सर्वोच्च न्यायालय ने रोहिंग्या मुसलमानों को देश से बाहर निकालने पर फिलहाल रोक लगा दी है। जाहिर है, यह केंद्र सरकार के लिए एक झटका है, जिसने अगस्त मेंराज्यों को एक परिपत्र भेज कर ‘अवैध प्रवासियों’ की पहचान करने और उन्हें देश से बाहर निकालने की प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया था। हालांकि गृह मंत्रालय की तरफ से भेजे गए इस परिपत्र में रोहिंग्याओं का अलग से जिक्र नहीं था, पर संदर्भ और वक्त के चुनाव से समझा जा सकता है कि मुख्य रूप से वही निशाने पर थे। सर्वोच्च अदालत का स्थगन आदेश भाजपा के लिए भी झटका है जो रोहिंग्या शरणार्थियों को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बताते हुए उन्हें जल्दी से जल्दी यहां से भगाने की वकालत कर रही थी। लेकिन अदालत के आदेश का यह मतलब नहीं कि राष्ट्रीय सुरक्षा उसकी नजर में कोई गौण प्रश्न है। दरअसल, उसके लिए कई और सवाल भी अहम हैं। सर्वोच्च अदालत में दायर की गई याचिकाओं में रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने की मांग करते हुए उनके संकट को मानवीय नजरिए से देखने का अनुरोध किया गया है। अदालत का पिछले हफ्ते का आदेश एक अंतरिम आदेश है, पर इस आदेश से और सुनवाई के दौरान की एक-दो टिप्पणियों से उसके रुख का अंदाजा लगाया जा सकता है।
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