बलिराम पांडेय बताते हैं कि पुराण में वर्णित है कि अस्थि कलश को समय से पवित्र जल में विसर्जित कर देना चाहिए
दीपक कुमार
बोकारो (आजाद सिपाही)। कहा जाता है कि यह संसार मोह माया है, जहां लोग सदियों तक न केवल अपने पूर्वजों की यादों संजोए रखते हैं। बल्कि उनके प्रति सम्मान का भाव भी रखते हैं। एक अर्थ में यही सांसारिक जीवन की खूबसूरती भी है। साथ ही, भारतीय संस्कृति की पहचान भी। किंतु, वर्तमान दौर में समाज का एक तबका इन परंपराओं से दूर होता जा रहा है। आमतौर पर लोग अपने परिजन की मृत्यु के बाद अग्नि संस्कार के उपरांत उनकी अस्थियों को मिट्टी के कलश में बांध कर श्मशान घाट में रखवा कर तीन दिन बाद उन अस्थि कलश को किसी पवित्र नदी में प्रवाहित कर उनकी मोक्ष की प्रार्थना करते है, लेकिन अब हम आपको एक ऐसी सच्चाई से रूबरू करा रहे हैं, जो चास स्थित श्मशान घाट में देखने को मिली। यहां रखे दर्जनों अस्थि कलश वर्षों से मोक्ष की बाट जोह रहे हैं, लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई भी नहीं।
समाज में ऐसे लोग भी है, जो अपने परिजन की अंतिम संस्कार करने के बाद श्मशान घाट में अस्थि कलश तो रखवा दी, परंतु वर्षों बाद भी उसे लेने कोई परिजन नहीं आये। उनके पूर्वजों की अस्थियां आज भी वहीं पड़ी हुई है। हालांकि इन अस्थि कलशों पर परिजनों के नाम-पते भी लिखे हुए हैं। गरगा घाट श्मशान घाट की देखरेख करने वाले व्यवस्थापक लखन महता बताते हैं कि वर्षों से यहां ये अस्थि कलश रखे हुए है, जिसे कोई भी अब तक लेने नहीं आया। एक अस्थि कलश तो 22 वर्षों से यहीं पड़ा हुआ है। वहीं श्मशान घाट पर वर्षों से विधि विधान कराने वाले बलिराम पांडेय बताते हैं कि पुराण में वर्णित है कि अस्थि कलश को समय से पवित्र जल में विसर्जित कर देना चाहिए। बहरहाल वर्षों से यहां रखे अस्थि कलश को अपनों का इंतजार है। ऐसे में इन्हें मोक्ष मिलेगी तो आखिर कैसे। यह यक्ष प्रश्न है। पितृ मोक्ष की बात करें तो हिंदू (सनातन) धर्म की मान्यताओं के अनुसार पितृपक्ष का पखवारा अपने पितृ मोक्ष शांति के लिए पवित्र माना जाता है। लोग अपने पितरों को जल अर्पित कर उनकी मोक्ष मिलने की प्रार्थना करते है। गरुड़ पुराण के अनुसार भी ऐसा माना जाता है कि किसी के अंतिम संस्कार के बाद एक विशेष अनुष्ठान मृतक की आत्मा को पुनर्जन्म चक्र से मुक्त करने में सहायता करता है।
किसी भी शव के अंतिम संस्कार के बाद मृतक की अस्थियां एवं राख को एकत्रित कर पारंपरिक मिट्टी कलश में रख उन अवशेषों को किसी पवित्र नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने से मृत व्यक्ति की आत्मा को मोक्ष मिलती है और वे पुनर्जन्म चक्र से मुक्त हो जाते है। पितृपक्ष में ज्ञात अज्ञात सभी पूर्वजों का तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान जैसे कर्मकांड किये जाते हैं, परंतु घाट पर रखे ये कलश समाज के एक ऐसे सच को उजागर करते हैं, जो शर्मसार करनेवाला है। वस्तुत: जीते-जी जिनका सम्मान हुआ हो या नहीं, लेकिन मृत्यु के बाद उनकी ऐसी अनदेखी सचमुच चिंतनीय है। हालांकि इस कर्मकांड का एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है। दरअसल हड्डियों में गंधक और पानी का मेल पारा और मर्करी सल्फाइड शॉट बनाता है, जो पानी को शुद्ध करने के साथ साथ जल की जीवाणु नाशक क्षमता को भी बढ़ाता है। शायद यही कारण है कि हमारे पूर्वजों ने ऐसी परंपरा को बढ़ावा दिया।