इसलिए रेटिंग बढ़ने को सरकार अपनी छवि में चार चांद लगाने के लिए भले इस्तेमाल करे, पर तमाम निवेशक देश तो हमसे कारोबार बढ़ा ही रहे हैं। जापान और चीन की हमारी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में मोटी रकम लगाने की तैयारी इसकी मिसाल हैं। अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी और इस्राइल को भी देर-सबेर हमारे यहां रक्षा प्रौद्योगिकी में मोटी रकम लगानी ही पड़ेगी। मूडीज द्वारा हमारी सुध लेने के पीछे ब्रिक्स की अपनी रेटिंग एजेंसी बनाने पर भारत का जोर देना भी बड़ा कारण है।
हमारी असली चुनौती घरेलू मोर्चा है। नोटबंदी और जीएसटी के कारण बेरोजगारी की दर बढ़कर 5.7 फीसदी पर है। किसान, दुकानदार, व्यापारी और लघु एवं मझोले उद्योगों का कारोबार एक तिहाई ही बचा है। कच्चे तेल का दाम 48 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 60 डॉलर हो चुका है। तैयार माल का व्यापार घाटा पिछले साल से 32.34 अरब डॉलर बढ़कर अप्रैल-अक्तूबर में 86.15 अरब डॉलर पर पहुंच चुका। अप्रैल-सितंबर के बीच सुस्त रहा औद्योगिक उत्पादन महज ढाई प्रतिशत बढ़ पाया। अक्तूबर में खुदरा महंगाई की दर भी 3.6 फीसदी तक चढ़ गई। डॉलर के मुकाबले रुपये का दाम 90 पैसे गिर चुका। अगला बजट सिर पर है, पर सरकारी राजस्व की वसूली डांवाडोल है।
अरुण जेटली राजकोषीय घाटे के बजट अनुमान से अधिक रहने का इशारा कर रहे हैं। आधा दर्जन राज्यों के बजट भी कर्ज माफी के कारण लड़खड़ा रहे हैं। इसलिए वे भी अतिरिक्त मदद के लिए केंद्र का मुंह जोह रहे हैं। जीएसटी से राजस्व बढ़ने का फायदा जब केंद्र सरकार के खजाने को होगा, तब तक 2019 का चुनाव आ जाएगा। रेटिंग बढ़ने से कॉरपोरेट को सस्ती दर पर विदेशी कर्ज मिलने के आसार हैं। उससे सरकारी बैंकों से कर्ज का उठान घटेगा, जिससे उनकी ब्याज की कमाई मारी जाएगी। ऊपर से उनकी डूबी रकम निकलनी और कठिन हो जाएगी।