62 वर्षीय कस्तुरी देवी, राजस्थान में अलवर जिले के बल्लाना गांव में अपनी दो बहूएं और नौ पोते-पोतियों के साथ रहती हैं। तीनों महिलाएं विधवा हैं। वर्ष 2013 से, देवी को 500 रुपए प्रति माह की बुजुर्ग वाली पेंशन मिल रही है।
10 में से करीब एक भारतीय की उम्र 60 वर्ष से ज्यादा है, एक ऐसा तथ्य जो भारत के ‘जनसांख्यिकीय लाभांश’ के आर्थिक मोर्चे पर अक्सर नजरअंदाज होता रहता है।
कस्तुरी देवी भारत के 100 मिलियन बुजुर्गों में से एक है, जो दुनिया के 15 सबसे अधिक आबादी वाले देशों में से एक को बनाने के लिए पर्याप्त है। यह संख्या सभी जनसांख्यिकीय समूहों में सबसे तेज गति से बढ़ने वाली है। जबकि वर्ष 2000 और वर्ष 2050 के बीच भारत की कुल जनसंख्या 55 फीसदी तक बढ़ जाने की संभावना है, 60+ और 80+ आयु समूह के आंकड़े 326 फीसदी और 700 फीसदी हैं।
फिर भी, जैसा कि कस्तुरी देवी के मामले से स्पष्ट होता है, सरकार की अल्प सहायता पर भारत के बड़े आयु वाले अल्पसंख्यक हैं। परिवार बुजुर्गों की देखभाल करेगा, यह एक ‘सामान्य मानसिकता’ है, लेकिन परिवार के घटते आकार, काम के लिए युवाओं का प्रवास और परिवार में दुर्व्यवहार इस सामान्य सोच को तोड़ता है
इनमें महिलाओं की संख्या ज्यादा है। अपराधियों के लिए उन्हें निशाना बनाना आसान होता है।बुजुर्ग के लिए आवासीय घर (ओल्ड एज होम)अभी तक एक व्यवहार्य विकल्प नहीं हैं। केवल आर्थिक रूप से सक्षम ही ऐसे आवासीय निजी घरों को वहन कर सकते हैं । सरकारी ओल्ड एज होम की संख्या कम है।
इसे सार्वजनिक नीति में महत्वपूर्ण ढंग से लेना चाहिए, क्योंकि उम्र सिर्फ बुजुर्गों पर असर नहीं डालता है, यह समाज में हर किसी को प्रभावित करता है।
2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, भारत की आबादी का 9 फीसदी 60 साल या उससे अधिक की आयु का है, जबकि विश्व स्तर पर यह आंकड़े 12 फीसदी है।
वर्ष 2050 तक, 60 + आयु समूह भारत की आबादी का 19 फीसदी हिस्सा हो जाएंगे।
केरल, गोवा, तमिलनाडु, पंजाब और हरियाणा शीर्ष पांच ऐसे राज्य हैं, जहां बुजुर्ग कुल आबादी का 10 फीसदी या उससे अधिक है, जबकि उत्तर-पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, मिजोरम और असम में 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के लोगों का सबसे कम अनुपात है।
संविधान के अनुच्छेद 41 के तहत बुजुर्गों की देखभाल राज्य नीति का जरूरी हिस्सा है, जिसमें कहा गया है: “राज्य को अपनी आर्थिक क्षमता और विकास की सीमाओं के भीतर, काम करने के अधिकार, शिक्षा के अधिकार और बुढ़ापे, बीमारी और विकलांगता के मामले में प्रभावी सहयोग करना होगा। ”
अल्प वित्तीय सहायता
गुजरात के पंचमहल जिले के खानपतला गांव में, 65 वर्षीय रंछोड़भाई और उनकी पत्नी गंगाबेन को पिछले दो सालों से राज्य सरकार की बुजुर्ग की पेंशन योजना के तहत लाभार्थियों के रूप में नामांकित किया गया है। इसके तहत उन्हें प्रति माह 400 रुपए मिलने चाहिए। लेकिन उन्होंने कहा कि उन्हें नौ महीने तक पेंशन नहीं मिला है।
वर्ष1995 से भारत सरकार राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम के तहत सामाजिक पेंशन प्रदान कर रही है। वर्ष 2007 में, इस कार्यक्रम को गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले बुजुर्ग लोगों के लिए ‘इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना’ (आईजीएनओएपीएस) के रूप में पुनः शुरू किया गया था। केंद्र सरकार 60 वर्ष या उससे अधिक की आयु के प्रत्येक व्यक्ति के लिए 200 रुपए प्रति माह और 80 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग के प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रति माह 500 रुपए का योगदान देती है। राज्य सरकारों से अपेक्षा की जाती है कि वे कम से कम इसमें पूरक राशि का मिलान करें।
वर्ष 2011 के वरिष्ठ नागरिकों के लिए राष्ट्रीय नीति का मसौदा आईजीएनओएपीएसएस के तहत मासिक पेंशन के रूप में 1,000 रुपए की अनुशंसा करता है।
हालांकि, अभी तक नीति को अंतिम रूप नहीं दिया गया है, कुछ राज्यों ने इस सिफारिश का अनुपालन करने के लिए उनके योगदान में वृद्धि की है। अधिकतर राज्यों में पेंशन अल्प है, असम और नागालैंड में 200 रुपए से मिजोरम में 200 रुपए, बिहार और गुजरात में 400 रुपए, राजस्थान और पंजाब में 500 रुपए से कम है। नतीजतन, लाखों बुजुर्ग नागरिक गरीबी में रहते हैं।
सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) में हर महीने 2,000 रुपए की बुनियादी बुजुर्ग पेंशन की मांग की गई है। जनहित याचिका दायर करने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए बताया कि “यह 200 रुपए कई साल पहले तय किए गए थे और आज की लागत की इसकी कोई प्रासंगिकता नहीं है।
कोशिश है कि बुजुर्गों को एक न्यूनतम वित्तीय सहायता मिल पाए, जो अपने जीवन की सांझ में गरिमा से जी सके। ”
‘सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज’ द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में पेंशन के लाभार्थियों ने कहा कि 1,600 से 2,000 रुपये की मात्रा ‘पर्याप्त’ है। ‘हेल्पएज इंडिया-रिसर्च एंड डेवलपमेंट जर्नल’ में वर्ष 2013 में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया था कि भारत के 90 फीसदी बुजुर्गों को 2,000 रुपए की पेंशन देने की लागत जीडीपी का 1.81 फीसदी होगा। 1,000 रुपए के पेंशन की लागत जीडीपी के 1 फीसदी से कम आएगी।
नेशनल सोशल एसिसटेंस प्रोग्राम की वेबसाइट के मुताबिक, लाखों बुजुर्गों को वृद्धावस्था पेंशन मिलती है।
यह एक चुनावी मुद्दा भी है। कई चुनाव घोषणापत्रों में इसका उल्लेख हुआ है (जैसे यहां, यहां और यहां)। फिर भी, चुनावों में बुजुर्ग मतदाताओं लुभाने के इस दौर के बीच ज्यादातर भारतीय राज्यों में पेंशन राशि अच्छी नहीं है।
पेंशन, सेवाओं तक पहुंच पाना कठिन
पेंशन की राशि तो कम है ही, इसे पाने में संघर्ष बहुत है।एक गैर-लाभकारी संस्था, ‘हेल्पएज इंडिया’ में ‘पॉलिसी रिसर्च और डेवलपमेंट’ के निदेशक अनुपमा दत्ता ने इंडियास्पेंड के साथ बात करते हुए बताया कि ” एक सामान्य नागरिक के रूप में मेरा जीवन पदानुक्रम में सबसे निम्न स्तर से प्रभावित होता है। ” वह आगे कहती हैं, “अक्सर सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार देखने को नहीं मिलता है।”
दिल्ली के फतेहपुर बेरी में एक ओल्ड एज होम ‘घरूंडा’ के निवासियों ने पेंशन के लिए आवेदन करते समय आने वाली कई चुनौतियों का सामाना करने के अनुभव साझा किए।
71 वर्षीय रेणुका बिहार से हैं। वह घरूड़ा आने के बाद दिल्ली सरकार के पेंशन योजना में अपना नाम दर्ज कराना चाहती थी। लेकिन उनके पास जो भी प्रमाण पत्र थे, वे विहार के थे। स्य़ानीय आवासीय प्रमाण पत्र न होने के कारण पेंशन योजना में उनका नाम न दर्ज हुआ।
वह स्थानीय आवासीय प्रमाण बनवाने के लिए संबंधित सरकारी कार्यालय में गईं तो उनसे कहा गया कि इस उम्र में “पहचान प्रमाण” की आवश्यकता नहीं थी।
सहानुभूति और समर्थन का अभाव अन्य तरीकों से भी स्पष्ट है। दिल्ली के तुगलकाबाद में एक निजी ओल्ड एड होम ‘पंचवटी’ के अध्यक्ष और संस्थापक-ट्रस्टी नीलम मोहन ने इंडियास्पेंड से ओल्ड एज होम तक की सड़क के बारे में संघर्ष की कहानी बताई।वहां तक एम्बुलेंस और पानी के टैंकरों के जाने का रास्ता नहीं था।
हेल्पएज इंडिया की दत्ता कहती हैं, “हमारे सामान्य मानस में बुजुर्गउत्पादक की भूमिका में नहीं हैं। इसलिए सरकार भी उनका ख्याल नहीं रखती। यहां हम बुजुर्गों को अब भी परिवार की जिम्मेदारी मानते हैं ।
इस तरह की सोच हमारी सरकारी नीतियों को प्रभावित करती है। ”
ज्यादातर बुजुर्ग रहते हैं अकेले
सितंबर 2017 की शुरुआत में दिल्ली के अशोक विहार में अकेले रह रहे एक बुजुर्ग जोड़े की हत्या की काफी चर्चा हुई थी। संदिग्ध एक पुरुष स्वास्थ्यकर्मी था, जो घटना उजागर होने पर भाग गया था। कुछ महीने पहले, एक 22 वर्षीय व्यक्ति को 81 वर्षीय विधवा के साथ बलात्कार और हत्या के लिए स्थानीय अदालत ने दोषी ठहराया था।
इस व्यक्ति को पीड़ित ने पूर्णकालिक देखभाल के लिए लगाया था।
बुजुर्गों के खिलाफ अपराध, विशेष ध्यान देने की चेतावनी देते हैं और राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने वर्ष 2014 से अपने अपराध के वार्षिक प्रकाशन में ‘वरिष्ठ नागरिकों के खिलाफ अपराध’ पर एक अलग अध्याय शुरू कर दिया है। अपराधों की संख्या सिर्फ दो साल में 9.7 फीसदी बढ़ गई है, जिसके लिए डेटा उपलब्ध है । भारतीय दंड संहिता के तहत वर्ष 2014 में 18,714 मामले दर्ज किए गए थे, जो वर्ष 2015 में बढ़कर 20,532 हुआ।
महाराष्ट्र में अपराधों की उच्चतम घटना की सूचना मिली है। इसके बाद मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु का स्थान रहा है।
आंकड़ों के आधार पर देश के दक्षिणी हिस्सों में बुजुर्गों के खिलाफ अपराध की संख्या ज्यादा है।
इस बीच, दिल्ली, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश ने अपराध की उच्चतम दर की सूचना दी। एक निश्चित अवधि में 100,000 आबादी से अपराध की घटनाओं को विभाजित करके अधिक महत्वपूर्ण मीट्रिक दर्ज किया गया है।
वृद्धावस्था में अपराध लक्ष्य आसान है, खासकर अगर कोई अकेले रहता है। जनगणना 2011 के अनुसार, भारत के 240 मिलियन परिवारों में से 4 फीसदी में एक व्यक्ति शामिल है, इनमें से आधे (48 फीसदी) में, व्यक्ति की उम्र 60 वर्ष या उससे अधिक है तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में, यह आंकड़ा 63 फीसदी और 62 फीसदी के बराबर है।
इसके अलावा, इन एकल, बुजुर्ग व्यक्तियों में से 73 फीसदी महिलाएं हैं। दक्षिणी राज्य कर्नाटक और आंध्र प्रदेश और केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी में, मोटे तौर पर 81 फीसदी बुजुर्गों में एक परिवार में एक बुजुर्ग महिला है।
हालांकि परिवार के साथ रहने का समाधान संभवतः नहीं हो सकता है, भले ही परिवारों को पारंपरिक रूप से अपने बुजुर्गों की देखभाल की उम्मीद की जाती है।
वर्ष 2014 में बुजुर्ग दुर्व्यवहार पर अपनी रिपोर्ट के लिए ‘हेल्पएज इंडिया’ द्वारा सर्वेक्षण में आधे बुजुर्ग उत्तरदाताओं ने किसी न किसी तरह के दुर्व्यवहार का सामना करने की बात कही है। यह आंकड़ा पिछले साल के सर्वेक्षण में दुर्व्यवहार की रिपोर्ट के 23 फीसदी के आंकड़ों की तुलना में दोगुना है। दुर्व्यवहार का सामना करने वालों में से अधिकांश अपने परिवारों के साथ रहते थे, और बहू और पुत्र द्वारा दुर्व्यवहार का शिकार हुए हैं।
कुमार कहते हैं, “यहां तक कि पंजाब जैसे प्रगतिशील राज्य में भी जहां संयुक्त परिवारों की एक बहुत मजबूत परंपरा रही है और बच्चे अपने माता-पिता की देखभाल करते हैं, मैंने देखा कि बुजुर्गों की बड़ी उपेक्षा होती है। “वे अपने ही परिवारों में कमजोर पड़ जाते हैं और अपने बच्चों पर आर्थिक रूप से निर्भर हैं .
मैं कई लोगों से मिला जो अपने बच्चों से दूर रहना चाहते थे, विशेष रूप से अपने बेटे या दामाद से । यह एक गंभीर मानवीय मुद्दा है। ”
यदि परिवार के लोग दुर्व्यवहार करते हैं या जब वृद्ध की देखभाल करने के लिए कोई बच्चा नहीं होता है, तो उनमें से कई के लिए कोई रास्ता नहीं दिखता, खासकर जब उनका खराब स्वास्थ्य उन्हें स्वयं का ख्याल रखने में असमर्थ बना रहा हो। ऐसी परिस्थिति में सुरक्षा एक चिंता का विषय है।
बुजुर्गों के लिए आवासीय घर एक विकल्प है।
वर्ष 2011 में राष्ट्रीय नीति के एक मसौदे में प्रत्येक जिले में ‘वंचित वरिष्ठ नागरिकों के लिए सहायता प्रदान करने वाली सुविधाओं के साथ घरों’ की स्थापना और इसके लिए पर्याप्त बजटीय सहायता प्रदान करने की सिफारिश की गई थी।
मिनिस्ट्री ऑफ सोशल जस्टिस के वेबसाइट पर उपलब्ध नवीनतम आंकड़ों पर इंडियास्पेंड विश्लेषण से पता चलता है कि मंत्रालय द्वारा समर्थित 500 परियोजनाएं के तहत ‘ओल्ड एज होम’ या ‘दिन देखभाल केंद्र’ या ‘राहत देखभाल घर’ भारत के केवल 215 जिलों में केंद्रित हैं। इनमें से कई या तो बंद हैं या ‘ब्लैकलिस्टेड’ हैं।
वर्ष 2012-13 से वर्ष 2015-16 तक के चार वित्तीय वर्षों में, केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को ओल्ड एज होम को समर्थन देने के लिए 47 करोड़ रुपए से अधिक की राशि जारी किया। कुछ वर्षों में, यह प्रति घर 400,000 रुपये या घरों के लिए 33,000 रुपये प्रति माह था, जो कि कई निवासियों के लिए आवास, भोजन और अन्य सुविधाओं को पूरा करेगा।