गुजरात विधानसभा चुनाव का काउंट डाउन शुरू हो चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर फुल एक्शन मोड में उतर चुके हैं। उन्होंने गुजरात की विकास परियोजनाओं के लिए सौगातों की बौछार लगा दी है। वैसे तो गुजरात में भाजपा और कांग्रेस दो ही दल सत्ता में रहे हैं, लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी भी चुनाव मैदान में ताल ठोक रही है। देखा जाये, तो देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस ने गुजरात पर लंबे समय तक राज किया है, लेकिन अपने कर्मों से पार्टी पिछले 27 सालों से सत्ता से बेदखल है, जबकि राज्य का गठन 1 मई 1960 को हुआ था। इसके बाद से आपातकाल के दौर को छोड़ कर 1990 तक गुजरात में कांग्रेस का ही शासन रहा। 1962 से अब तक कुल 13 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, जिसमें कुल सात बार कांग्रेस की सरकार रही है। 1995 में पहली बार भाजपा ने गुजरात में जीत का स्वाद चखा था। भाजपा की तरफ से केशुभाई पटेल पहले मुख्यमंत्री बने। उन दिनों केशुभाई पटेल ने यह नारा दिया था कि आप वोट देने जाओ तो लतीफ को मत भूलना। यह नारा खूब चर्चाओं में रहा था। उन दिनों माफिया डॉन अब्दुल लतीफ का गुजरात में खौफ था। वहीं बीजेपी ने वादा किया था कि वह सत्ता में आते ही गुजरात को माफिया राज से मुक्ति दिलायेगी। भाजपा को गुजरात की सत्ता में बने रहने का फॉर्मूला मिल चुका था, तो वहीं कांग्रेस सत्ता का वनवास खत्म करने के लिए अभी भी प्रयासरत है। फिर 2001 में गुजरात की सत्ता की कमान दी जाती है नरेंद्र मोदी के हाथ में। उसके बाद वहां न तो भाजपा, न ही नरेंद्र मोदी कभी पीछे मुड़ कर देखे। मोदी-शाह की जोड़ी ने गुजरात की ऐसी घेराबंदी कर राखी है कि कोई भी दल वहां पनप नहीं पा रहा है। फ्री वाले खैरात का फार्मूला लेकर पहुंचे अरविंद केजरीवाल भी गुजरात के रण में कूद पड़े हैं, लेकिन इतना तय है कि उनके उम्मीदवारों की जमानत जब्ती में रिकॉर्ड बनने वाला है। राज्य में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर सी वोटर और एबीपी न्यूज ने एक सर्वे किया है। ओपिनियन पोल में बीजेपी की जोरदार वापसी होती हुई दिख रही है। सी-वोटर के सर्वे में जहां बीजेपी को धमाकेदार बढ़त हासिल होती हुई दिख रही है, तो वहीं, कांग्रेस को पिछले चुनाव के मुकाबले बड़ा नुकसान होने का अनुमान है। आम आदमी पार्टी भी मुश्किल से ही खाता खोलती हुई दिखाई पड़ रही है। क्या है सर्वे में और कैसे गुजरात में भाजपा ने जीत का अजेय फार्मूला निकाल लिया है बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
गुजरात विधानसभा चुनाव की घड़ी नजदीक आ चुकी है। राज्य में इस साल के अंत में चुनाव होनेवाले हैं, जिसके मद्देनजर बीजेपी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी समेत सभी दल मैदान में उतर चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह भी गुजरात का दौरा कर चुके हैं। उधर, राज्य में पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ने जा रही आम आदमी पार्टी भी काफी उत्साहित दिख रही है। राज्य में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर सी वोटर और एबीपी न्यूज ने एक सर्वे किया है। ओपिनियन पोल में भाजपा धमाकेदार रूप से वापसी करती हुई दिख रही है। वहीं कांग्रेस को पिछले चुनाव के मुकाबले बड़ा नुकसान होने का अनुमान है। सर्वे में गुजरात की कुल 182 विधानसभा सीटों में से बीजेपी 135-143 सीटों पर कब्जा करते हुए दिख रही है। सर्वे में पार्टी को बड़ा बहुमत मिलने का अनुमान जताया गया है। ओपिनियन पोल में कांग्रेस को महज 36-44 सीटें ही दी गयी हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच में करीबी का मुकाबला था और कांग्रेस पार्टी को 77 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। हालांकि, बाद में कई विधायकों ने पार्टी से नाता तोड़ लिया था। इस सर्वे में आम आदमी पार्टी न तीन में न तेरह में है, लेकिन इतना जरूर है कि वो सत्ताधारी पार्टी बीजेपी की तुलना में कांग्रेस को जबरदस्त नुकसान पहुंचा रही है। आम आदमी पार्टी को 0-2 सीटें मिलने का अनुमान है।
किसे कितना वोट शेयर
सर्वे में सवाल किया गया था कि विधानसभा चुनाव में राजनीतिक पार्टियों का वोट शेयर क्या होनेवाला है? जवाब से तो यही पता चला है कि आंकड़ा बीजेपी के पक्ष में जाता हुआ दिखाई दे रहा है। ओपिनियन पोल में बीजेपी को 47 प्रतिशत वोट शेयर मिल रहा है। वहीं, कांग्रेस के खाते में 32 फीसदी वोट शेयर जाता हुआ दिख रहा है। दूसरी ओर आम आदमी पार्टी फायदे के साथ 17 फीसदी वोट हासिल करते हुए दिख रही है, जबकि चार प्रतिशत अन्य के खाते में जाता दिख रहा है। आंकड़ो पर नजर डालें तो केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की वजह से बीजेपी को थोड़ा नुकसान हो रहा है लेकिन कांग्रेस को करारा झटका लगनेवाला है। राज्य में 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 49 फीसदी वोट मिले थे, जबकि इस बार 47 फीसदी वोट मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है, मतलब बीजेपी को दो फीसदी का नुकसान हो सकता है। अब राज्य की दूसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस की बात करें तो आम आदमी पार्टी की वजह से उसको कड़ी चोट मिलने का अनुमान दिख रहा है। आगामी चुनाव में कांग्रेस के खाते में 32 फीसदी वोट शेयर जाने का अनुमान है, जबकि पिछले चुनाव में इस पार्टी को 41.4 फीसदी वोट मिले थे। स्थिति साफ है कि आम आदमी पार्टी बीजेपी की तुलना में काग्रेस को ज्यादा नुकसान पहुंचा रही है। कांग्रेस को 9 फीसदी से अधिक वोटों का नुकसान उठाना पड़ सकता है।
अलग-अलग इलाकों में किसे कितनी सीटें?
गुजरात के विभिन्न इलाकों की बात करें तो सौराष्ट्र में बीजेपी को 38-42 सीटें, कांग्रेस को 11-15 सीटें, आप को 0-1 सीट, अन्य को 0-2 सीट मिल सकती है। दक्षिण गुजरात में बीजेपी 27-31 सीट, कांग्रेस, 3-07 सीट, आप 0-2 सीट और अन्य शून्य से एक सीट हासिल कर सकती है। इसके अलावा मध्य गुजरात में बीजेपी के खाते में 46-50 सीटें जा सकती हैं। यहां कांग्रेस को 10-14 सीटें ही मिलने का अनुमान है। आप को 0-1, अन्य को 0-2 सीटें मिल सकती हैं।
गुजरात में कैसे स्थापित हुई बीजेपी
गुजरात में बीजेपी पहली बार अपने दम पर 1995 में सत्ता में आयी थी। हालांकि इससे पहले जनता दल के साथ 1990 में सत्ता में आ चुकी थी। 1995 से पहले कांग्रेस के दिग्गज नेता माधव सिंह सोलंकी खाम थ्योरी के बल पर 1985 में गुजरात का अब तक का सबसे बड़ा बहुमत हासिल कर चुके थे, तब लगता था कि अब राज्य में कांग्रेस को हराना मुश्किल है। ऐसे में बीजेपी को भी तलाश थी गुजरात में सत्ता पाने के फॉर्मूले की। ऐसे में भाजपा नेतृत्व ने तय किया कि राज्य की सबसे ताकतवर जाति का भरोसा जीतना होगा। इसलिए बीजेपी ने केशुभाई पटेल को आगे किया। उन दिनों चिमन भाई पटेल जनता दल के बड़े नेता थे। वहीं केशुभाई पटेल पाटीदारों के दूसरे बड़े नेता थे। भाजपा को यह समझ में आ चुका था कि दलित, मुस्लिम और क्षत्रिय मतदाता कांग्रेस के साथ हैं। ऐसे में पाटीदार समुदाय को साथ लेकर चुनाव जीता जा सकता है। भाजपा का यह प्रयोग सफल हुआ और 1990 में पहली बार कांग्रेस की हार हुई। जनता दल और भाजपा की मिली जुली सरकार बनी। भाजपा को पटेल समुदाय ने अपना खुल कर समर्थन दिया। इसका पूरा फायदा 1995 में भाजपा को मिला, जब वह पूर्ण रूप से सत्ता में आयी। विधानसभा चुनाव में भाजपा को 182 में से 121 सीटों पर जीत मिली। यह भाजपा की गुजरात में पहली जीत थी और इसके नायक बने केशुभाई पटेल। हालांकि वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। बीच में कुछ समय के लिए शंकर सिंह वघेला ने बीजेपी से अलग होकर सरकार जरूर बनायी। इसके बाद बीजेपी को गुजरात की सत्ता में बने रहने का ऐसा फॉर्मूला मिल चुका था, जिसके दम पर भाजपा पिछले 27 सालों से सत्ता में बनी हुई है। मोदी ने पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री के पद की शपथ 7 अक्टूबर, 2001 को ली थी। उसके तुरंत बाद भुज में विनाशकारी भूकंप ने पूरे राज्य को हिला कर रख दिया। हालांकि, ‘वाइब्रेंट गुजरात’ जैसे मोदी के कुछ कदमों ने राज्य को फिर से उठ खड़ा होने में पूरी मदद की। गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए नरेंद्र मोदी ने पार्टी और अपने राज्य में बहुत लोकप्रियता हासिल की। उन्हें एक प्रगतिशील नेता के रूप में पहचान मिली। जिस समय नरेंद्र मोदी को गुजरात का प्रभार सौंपा गया, उस समय गुजरात आर्थिक और सामाजिक दोनों ही क्षेत्र में बहुत पिछड़ा हुआ था। गुजरात के एकीकृत विकास के लिए नरेंद्र मोदी ने कई योजनाओं को भी लागू किया, जिसमें पंचामृत योजना सबसे प्रमुख है। जल संसाधनों का एक ग्रिड बनाने के लिए नरेंद्र मोदी ने सुजलाम सुफलाम नामक योजना का भी संचालन किया, जो जल संरक्षण के क्षेत्र में बहुत प्रभावी सिद्ध हुई है। कृषि महोत्सव, बेटी बचाओ योजना, ज्योतिग्राम योजना, कर्मयोगी अभियान, चिरंजीवी योजना जैसी विभिन्न योजनाओं को भी नरेंद्र मोदी द्वारा लागू किया। नरेंद्र मोदी के उत्कृष्ट प्रयासों द्वारा गुजरात ने उनके पहले कार्यकाल के दौरान ही सकल घरेलू उत्पाद में 10% तक की बढ़ोत्तरी दर्ज की, जो अपने आपमें एक रिकॉर्ड है। मोदी के विकास कार्यों को लेकर गुजरात मॉडल की चर्चा जोर पकड़ने लगी। गुजरात मॉडल ने नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में लाया। गुजरात मॉडल के दम पर ही बीजेपी ने उन्हें 2013 के लोकसभा चुनाव के लिए अपना प्रधानमंत्री कैंडिडेट घोषित कर दिया। 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा की प्रचंड जीत हुई। नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने। आज मोदी के प्रधानमंत्रित्वकाल के सफल आठ साल हो चुके हैं। फिलहाल मोदी और शाह की जोड़ी ने गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर कमर कस ली है। उम्मीद जतायी जा रही है कि भाजपा के ही हाथों गुजरात की कमान रहेगी।
गुजरात में कांग्रेस को कैसे मिला वनवास
गुजरात के गठन के बाद पहली बार 1962 में चुनाव हुए। गुजरात में जीव नारायण मेहता पहले मुख्यमंत्री बने। इसके बाद बलवंत राय मेहता दूसरे मुख्यमंत्री बने। कुल मिला कर कहा जाये तो 1960 से लेकर 1975 तक गुजरात पर कांग्रेस का ही एकछत्र राज रहा। आपातकाल के दौरान गुजरात ही नहीं, देश में कई जगहों पर चुनी हुई कांग्रेस सरकार को जनता ने नकार दिया और हर जगह जनता पार्टी की सरकार सत्ता में आयी। इसी दौरान माधव सिंह सोलंकी जैसे दिग्गज नेता की कांग्रेस में एंट्री हो चुकी थी। उन्होंने गुजरात की राजनीति में आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को लेकर एक नया आंदोलन छेड़ दिया। उन्होंने इस वर्ग को आरक्षण दिया। उन्होंने खाम थ्योरी भी बनायी, जिसमें क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुसलमानों को लेकर कांग्रेस ने 1985 में 182 में से 149 सीटें जीत लीं। हालांकि इस जीत के नायक रहे माधव सिंह सोलंकी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। उसके बाद कांग्रेस ने वहां बहुत कोशिश की कि मुख्यधारा में लौटे, लेकिन मोदी और शाह की जोड़ी ने गुजरात में ऐसा चमत्कार दिखाया कि आज तक किसी दूसरे दल को पैर रखने की भी जगह नहीं मिल रही। कहते हैं, अगर जनता की अपेक्षाओं में जो नेता खरा उतरता है, उसे जनता अपने दिल में बिठा लेती है। फिर उसे बहुत कुछ करने की जरूरत नहीं होती, सिवाय इमानदारीपूर्वक अपने कर्तव्य के निर्वहन के। मोदी के कर्मों ने गुजरात के लोगों के दिलों में उनके लिए प्रचुर जगह दी है। गुजरात के लोगों के मिले प्यार ने मोदी को काम करने की जो ऊर्जा दी, उसी की बदौलत वह आज पूरे देश पर राज कर रहे हैं। एक तरफ देश की तमाम राजनीतिक पार्टियां और उनके नेता हैं, तो दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी अकेले सब पर भारी हैं। सच कहा जाये, तो आज नरेंद्र मोदी का चेहरा इतना कद्दावर हो गया है कि दूसरा कोई उनकी तुलना में उनके सामने ठहर नहीं पाता। मोदी ने पूरे देश को एक और संदेश दिया है। आप अपने क्षेत्र में अच्छा काम करके पूरे देश को अच्छा संदेश दे सकते हैं। 2014 में मोदी ने देश की कमान संभाली, बावजूद इसके आज भी मोदी गुजरात के जन-जन के नेता हैं। सच कहा जाये तो आज मोदी और गुजरात एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं। गुजरात है, तो मोदी हैं, मोदी हैं तो गुजरात की शान पूरे देश में है।