महात्मा गांधी को देवतुल्य मानने वाले और तिरंगे को सच्चे दिल से पूजने वालों को देखना हो, तो झारखंड के जनजातीय जिलों के गांवों में आएं। रांची, लातेहार, पलामू, गुमला व लोहरदगा के सैकड़ों घरों में लोगों को गांधी जी को पूजते देखा जा सकता है। ये लोग के बापू के आदर्शों पर जीते हैं। खादी पहनते हैं, अहिंसा के समर्थक ही नहीं, आचार-व्यवहार में भी हर दिन यही जिंदगी जीते हैं। गांधी जी और तिरंगे को रोजाना पूजा के बाद ही इनकी दिनचर्या शुरू होती है। यहां के हर घर में गांधीगीरी जिंदा है। झारखंड का यह जनजातीय समुदाय टाना भगत कहलाता है।

मन, वचन और कर्म से गांधी के असली अनुयायी हैं। उनके खान-पान और आचार-व्यवहार में यह झलकता है। महिला हों या पुरुष, सब खादी वस्त्र पहनते हैं। सादा जीवन जीते हैं। बाहरी खान-पान इनके लिए वर्जना है। मांस-मछली, मदिरा से ये कोसों दूर हैं। गांवों में रहनेवाले इस समुदाय के जीवन में स्वच्छता के क्या मायने हैं, इसे देखना और समझना हो तो टाना भगतों के घरों को देखकर समझा सकता है। शुभ्रवस्त्र पहनना और स्वच्छ विचार रखना, टाना भगतों की असली पहचान है।

क्या कहते हैं टाना भगत समुदाय के लोग

झिरगा टाना – बिना स्नान और पूजा के हमारी दिनचर्या शुरू नहीं होती है। हम बापू और तिरंगा की हर दिन पूजा करते हैं। गांधी जी हमारे पूर्वजों को जो संदेश देकर गए हैं, हम उन्हें आज भी मानते हैं।

झालो टाना भगत – सुबह घर से लेकर आंगन तक साफ-सफाई और लिपाई-पोताई के बाद ही खाना पकता है। हमारे बाल-बच्चे भी इस परंपरा का निवर्हन कर रहे हैं। हम स्वच्छ हैं तभी स्वस्थ हैं।

भुआल टाना भगत- आजादी के आंदोलन में टाना भगत समुदाय ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। गांधी जी की अगुवाई में साफ-सफाई पर भी बहुत ध्यान रखा जाता था। गांव-गांव जाने के क्रम में हम सफाई करते थे। रात में गांव में रुककर सामूहिक भोजन बनाते थे। फिर अगले गंतव्य के लिए रवाना हो जाते।

देवकी टाना भगत- गांधी जी को हमलोग देवता मानते हैं। हमारे पूर्वज भी उनकी पूजा करते थे। गांधी बाबा जो हमारे पूर्वजों को समझाकर गए, आज भी सब उन्हें मान रहे हैं।

टाना भगत आंदोलन ऐसे शुरू हुआ

बिरसा मुंडा आंदोलन की समाप्ति के लगभग 13 साल बाद टाना भगत आंदोलन शुरू हुआ। जतरा उरांव के नेतृत्व में उस आंदोलन के लिए जो संगठन नये पंथ के रूप में विकसित हुआ, उसमें करीब 26 हजार सदस्य शामिल थे। वह भी वर्ष 1914 के दौर में। जतरा उरांव का जन्म गुमला जिला के बिशुनपुर प्रखंड के चिंगरी गांव में 1888 में हुआ था। जतरा उरांव ने 1914 में आदिवासी समाज में पशु-बलि, मांस भक्षण, जीव हत्या, शराब सेवन आदि दुर्गुणों को छोड़कर सात्विक जीवन यापन करने का अभियान छेड़ा।

हजारों आदिवासी सामंतों, साहूकारों और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ संगठित ‘अहिंसक सेना’ के सदस्य हो गए। जतरा भगत के नेतृत्व में ऐलान हुआ- मालगुजारी नहीं देंगे, बेगारी नहीं करेंगे और टैक्स नहीं देंगे। उसके साथ ही जतरा भगत का विद्रोह ‘टाना भगत आंदोलन’ के रूप में सुर्खियों में आ गया। अंग्रेज सरकार ने घबराकर जतरा उरांव को 1914 में गिरफ्तार कर लिया। डेढ़ साल की सजा दी गई। जेल से छूटने के बाद जतरा उरांव का देहांत हो गया लेकिन टाना भगत आंदोलन अपनी अहिंसक नीति के कारण निरंतर विकसित होते हुए महात्मा गांधी के स्वदेशी आंदोलन से जुड़ गया।

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