16 दिन की यात्रा के दौरान तीन बड़े निशाने साध गये कांग्रेस के युवराज
बड़ा सवाल: भीड़ तो मिली, क्या वोट भी मिल सकेगा महागठबंधन को

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और दीपांकर भट्टाचार्य की वोटर अधिकार यात्रा समाप्त हो गयी है। महागठबंधन की यह यात्रा 16 दिनों तक चली और बिहार के 22 शहरों से होकर गुजरी। इस यात्रा में कांग्रेस के तीनों मुख्यमंत्री के अलावा तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन और यूपी के अखिलेश यादव ने भाग लिया। यात्रा का आधिकारिक समापन एक सितंबर को पटना में पदयात्रा के साथ होगा। इस यात्रा की सबसे बड़ी खासियत रही कि यह राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के तर्ज पर आयोजित की गयी थी। राहुल गांधी और उनके साथ के लोग स्कूल या किसी बड़े अहाते में कैंप लगाते थे और वहीं रहते थे। हर दिन उनके कंटेनर एक जगह से दूसरे जगह जाते थे। बिहार में एसआइआर और वोटर लिस्ट में कथित गड़बड़ी के खिलाफ निकाली गयी इस यात्रा ने बिहार की सियासत में एक तूफान तो पैदा कर दिया है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या इसका असर चुनाव तक बरकरार रहेगा। इस यात्रा से राहुल ने कम से कम तीन बड़े निशाने साधे हैं। इनमें पहला है बिहार में मृत पड़े कांग्रेस संगठन में नया उत्साह पैदा करना, दूसरा है विपक्षी एकता को मजबूती प्रदान करना और तीसरा खुद को राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष के सबसे बड़े चेहरे के रूप में स्थापित करना। यात्रा से पहले जहां विपक्ष की सियासत तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर के इर्द-गिर्द घूम रही थी, वहीं अब इसकी कमान राहुल गांधी ने संभाल ली है। इतना ही नहीं, राहुल गांधी ने विपक्षी दलों के बीच चल रहे अवरोधों को भी पाटने में कामयाबी हासिल की है। क्या है वोटर अधिकार यात्रा का हासिल और बिहार के आसन्न चुनाव में इसका कितना होगा असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के संपादक राकेश सिंह।

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा समाप्त हो गयी है। राहुल गांधी ने चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआइआर) प्रक्रिया के खिलाफ यात्रा के दौरान धावा बोला। राहुल गांधी इससे पहले भी भारत जोड़ो यात्रा और भारत जोड़ो न्याय यात्रा के नाम से दो बार देश के कई राज्यों का दौरा कर चुके हैं। अब एक बार फिर राहुल ने हुंकार भरी है और उन्होंने 16 दिन तक तीन हजार किलोमीटर से ज्यादा चलकर बिहार के 22 जिलों के लोगों से संपर्क किया। उनकी यात्रा का आधिकारिक समापन सोमवार एक सितंबर को पटना में पदयात्रा के साथ होगा। यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने बार-बार कहा कि लोकसभा चुनाव 2024 में बड़े पैमाने पर वोटों की चोरी हुई और इस वजह से ही एनडीए को लगातार तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाने का मौका मिला। राहुल गांधी का यह भी कहना है कि न सिर्फ लोकसभा चुनाव 2024, बल्कि उसके बाद महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनाव में भी वोटों की चोरी हुई है। उन्होंने अपने इन दावों के समर्थन में तमाम तरह के सबूतों को सामने रखा है, हालांकि चुनाव आयोग ने उनके तमाम आरोपों को खारिज कर दिया है।

राहुल को लड़ाई का चेहरा बना रही कांग्रेस
कांग्रेस ने भरपूर कोशिश की कि राहुल गांधी इस यात्रा के दौरान आम लोगों तक पहुंचें। इसलिए राहुल गांधी कार से उतर कर बाइक पर लोगों के बीच निकले। उनके साथ प्रियंका गांधी भी मौजूद रहीं। मखाना किसानों से राहुल ने बातचीत की और लोगों को यह समझाने की कोशिश की कि बीजेपी और एनडीए वोट चोरी के जरिये ही सत्ता में बने हुए हैं।

राहुल गांधी की यात्रा के तीन बड़े उद्देश्य
राहुल गांधी की इस यात्रा ने बिहार की सियासत को गहरे प्रभावित किया है। यात्रा से पहले जहां राज्य में विपक्ष की राजनीति तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर के इर्द-गिर्द घूम रही थी, वहीं अब पूरी कमान राहुल गांधी के हाथों में है। यात्रा से पहले कहा जा रहा था कि बिहार में कांग्रेस बहुत बड़ी ताकत नहीं है और यहां वह राजद के भरोसे है, लेकिन यात्रा के बाद यह स्थिति बदल गयी है। बिहार कांग्रेस अब बेहद उत्साहित नजर आ रही है। इसका उदाहरण प्रदेश कांग्रेस का मुख्यालय सदाकत आश्रम है, जहां अब नेताओं-कार्यकतार्ओं का हुजूम हमेशा मौजूद रहता है। राहुल की यात्रा की दूसरी बड़ी कामयाबी यह रही कि राहुल गांधी अब देश स्तर पर विपक्ष के सबसे बड़े नेता के रूप में स्थापित हो गये हैं। यही कारण है कि यात्रा के दौरान तेजस्वी यादव को भी कहना पड़ा कि यदि अगली बार केंद्र में इंडिया गठबंधन की सरकार बनी, तो राहुल गांधी ही पीएम होंगे, जबकि बिहार के सीएम के बारे में राहुल गांधी ने चुप्पी साध ली। राहुल गांधी ने मुख्यमंत्री के चेहरे के मुद्दे पर जिस तरह सीधा जवाब नहीं दिया, उससे यह पता चलता है कि कांग्रेस आरजेडी से आगे निकलने की होड़ में है। कांग्रेस ऐसा नहीं चाहती कि बिहार में उसे राजद के सामने कमतर आंका जाये। ऐसी ही स्थिति उत्तर प्रदेश में है, जहां वह खुद को सहयोगी दल समाजवादी पार्टी से पीछे नहीं दिखाना चाहती। राहुल गांधी की तीसरी कामयाबी विपक्षी एकता के रास्ते में पैदा हुए छोटे-छोटे अवरोधों को पाटना रहा। चाहे तेजस्वी-पप्पू यादव के बीच मतभेद हों या तेजस्वी-पप्पू-कन्हैया के बीच के मतभेद, यात्रा के दौरान सभी का अंत हो गया और इंडिया गठबंधन की एकजुटता मजबूत हुई।

राजनीतिक लिहाज से बेहद अहम है बिहार
बिहार राजनीति की प्रयोगशाला है। यहां अगले चार महीने के भीतर विधानसभा चुनाव होने हैं। उस चुनाव के नतीजे यदि महागठबंधन के पक्ष में रहे, तो इससे विपक्ष को अगले साल जिन राज्यों में चुनाव हैं, उनमें एनडीए पर मनोवैज्ञानिक बढ़त मिल सकती है। अगले साल केरल, बंगाल, तमिलनाडु में विधानसभा के चुनाव होने हैं। लोकसभा चुनाव 2024 में एनडीए को बिहार में 2019 जैसी कामयाबी नहीं मिली। 2019 में एनडीए ने लोकसभा की 40 में से 39 सीटों पर जीत दर्ज की थी, लेकिन 2024 में यह आंकड़ 30 रह गया था।

2020 में खराब रहा था कांग्रेस का प्रदर्शन
यहां पर 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों का जिक्र करना बहुत जरूरी होगा। तब महागठबंधन में कांग्रेस को छोड़कर बाकी सभी दलों ने शानदार प्रदर्शन किया था, लेकिन कांग्रेस फिसड्डी रह गयी थी। वह चुनाव में बंटवारे के तहत मिली 70 सीटों में से सिर्फ 19 सीटों पर जीत दर्ज कर पायी थी और यह माना गया था कि इसी वजह से एनडीए को नीतीश की अगुवाई में बिहार में सरकार बनाने का मौका मिला। राजद की अगुवाई में महागठबंधन ने 110 सीटें जीती थी, जबकि एनडीए बहुमत से सिर्फ तीन सीटें, ज्यादा यानी 125 सीटों पर जीत दर्ज कर पाया था। जेडीयू को उस चुनाव में जबरदस्त नुकसान हुआ था और वह 2015 में मिली 71 सीटों के मुकाबले 43 सीट ही जीत पाया था। 243 सीटों वाले बिहार में सरकार बनाने के लिए 122 सीटों की जरूरत है। कांग्रेस इस बार फिर से अपने कोटे की विधानसभा की 70 सीटें या उससे कुछ ज्यादा हासिल करना चाहती है, लेकिन पिछली बार उसके प्रदर्शन को देखते हुए शायद ऐसा नहीं लगता कि तेजस्वी यादव और राजद के इसके लिए तैयार होंगे। पार्टी ने दलित नेता राजेश राम को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर दलित मतदाताओं के बीच संदेश देने की कोशिश की है।

यात्रा का मकसद और सियासी असर
इंडिया गठबंधन ने बिहार में इस यात्रा के जरिये एक साथ कई मैसेज देने की कोशिश की है। राहुल और तेजस्वी के साथ अखिलेश के मंच साझा करने पर सवाल उठता है कि क्या बिहार में विपक्ष माय समीकरण से पीडीए की ओर बढ़ चला है? क्या विपक्ष का फोकस पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक पर है या फिर ये सिर्फ समीकरण साधने की कवायद है। लेकिन बिहार की राजनीति में ये पहला बिगुल नहीं है और आखिरी भी नहीं होगा। असली सवाल बाकी है कि क्या ये यात्रा जनता के अधिकार के लिए निकली थी या नेताओं की राजनीति के अधिकार के लिए या एसआइआर के खिलाफ निकली यात्रा का मकसद पूरा हुआ। जिस वोट चोरी के नारे को लेकर राहुल निकले थे, क्या उसका फायदा बिहार विधानसभा चुनाव में हो सकेगा। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इस यात्रा ने विपक्ष के सियासी समीकरण और सत्ता के समीकरण पर जोर दिखाया है। हालांकि एनडीए इसे केवल चुनावी रणनीति के रूप में देख रहा है। असली परीक्षा अब बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में होगी, जब जनता तय करेगी कि किसे अधिकार मिलेगा और किसे बाहर का रास्ता।

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