हरिद्वार। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण होने के ऐतिहासिक अवसर पर सनातन धर्म की परंपरा के संवाहक जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरि ने स्वयंसेवकों को शुभकामनाएं प्रेषित की हैं।
स्वामी गिरी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के शताब्दी वर्ष पर अपनी मंगलकामना संदेश में कहा कि भारतभूमि का इतिहास केवल तिथियों और घटनाओं का क्रम नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति के अमर स्पंदनों का प्रवाह है। इस प्रवाह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उदय उस दिव्य धारा का प्रतीक है, जिसने पिछले सौ वर्षों में भारत की आत्मा को जाग्रत किया, समाज को संस्कारित किया और राष्ट्र की चेतना को एकात्मता की ओर अग्रसर किया।
जूनापीठाधीश्वर गिरि ने कहा कि यह शताब्दी वर्ष केवल किसी संगठन की यात्रा ही नहीं बल्कि राष्ट्रधर्म की अखंड गाथा है। यह यात्रा दिव्य संस्कारों की अविच्छिन्न अनुपम उदात्त एक अलौकिक सांस्कृतिक आध्यात्मिक अखंड धारा है,जिसने व्यक्ति-निर्माण को राष्ट्र-निर्माण का मूल मंत्र बनाया। संगठन की अजेय शक्ति; जिसने विविधताओं और विभिन्नताओं को एकात्मता में परिवर्तित कर सशक्त समर्थ भारत के स्वप्न को साकार किया। कल्याणकारी सेवा का संकल्प; जिसने विपत्ति, आपदा और महामारी की हर घड़ी में करुणा और सर्वतोभावेन समर्पण से समाज को अपना सर्वस्व न्योछावर किया।
उन्होंने कहा संघ की स्थापना के समय भारत दिग्भ्रमित और परतंत्रता के अंधकार में डूबा था। ऐसे समय में परम पूज्य डॉ. हेडगेवार जी ने यह दिखाया कि यदि प्रत्येक हृदय में राष्ट्रभक्ति की ज्योति प्रज्वलित हो, तो स्वराज्य का सूर्य उदित होना निश्चित है। वही ज्योति आज भी शाखाओं में, स्वयंसेवकों के जीवन में और राष्ट्र की चेतना में प्रकाशित है। भौतिकता की अंधी दौड़ के समय संघ का “एकात्म मानव दर्शन” संपूर्ण विश्व के लिए पथप्रदर्शक है।
उन्होंने कहा वेद का अमर मंत्र – “संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्” संघ की प्रत्यक्ष साधना का स्वर है। यह शताब्दी पर्व हमें पुनः स्मरण कराता है कि जब हम सब एक साथ चलें, एक साथ सोचें और एक साथ संकल्प लें, तो भारतभूमि का स्वर्णिम भविष्य निश्चित रूप से साकार होगा।