विशेष
चेताया अगर यह जनसंख्या संरचना नहीं रुकी, तो स्थानीय अपने ही घर में हो जायेंगे अल्पसंख्यक
यह मुद्दा राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा है, भारतीयों की संस्कृति, परंपरा और अधिकार का मुद्दा है
वोट बैंक की खातिर कांग्रेस और राजद जैसी पार्टियां अपने स्वार्थ के लिए घुसपैठियों को बचाती हैं : मोदी
यह रणनीति सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं, बल्कि पश्चिम बंगाल, असम और झारखंड जैसे राज्यों में भी इसका प्रभाव दिखेगा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों बिहार के पूर्णिया की सभा में डेमोग्रेफी बदलने में जुटे घुसपैठियों पर चिंता जाहिर कर यह जता दिया है कि यह मुद्दा बिहार के चुनाव में सबसे ऊपर रहेगा। इससे पहले स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से भी पीएम मोदी ने साफ कर दिया था कि भविष्य में सरकार इसके खिलाफ कुछ कड़ा कदम उठायेगी। पीएम मोदी के संबोधन से जाहिर है कि भाजपा एक बार फिर इस मुद्दे को लेकर चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में है। भाजपा ने पहले भी बंगाल और झारखंड के चुनावों में यह मुद्दा उठाया था, लेकिन उन दोनों राज्यों में भाजपा को इस मुद्दे का लाभ नहीं मिला। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भाजपा पीएम के भाषण को आधार बना कर बिहार में इस मुद्दे को कितनी ताकत से उठायेगी। बिहार में बांग्लादेश और नेपाल की सीमा से सटे किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया को सीमांचल के नाम से पुकारा जाता है। सीमांचल में अवैध घुसपैठियों के कारण डेमोग्राफी पूरी तरह बदल चुकी है। 1951 से 2011 तक देश की कुल आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी जहां चार प्रतिशत बढ़ी है, वहीं सीमांचल में यह आंकड़ा करीब 16 प्रतिशत है। किशनगंज बिहार का ऐसा जिला है, जहां हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार किशनगंज में मुस्लिमों की जनसंख्या 67.58 प्रतिशत थी और हिंदू मात्र 31.43 प्रतिशत रह गये हैं। इसी तरह कटिहार में 44.47, अररिया में 42.95 और पूर्णिया में मुस्लिम जनसंख्या 38.46 प्रतिशत हो चुकी है। कई जिलों के दर्जनों गांवों में हिंदू अल्पसंख्यक होकर पलायन कर चुके हैं। अररिया जिले के रानीगंज प्रखंड के रामपुर गांव से दर्जनों लोग पलायन कर दोगच्छी गांव चले गये, जहां हिंदुओं की जनसंख्या अपेक्षाकृत अधिक है। कई जगहों पर इनकी जमीन मुस्लिमों ने खरीद ली है। घुसपैठ का मुद्दा केंद्र सरकार के लिए कितना अहम है, यह इससे समझा जा सकता है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार में लोकसभा चुनाव का शंखनाद राजधानी पटना में न करके सीमांचल में किया था। मोदी सरकार के आने के बाद से पूर्वोत्तर राज्यों की केंद्र सरकार के साथ हुई बैठक में भी यह मुद्दा प्रमुखता से उठता रहा है। 2001 से 2011 के बीच दशकीय जनसंख्या वृद्धि दर पर नजर डालें, तो पूर्णिया में 28.66, कटिहार में 30, अररिया में 30 और किशनगंज में यह 30.44 प्रतिशत है। घुसपैठ को नकारने वाले दलील देते हैं कि मुस्लिम बहुल इलाका होने के कारण सीमांचल में जनसंख्या वृद्धि दर अधिक है, पर देश के अन्य हिस्सों में मुसलमानों की वृद्धि दर इतनी नहीं है। इससे साफ जाहिर है कि इन जिलों में बाहर से आये घुसपैठियों ने पनाह ले ली है। यही कारण है कि भाजपा ने डेमोग्रेफी चेंज को राष्ट्रीय सुरक्षा और हिंदू अस्मिता से जोड़ दिया है। अब बिहार में यह उसका केंद्रीय मुद्दा बन सकता है। 2024 के लोकसभा चुनावों में एनडीए (भाजपा, जदयू और लोजपा-आर) ने बिहार में 30 सीटें जीतीं, जिसमें भाजपा की 12 सीटें थीं। यह सफलता बताती है कि बिहार के लोगों को यह मुद्दा समझ में आ रहा है। क्या है घुसपैठ और डेमोग्राफी बदलने का मुद्दा और बिहार के रास्ते राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए यह कितना अहम है, बता रहे हैं आजाद सिपाही के संपादक राकेश सिंह।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्णिया की ऐतिहासिक रैली में यह स्पष्ट कर दिया कि आने वाले बिहार विधानसभा चुनाव का असली एजेंडा क्या होगा। पीएम मोदी ने जो शब्द कहे, वे सिर्फ चुनावी भाषण नहीं थे, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति की दिशा तय करने वाला संदेश था। उन्होंने साफ कर दिया कि बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे देश को यह समझना होगा कि घुसपैठ और डेमोग्राफी में बदलाव देश की सुरक्षा, संस्कृति और पहचान के लिए सबसे बड़ा खतरा है।

कांग्रेस और राजद पर साधा निशाना
पीएम मोदी ने अपने भाषण में विपक्षी दलों को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि बिहार में एक भी घुसपैठिया नहीं छोड़ा जायेगा और यह मिशन किसी भी राजनीतिक समीकरण से ऊपर है। पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कांग्रेस और राजद को विशेष रूप से निशाना बनाया। उन्होंने राहुल गांधी और तेजस्वी यादव पर सीधे आरोप लगाये कि वे घुसपैठियों के हितैषी बन कर सामने आये हैं। पीएम मोदी ने कहा कि विपक्षी गठबंधन का असली मकसद तुष्टिकरण और वोट बैंक की राजनीति है। प्रधानमंत्री के अनुसार यह गठबंधन उन लोगों के साथ खड़ा है, जो सीमांचल जैसे संवेदनशील इलाकों में देश की सुरक्षा को खतरे में डाल रहे हैं।

राष्ट्रीय मुहिम के रूप में उठेगा यह मुद्दा
पीएम मोदी का यह आक्रामक रुख साफ बताता है कि भाजपा इस चुनाव को सिर्फ बिहार की राजनीति तक सीमित नहीं रखेगी, बल्कि इसे एक राष्ट्रीय मुहिम के रूप में पेश करेगी। प्रधानमंत्री का फोकस खास तौर पर सीमांचल क्षेत्र पर था। यह इलाका पश्चिम बंगाल और असम से सटा हुआ है और यहां की भौगोलिक संवेदनशीलता के कारण यह घुसपैठ का सबसे बड़ा रास्ता माना जाता है। भाजपा का दावा है कि यहां योजनाबद्ध तरीके से जनसंख्या संरचना बदली जा रही है।

विपक्ष देता है घुसपैठियों को संरक्षण
पीएम मोदी ने जनता को चेताया कि अगर यह प्रवृत्ति नहीं रोकी गयी, तो स्थानीय लोग अपने ही घर में अल्पसंख्यक हो जायेंगे और उनकी संस्कृति, परंपरा और अधिकार छिन जायेंगे। यह चेतावनी न केवल राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जुड़ी है। पीएम मोदी ने अपने भाषण में यह भी कहा कि विपक्ष के संरक्षण में घुसपैठिये न केवल वोट बैंक का हिस्सा बनते हैं, बल्कि वे समाज में असंतुलन भी पैदा करते हैं। यह सिर्फ संख्या का खेल नहीं है, बल्कि यह एक बड़ी साजिश है, जो भारत के ताने-बाने को तोड़ने के लिए रची गयी है। उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि कांग्रेस और राजद जैसी पार्टियां अपने स्वार्थ के लिए घुसपैठियों को बचाती हैं, उन्हें पहचान पत्र दिलवाती हैं और फिर उनका उपयोग चुनाव जीतने के लिए करती हैं। उनका यह सीधा हमला विपक्ष के वोट बैंक की राजनीति को पूरी तरह से बेनकाब करने वाला था।

संवैधानिक संस्थाएं भी चिंतित हैं
घुसपैठ को लेकर चिंता केवल प्रधानमंत्री मोदी की ही नहीं है, बल्कि संवैधानिक संस्थाएं भी इसे लेकर चिंतित हैं। बिहार में चुनाव आयोग द्वारा किये गये विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआइआर) का एक उद्देश्य मतदाता सूची से घुसपैठियों को बाहर करना भी है। इस प्रक्रिया के तहत मतदाता सूची की गहन समीक्षा की गयी है। भाजपा का कहना है कि इससे फर्जी वोटर और घुसपैठियों का नाम हटाया जायेगा। लेकिन विपक्ष का आरोप है कि यह पूरी कवायद मुस्लिम समुदाय और सीमावर्ती जिलों के मतदाताओं को चुनाव से बाहर करने की कोशिश है। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव का कहना है कि यह लोकतंत्र पर सीधा हमला है, लेकिन भाजपा इसे देश की सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम बता रही है। भाजपा का कहना है कि असली लोकतंत्र वही है, जिसमें केवल वैध नागरिक ही मतदान कर सकें।

पहले भी चिंता जाहिर कर चुके हैं मोदी
घुसपैठ को लेकर जो राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी चिंता है, उसे पीएम मोदी ने पहली बार नहीं जाहिर की है। 15 अगस्त को लाल किले से अपने भाषण में उन्होंने घुसपैठ के खिलाफ अपने अभियान के स्पष्ट संकेत दे दिये थे। उन्होंने कहा था कि देश में कुछ ताकतें ऐसी हैं, जो सुनियोजित तरीके से डेमोग्राफी बदल रही हैं। यह सिर्फ संख्या का खेल नहीं है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक अस्मिता और उसकी सामाजिक संरचना को कमजोर करने की कोशिश है। उन्होंने यह भी कहा था कि यह घुसपैठ न केवल सीमाओं को असुरक्षित बनाती हंै, बल्कि बहन-बेटियों की सुरक्षा और आदिवासियों की जमीन के अधिकारों पर भी सीधा खतरा है। पूर्णिया की रैली इसी संदेश का विस्तार थी, जिसने बिहार चुनाव को एक राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया है।

भाजपा इस मुद्दे को लेकर उतरेगी
भाजपा के लिए यह चुनाव रणनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। बिहार में जीत हासिल करने के लिए सीमांचल और पूर्वी बिहार के इलाके निर्णायक भूमिका निभायेंगे। भाजपा का प्रयास है कि वह घुसपैठ के मुद्दे को उठाकर हिंदू मतदाताओं को एकजुट करे और विपक्ष को रक्षात्मक मुद्रा में ले आये। यह रणनीति सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि पश्चिम बंगाल, असम और झारखंड जैसे राज्यों में भी इसका प्रभाव दिखाई देगा। यह भाजपा के लिए एक दीर्घकालिक नैरेटिव तैयार करने का अवसर है। वैसे भी घुसपैठ का मुद्दा हमेशा से भारत की राजनीति में गहराई से जुड़ा रहा है। भाजपा ने हमेशा देश की सीमाओं की सुरक्षा के प्रति गंभीरता दिखायी है। वहीं विपक्ष पर यह आरोप लगता रहा है कि वह केवल मुस्लिम वोट बैंक के लालच में राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता करता है। पूर्णिया की रैली ने इस बहस को और तीखा कर दिया है। इसलिए बिहार का यह चुनाव सिर्फ विकास और वादों का नहीं होगा, बल्कि यह तय करेगा कि बिहार और पूरे देश की राजनीति किस दिशा में जायेगी। पीएम मोदी के भाषण के बाद यह स्पष्ट है कि भाजपा के लिए यह चुनाव जीतना सिर्फ राजनीतिक तौर पर नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह चुनाव देश के भविष्य की दिशा तय करने का है। भाजपा का संदेश स्पष्ट है यह लड़ाई घुसपैठियों और देशद्रोहियों के खिलाफ है। अब यह देखना होगा कि जनता इस संदेश को कितनी मजबूती से स्वीकार करती है और क्या यह मुद्दा भाजपा को निर्णायक बढ़त दिला पाता है या नहीं।

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