रोगों के जीवाणुओं पर बेअसर होते एंटीबॉयोटिक्स का उपाय ढूंढने के लिए रांची में 41 वां राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस माइक्रोकॉन- 2017 का आयोजन होने वाला है. इस सिलसिले में आज देशभर के मेडिकल कॉलेजों से आए माइक्रोबॉयोलॉजी के छात्र-छात्राओं के अलावा विशेषज्ञों ने अपने-अपने अनुभव को साझा किया . कल यानी गुरुवार को कॉन्फ्रेंस की विधिवत शुरुआत होगी.

एम्स में लेबोरेटरी विज्ञान के हेड डॉ. सरमन सिंह सहित कई मेडिकल कॉलेजों के विशेषज्ञ अगले पांच दिन स्वास्थ्य के क्षेत्र में माइक्रोबॉयोलॉजी की बढ़ती भूमिका और इससे जुड़े नये शोधों पर चर्चा करेंगे.

रिम्स के पूर्व निदेशक और इंडियन एसोसिएशन ऑफ मेडिकल माइक्रोबॉयोलॉजिस्ट के राष्ट्रीय सचिव डॉ. बी एल शेरवाल ने कहा कि पांच दिवसीय माइक्रोकॉन- 2017 बेहद अहम है, क्योंकि यहां उन विषयों पर चर्चा होगी, जिसपर पूरी दुनिया में चिंता व्यक्त की जा रही है.

रांची माइक्रोकॉन- 2017 इसलिए भी खास है, क्योंकि

– बिहार-झारखंड में पहली बार मेडिकल माइक्रोबॉयोलॉजिस्ट का सम्मेलन आयोजित हो रहा है
-10 विदेशी विशेषज्ञ और चिकित्सक सहित देशभर के ख्यातिप्राप्त विशेषज्ञ इसमें हिस्सा ले रहे हैं
– देशभर के मेडिकल कॉलेजों के माइक्रोबॉयोलॉजी के पीजी छात्र-छात्राएं यहां जानकारी साझा करेंगे
– एड्स -ट्रांसप्लांट के मरीजों में परजीवी की पहचान पर वर्कशॉप होगा
– मलेरिया में दवाओं के घटते प्रभाव पर चर्चा होगी
-दवाओं के दुरुपयोग और एंटीबॉयोटिक्स रेसिस्टेंट बैक्टेरिया पर चर्चा होगी
-टीबी के उन्मूलन में माइक्रॉबॉयोलॉजी की भूमिका और तैयारी पर चर्चा होगी
– हॉस्पिटल इंफेक्शन और फीवर की खास किस्म की पहचान पर भी मंथन होगा

विश्वभर में इस बात की चिंता है कि कई बैक्टेरिया और पारासाइट पर एंटीबॉयोटिक्स ने असर दिखाना बंद कर दिया है. ऐसी स्थिति में रोगियों का जान बचाना हर दिन मुश्किल होता जा रहा है. इस परिस्थिति में रांची के इस माइक्रोकॉन- 2017 से काफी उम्मीदें हैं.

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