जो सार्वजनिक जीवन में या किसी उच्च पद पर हैं, उनसे मर्यादित व्यवहार और मर्यादित भाषा की अपेक्षा कहीं ज्यादा होती है। लेकिन देखने में आता है कि राजनीतिक दलों के कुछ लोग अक्सर अपने बेतुके और शर्मसार कर देने वाले बयानों से सुर्खियों में रहते हैं। दूसरे दलों के लोगों पर अमर्यादित टिप्पणी को कम काबिले-एतराज नहीं माना जा सकता, लेकिन असम के प्रभावशाली भाजपा नेता और राज्य के स्वास्थ्य, वित्त और शिक्षा जैसे तीन अहम मंत्रालयों की कमान संभाले हेमंत बिस्व सरमा ने बुधवार को एक नितांत संवेदनहीन और आपत्तिजनक बयान दिया है। एक सार्वजनिक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, ‘कैंसर जैसी बीमारी और दुर्घटनाएं पूर्व जन्म में किए गए पापों का फल हैं।’ मंत्री यहीं नहीं रुके, उन्होंने इसमें यह भी जड़ा, ‘कैंसर होना ईश्वरीय न्याय है। कई बार अपने माता-पिता की गलतियों की सजा भी भुगतनी पड़ती है। कोई भी दैवीय न्याय से बच नहीं सकता।’ अगर मंत्री महोदय के तर्क को आगे बढ़ाया जाए तो उसका यही मतलब है कि दुनिया में जितने भी किस्म के रोग-शोक हैं, सब पूर्वजन्मों में किए गए कर्मों के फल-कुफल हैं। देश में जो भी बीमारी, बेरोजगारी, अशिक्षा, कुपोषण, अपराध हैं, उन सब की बाबतसरकार की कोई जवाबदेही नहीं है। क्योंकि सब कुछ भाग्य का लेखा-जोखा है और सब कुछ पहले से ही तय है। यानी लोग जिएं-मरें अपनी बला से, शासन को इससे कोई सरोकार नहीं।

विडंबना यह है कि भाजपा के किसी जिम्मेदार पदाधिकारी या असम के मुख्यमंत्री की ओर से न तो इस बयान की निंदा की गई है और न ही उपर्युक्त मंत्री के खिलाफ किसी कार्रवाई के ही संकेत हैं! इस तरह के घोर गैर-जिम्मेदाराना और निष्ठुरता-भरे बयान के और भी उदाहरण मिल जाएंगे। ज्यादा वक्त नहीं हुआ, जब उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने बलात्कार के मामलों पर कहा था, ‘लड़के हैं, गलतियां हो जाती हैं।’ अक्सर इस तरह के बयानों पर राजनीतिक दल यह कह कर बच निकलते हैं कि यह वक्ता का निजी विचार है या उनके बयानों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने सरमा के बयान पर ट्वीट कर कटाक्ष किया है, ‘कैंसर पापों का फल, ऐसा असम के स्वास्थ्य मंत्री कह रहे हैं। पार्टी बदल कर किसी व्यक्ति का ऐसा हाल हो जाता है।’ गौरतलब है कि सरमा पहले कांग्रेस में थे।

इससे अधिक चिंता की कोई बात नहीं हो सकती कि एक तरफ देश में कैंसर जैसी तकलीफदेह और जानलेवा बीमारी तेजी से बढ़ रही है। राष्ट्रीय कैंसर रोधी कार्यक्रम के मुताबिक देश में हर साल आठ-नौ लाख कैंसर मरीज बढ़ रहे हैं, जिनमें चार लाख की मौत हो जाती है। कैंसर एक ऐसा रोग है, जिसमें मरीज तिल-तिल कर मरने को मजबूर होता है और उसका इलाज भी बहुत महंगा है। शायद इसीलिए कैंसर को सबसे डरावना रोग माना जाता है। कहां तो कैंसर के रोगियों के प्रति अतिशय संवेदनशीलता बरतने की सलाह चिकित्सक देते हैं, और कहां एक मंत्री का उनके बारे में ऐसा बयान! कहां तो स्वास्थ्य-सेवा की उपलब्धता को एक सार्वभौमिक अधिकार बनाने की बात जब-तब उठती रही है, और कहां एक राज्य का स्वास्थ्यमंत्री ऐसी बात कहे, मानो मरीजों को उनके हाल पर छोड़ देना चाहिए, क्योंकि यह ईश्वरीय न्याय है! कितने अच्छे दिन आ गए हैं!

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