इस बार खुश हो लेने में हर्ज इसलिए नहीं है कि आर्थिकी के लिए एक अच्छी खबर आई है। खुशखबरी यह है कि अब भारत में प्रति व्यक्ति आय बढ़ी है। यानी प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में इजाफा हुआ है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में बताया है कि निजी आय के साथ भारत में अब प्रति व्यक्ति आय भी बढ़ रही है और इसमें भारत अब एक सौ छब्बीसवें नंबर पर आ गया है। रिपोर्ट आने से पहले तक हम एक पायदान नीचे यानी एक सौ सत्ताइसवें स्थान पर थे। यह राहत की बात इसलिए भी लग सकती है कि हाल में विदेशी रेटिंग एजंसियों ने आर्थिकी के मामले में भारत की रेटिंग सुधारी है। अरसे बाद मूडीज ने यह कहते हुए भारत की रेटिंग में मामूली इजाफा किया कि आर्थिक और संस्थागत सुधार भारत की अर्थव्यवस्था के सही दिशा में जाने के संकेत दे रहे हैं। लेकिन साथ ही उसने अर्थव्यवस्था के सबसे जटिल पहलू- राजकोषीय कोषीय घाटे के बढ़ने की ओर भी इशारा किया।
आय बढ़ने की उत्साहवर्धक बात कहने वाली आइएमएफ की यह रिपोर्ट इस साल अक्तूबर महीने में खरीद क्षमता पर आधारित है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में प्रति व्यक्ति आय पिछले साल 6690 डॉलर थी जो इस बार 7170 डॉलर हो गई। यानी दस फीसद का इजाफा। इससे पहले क्रेडिट सुइस ने अमीरी के आंकड़े जारी करते हुए बताया था कि भारत में करोड़पतियों की तादाद दो लाख पैंतालीस हजार है। प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी के आंकड़े में इन करोड़पतियों की बढ़ी आमदनी का हिसाब कैसे दर्ज होता है? दुनिया में हमें अपनी गरीबी-अमीरी या कंगाली-खुशहाली की हैसियत विदेशी एजंसियों और वित्तीय संस्थानों के आंकड़ों से ही पता चलती है। पर असल में भारत की स्थिति क्या है, इस पर नजर डालें तो हकीकत का पता चलता है। अगले दो दशक में दुनिया की बड़ी आर्थिक ताकत बनने का दावा करने वाला भारत प्रति व्यक्ति आय के मामले में श्रीलंका से भी पीछे है। यही नहीं, जिस ब्रिक्स समुदाय (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) में हम अपने को सबसे वजनदार बताते रहे हैं, उसमें भी प्रति व्यक्ति आय के मामले में सबसे पीछे हैं। आइएमएफ की ताजा राय अर्थशास्त्र के लिहाज से तो सही लग सकती है, पर हकीकत इसके उलट है।
मोटे तौर पर प्रति व्यक्ति आय बढ़ने का सीधा मतलब यह होना चाहिए कि देश के हर नागरिक की आमदनी बढ़ी है और उस तक उसका हिस्सा और लाभ भी पहुंचे। आमदनी बढ़ने की इस कोरी आंकड़ेबाजी से यह गंभीर सवाल उठता है कि अगर प्रति व्यक्ति आय बढ़ रही है तो फिर देश की बड़ी आबादी क्यों आज भी बुनियादी जरूरतों-सुविधाओं से वंचित है! भोजन, शिक्षा और चिकित्सा की सुविधाएं आज भी चौपट हालत में हैं। मसलन, भारत टीबी की बीमारी से निपट पाने में नाकाम साबित हुआ है। चीन और श्रीलंका जैसे देशों के मुकाबले भारत में टीबी का बोझ दस गुना ज्यादा है। दुनिया में टीबी के कुल मरीजों में 24 फीसद भारत में हैं। डेंगू, जापानी बुखार और मलेरिया जैसी बीमारियां हर साल बड़ी संख्या में जान ले लेती हैं। जबकि श्रीलंका भारत की तुलना में बहुत छोटा-सा देश है, लेकिन उसने अपने यहां से डेंगू का खात्मा कर डाला। भले श्रीलंका या ऐसे दूसरे छोटे देश अमीरी के पैमाने पर न गिने जाएं, पर अपने नागरिकों के लिए उत्तम स्वास्थ्य उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है। ऐसे में भारत की प्रति व्यक्ति आय बढ़ने की बात खुश तो कर सकती है, पर लोगों को खुशहाल कैसे रखा जाएगा, यह सोचने वाली बात है।