रांची। पूर्व उपमुख्यमंत्री और आजसू प्रमुख सुदेश महतो ने शनिवार को खरसावां शहीद स्थल से स्वराज स्वाभिमान यात्रा के दूसरे चरण की शुरुआत की। खरसावां शहीदों को श्रद्धांजलि देने के बाद जिलिंग्दा में सबसे पहले चौपाल लगायी। चौपाल में सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण उपस्थित थे। खासकर महिलाओं की संख्या बहुत ज्यादा देखी गयी। सुदेश ने ग्रामीणों से सीधे तौर पर सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओं की जानकारी हासिल की। वह एक-एक कर महिलाओं से बात कर रहे थे और उनकी समस्याओं को जान रहे थे। इतना ही नहीं, जो समस्या उनके पास आ रही थी, उसे बजाप्ता वह अपने लोगों से नोट करा रहे थे।
जितने भी लोगों से सुदेश ने बात की, सभी का मोबाइल नंबर लिया, उन्हें अपना मोबाइल नंबर दिया और सीधे संवाद करने को कहा। ग्रामीणों से बात करते हुए सुदेश ने कहा कि लोकतंत्र में जनता ही असली सरकार है, लेकिन दुर्भाग्य है कि जनता याचक बन गयी है और सरकार के नेतृत्वकर्ता दाता बन बैठे हैं। उन्होंने कहा कि गांव से स्वराज स्वाभिमान पदयात्रा की शुरुआत करना गांधी जी की कल्पना को यथावत लाने का प्रयास है। महात्मा गांधी एवं धरती आबा बिरसा मुंडा ने जिस स्वराज की कल्पना की थी, उसे जनता के बीच आकर जानने का प्रयास कर रहे हैं।
गांधी जी और भगवान बिरसा मुंडा का स्वराज भारतीय संविधान की पंचायत के अलग-अलग स्वरूप में व्यवस्थित करता है। जनता का स्वाभिमान कहां है, सुरक्षित है कि नहीं, इसी का आकलन एवं राज्यवासियों की कल्पना और उनकी बात सुनने तथा टटोलने आये हैं। इस पदयात्रा के माध्यम से ग्रामवासियों से संवाद कर उनकी आवाज को बुलंद करने का प्रयास है। उन्होंने कहा कि पंचायती राज व्यवस्था में ग्रामसभा सर्वोपरि है। परंतु आज ग्राम स्वराज की कल्पना चौपाल की बजाय सचिवालय हो गयी है। इससे स्वशासन की प्रक्रिया दूषित एवं प्रभावित हो गयी है। इस अभियान से इन प्रक्रियाओं का आकलन किया जायेगा।
सुदेश ने कहा कि इस पदयात्रा को राजनीति से जोड़ना गलत है। उन्होंने कहा कि वह एक राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर आये हैं। संवाद का सिलसिला बड़े स्तर पर होता था। वह एकतरफा होता है। बड़े स्तर के संवाद में सिर्फ ऊपर बैठे लोगों की बातें सुनी जाती हैं, लेकिन इस यात्रा के माध्यम से वह जनता के बीच उनके साथ बैठकर संवाद कर रहे हैं। जनता की बातों को सुन रहे हैं, समस्याओं को जान रहे हैं। 17 वर्षों में जनता की आवाज नीति बनानेवाले नेतृत्वकर्ता तक नहीं पहुंच पायी। इसकी वजह एकतरफा संवाद थी। सरकार में बैठे लोग अपनी तो कहते थे, लेकिन कभी भी जनता की पीड़ा को सुनने का काम नहीं किया।
गरीब की आवाज धीमी होती है, इसलिए सरकार नहीं सुनती है। आजसू प्रमुख ने कहा कि गांव और ग्रामीणों से संवाद कर सरकार चलनी चाहिए। आजादी के 70 वर्षों में नेता बदले, लेकिन व्यवस्था नहीं बदली। उन्होंने कहा कि असली सरकार देखनी है तो गांव में देखनी होगा। चौपाल में बैठना होगा। जनता से संवाद करना होगा। दुर्भाग्य है कि डीसी, बीडीओ और दारोगा सरकार बन बैठे हैं। वे जनता की आवाज नहीं सुनते। जनता के बीच नहीं जाते। गरीब जनता जब सरकारी मुलाजिम के पास जाती है, तो वह कहता है कि नेता बोलेगा। मतलब यह कि जनता की समस्याओं को ये अधिकारी सीधे सुनना तक नहीं चाहते। यह हमारा लोकतंत्र नहीं है। उन्होंने कहा कि यह सच है कि वह भी सरकार का एक अंग हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सरकार के कार्यों को आंख मूंदकर सही करार देते रहें। जनता की जो आवाज है, उसे सरकार तक पहुंचाने के लिए आप लोगों के बीच आये हैं। हमारा मानना है कि लोकतंत्र में जो हकदार है उसे उसका हक मिलना चाहिए।
सुदेश ने कहा कि सरकार रांची में कहती है कि सरकारी योजनाओं में बिचौलिये नहीं हैं। हमने बिचौलिये को समाप्त कर दिया है। यदि यह सच है तो सरकारी बाबू के पास अपनी समस्या ले जानेवाले से वह बाबू सीधे संवाद क्यों नहीं करता। ग्रामीणों को इंदिरा आवास नहीं मिल रहा है। पीने का पानी नहीं है। शौचालय नहीं बना है। सड़क नहीं है। बिजली का अभाव है। वृद्धा पेंशन के लिए लोग भटक रहे हैं। सरकार के मुलाजिम दफ्तर में बैठ कर कुर्सी तोड़ रहे हैं। उन्हें जनता के दर्द से कोई सरोकार नहीं है। गांव के लोग डर से सरकारी बाबू के खिलाफ कुछ नहीं बोल पाते हैं। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद से जितनी भी सरकार आयी उसने गरीबों और ग्रामीणों के कल्याण के लिए योजनाएं बनायीं। लेकिन सरकारी बाबुओं ने उस योजना का लाभ जनता को नहीं लेने दिया। वे दफ्तर से बाहर निकलकर जनता के दुख-दर्द को सुनना नहीं चाहते। सुदेश ने कहा कि सरकार का मतलब डीसी, बीडीओ और दारोगा नहीं होता है। लेकिन यही लोकतंत्र में सरकार बन बैठे हैं। ऐसी व्यवस्था की सुदेश महतो खिलाफत करता है। राज्य में गांव के 52 लाख बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं। स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं। पारा शिक्षक के माध्यम से राज्य में शिक्षा का अलख जल रहा है, लेकिन इन पारा शिक्षकों को दैनिक मजदूर से भी कम मानदेय मिलता है। यह न्याय नहीं है। समान काम के लिए समान वेतन मिलना चाहिए। अभी की जो शिक्षा व्यवस्था है उससे बच्चों का भविष्य नहीं बन सकता है। उन्होंने कहा कि ऐसा शासन स्थापित करना है, जिसमें सरकारी बाबू गांव-गांव घूमे। दफ्तर में कुर्सी नहीं तोड़े।
उन्होंने कहा कि इस यात्रा के माध्यम से वह पांच हजार गांवों में पैदल यात्रा करेंगे, चौपाल लगायेंगे और जनता की समस्याओं को सुनेंगे। इसके बाद इन ग्रामीणों का एक सम्मलेन करेंगे। जो इन गांवों के पंच फैसला लेंगें, वही करेंगे। पदयात्रा के दौरान जिलिंग्दा, अरुवां, डोरों, सेरेंग्दा, दामादिरी, चमपद सहित अन्य गांवों की महिलाओं ने सड़क, पानी, शौचालय, जाति -आवासीय प्रमाण पत्र को लेकर हो रही परेशानी से उन्हें अवगत कराया। कुचाई में सुदेश महतो ने पारा शिक्षकों, आंदोलनकारियों, बुद्धिजीवी वर्ग और जंगल बचाओ आंदोलनकारियों के साथ बैठक की।