हर्ष वी पंत: हकीकत यह है कि भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय संबंध इतने मजबूत हो चुके हैं कि कोई भी अमेरिकी राष्ट्रपति अकेले दम पर इन संबंधों की नींव नहीं हिला सकता। यह एक आत्मविश्वासी भारत के उदय का भी द्योतक है। अगर ओबामा को राष्ट्रपति बनने के बाद भारत के संदर्भ में अपनी विदेश नीति बदलनी पड़ी थी तो डोनाल्ड ट्रंप के पास भी ओबामा की विरासत पर चलने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं होगा। राष्ट्रपति चुनाव में हिलेरी क्लिंटन पर डोनाल्ड ट्रंप की सनसनीखेज जीत संभवत: अमेरिकी राजनीति में हुआ सबसे बड़ा उलटफेर है। इस साल अब तक ब्रेक्जिट यानी एक जनमत संग्रह में ब्रिटेन का यूरोपीय संघ से बाहर निकलने का फैसला सबसे बड़ी खबर बना हुआ था, लेकिन ट्रंप की जीत ने इसे भी पीछे छोड़ दिया है। डोनाल्ड ट्रंप एक ऐसे शख्स हैं,
जिनकी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं है। वह किसी पद के लिए निर्वाचित नहीं हुए, लेकिन एक झटके में उन्होंने अमेरिकी राजनीति का परिदृश्य ही बदल दिया। वोटिंग के बाद भी सभी चुनाव विश्लेषक हिलेरी क्लिंटन की आसान जीत की भविष्यवाणी कर रहे थे। सभी विश्लेषक गलत साबित हुए। डोनाल्ड ट्रंप ने एक के बाद एक स्विंग स्टेट (परिणाम के लिहाज से महत्वपूर्ण राज्य) में चौंकाने वाली जीत हासिल कर बाजी पलट दी। कहना न होगा कि बाजार भी चीजों को सही तरह भांप नहीं सके। जैसे ही अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों से यह संकेत मिला कि डोनाल्ड ट्रंप की जीत की संभावना बढ़ती जा रही है, शेयर बाजार लड़खड़ाने लगे। इस क्षेत्र के ज्यादातर बड़े बाजार गिरावट का सामना कर रहे हैं, क्योंकि पैसा सुरक्षित शेयरों, सोने और येन जैसी मुद्राओं की तरफ जा रहा है। कारोबारियों ने हिलेरी क्लिंटन की आसान जीत की उम्मीद की थी। इस लिहाज से ट्रंप और हिलेरी के बीच नजदीकी मुकाबले की स्थिति भी शेयर बाजारों को अस्थिर कर सकती थी। भारत और भारतीय मूल के अमेरिकियों ने अमेरिकी चुनावों में नया महत्व हासिल कर लिया था।
ट्रंप के रूप में पहली बार किसी अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार ने कश्मीरी पंडितों और बांग्लादेश के आतंक पीड़ित हिंदुओं के लिए बने रिपब्लिकन हिंदू गठबंधन द्वारा आयोजित किसी भारतीय-अमेरिकी कार्यक्रम में भाग लिया। उन्होंने भारत को महत्वपूर्ण सामरिक सहयोगी बताया और यह वादा किया कि राष्ट्रपति बनने पर भारत और अमेरिका सबसे अच्छे दोस्त बन जायेंगे तथा उनका साथ मिलकर शानदार भविष्य होगा। भारत को तेज विकास की राह पर ले जाने के लिए शुरू किये गये आर्थिक सुधारों और नौकरशाही में सुधार की पहल के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सराहना करते हुए ट्रंप ने खुद को हिंदुत्व और भारत का बड़ा प्रशंसक बताया। इतना ही नहीं, उन्होंने विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत के महत्व को सराहा और इसे अमेरिका का स्वाभाविक सहयोगी बताया। ट्रंप ने भारत में आम चुनावों के दौरान लोकप्रिय हुए नारे की तर्ज पर अबकी बार, ट्रंप सरकार का नारा भी लगाया। भारत के संदर्भ में ट्रंप के ये विचार काफी कुछ 2007 में उनकी एक टिप्पणी से निकले हैं, जिसमें उन्होंने भारत व चीन के अमेरिकी अर्थव्यवस्था से आगे निकल जाने पर चिंता जतायी थी।
एक व्यवसायी के रूप में भी ट्रंप भारतीय प्रॉपर्टी बाजार में अपने पैर जमाने की कोशिश करते रहे हैं। वर्ष 2014 में एक स्थानीय भारतीय प्रॉपर्टी डेवलपर के साथ उन्होंने मुंबई में ट्रंप टॉवर की शुरूआत की थी। वैसे दुनिया के संदर्भ में ट्रंप के कुछ अन्य विचार भारत और भारतीय अमेरिकियों के लिए परेशानी भरे हैं। ट्रंप ने मेक्सिको से अवैध आव्रजन को रोकने के अपने इरादे को चुनाव अभियान का केंद्र-बिंदु बनाया। इसके लिए उन्होंने सरहद पर दीवार बनाने और दूसरे प्रशासनिक उपाय करने की बात कही है। अमेरिका के सामने नई सच्चाई यह है कि ज्यादातर क्षेत्रों में चीन और भारत से गये लोगों ने मेक्सिको से आने वाले लोगों को पीछे छोड़ दिया है।
भारत में एच-वन बी और अन्य कुशल श्रमिकों से संबंधित वीजा के लिए आवेदन शुल्क में बढ़ोतरी करने के अमेरिका के फैसले ने पहले से ही युवाओं को चिंतित कर रखा है। वीसा शुल्क में इस बढ़ोतरी के अमेरिकी कानून निर्माताओं के फैसले पर भारतीय उद्योग जगत ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। पाकिस्तान जैसे मुल्क और इस्लामिक कट्टरपंथियों के खिलाफ ट्रंप का सख्त रवैया भारत में कुछ लोगों को आकर्षित कर सकता है, लेकिन जिस देश में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी रहती हो, वहां ट्रंप के इस तरह के बयान चिंता भी पैदा करेंगे। भले ही यह व्यापक धारणा हो कि भारतीय-अमेरिकी समुदाय में ट्रंप को अच्छा-खासा समर्थन मिला, लेकिन हाल का एक सर्वे बताता है कि 67 प्रतिशत से अधिक भारतीय-अमेरिकियों ने वास्तव में डेमोक्रेटिक प्रत्याशी हिलेरी क्लिंटन का साथ दिया है। प्राइमरी चुनाव में केवल सात प्रतिशत ने ट्रंप के पक्ष में मतदान किया।
एक सर्वेक्षण ने यह भी बताया कि 79 प्रतिशत भारतीय-अमेरिकियों की न्यूयॉर्क के अरबपति कारोबारी ट्रंप के संदर्भ में सकारात्मक राय नहीं रही। ट्रंप के महिला-विरोधी टेप्स और एक हद तक कुछ नस्लवादी विचारों के कारण ही एक अमेरिकी-भारतीय मासिक पत्रिका ‘इंडिया करेंट्स ने तीन दशक में पहली बार अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में किसी प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करने की अपील की। इस अपील के तहत पत्रिका ने अपने पाठकों से डेमोक्रेट प्रत्याशी हिलेरी के पक्ष में मतदान करने के लिए कहा था। हिलेरी क्लिंटन को भारत और भारतीय-अमेरिकी लोगों के लिए एक सुरक्षित दांव माना जा रहा था। भारत के साथ उनके पुराने संबंधों और ओबामा प्रशासन में विदेश मंत्री के रूप में अमेरिका के सामरिक समीकरणों में भारत को केंद्र-बिंदु में लाने की उनकी भूमिका के कारण ही अमेरिका में भारतीयों का एक बड़ा वर्ग उनका समर्थक रहा है। वैसे अमेरिका में राष्ट्रपति पद के इन चुनावों से भारत कुल मिलाकर बेपरवाह ही रहा।
पहले के चुनावों में यह सोच-विचार चलता रहता था कि अमुक प्रत्याशी के राष्ट्रपति बनने से भारत-अमेरिका के संबंधों का भविष्य क्या होगा, लेकिन इस बार ऐसे अनुमान ज्यादा नहीं लगाए गए। कुछ हद तक यह बताता है कि दोनों देशों के आपसी संबंध इतने मजबूत हो चुके हैं कि उनमें किसी खास प्रत्याशी के राष्ट्रपति बनने या ना बनने से कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला। यह सही है कि भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय संबंध इतने मजबूत हो चुके हैं कि कोई भी अमेरिकी राष्ट्रपति अकेले दम पर इन संबंधों की नींव नहीं हिला सकता। इन संबंधों की ढांचागत सच्चाई यह है कि दोनों देशों के रिश्ते मजबूत ही होने हैं, भले ही भारत और अमेरिका में शासन का नेतृत्व किसी के भी पास हो। यह एक आत्मविश्वासी भारत के उदय का भी द्योतक है। जो भी हो, ट्रंप न तो भारत के पक्ष में होंगे और न ही विरोध में। वह अमेरिका के पक्ष में होंगे। अगर ओबामा को राष्ट्रपति बनने के बाद भारत के संदर्भ में अपनी विदेश नीति बदलनी पड़ी थी तो डोनाल्ड ट्रंप के पास भी ओबामा की विरासत पर चलने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं होगा।