भारत में किसी धर्म की तरह लोकप्रिय क्रिकेट और इस खेल की राष्ट्रीय टीम एक ऐसे दौर से गुजर रही है, जिसमें कुछ क्रांतिकारी बदलाव की जरूरत महसूस की जाने लगी है। हाल ही में एशिया कप प्रतियोगिता में शर्मनाक पराजय के बाद, पहले आॅस्ट्रेलिया के हाथों पराजित हो चुकी और अब जारी शृंखला के पहले मैच में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ पराजय झेल चुकी टीम इंडिया बदलाव के ऐसे दौर से गुजर रही है, जिसमें इस हालत की जिम्मेदार एक हद तक आइपीएल जैसी प्रतियोगिताओं को भी ठहराया जा सकता है। एक तरफ जहां इस प्रतियोगिता में साउथ अफ्रीका की फुल स्ट्रेंथ वाली टीम खेल रही है, वहीं उसके सामने हमारी बी टीम खड़ी है। हमारी मुख्य टीम बेहतर प्रैक्टिस के लिए आॅस्ट्रेलिया रवाना हो चुकी है, उन खिलाड़ियों के साथ जो साल में इंटरनेशनल मैच खेल कर प्रैक्टिस हासिल करने का मौका ब्रेक लेकर छोड़ते रहे। एक वक्त था, जब टीम इंडिया के हर खिलाड़ी का नाम मुंह पर रहता था। लेकिन आज भारतीय टीम और देश की जनता एक ऐसे दौर से गुजर रही है, जहां वह अपने स्टार खिलाड़ियों को खिलवाने और देखने को तरस गयी है। बेशुमार दौलत और स्टारडम से चकाचौंध आइपीएल प्रतियोगिता ने टीम इंडिया के खिलाड़ियों को इस कदर पेशेवर और खुदगर्ज बना दिया है कि उन्हें अब राष्ट्रीय प्रतिष्ठा और टीम भावना से कोई मतलब नहीं रह गया है। चाहे रोहित शर्मा हों या विराट कोहली, जसप्रीत बुमराह हों या केएल राहुल, हार्दिक पांड्या हों या जडेजा सभी की एक ही कहानी है। जब देश का प्रतिनिधित्व करने का समय आता है, ये खिलाड़ी चोटिल होकर बाहर बैठ जाते हैं या फिर बहाने बना कर छुट्टी ले लेते हैं, लेकिन आइपीएल के लिए इनकी चोट गायब हो जाती है और उपलब्धता भी शत-प्रतिशत हो जाती है। पता नहीं आइपीएल इन खिलाड़ियों को कौन सी ऐसी बूटी प्रदान करता है, जहां हर खिलाड़ी फिट नजर आता है और अटेंडेंस भी टकाटक रहता है। 9 अक्टूबर को रांची में मैच हो रहा है। झारखंड के लोगों को बड़ी उम्मीद थी कि वे अपने स्टार खिलाड़ियों का दीदार कर पायेगी, लेकिन उनकी लालसा मन में ही रह गयी। वर्ल्ड कप के नाम पर ये खिलाड़ी इस मैच से गायब हैं। इससे देश की साख पर बट्टा भी लग रहा है। भारतीय क्रिकेट को पुराने फॉर्म या यूं कहें जूनून में वापस लाने का अब एक ही उपाय बच गया है और वह है आइपीएल को राष्ट्रीय टीम में सेंधमारी करने से रोकना। अगर आइपीएल खिलवाना ही है तो उन्हें खिलाओ, जिन्हें भारतीय टीम में जगह नहीं मिल रही। भारतीय क्रिकेट टीम की खराब स्थिति और इसमें जरूरी बदलाव के कारणों का विश्लेषण करती आजादी सिपाही के विशेष संवाददाता राहुल सिंह की रिपोर्ट।
भारत में जिस क्रिकेट को धर्म का दर्जा मिला हुआ है और इस खेल में मिली जीत या हार से लोग अत्यधिक प्रभावित होते हैं, खिलाड़ियों को किसी ईश्वर की तरह पूजा जाता है, वहां की राष्ट्रीय टीम इन दिनों बेहद बुरे दौर से गुजर रही है। अभी दक्षिण अफ्रीका के साथ चल रही एकदिवसीय मैचों की सीरीज से पहले भारतीय टीम एशिया कप में बुरी तरह हार चुकी है और आॅस्ट्रेलिया से मात खा चुकी है। दक्षिण अफ्रीका भी पहले मैच में भारत को हरा चुका है। 9 अक्तूबर को रांची में दूसरा मैच है। बड़े खिलाड़ियों के गायब रहने से यहां के दर्शन निराश हैं। ऐसे में अब यह सवाल उठने लगा है कि कभी अपराजेय मानी जानेवाली भारतीय क्रिकेट टीम इस कदर पस्त क्यों हो गयी है।
इस सवाल का जवाब खोजने के लिए पहले उन परिस्थितियों पर विचार करना जरूरी है, जिससे भारतीय टीम बुरी तरह प्रभावित हुई है। दरअसल रोहित शर्मा की कप्तानी और राहुल द्रविड़ की कोचिंग में टीम इंडिया इस साल की शुरूआत से ही लगातार बदलाव के दौर से गुजर रही है। भारतीय टीम में सबसे पहला बदलाव कप्तानी को लेकर किया गया। टीम में विराट कोहली की जगह रोहित शर्मा को तीनों फॉर्मेट में कप्तान बनाया गया। कप्तान के साथ टीम को नया कोच भी मिला। राहुल द्रविड़, रवि शास्त्री की जगह टीम के नये कोच बने। इसके बाद नये कोच और कप्तान ने टीम में लगातार कई तरह के प्रयोग किये। टीम की कप्तानी में हुए लगातार बदलाव के साथ कई नये चेहरों ने भी टीम इंडिया के लिए अपना डेब्यू किया। टीम में हो रहे लगातार बदलाव को लेकर कई तरह के सवाल भी उठे। इन बदलाव के कारण टीम के लिए कुछ खास नया तो नहीं हुआ, लेकिन प्रदर्शन में गिरावट जरूर देखने को मिली। वर्कलोड मैनेजमेंट के कारण हर दूसरी सीरीज में टीम के सीनियर खिलाड़ियों को आराम दिया जाता रहा। ऐसे में नये खिलाड़ियों के पास खुद को साबित करने का मौका तो मिला, लेकिन जैसे ही सीनियर खिलाड़ी ब्रेक से वापस टीम में आये तो उन्हें बाहर होना पड़ा। इसके अलावा रही-सही कसर चोटों ने पूरी कर दी। पिछले छह महीने में देखें, तो टीम में स्थिरता की बहुत कमी देखी गयी है। टीम में लगातार नये चेहरे को मौका मिला है, लेकिन उनके सामने अनिश्चितता बनी रही। ऐसे में स्वाभाविक है कि खिलाड़ियों का लय प्रभावित होता है।
भारतीय टीम में इस साल सबसे अधिक प्रयोग कप्तानी को लेकर किया गया। अभी पूरा साल बीता भी नहीं है कि टीम में सात नये कप्तान बन चुके हैं। लगभग हर दूसरी सीरीज में टीम मैनेजमेंट ने नये कप्तान की नियुक्ति की। यह एक रिकॉर्ड भी है कि किसी एक साल में भारतीय टीम के लिए सात खिलाड़ियों ने कप्तानी की है। इस मामले में टीम इंडिया ने श्रीलंका की बराबरी की है। श्रीलंका ने भी साल 2017 में एक साल में सात कप्तान बदले थे।
एशिया कप से पहले जब भारतीय टीम विदेशी दौरे पर थी, तो यह कहा गया कि टीम इंडिया आॅस्ट्रेलिया में होने वाले टी 20 विश्व कप के सही संयोजन को तलाश रही है। इस कारण टीम में लगातार प्रयोग होते रहे। इसके बाद एशिया कप के लिए टीम का चयन हुआ। इसमें टीम इंडिया ना तो बल्लेबाजी और ना ही गेंदबाजी में कुछ खास प्रभावित कर पायी।
सीनियर खिलाड़ियों का लगातार बाहर रहना
भारतीय क्रिकेट टीम की इस स्थिति के पीछे सीनियर खिलाड़ियों की लगातार गैर-मौजूदगी भी है। आॅस्ट्रेलिया में होने वाले टी 20 वर्ल्ड कप में अब कुछ दिन ही रह गये हैं। इस वर्ल्ड कप से पहले सभी टीमें खिताब जीतने के लिए पूरी तैयारी कर रही हंै, जबकि भारतीय टीम लगातार प्रयोग कर रही है। भारत में टी-20 वर्ल्ड कप के आॅफिशियल ब्रॉडकास्टर स्टार ने एक एड कैंपेन चलाया है, बहुत हुआ इंतजार, जीत लो कप अबकी बार। भारतीय टीम 15 साल से इस टूर्नामेंट को जीतने का इंतजार कर रही है। 2007 में हमें पहली और आखिरी बार कामयाबी मिली थी। इंतजार काफी लंबा हो रहा था, लिहाजा भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने तैयारी भी खूब की। पिछले टी-20 वर्ल्ड के बाद से 11 महीने के अंदर इस टीम के लिए इस फॉर्मेट के 35 मुकाबले करवा दिये। बाकी दोनों फॉर्मेट टेस्ट और वनडे को भी जोड़ लें तो कुल 59 मैच हुए इस दौरान, लेकिन जब टीम बनी तो ज्यादातर उन खिलाड़ियों को मौका मिला, जो इन 59 मुकाबलों में सबसे कम खेले। वर्ल्ड कप से पहले हो रही सीरीज में भारतीय टीम के सीनियर खिलाड़ी मैदान से बाहर हैं। ऐसे में आसानी से समझा जा सकता है कि भारतीय टीम की चुनौती कैसी है। कुछ खिलाड़ियों को पूरे साल समय-समय पर इसलिए आराम दिया गया, ताकि वे वर्ल्ड कप के लिए फिट रहें, लेकिन ये आराम करते-करते चोटिल हो गये।
टीम इंडिया के टॉप थ्री, यानी रोहित-राहुल और विराट की चर्चा
ये तीनों सितारे पिछले एक साल में टीम इंडिया के करीब आधे मुकाबलों से गायब रहे। विराट 59 इंटरनेशनल मैचों में से 31 में गायब रहे। राहुल 37 मैच नहीं खेले। वहीं, कप्तान रोहित शर्मा ने भी 25 मैच मिस किये। सिर्फ टी-20 की बात करें, तो विराट पिछले टी-20 वर्ल्ड कप के बाद हुए भारत के 35 में से 21 मैच नहीं खेले। राहुल 23 मैचों से गायब रहे, तो रोहित ने नौ मुकाबले मिस किये। टीम इंडिया में नंबर-4 के बल्लेबाज सूर्यकुमार यादव 35 में से 26 मैच खेल सके हैं। नंबर-5 पर आने वाले हार्दिक पंड्या ने 19 मुकाबले ही खेले। नंबर-6 पर दिनेश कार्तिक ने भी 11 मैच मिस किये हैं। अक्षर पटेल को 35 में सिर्फ 20 मैच खेलने का मौका मिला। कुछ खिलाड़ी तो ऐसे हैं, जो मानों आराम करते-करते चोटिल हो रहे हैं। जसप्रीत बुमराह ने पिछले वर्ल्ड कप के बाद से सिर्फ पांच टी-20 और कुल 16 इंटरनेशनल मैच खेले हैं। इसके बावजूद वे पीठ चोटिल करवा कर टीम से बाहर हैं। भारतीय टीम को टी 20 वर्ल्ड कप से ठीक पहले जसप्रीत बुमराह के बाहर होने से बड़ा झटका लगा है। वह चोट के कारण वर्ल्ड कप से बाहर हो गये हैं। बुमराह को वर्तमान समय में दुनिया का सर्वश्रेष्ठ तेज गेंदबाज माना जाता है। ऐसे में उनके न होने से भारतीय टीम को वर्ल्ड कप में बड़ा नुकसान हो सकता है। रवींद्र जडेजा के साथ भी यही हुआ। वे इतने दिनों में नौ टी-20 और 16 इंटरनेशनल मैच खेल सके हैं। वे भी चोटिल होकर वर्ल्ड कप की टीम से बाहर हैं। लेकिन मजेदार बात यह है कि इन सभी खिलाड़ियों ने आइपीएल के लगभग सभी मैच खेले।
कहा जा सकता है कि खिलाड़ी फिट रहें और तरोताजा रहें, इसलिए बीच-बीच में आराम दिया जाना जरूरी है। अगर ऐसा है तो यह फिलॉसफी आइपीएल में भी लागू होनी चाहिए, लेकिन वहां ऐसा नहीं होता है। हमारे सितारे करीब दो महीने के आइपीएल में कोई मैच मिस नहीं करते हैं। रोहित और बुमराह तो पिछले सीजन में मुंबई के लिए तब लगातार 14-14 मैच खेले, जब उनकी टीम 10 मैच के बाद प्ले-आॅफ की होड़ से बाहर हो चुकी थी। यानी वे आइपीएल के गैर-जरूरी मुकाबलों में भी खेलते रहे। चोटिल होने का जोखिम उठाते रहे, लेकिन जब बारी नेशनल टीम के लिए खेलने की होती है, तो उनको आराम चाहिए होता है।
साउथ अफ्रीका की फुल स्ट्रेंथ टीम के सामने भारत की बी टीम
इस समय भारत और साउथ अफ्रीका के बीच वनडे सीरीज खेली जा रही है। सवाल तो यह भी उठता है कि टी-20 वर्ल्ड कप से ठीक पहले आखिरी वनडे सीरीज हो क्यों रही है। बहरहाल साउथ अफ्रीका ने इस सीरीज के लिए भी अपनी फुल स्ट्रेंथ टीम उतारी है। उसकी टीम में ज्यादातर वही खिलाड़ी शामिल हैं, जो टी-20 वर्ल्ड कप में खेलने उतरेंगे, लेकिन भारत ने बी टीम उतारी है। हमारी मुख्य टीम बेहतर प्रैक्टिस के नाम पर आॅस्ट्रेलिया रवाना हो चुकी है। उन खिलाड़ियों के साथ जो साल में इंटरनेशनल मैच खेल कर प्रैक्टिस हासिल करने का मौका ब्रेक लेकर छोड़ते रहे।
इसलिए अब यह जरूरी हो गया है कि भारतीय क्रिकेट टीम को आइपीएल जैसे मुकाबलों से अलग रखा जाये। क्रिकेट प्रशासकों को चाहिए कि वे आइपीएल में उन खिलाड़ियों को मौका दें, जिन्हें किसी कारण से भारतीय टीम में जगह नहीं मिल सकी है। लेकिन राष्ट्रीय टीम में, जिसके साथ पूरे देश की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है, वही खिलाड़ी खेलें, जिन्हें पैसे की भूख नहीं हो। जब तक ऐसा नहीं होगा, भारतीय क्रिकेट का बुरा दौर खत्म नहीं होगा।