब मार्च 2025 में आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत बिहार आये थे, तो उन्होंने स्वयंसेवकों से बात की थी और मिशन त्रिशूल शुरू करने का ऐलान किया। मिशन त्रिशूल की रणनीति राष्ट्रवाद, हिंदुत्व और विकास पर आधारित है। दिल्ली के विधानसभा चुनाव में आरएसएस ने अलग-अलग सीटों पर 50 हजार से ज्यादा बैठकें की थीं। इनके जरिये वोटरों को भाजपा के पक्ष में एकजुट किया गया। बिहार में भी इसी तरह काम हो रहा है।