राकेश सिंह
विशेष संवाददाता
झारखंड में सर्द मौसम के बीच राजनीतिक तापमान गरमाया हुआ है। इस गर्माहट की वजह से नित दिन नयी-नयी संभावनाएं जन्म ले रही हैं। इन नयी संभावनाओं के बीच पक्ष-विपक्ष की भावनाएं भी हिलोरें मार रही हैं। इन्हीं भावनाओं और संभावनाओं के बीच झारखंड का राजनीतिक पारा चढ़ा हुआ है। कोई जुबानी तीर चला रहा है, तो कोई ट्विटर का सहारा ले रहा है। कोई धमकी भरे अंदाज में पेश आ रहा है, तो कोई किसी की दुखती रग को छेड़ रहा है।
इस रस्साकशी के बीच झारखंड में एक बार फिर से इडी रेस है। इडी ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को बुलावा भेजा था। कई दिन बीत जाने के बाद अंतत: हेमंत सोरेन ने 17 तारीख का दिन चुना। इसके ठीक दो दिन पहले, यानी 15 तारीख को झारखंड स्थापना दिवस के दिन राज्य सरकार के एक कार्यक्रम में कल्पना सोरेन की उपस्थिति ने खूब सुर्खियां बटोरीं, जहां उन्होंने हेमंत सोरेन, शिबू सोरेन, मंत्रियों और सांसदों के साथ मंच साझा किया। यहां से कयासों ने जोर पकड़ना शुरू किया।
इन्हीं कयासों की वजह से नयी राजनीतिक संभावनाओं ने रफ्तार पकड़नी शुरू की। 15 तारीख की रात से ही मुख्यमंत्री आवास पर बैठकों का दौर शुरू हुआ। पहले झामुमो विधायकों संग सीएम की बैठक हुई। एक रणनीति निर्धारित की गयी। फिर आता है 16 तारीख का दिन। फिर से मुख्यमंत्री आवास पर बैठकों का दौर शुरू होता है। यहां यूपीए विधायकों संग उनकी बैठक होती है। रणनीति बनती है। ये सभी बैठकें 17 तारीख को ध्यान में रखकर की जाती हैं, क्योंकि इसी दिन इडी के समक्ष मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पेश होना था। इडी कार्यालय जाने से पहले मुख्यमंत्री ने 17 तारीख की सुबह 10 बजे एक प्रेस कांफ्रेंस रखा था। देश की हर बड़े-छोटे मीडिया संस्थान के संवाददाता वहां उपस्थित थे। प्रेस कांफ्रेंस से पहले 16 की रात को मीडिया में फिर से कयासों ने जोर पकड़ा। कोई कह रहा था कि क्या कल मुख्यमंत्री इस्तीफा देने वाले हैं। क्या कल ही हेमंत सोरेन अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी की घोषणा करने वाले हैं। क्या कल मुख्यमंत्री इडी कार्यालय जाने वाले हैं या फिर कोई नयी तारीख की मांग होगी।
लेकिन कयास तो कयास ही होते हैं। इससे वास्तविकता का कोई लेना-देना नहीं होता। मीडिया में हर उस बात की चर्चा होने लगी, जिसका न तो सिर था और न ही पैर। कुछ मीडिया हाउस ने तो राज्यपाल के समक्ष महागठबंधन विधायकों की परेड भी करवा देने की बात कह दी। खैर रात जैसे-तैसे गुजरी। सुबह होते ही प्रेस कांफ्रेंस शुरू होने का लोग इंतजार करने लगे। 17 की वह सुबह भी आयी। मुख्यमंत्री आवास पर मीडिया बंधुओं का भारी-भरकम जमावड़ा सुबह नौ बजे से ही जुट गया था। झारखंड के वैसे लोग, जिन्हें राजनीति में जरा भी इंटरेस्ट है, न्यूज चैनल और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से चिपक गये। 10 बजे से प्रेस कांफ्रेंस शुरू होना था। 10 से साढ़े 10 हो गया। साढ़े 10 से 11 बज गया। मीडिया में कयासों का दौर उफान मारने लगा। क्या होने वाला है। क्यों मुख्यमंत्री इतनी देर कर रहे हैं। क्या कुछ बड़ा होने वाला है। अरे लाइव रखो। कभी भी हेमंत सोरेन आ सकते हैं।
तय समय से एक घंटे 40 मिनट की देरी के बाद, करीब 11 बज कर 40 मिनट पर हेमंत सोरेन मीडिया के समक्ष उपस्थित हुए। 10 मिनट के इस प्रेस कांफ्रेंस में सीएम ने अपनी बातों को रखा। झारखंड के राज्यपाल से लेकर सोरेन परिवार के घर के विभीषण कहे जाने वाले रवि केजरीवाल तक के किरदारों पर सवाल उठाये। मुख्यमंत्री ने तीन पन्नों की एक चिट्ठी भी दिखायी और मीडिया में उसे बंटवाया भी। उस चिट्ठी में इडी के किरदार पर भी सवाल उठाये गये थे। कुछ बिंदुओं में अपनी बातों को भी रखा गया था।
लेकिन जब मुख्यमंत्री प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे, तब झारखंड की सियासत के चार किरदारों पर मेरी विशेष नजर पड़ी। ये हैं बेरमो के विधायक कुमार जयमंगल उर्फ अनुप सिंह, कैश कांड में फंसे जामताड़ा के विधायक डॉ इरफान अंसारी, कोलेबिरा के विधायक नमन विक्सल कोंगाड़ी और खिजरी विधायक राजेश कच्छप। अनुप सिंह वही शख्स हैं, जिन्होंने इरफान अंसारी, नमन विक्सल कोंगाड़ी और राजेश कच्छप पर जीरो एफआइआर किया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में चल रही महागठबंधन की सरकार गिराने के लिए इन तीनों विधायकों ने साजिश रची थी। ये बिके हुए हैं। ये तीनों विधायक दो हफ्ते से अधिक समय तक जेल में भी रहे और करीब एक सौ दिन बाद कोलकाता से रांची उनकी वापसी हुई है। कांग्रेस पार्टी ने उन्हें निलंबित भी कर दिया है। लेकिन ये तीनों विधायक हेमंत सोरेन के प्रेस कांफ्रेंस के दिन ठीक उनके पीछे खड़े थे। साथ में अनुप सिंह भी थे। अनुप सिंह और इरफान अंसारी के कंधे बीच-बीच में सट भी जाते थे, लेकिन उनकी नजरें एक-दूसरे को देखने से बच रही थीं। विक्सल कोंगाड़ी का भी वही हाल था। लेकिन सबके चेहरे लटके हुए थे। सीएम से वे सभी भावनात्मक रूप से जुड़े हुए थे।
फिलहाल इडी ने हेमंत सोरेन से अपनी पहले दिन की पूछताछ पूरी कर ली है। हेमंत सोरेन से करीब 9 घंटे तक पूछताछ चली। 17 तारीख की रात करीब नौ बजे मुख्यमंत्री की पत्नी कल्पना सोरेन भी इडी कार्यालय पहुंची थीं। वह हेमंत सोरेन को लेने वहां गयी थीं। लेकिन जैसे ही कल्पना सोरेन इडी कार्यालय पहुंचीं, कयासों का बाजार एक बार फिर गर्म हो गया। क्यों आयी हैं। क्या इडी ने बुलाया है। अगर इडी ने बुलाया है, तो यह बड़ी खबर है। नहीं-नहीं, रात को इडी बिना नोटिस के कैसे बुला सकता है। लेकिन असल सच्चाई यही थी कि कल्पना सोरेन अपने पति मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को लेने वहां पहुंची थीं। यह एक भावनात्मक क्षण था और एक पत्नी अपने पति के लिए वहां गयी थी। उसके बाद हेमंत सोरेन कल्पना सोरेन संग अपने सरकारी आवास पहुंचे। वहां पहले से ही कई विधायक और मंत्री उनका इंतजार कर रहे थे।
इस सर्द भरी रात में उनके समर्थक भी तन कर खड़े थे। हेमंत मुस्कुराते हुए इडी कार्यालय पहुंचे थे और मुस्कुराते हुए ही निकले। लेकिन उनकी मुस्कान बहुत कुछ कह रही थी। चेहरे और मुस्कान के समन्वय में अंतर था। हो भी क्यों नहीं, यह स्वाभाविक है कि कोई भी जांच एजेंसी अगर किसी को भी अपने रडार पर लेती है, तो उसके बॉडी लैंग्वेज में अंतर आ ही जाता है और वह बहुत कुछ कह देता है। शिकन तो चेहरे पर आ ही जाती है।
झारखंड में जो सियासी ड्रामा चल रहा है, उसमे कई किरदारों को इडी ने पहले ही अपने रडार पर ले लिया है। चाहे वह आइएएस अधिकारी पूजा सिंघल हों या चार्टर्ड एकाउंटेंट सुमन कुमार, चाहे वह हेमंत सोरेन के विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा हो या सत्ता की गलियारों में दलाल के नाम से मशहूर प्रेम प्रकाश या फिर व्यापारी अमित अग्रवाल। वहीं सोरेन परिवार के विभीषण रवि केजरीवाल ने भी इडी के समक्ष अपना डायलॉग बक दिया है। सत्ता पक्ष का कहना है कि यह कहां तक सही है कि रवि केजरीवाल के बयान पर इडी कार्रवाई करे। क्या इडी का अपना कुछ आधार नहीं है। आखिर इडी रवि केजरीवाल पर इतना आश्रित क्यों हो गया है। हेमंत सोरेन ने भी अपनी चिट्ठी में रवि केजरीवाल के किरदार के बारे में जिक्र किया है। उन्होंने इडी के रहस्योघाटन पर भी सवाल उठाया है कि एक हजार करोड़ रुपये के घोटाले के आरोप का आधार क्या है। पत्थर खनन से तो सरकार के राजस्व में 1000 रुपये तक का कंट्रिब्यूटिन नहीं मिलता। उन्होंने कार्यकतार्ओं के समक्ष यह भी कहा था कि क्या बालू और पत्थर से इतना राजस्व आता है, अगर है तो मैं केंद्र सरकार से यह आग्रह करता हूं कि कोयला, आयरन ओर और अन्य संपदा राज्य सरकार के अधीन कर दे और पत्थर तथा बालू केंद्र लेले।
जाहिर है, इडी की आगे की गतिविधियां भी झारखंड के राजनीतिक ड्रामे में तड़का लगाने को तैयार बैठी है। फिलहाल राजनीतिक ड्रामे का आगाज हो चुका है। शो हाउसफुल चल रहा है। इस ड्रामे में मोशन भी है, तो इमोशन भी है, एक्शन भी है, तो रिएक्शन भी है। कैश कांड भी है, तो जीरो एफआइआर भी है। हॉर्स ट्रेडिंग का आरोप भी है, तो कोल ट्रेडिंग भी। इसमें कोयला, पत्थर, बालू, कैश, पनडुब्बी से लेकर एके -47 तक सब अपनी-अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। वैसे इस राजनीतिक ड्रामे में सरयू राय और रघुवर दास का एक अलग ही एंगल चल रहा है, जो समय-समय पर फिलर्स के रूप में सामने आता है। फिलहाल झारखंड के इस सियासी ड्रामे में लीड एक्टरों की एंट्री हो चुकी है। साइड एक्टर तो पहले ही बवाल मचाये हुए हैं। पंकज मिश्रा तो रिम्स में इलाज के नाम पर बड़े-बड़े अधिकारियों से मोबाइल फोन पर बात करते पकड़ाए ही थे। इडी ने कुछ किरदारों को खुला भी छोड़ दिया है। वहीं 18 नवंबर को कार्यकतार्ओं को संबोधित करते हुए बकौल हेमंत सोरेन: इडी के समक्ष हमने यह सवाल भी दाग दिया है कि क्या 1000 करोड़ रुपये के खनन घोटाले का जो आरोप इडी लगा रही है, क्या वह मात्र दो साल में हुआ है। फिर हेमंत सोरेन कहते हैं कि इडी भी कहती है नहीं। फिर हेमंत कहते हैं तो जांच उधर क्यों नहीं जाती, मुझपर ही निशाना क्यों। हेमंत सोरेन के साथ यूपीए के कुछ विधायक भी उपस्थित थे और साथ में थे हजारों कार्यकर्ता। फिलहाल अभी इस सियासी ड्रामे में कई सस्पेंस बाकी हैं, जहां किसी की अभी नजर नहीं जा रही है। इसमें कई ऐसे किरदार हैं, जो अपने पत्ते खोलने को बेताब बैठे हैं। कुछ सत्ता पक्ष के हैं, तो कुछ विपक्ष के। कुछ चेहरे तो सत्ता के इर्द-गिर्द नजर आ रहे हैं, तो कुछ सत्ता में रहकर भी सत्ता के इर्द गिर्द जरा कम ही दिखाई दे रहे हैं। जो कम दिखाई दे रहे हैं, वहां नजर ले जाने की जरूरत है। क्या झारखंड की सियासत में कोई नया खेमा तैयार हो रहा है, या यूं कहें कि तैयार बैठा है, जो गर्म तवे का इंतजार कर रहा है। पटकथा लिखी जा चुकी है। मंच सज कर जैसे तैयार बैठा है।
झारखंड में एक लेटर बम भी है, जो राज्यपाल के पास है। जिसका सभी को इंतजार है। सियासतदानों से लेकर मीडिया और आम लोगों की भी नजरें उस चिट्ठी का दीदार करने को बेताब बैठी हैं। कब वह चिट्ठी खुलेगी और कब झारखंड की राजनीति में एटम बम फटेगा, यह देखने वाली बात है। मुख्यमंत्री भी राज्यपाल के इस एटम बम का इंतजार करते-करते हाइकोर्ट तक चले गये हैं। इस सियासी ड्रामे का क्लाइमेक्स क्या होगा, यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन राजनीति में संभावनाओं की कल्पना तो की ही जा सकती है।
झारखंड में जारी सियासी शो के विविध रंग : क्लाइमेक्स अभी बाकी है
हो चुकी है लीड एक्टरों की एंट्री, साइड एक्टर तो पहले से ही मचाये हैं धमाल | कुछ सीक्वेंस की पटकथा और मंच तैयार है, बस परदा उठने का है इंतजार
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