अजय झा
दुमका। दुमका ने होनेवाले उपचुनाव को लेकर राजनीति परवान पर है। यहां की जनता ने पार्टी कम और अपने नेता के चेहरे को ज्यादा तवज्जो दी है। यहां की जनता के सबसे फेवरेट नेता स्टीफन मरांडी हुआ करते थे। वे जिस पार्टी से चुनाव लड़ते थे जनता उन्हें ही वोट देती थी। एक बार स्टीफन निर्दलीय चुनाव लड़े थे और जनता ने भारी मतों से उन्हें विजयी बनाया था। यहां यह कह सकते हैं कि यहां की जनता पार्टी कम नेता ज्यादा पसंद करते हैं। अगर लोकसभा चुनाव की बात करें तो जनता ने चेहरे से ज्यादा पार्टी को तवज्जो दी है। विधानसभा चुनाव में नेता बदलने का दौर 2014 से शुरू हुआ। जनता ने भाजपा की लुइस मरांडी को नेता बनाया। फिर 2019 में उन्हें भी बदल दिया और झामुमो के हेमंत सोरेन को नेता बनाया। इस बार के चुनाव में न हेमंत हैं, न स्टीफन और न ही शिबू सोरेन। अब इनकी जगह पर हेमंत के अनुज बसंत को जगह दी गयी है। देखना है कि क्या हर चुनाव की परंपरा को क्या यहां की जनता बरकरार रखती है या नेता फिर बदलती है। बदलने की फितरत को देखते हुए झामुमो ने पहले ही चेहरा बदल दिया है लेकिन आइना वही है।
बाबूलाल लगे हैं मैदान फतह करने में
दुमका से पुराना राजनीतिक रिश्ता रखने वाले बाबूलाल मरांडी ने भाजपा की ओर से मोर्चा संभाल लिया है। बाबूलाल यहां से सांसद भी रह चुके हैं। हालांकि उसके बाद इनकी हर कोशिश नाकाम गयी। उसी एक जीत को आधार बनाकर भाजपा ने बाबूलाल को स्टार प्रचारक के रूप में उतारा है। जमकर कोस भी रहे अन्य दलों को। मगर वोट मोदी के नाम पर मांगा जा रहा। स्थानीय मुद्दे नगण्य दिख रहे। उधर झामुमो के खिलाड़ी शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन के नाम पर वोट मांग रहे।
हेमंत की मेहनत बढ़ायेगी वोट
कोरोना काल मे हेमंत ने एक मेहनत की थी और बाहर बसे सभी मजदूरों को विभिन्न साधनों से घर बुला लिया था। राजनीति के पंडित की मानें तो इस बार वोटिंग परसेंटेज बढ़ेगा। बता दें हर विधानसभा चुनाव में वोटिंग पर्सेंटेज 70 के अंदर ही होता था। इस बार जागरूकता कार्यक्रम और सरकार की पहल से परसेंटेज बढ़ने की उम्मीद है। इससे फायदा किसे होगा यह समय के गर्भ में है।