गिरिडीह। भारतीय सनातन संस्कृति के बड़े त्यौहारों में नौ दिवसीय शारदीय नवरात्रों की बडी महिमा है। इन दिनों पूरा देश आदि शक्ति की उपासना में लीन है। इस वर्ष 22 सितंबर से चल रहे नवरात्र में गजराज पर मां के आने के खुशी में पूरा माहौल भक्तिमय है। झारखंड के गिरिडीह इलाके में शक्ति, साधना का यह पर्व करीब दौ सौ वर्षो से मनाया जा रहा है। 18 वीं शताब्दी के उतरार्द्ध में टिकैत (राजाओं) ने अपनी रियासतों में जगतजननी की अराधना शुरू की थी । शाही खजाने सें देवी मंडपों में बड़े ही धूमधाम से मां दुर्गा पूजा का अनुष्ठान सम्पन्न होता था । इस दौरान कई इलाकों में लगने वाले मेलों में आसपास के कई गांवों के लोग शामिल होते थे।
कलान्तर में लगभग दुर्गा मंडप भव्य भवनों में परिवर्तित हो गये हैं। जो स्थानीय लोगों के हृदय में तीर्थो के समान है। सभी दुर्गा मंडपों की अपनी अलग अलग विशेषता है। जहां भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती हैं । लोक आस्था से जुडे देवी मंडपों में भक्त सुख – दुःख में सबसे पहले इन्ही देवी मंडपों में आकर मत्था टेकते है और नवरात्रों में शक्ति की अधिष्ठात्री मां दुर्गा की वंदना कर मनचाही मुराद पाते है। मातारानी भी अपने भक्तों की हर मनोकामनाएं पूरी करती हैं। क्षेत्र के लोगों के मुताविक श्री श्री आदि दुर्गा (बड़ी मां) पचम्बा गढ़ दुर्गा मंडा , बरगंडा काली मंडा , मंगरोडीह , बनियाडीह , भोरनडीहा , सैन्ट्रलपीठ , मोहनपुर बोड़ो , पपरवाराटाड़ सहित गिरिडीह के आस पास स्थित दुर्गा मंडपों में जगत जननी निःसंतान दम्पतियों को संतान सुख , कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर , रोगी को स्वस्थ काया , बेरोजगारों के हाथों को काम , केस मुकदमों में सफलता सहित नाना प्रकार की पीड़ा से मुक्त कर भौतिक सुखों का आशीर्वाद देती हैं।
गिरिडीह शहर में भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करने वाली श्री श्री आदि दुर्गा बड़ी मईया का दरबार अद्भूत है। नवरात्र के इन पावन दिनो में बड़ी मां अपने भक्तों को स्वभाविक स्वरूपों की मुद्रा में आशीर्वाद देती हैं। इन दिनों दूर दराज से काफी संख्या में लोग बड़ी मां के दरबार में पहुंचकर स्वभाविक रूपों का दीदार कर मत्था टेकने, मन्नतें मांगने आते हैं। कहते हैं कि माता के इस दरबार की महिमा निराली है। माना जाता है कि सरल मन से माता के मुखमंडल की आभा को निहारने वाले भक्तो को स्वतः महसूस होता है कि माता रानी स्वभाविक मुद्रा में आशीष दे रही हैं। बड़ी मां के दरबार की विशेषता है कि महासप्तमी से विजया दशमी तक माता के मुखमंडल के भाव बदलते हैं। आदि शक्ति बड़ी मां अपने भक्तों को बदलते स्वरूपों का जीवंत एहसास कराती हैं। महासप्तमी को ममतामयी मां के सुन्दर सलोने रूप के मुखमंडल का भाव बेटी के अपने मायके पहुंचने के बाद जैसा होता है। महाअष्टमी और नवमी को मां का आकर्षक और तेज मुखमंडल की आभा धेर्य के साथ जीवन जीने का संदेश देने के मुद्रा में रहता है। विजयादशमी को माता के आलौकिक मुखमंडल की आभा अत्यंत शांत , सौम्य और अपनों से बिछुड़ने की पीड़ा दर्शाती दिखायी देती है। मानो ऐसा प्रतीत होता है कि मां के निर्मल हदृय में अपने भक्तों से एक वर्ष के लिए. बिछुड़ने का भाव है और विदाई की बेला में मां के हजारों भक्त कांधे पर विर्सजन के लिए ले जाते है तो माता के सौम्य मुख मंडल पर विरह की पीड़ा स्पष्ट रूप से महसूस की जा सकती हैं। उल्लेखनीय है कि आधुनिकता के इस दौर में भी श्री श्री आदि दुर्गा मंडप में प्रतिमा गढ़ने में सांचों का उपयोग नहीं होता है। मूर्तीकार अपने हाथों से प्रतिमा गढ़कर भक्तों को जीवंत रूपों में जगत जननी के दर्शन कराते हैंl
श्रीश्री आदि दुर्गा मंडा बडी मां के सदस्य उमाचरण दास और विजय गुप्ता ने कहा कि माता की महिमा को लेकर अपने अभिभावकों से सुनते रहे है। हम खुद भी मईया का चमत्कार महसूस करते रहे है । यहां के लोग भी माता के महिमा का बखान करते है।