Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Monday, May 19
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»Breaking News»नियोजन नीति के बगैर 1932 का खतियान कैसा : बाबूलाल
    Breaking News

    नियोजन नीति के बगैर 1932 का खतियान कैसा : बाबूलाल

    azad sipahiBy azad sipahiOctober 23, 2022No Comments21 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email
    • भाजपा की सरकार आयी, तो सबका हिसाब होगा : झारखंड को संवारने का समय आ गया है, भाजपा ही यह काम करेगी
    • झारखंड की मौजूदा स्थिति और आनेवाले समय में भाजपा तथा बाबूलाल मरांडी की रणनीति के बारे में जानने पहुंचे आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह। बाबूलाल मरांडी ने राकेश सिंह के सवालों का खुल कर जवाब दिया। प्रस्तुत है बातचीत के अंश।

    सवाल : अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में आपने 1932 के खतियान का पासा फेंका था। वह लागू नहीं हो सका। अब वही 1932 के खतियान का पासा हेमंत सोरेन ने फेंका है, इससे उन्हें क्या फायदा मिलनेवाला है और भाजपा को कितना नुकसान हो सकता है?
    जवाब : इस सवाल को सुनते ही बाबूलाल मरांडी मुस्कुराने लगते हैं। कुछ क्षण के बाद कहते हैं कि देखिये, जैसा आपने कहा कि हेमंत सोरेन ने पासा फेंका है, सच कहा जाये, तो उन्होंने पासा ही फेंका है, लेकिन वह जगह पर नहीं फेंक पाये हैं। शुरू में दो-चार दिन तो लोगों ने जरूर उत्सव मनाया, लेकिन जैसे-जैसे इसकी परतें खुलनी शुरू हुईं, लोगों में उदासीनता का भाव घर करने लगा। शुरू में जो लोग हेमंत सोरेन के फैसले की प्रशंसा कर रहे थे, वही अब उनका विरोध कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें समझ में आ गया है कि यह धरातल पर पहुंचने योग्य फैसला नहीं है। सब आइवॉश है। सच कहा जाये, तो हेमंत सोरेन ने हवा में पासा फेंक दिया है। जब 1932 की चर्चा पूरे झारखंड में चलने लगी, तब हमसे कई लोग आकर मिले। झारखंड के सामाजिक संगठनों के बड़े-बड़े लीडर, खास कर रांची के। मैंने उनसे पूछा कि आप जो 1932 के खतियान की इतनी प्रशंसा कर रहे हैं, आपने उसके बारे में पढ़ा है क्या? तो उन्होंने कहा कि नहीं अखबार में पढ़े हैं। मेरे पास उसकी प्रति थी। मैंने उन्हें पढ़ने को दी। उन्होंने पढ़ी। मैंने फिर उनसे सवाल किया कि इसमें कहीं भी नियोजन नीति का जिक्र है? उन्होंने जब पढ़ा, तो आश्चर्य करने लगे कि इसमें तो नियोजन नीति की कोई चर्चा ही नहीं है। मेरा कहना है कि बहुत सारे लोगों ने इसे केवल अखबार में पढ़ा है। उसके नोटिफिकेशन को देखा तक नहीं है। अखबार में तो खबर ही छपती है न। अगर संपूर्ण विश्लेषण में जाया जाये, तो पता चलेगा कि यह तो कोर्ट में निरस्त हो जायेगा। सिर्फ हेमंत सरकार ने 1932 के खतियान को पास कर दिया। इसी को लेकर लोग उत्साहित हो गये। हेमंत सोरेन को भी पता है कि उन्होंने इन तीन सालों में क्या किया है। उस पर परदा डालने के लिए क्यों नहीं ऐसा काम कर दो, जिससे लगेगा कि उनकी मंशा तो सही है, लेकिन सामने वाले की मंशा में ही खोट है, लेकिन गलत चीजें कब तक छिपेंगी। आखिर एक न एक दिन छलावा तो जनता के सामने आयेगा ही। अब लोग हेमंत सोरेन के फैसले का आकलन कर रहे हैं, तो उन्हें लग रहा है कि यह महज हवा-हवाई है। इनके द्वारा बनायी गयी नीति कहीं से भी धरातल पर उतरनेवाली नहीं है।

    बिना नियोजन नीति के 1932 का खतियान लेकर झारखंडी आखिर करेगा क्या! यह सोचनेवाली बात है। अगर आप किसी भी नीति पर काम करते हैं और उसमें अगर आप लूप होल छोड़ते हैं, तो आप मौका देते हैं कि कोई भी कोर्ट जाकर उस पर सवाल खड़ा कर दे। जब झारखंड बना, मैं मुख्यमंत्री बना। 2001 में हमने स्थानीय-नियोजन नीति को एक साथ लागू किया था। वह भी हमने कोई नये सिरे से लागू नहीं किया था, बल्कि बिहार सरकार के समय से जो नियम चला आ रहा था, उसको हमने सिर्फ अंगीकार किया था। उसमें इतना ही लिखा हुआ था कि पिछले सर्वे राइट्स आॅफ रिकार्ड्स में जिनके पूर्वज का नाम दर्ज है, उन्हें स्थानीय माना जायेगा। और तृतीय-चतुर्थ वर्ग की जिला स्तर की सरकारी नौकरियों की नियुक्ति में उन्हें प्राथमिकता दी जायेगी। इस पर हंगामा हो गया। लोग कोर्ट में चले गये। कोर्ट ने उसे निरस्त कर दिया। कहा कि आप इस पर पुन: विचार करें। मेरा कहने का अर्थ यही है कि अगर हेमंत सरकार 1932 का खतियान ला रही थी, तो उस निर्णय के आलोक में उसे पूरा अध्ययन कर लेना चाहिए था। कोर्ट ने उस वक्त किन बातों को लेकर आॅब्जेक्शन लगाया था, उसके बाद उसका क्या रास्ता है, फिर उस पर सरकार को आगे बढ़ना चाहिए था। हेमंत सरकार ने कुछ भी अध्ययन नहीं किया। बस ले आये 1932 का खतियान। क्या हेमंत सोरेन को इस बात की समझ नहीं है। बिल्कुल उन्हें इस बात का बोध है, तभी तो उन्होंने विधानसभा में कहा था कि 1932 का खतियान लागू नहीं हो सकता है। फिर भी हेमंत सोरेन अब इसे लागू कर रहे हैं, तो इसे क्या समझा जाये। इसमें उन्होंने जान-बूझ कर नियोजन नीति को नहीं जोड़ा है। इसके पीछे उनकी क्या मंशा रही होगी, समझा जा सकता है। अब लोग भी इसे समझ रहे हैं। हम तो शुरू से इस मत के रहे हैं कि यहां के लोगों को नौकरी में प्राथमिकता मिलनी चाहिए।
    अब ओबीसी के आरक्षण को ही लीजिए। हेमंत सोरेन ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण की बात करते हैं। यह भी हमने अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में किया था। कोर्ट ने उसको निरस्त कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप 50 परसेंट से आगे बढ़ सकते हैं। रिजर्वेशन आप दे सकते हैं, लेकिन उसके लिए कमीशन बनाना पड़ेगा। आयोग गठित करना पड़ेगा। फिर आयोग सर्वे करेगा। उसके बाद लगेगा कि ओबीसी वर्ग को उतनी प्रतिनियुक्ति नहीं मिल पा रही है, जितनी उन्हें सच में जरूरत है, तब हम उनके लिए रिजर्वेशन करेंगे। लेकिन इस सरकार ने इन सब पॉइंट्स पर कुछ किया ही नहीं। अभी नगर निकाय का चुनाव होना है, तो कहां सरकार ओबीसी को रिजर्वेशन दे रही है। जब कुछ दिन पहले ही हेमंत सरकार ने 27 परसेंट आरक्षण ओबीसी को दिया था, तो नगर निकाय चुनाव में उसे लागू करना चाहिए था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। यह सवाल उठना चाहिए कि नहीं। लेकिन मौजूदा सरकार ने इसे सिरे से दरकिनार कर दिया, क्योंकि उन्हें पता है कि उसके बाद क्या होना है। पंचायत चुनाव के वक्त हमने खुद हेमंत सरकार से कहा था कि आपने दो साल पंचायत चुनाव नहीं करवाया, तो छह महीना और मत करवाइये। एक बार आप आयोग गठित करके सर्वे करवा लीजिए। ज्यादा से ज्यादा क्या होगा। चुनाव में छह महीना और विलंब होगा। लेकिन सत्ता पक्ष ने नहीं माना। कहा कि हम ऐसे ही चुनाव करवायेंगे। बहुत देर हो गयी है। पंचायत चुनाव में हेमंत सरकार ने छल किया है। आयोग गठित करने की बजाय आरक्षण समाप्त कर चुनाव कराया। अब निकाय चुनाव में आयोग गठित कर ट्रिपल टेस्ट के आधार पर चुनाव कराया जा सकता था, लेकिन हेमंत सरकार पिछड़ा वर्ग को छल रही है। यूपीए सरकार में शामिल लोगों को सिर्फ पैसा और परिवार की चिंता है। इसलिए इडी ने अपना हाथ फैलाया है। भाजपा तब तक लड़ाई लड़ेगी, जब तक इस सरकार को उखाड़ कर फेंक ना दे। हम किसी भी सूरत में जनता के साथ छलावा बर्दाश्त नहीं करेंगे।

    सवाल : भाजपा हेमंत सोरेन की सरकार को काम करने क्यों नहीं दे रही है?
    जवाब : सवाल सुनते ही बाबूलाल हंसने लगते हैं। कहते हैं, उन्हें हम नहीं काम करने दे रहे हैं। हम तो काम करने के लिए उन्हें चिट्ठी भी लिखते हैं। जनता ने आपको चुना है काम करने के लिए, लेकिन यह सरकार काम कहां कर रही है। इन लोगों ने सत्ता को कमाई का जरिया समझ लिया है। अब कमाने तो हम नहीं देंगे न।

    सवाल : आप खुल कर बताइये न, कहना क्या चाह रहे हैं?
    जवाब : बाबूलाल मरांडी मुस्कुराते हुए कहते हैं कि कमाने का सीधा मतलब यही है कि सत्तासीन लोग सत्ता के माध्यम से तिजोरी भर रहे हैं। चहुंओर इसकी चर्चा है। बालू, कोयला, पत्थर, पहाड़, जमीन, सब तो दांव पर लगा है इस सरकार में। इन तीन सालों में जरा सरकार से आप पूछिए कि आपने कितनी खदानों की लीज दी है। मुझे लगता है, तब आपको यही पता चलेगा कि लीज तो दी नहीं, बल्कि जो लीज थी, उनको भी क्लीयरेंस नहीं दिया गया। वह भी गैरकानूनी ढंग से चलायी जा रही थी। आप समझ सकते हैं कि अगर गैरकानूनी तरीके से खदान चलेगी, तो उससे किसकी तिजोरी भरेगी। सरकार की तो नहीं न। इन तीन सालों में जितनी भी नदियां हैं, बालू घाट हैं, इनकी नीलामी नहीं हुई है। विधानसभा में हमने बालू को लेकर सवाल भी उठाया कि बालू वालों को पुलिस वाले पकड़ते हैं, लोगों को परेशान करते हैं। उस समय सीएम ने कहा था कि बालू घाट की नीलामी होगी, उसका आॅक्शन होगा, जल्दी होगा, लेकिन हुआ क्या! मजे की बात यह है कि इस दौरान राज्य से बालू बाहर जाता रहा। क्या दिन, क्या रात। बालू तस्करी का मॉडल आप देख लेंगे तो दंग रह जायेंगे। कौन नहीं मिला हुआ है इस काम में। इसलिए तो मैं कह रहा हूं कि यह सरकार काम नहीं कर रही है, हां इसमें धंधा जरूर चोखा हुआ है। संपदाओं की लूट का इससे बढ़िया मॉडल शायद ही कहीं देखने को मिलेगा। हमने काम करने पर नहीं, गलत तरीके से कमाने से रोका है। इडी की रिपोर्ट पर गौर फरमायें, तो सिर्फ साहिबगंज में एक हजार करोड़ से अधिक का अवैध खनन हुआ है।
    एक और उदाहरण मैं देता हूं। गांवों में लोगों को कई महीने से नियमित राशन नहीं मिल पा रहा है, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिसंबर तक गरीबों को मुफ्त राशन देने की घोषणा की है। उसी प्रकार से पेंशन, पोषाहार जरूरतमंद महिला-बच्चों को मिल रहा है कि नहीं, इन सब पर हमें नजर रखनी है। ये लोग सिर्फ अपने लाभ में लगे हुए हैं। इनका जनता से दूर-दूर तक वास्ता नहीं है। अगर आपकी भी कोई खाली जमीन पड़ी हो, तो सावधान रहिए, नहीं तो राज्य की शासन व्यवस्था और सरकार में बैठे कुछ लोग आपकी जमीन पर कब्जा कर लेंगे।

    सवाल : आप हर समय कानून-व्यवस्था पर सवाल उठा रहे हैं। क्या यह सिर्फ हेमंत सोरेन सरकार में ही खराब है! पहले क्या रामराज था?
    जवाब : देखिये, हेमंत है तो हिम्मत है का नारा इसी सरकार में लगा है। वह और कहीं फिट हो या न हो, लेकिन अपराधियों पर पूरी तरह से फिट हो रहा है। आज झारखंड की कानून-व्यवस्था कहां जा रही है। आये दिन यहां बलात्कार हो रहे हैं। नाबालिग बच्चियों को टारगेट कर पेट्रोल से जलाया जा रहा है। आदिवासी बच्चियां भी राज्य में सुरक्षित नहीं हैं। बीच बाजार में व्यापारियों को गोली मार दी जा रही है। देश विरोधी ताकतें एक्टिव हो गयी हैं। यहां धर्मांतरण का खेल खेला जा रहा है। एक वर्ग विशेष के लोग जबरदस्ती बच्चियों पर शादी करने के लिए दबाव बना रहे हैं। विरोध करने पर उनकी हत्या कर दे रहे हैं। अब तो इन लोगों ने स्कूलों तक को नहीं छोड़ा! त्योहारों में हिंसा तक हुई। झारखंड के अपराधियों में पुलिस का जरा भी खौफ नहीं है। पुलिस भले ही अपराधियों पर नकेल कसने की बात कह रही हो, लेकिन जमीनी हालात कुछ और ही कहनी बयां कर रहे हैं। चोर एटीएम काट कर ले जा रहे हैं, दिनदहाड़े डकैती डाल रहे हैं। रात को सड़कें अपराधियों के नियंत्रण में होती हैं। बालू, कोयला, पत्थर की खुलेआम लूट मची है। लूट का एक ऐसा तंत्र यहां काम कर रहा है, जिसने भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा को भी पार कर दिया है।

    सवाल : 2019 के विधानसभा चुनाव में 28 जनजातीय सीटों में से 26 पर भाजपा हार गयी? उस समय आप भाजपा के खिलाफ थे। क्या आपने आकलन किया था कि उसका मूल कारण क्या रहा था?
    जवाब : इसका मूल कारण एक नहीं हो सकता है, कई कारण होंगे। हेमंत सोरेन से पहले पांच साल तक तो भाजपा की ही सरकार रही। कुछ कारण, कुछ फैसले जरूर होंगे, जिससे लोग नाराज हुए होंगे। खासकर सीएनटी-एसपीटी एक्ट को लेकर लोग काफी उद्वेलित हुए थे। सड़कों पर उतरे थे। उस समय यहां के ट्राइबल सिर्फ मोबिलाइज ही नहीं हुए, एकजुट भी हो गये थे और सरकार के खिलाफ खड़े हो गये। उसका भाजपा को जबरदस्त नुकसान हुआ। नहीं तो भाजपा अच्छी-खासी सीट तो जीतती ही थी। दूसरा, भाजपा का आजसू के साथ गठबंधन टूट गया था। यह भी एक कारण था। वन टू वन फाइट हो गयी।

    सवाल : अब भाजपा ने आखिर इन तीन सालों में ऐसा क्या कर दिया है कि 2024 में उसकी सरकार आ जायेगी? यूपीए गठबंधन तो अभी तक पूरी तरह से इंटैक्ट है? सीधा मुकाबला तो इस बार भी होगा?
    जवाब : यूपीए गठबंधन तो रहेगा, हम भी यही मान कर चल रहे हैं। हमारा फोकस है कि जो सीटें हमने लूज की थीं, जहां हम कमजोर हैंं, वहां अपना बेस कैसे मजबूत किया जाये, कैसे जनाधार बढ़ाया जाये। हम गांव-गांव जाकर गांव की सरकार का सूत्र गढ़ रहे हैं। बूथ को मजबूत कर रहे हैं, क्योंकि लड़ाई तो बूथ पर ही होती है। पंचायत चुनाव में 53 परसेंट भाजपा के कार्यकर्ता पंचायत प्रतिनिधि के रूप में चुन कर आये हैं, जिसके लिए सभी बधाई के पात्र हैं। इससे यह प्रमाणित होता है कि हम अपनी जड़ें मजबूत कर रहे हैं। हमने उन्हें सम्मानित भी किया। यही वे कड़ी हैं, जो हमें गांव में मजबूत करेंगे। प्रधानमंत्री की योजनाओं के बारे में लोगों को जागरूक करेंगे। कैसे ग्रामीण इन योजनाओं का लाभ लें उन्हें बतायेंगे। भाजपा अपनी रणनीति के हिसाब से चल रही है। भाजपा ही झारखंड में विकास कार्यों को धरातल पर ला सकती है, क्योंकि भाजपा काम करने में विश्वास करती है। भाजपा समाज के हर वर्ग को साथ लेकर चलती है। कानून व्यवस्था पर उसका फोकस होता है। भाजपा के शासन काल में महिलाएं सुरक्षित महसूस करती हैं। व्यापारी वर्ग खुल कर काम करता है। गरीब को पता होता है कि भाजपा के राज में वह खाली पेट नहीं सोयेगा। प्रधानमंत्री का विशेष स्नेह झारखंड पर रहता है। प्रधानमंत्री ने कई जन कल्याणकारी योजनाएं झारखंड से ही शुरू कीं। 2024 में फिर से भाजपा की डबल इंजन की सरकार बनेगी, यह तय है, क्योंकि झारखंड को संवारने का समय आ गया है। झारखंड के संपूर्ण विकास का समय आ चुका है। झारखंड को लूट से बचाने का समय आ चुका है। झारखंड की गरीब जनता को सम्मान से जीने का समय आ चुका है। उनके अधिकारों की रक्षा का समय आ चुका है। झारखंड की संस्कृति और खूबसूरती को विश्व पटल पर प्रदर्शित करने का समय आ गया है। आज देश की राष्ट्रपति एक आदिवासी महिला हैं। समझा जा सकता है कि भाजपा आदिवासियों की कितनी बड़ी हितैषी है।

    सवाल : क्या 2024 तक इस सरकार को भाजपा चलने देगी?
    जवाब : हम कहां उन्हें हटा रहे हैं। ये तो उनके ऊपर निर्भर करता है कि 2024 तक सरकार कैसे चलाते हैं। लेकिन इस सरकार की जो नीयत है, सरकार के काम करने के जो तौर-तरीके हैं, जिस प्रकार से करप्शन के दलदल में मौजूदा सरकार धंसती चली जा रही है, तो लगता नहीं है कि बहुत दिनों तक हेमंत सोरेन आगे चल पायेंगे।

    सवाल : क्या आपको लगता है कि आप झारखंड मुक्ति मोर्चा के निशाने पर हैं?
    जवाब : बाबूलाल हंसने लगते हैं। कहते हैं, शायद हम उनके कारनामों को उजागर करते रहते हैं। हम बार-बार सरकार को चिट्ठी लिखते रहते हैं। झामुमो के लोग उसे लेकर हमें पत्रवीर के नाम से भी संबोधित करने लगे हैं, बस मैं उनका ध्यानाकर्षित करवाता रहता हूं। सरकार अपने में इतनी व्यस्त है, तो किसी को तो उन्हें बताना होगा कि तुम्हें जनता ने सही काम करने के लिए जनादेश दिया है, गलत करने के लिए। खुद काम करते नहीं और हमें कहते रहते हैं कि हम काम नहीं करने देते। मेरा पत्र लिखना उन्हें पसंद नहीं आता। इसलिए हो सकता है मैं उनके निशाने पर रहता हूं। अब पत्र में मैं थोड़े मीठे बोल लिखूंगा। क्या हो रहा या हुआ है, वही लिखूंगा न। अब राज्य में कानून-व्यवस्था का जो हाल है, वह किससे छिपा है। आये दिन झारखंड में बच्चियों और महिलाओं पर अत्याचार बढ़ रहा है, तो मैं चिठ्ठी में वही लिखूंगा न कि आप इस मोर्चे पर फेल हैं।

    सवाल : आपने ट्वीट किया था कि अमित अग्रवाल के कॉल डिटेल्स को खंगाला जाये, परत-दर-परत भ्रष्टाचार उजागर होते जायेंगे? लगता है, आपको पता चल गया है कि उन कॉल डिटेल्स में क्या कुछ है?
    जवाब : बाबूलाल मरांडी कहते हैं कि इडी तो अपना काम कर ही रही होगी। अब मैं यह तो नहीं बता पाऊंगा कि इडी ने अमित अग्रवाल के साथ क्या किया होगा। हम तो जांच एजेंसियों से मांग ही कर सकते हैं। लोग कहते हैं कि अमित अग्रवाल झारखंड में समानांतर सरकार चला रहे थे। जहां अमित अग्रवाल का आवास था, वहां दरबार लगता था और दरबारी कोई और नहीं, बल्कि अधिकारी होते थे। जब यह सूचना सार्वजनिक होने लगी, तो मैंने कहा कि इडी क्यों नहीं अमित अग्रवाल का कॉल डिटेल्स ही खंगाल लेती है। कब-कब, किनसे कितनी बार वह बात कर रहे थे। क्या बात कर रहे थे। किनका क्या संबंध है, यह सब शीशे की तरह साफ हो जायेगा। अगर इडी अमित अग्रवाल, प्रमप्रकाश, विशाल चौधरी, पीके मिश्रा, सुमन कुमार, पूजा सिंघल को गिरफ्त में ले चुकी है, तो उससे यह साफ हो गया है कि इन लोगों की सीधी पहुंच ऊपर तक थी। अगर इडी न्यायिक हिरासत में रहते हुए पीके मिश्रा झारखंड के आइएएस-आइपीएस अधिकारियों से बात कर रहा है, तो यह बगैर प्रभाव और संरक्षण के तो हो नहीं सकता।

    सवाल : आपकी नजर में झारखंड को फिलहाल किस चीज की सबसे ज्यादा जरूरत है?
    जवाब : बाबूलाल मरांडी भावुक हो जाते हैं। जरा ठहर कर इस सवाल का जवाब देते हैं। बाबूलाल कहते हैं कि सही मायने में झारखंड को अभी सबसे ज्यादा जिस चीज कि जरूरत है, वह है रोजगार। बरोजगारी को दूर करना। झारखंड में बेरोजगारी बहुत है। यहां कुपोषित बच्चे सबसे अधिक हैं। इसका प्रमुख कारण ही गरीबी है। और गरीबी का मुख्य कारण है बेरोजगारी। मेरा यही मानना है कि झारखंड में किसी की भी सरकार हो, बेरोजगारी जैसे मुद्दे को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। इसे दूर करने के लिए सरकार को दिन-रात प्रयास करना चाहिए। यह समस्या दूर नहीं हो सकती, ऐसा नहीं है। मौजूदा सरकार की मंशा और प्रयास में यह सब दिखता नहीं है, उसकी प्राथमिकता में इन चीजों का कोई स्थान नहीं है। सरकार पेंशन दे रही है, ठीक है। आप पेंशन दीजिए, इससे तत्काल भूख से किसी को बचाया जा सकता है, लेकिन हमें उसके अतिरिक्त भी सोचना है। सरकार को लोगों के लिविंग स्टैंडर्ड को बढ़ाने के बारे में सोचना चाहिए। कैसे लोगों की आय का साधन बढ़े, उस पर विचार करना चाहिए। रोजगार सृजन कैसे होगा, उस पर काम करने की जरूरत है। झारखंड में आज भी पुराने ढर्रे पर खेती निर्भर है। सिंचाई की कोई सुविधा नहीं है, उसे कैसे ठीक किया जाये, उस पर विचार करना होगा। कौशल विकास के माध्यम से लोगों को सही तरीके से प्रशिक्षित करना चाहिए। मुख्यमंत्री को खुद इसे देखना चाहिए। आप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही देख लीजिए। कैसे वह देश के खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाते हैं। खुद फोन करते हैं, मिलते भी हैं। उनका हौसला बढ़ाते हैं। तो क्यों नहीं देश का खिलाड़ी मेडल लायेगा। अपना 100 प्रतिशत अपने खेल में देगा। आज देश के खिलाड़ियों को पता है कि उनके पीछे उनका प्रधानमंत्री खड़ा है। यही तो एक अच्छे लीडर का काम है। अपनी सेना को ऊर्जा देना। हौसला बढ़ाना। आप स्टार्टअप सेक्टर को ही देख लीजिए। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्टार्टअप को खुद प्रमोट कर रहे हैं। खुद सूचियों को देखते हैं। प्रधानमंत्री को पता है कि अगर देश को आत्मनिर्भर बनाना है तो नये आइडिया को सपोर्ट करना है। युवाओं को मोटिवेट करना है। अच्छे आइडिया को इंप्लीमेंट करवाना है। स्किल डेवलपमेंट के माध्यम से नयी पीढ़ी को तैयार करना है। ग्रामीणों को सक्षम बनाना है। झारखंड में हमें गरीबी और बेरोजगारी की समस्या को दूर करना ही होगा, तभी झारखंड आगे बढ़ सकता है। झारखंड में साढ़े तीन करोड़ की आबादी है। सिर्फ खेती और चंद उद्योग से झारखंड की यह मुख्य समस्या दूर नहीं हो सकती। अगर हर हाथ को रोजगार देना है, तो शिक्षा व्यस्था भी उसी प्रकार से दुरुस्त करनी पड़ेगी। उनके स्किल को भी डेवलप करना पड़ेगा।
    मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक उदहारण देना चाहता हूं। प्रधानमंत्री जब भी विदेश दौरे पर जाते हैं, तब वह कोशिश करते हैं कि वहां बसे भारतीयों से मिलें। एक तो प्रधानमंत्री का उनसे मिलना देश के प्रति अपनत्व का एहसास और गहरा कराता है, दूसरा प्रधानमंत्री भारत को कैसे प्रमोट किया जाये, यहां के टूरिज्म को कैसे प्रमोट किया जाये, उसके बारे में भी उनसे चर्चा करते हैं। प्रधानमंत्री वहां बसे लोगों से जरूर कहते हैं कि आप जब भी भारत से विदेश जायें, तो यहां का कोई प्रतीक जरूर लेकर जायें और वहां के स्थानीय मित्रों को जरूर दें। और उन्हें भी प्रेरित करें कि एक बार वे भारत जरूर आयें। इससे एक-दूसरे को देश की संस्कृति को जानने का मौका मिलता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कभी यह नहीं कहते कि आप देश छोड़ कर विदेश में क्यों बस गये। उनका यही कहना होता है कि भारतीय कहीं भी हो, वह भारत का ब्रांड एंबेसडर है। प्रधानमंत्री का यही विजन है कि आप दूसरे देश के विकास में अपना रोल तो निभा ही रहे हैं। यह करने से आप भारत के विकास का भी हिस्सा बन सकते हैं। अब ब्रेन ड्रेन का रोना नहीं होता, अब उसी ब्रेन से देश का गेन होगा। हमें भी झारखंड के टूरिज्म को प्रमोट करना चाहिए। यहां की खासियत से दूसरे शहरों के लोगों को अवगत करने की जरूरत है।

    सवाल : झारखंड में एक लिफाफे की चहुंओर चर्चा है। वह लिफाफा फिलहाल राज्यपाल के पास है। झामुमो बार-बार यह आरोप लगाता रहा है कि निर्वाचन आयोग की हर सूचना भाजपा नेताओं को पहले मिल जाती है। आप बता सकते हैं उस लिफाफे में क्या है?
    जवाब : बाबूलाल कुछ सोचते हैं। मुस्कुराते हैं। फिर कहते हैं कि अब यह हम कैसे बता सकते हैं। इलेक्शन कमीशन ने क्या भेजा है! किनके पास क्या रिपोर्ट है, यह हम तो बता नहीं पायेंगे। यह तो इलेक्शन कमीशन और राज्यपाल ही बता पायेंगे। हां, हम लोग इतना जरूर कह सकते हैं और कहते रहे हैं कि राज्य के मुख्यमंत्री रहते, खान मंत्री रहते, वन मंत्री रहते अपने नाम से खदान की लीज लेना गैर-कानूनी है। लोक सेवकों के लिए भारत सरकार की जो गाइडलाइन बनी हुई है, आचार संहिता बनी हुई है, उस नियम का यह उल्लंघन है। मुझे लगता है कि देश के किसी भी राज्य में ऐसा कोई भी मुख्यमंत्री नहीं होगा, जो मुख्यमंत्री रहते अपने नाम से ठेका-पट्टा लेता हो या अपने नाम से खदान का पट्टा लेता हो। हेमंत सोरेन ने प्रत्यक्ष रूप से यह गैर-कानूनी काम किया है। इसे लेकर ही हम सभी लोगों ने राज्यपाल के पास जाकर ज्ञापन सौंपा था। हमने यही कहा है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने यह गलत किया है, इनकी सदस्यता जानी चाहिए। आज भी हमारी यही मांग है। हेमंत सोरेन पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जो अपने ही खिलाफ कार्रवाई के लिए राजभवन का चक्कर लगा रहे हैं। अब इसे क्या कहा जाये! या तो वह डरे हुए हैं या फिर उन्हें एहसास हो गया है कि वे जानेवाले हैं।

    सवाल : झारखंड में जो घोटाले उजागर होते हैं, उनमें नेताओं के तो नाम सामने आ जाते हैं, लेकिन अधिकारी कैसे बच जाते हैं, उनका नाम क्यों नहीं आता। क्या वे भ्रष्ट नहीं होते?
    जवाब : जिसकी सरकार होती है, कार्रवाई वही करती है। मैं दो घटनाओं का जिक्र करूंगा। पहली घटना माइनिंग को लेकर। जब इडी ने चार्जशीट दाखिल की, तो अखबारों में छपा कि एक हजार करोड़ का घोटाला साहिबगंज जिला में हुआ है। माइनिंग के जो हेड होते हैं, वे डीसी होते हैं, उस विभाग के अफसर होते हैं। अगर इतने दिनों तक इस तरह की अवैध माइनिंग होती रही, तो ये लोग भी तो जिम्मेदार हैं। इन पर भी तो कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन जांच करे कौन। सरकार तो उनकी है। वही सब करवा रहे हैं। जब हमारा समय आयेगा, तब हम जरूर कार्रवाई करेंगे। चार दिन पहले ही मैंने एक पत्र लिखा है रामेश्वर उरांव को। पत्र में लिखा है कि गिरिडीह जिला में 208 लोगों को, जिन्हें डीलरशिप दी गयी थी, फूड सप्लाई की, उनके लाइसेंस को सरकार ने रद्द कर दिया। कहा गया कि इन्हें इल्लीगल तरीके से लाइसेंस दिया गया था। मेरा सवाल इल्लीगल लाइसेंस को रद्द करने के लिए नहीं था। जिन्होंने इल्लीगल तरीके से लाइसेंस दिया, उन अफसरों पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई। मैंने पत्र में लिखा कि उन अफसरों पर आप कार्रवाई करें, क्योंकि इल्लीगल तरीके से लाइसेंस तो उन्हीं ने दिया। तो सजा तो उन्हें मिलनी ही चाहिए। सजा तो राज्य सरकार ही देगी। अगर राज्य सरकार उन पर कार्रवाई नहीं करेगी, तो जिस दिन हमारी सरकार आयेगी, तो हम इस मामले को देखेंगे।

    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Article75 हजार युवाओं को बांटे नियुक्ति पत्र, तो 4.51 लाख परिवारों को कराया गृह प्रवेश
    Next Article मनी लांड्रिंग के आरोपी दाहू यादव और सुनील के खिलाफ गैर जमानती वारंट
    azad sipahi

      Related Posts

      मोरहाबादी स्टेज को ध्वस्त करने का कारण बताये राज्य सरकार : प्रतुल शाहदेव

      May 18, 2025

      मंईयां सम्मान योजना महज दिखावा : सुदेश

      May 18, 2025

      झारखंड कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग की नवनियुक्त प्रभारी रांची पहुंची

      May 18, 2025
      Add A Comment

      Comments are closed.

      Recent Posts
      • मारा गया लश्कर-ए-तैयबा का डिप्टी चीफ सैफुल्लाह खालिद, भारत में कई आतंकी हमलों का था मास्टर माइंड
      • भारत-पाक संघर्ष के समय आइएसआइ के संपर्क में थी ज्योति मल्होत्रा
      • मोरहाबादी स्टेज को ध्वस्त करने का कारण बताये राज्य सरकार : प्रतुल शाहदेव
      • मंईयां सम्मान योजना महज दिखावा : सुदेश
      • JSCA के नए अध्यक्ष बने अजय नाथ शाहदेव, सौरभ तिवारी सचिव चुने गए
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version