अजय शर्मा
रांची। झारखंड पुलिस में खाता न बही, जो आइपीएस चाहे वही सही की कहावत चरितार्थ हो रही है। बिना प्रशिक्षण पूरा किये आइपीएस अधिकारी मनचाहे मनचाहे नवनियुक्त दारोगा को थानेदार बना रहे हैं। इसी झारखंड में बगैर सरकार की अनुमति के डीएसपी का कार्यक्षेत्र भी बदल दिया जा रहा है।
नियम यह है कि दारोगा के पद पर नियुक्ति के बाद प्रशिक्षण संस्थानों की प्रशिक्षण अवधि पूरा करनेवालों को फील्ड में अलग-अलग थानों में एक साल प्रशिक्षण पूरा करना होगा। झारखंड में इस नियम का भी पालन नहीं हो रहा है। दुमका के एसपी ने प्रशिक्षण के लिए भेजे गये दारोगा को थानेदार बनाना शुरू कर दिया है। प्रशिक्षु दारोगा नित्यानंद भोक्ता जो जरमुंडी में थे, उन्हें मसानजोर ओपी का प्रभारी बना दिया गया। मसानजोर कई मामलों में महत्वपूर्ण ओपी है। नवनियुक्त खुर्शीद आलम को गोपीकांदर और तेज प्रताप सिंह का तबादला मसलिया थाना में किया गया है। 30 अक्टूबर को दुमका एसपी के हस्ताक्षर से उनके ही कार्यालय से तबादला आदेश भी जारी हुआ है। जानकारी के मुताबिक कई और नवनियुक्त दारोगा को दूसरे जिलों के एसपी भी एक दो दिन में थानेदार बना सकते हैं।
आइपीएस भी सीधे नहीं बनते एसपी
आइपीएस अधिकारी भी सीधे जिला में एसपी नहीं बनते। जिस राज्य के लिए एलॉट होते हैं, वहां कम से कम छह माह थानेदार के रूप में काम करते हैं और न्यूनतम एक साल डीएसपी के पद पर रहते हैं। इसके बाद ही उन्हें जिला का एसपी बनाया जाता है। यही नियम नवनियुक्त दारोगा के लिए भी है। उन्हें भी एक साल तक प्रशिक्षण लेना पड़ता है, तब थानेदार बन सकते हैं। झारखंड में डीएसपी को भी पहले थानेदार के रूप में प्रशिक्षण लेना पड़ती है, तब वे डीएसपी के रूप में पदस्थापित किये जाते हैं। लेकिन झारखंड के कुछ आइपीएस नियम को दरकिनार कर नव पदस्थापित दारोगा को थानेदार बना रहे हैं।
बदल रहा है डीएसपी का कार्यक्षेत्र
कई जिलों के एसपी डीएसपी का कार्यक्षेत्र भी बदल रहे हैं। इसमें देवघर, हजारीबाग, जमशेदपुर के एसपी भी शामिल हैं। ये अधिकारी सरकार से अधिसूचित डीएसपी के अधिकार क्षेत्र को अपने मन से बदल दिये। सरकार से कोई अनुमति नहीं ली गयी।