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    Home»विशेष»‘झारखंड के दिल’ में इंडी-एनडीए के बीच है असली मुकाबला
    विशेष

    ‘झारखंड के दिल’ में इंडी-एनडीए के बीच है असली मुकाबला

    shivam kumarBy shivam kumarNovember 9, 2024No Comments10 Mins Read
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    विशेष
    दक्षिणी छोटानागपुर के पांच जिलों की 15 सीटों पर होगा दलों का लिटमस टेस्ट
    पिछली बार झामुमो-कांग्रेस ने नौ सीटें जीत कर भेद दिया था भाजपा का किला
    सीधे मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में जुटे हैं एनोस एक्का और जयराम महतो

    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    झारखंड की सियासी खासियत यह है कि यहां का हरेक प्रमंडल अपने-आप में अलग राजनीतिक दृष्टिकोण समेटे हुए है, तो वहीं ये सभी एकजुट होकर एक मजबूत राजनीतिक इकाई का निर्माण करते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाये, तो झारखंड उस रेलगाड़ी की तरह है, जिसका हरेक डिब्बा अपने-आप में एक इकाई है, लेकिन जब ये डिब्बे एकजुट हो जाते हैं, तो एक रेलगाड़ी बना लेते हैं। झारखंड का दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल भी इसी तरह इस रेलगाड़ी का एक डिब्बा है, या यों कहें कि इस रेलगाड़ी का इंजन है। यह प्रमंडल राजनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि राजधानी रांची इसका एक जिला है। राजनीतिक और प्रशासनिक मुख्यालय होने के नाते रांची समेत पूरा दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल हमेशा सुर्खियों में रहता है। पांच जिलों की तीन लोकसभा और 15 विधानसभा सीटों वाले इस प्रमंडल की राजनीति कभी एकतरफा नहीं होती है। विधानसभा चुनाव के दृष्टिकोण से इस प्रमंडल को कभी भाजपा का गढ़ माना जाता था, लेकिन 2019 में झामुमो-कांग्रेस ने इस किले को भेद दिया था।

    प्रमंडल की 15 सीटों में से इन दोनों दलों ने मिल कर नौ सीटें जीत कर भाजपा को महज पांच सीटों पर रोक दिया था, जबकि एक सीट आजसू के खाते में गयी थी। हालांकि उस चुनाव में भाजपा ने जिन दो आदिवासी सीटों पर जीत हासिल की थी, वे इसी प्रमंडल में आती हैं। दक्षिणी छोटानागपुर झारखंड का सबसे शिक्षित और विकसित प्रमंडल माना जाता है, हालांकि यहां की 71 प्रतिशत आबादी आदिवासियों की है। इस प्रमंडल ने झारखंड बनने से पहले और बाद में कई अवसरों पर इलाके को नयी दिशा दी है और इस बार भी यहां राजनीति की नयी इबारत लिखे जाने की संभावना दिखाई दे रही है। क्या है प्रमंडल की 15 विधानसभा सीटों का राजनीतिक परिदृश्य और क्या हो सकते हैं यहां के चुनावी मुद्दे, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    झारखंड विधानसभा के पहले चरण के चुनाव में अब महज पांच दिन बाकी हैं। 13 नवंबर को होनेवाले मतदान के लिए चुनाव प्रचार 11 नवंबर को खत्म हो जायेगा। पहले चरण में दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल की 15 में से 13 सीटों पर मतदान होगा। मतदान की तारीख नजदीक आने के कारण यहां चुनाव प्रचार अभियान चरम पर है।

    दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल को राज्य की हृदयस्थली कहा जाता है, क्योंकि राज्य की राजधानी रांची इसी प्रमंडल में है। वैसे तो यह प्रमंडल हर दिन किसी नयी राजनीतिक गतिविधि का गवाह बनता है, लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग है, क्योंकि इस प्रमंडल ने जहां भाजपा को झटका दिया है, वहीं कांग्रेस को नयी ताकत दी है। दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल पांच जिलों, रांची, खूंटी, गुमला, लोहरदगा और सिमडेगा में फैला हुआ है। राजनीतिक दृष्टि से देखा जाये, तो इन पांच जिलों में लोकसभा की तीन और विधानसभा की 15 सीटें आती हैं।

    दो विधानसभा सीटें, रांची लोकसभा क्षेत्र का इचागढ़ और खूंटी लोकसभा क्षेत्र का खरसावां सरायकेला-खरसावां जिले में पड़ती हैं। इन तीन लोकसभा सीटों में रांची, गुमला और लोहरदगा शामिल हैं। इनमें से दो पर कांग्रेस का कब्जा है, जबकि रांची सीट भाजपा के पास है। कांग्रेस के कब्जेवाली संसदीय सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। जहां तक विधानसभा सीटों का सवाल है, तो 15 सीटों में पांच-पांच सीट कांग्रेस और भाजपा के पास, चार सीट झामुमो के पास और एक सीट आजसू के पास है। विधानसभा सीटों में 11 आदिवासियों के लिए और एक अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। अनारक्षित सीटों में रांची, सिल्ली और हटिया शामिल हैं।

    2019 के विधानसभा चुनाव में इस इलाके में एनडीए बिखर गया था, जिसका फायदा तब झामुमो-कांग्रेस और राजद गठबंधन ने उठाया और 15 में से नौ सीटों पर धमाकेदार जीत दर्ज की थी। इस बार एनडीए एकजुट है। आजसू पार्टी फिर से एनडीए में है। बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा का भाजपा में विलय हो गया है। जदयू और लोजपा (रामविलास) भी साथ है। दोनों गठबंधन फिलहाल बराबरी पर दिख रहे हैं। 19-20 का ही फर्क है। इसके बावजूद अगर किसी गठबंधन के पक्ष में माहौल बन गया, तो परिणाम बदल सकते हैं।

    इलाके की दो लोकसभा सीटें कांग्रेस के पास
    2024 के लोकसभा चुनाव के आंकड़ों को देखा जाये, तो इंडिया ब्लॉक को नुकसान होता नहीं दिख रहा है। इलाके की तीन में से दो लोकसभा सीटें, खूंटी और लोहरदगा कांग्रेस के पास हैं, जबकि रांची सीट भाजपा के पास। खूंटी से कांग्रेस के कालीचरण मुंडा और लोहरदगा से कांग्रेस के सुखदेव भगत ने जीत दर्ज की है। रांची से भाजपा के संजय सेठ सांसद हैं।

    रांची जिले में हैं सात विधानसभा सीटें
    जिलों के हिसाब से देखा जाये, तो रांची जिले में सात विधानसभा सीटें हैं। इनमें मांडर विधानसभा सीट लोहरदगा संसदीय क्षेत्र में और तमाड़ विधानसभा सीट खूंटी संसदीय क्षेत्र में पड़ती हैं। इन सात विधानसभा सीटों में से भाजपा के पास तीन (रांची, हटिया और कांके), कांग्रेस के पास दो (खिजरी और मांडर), झामुमो के पास एक (तमाड़) और आजसू के पास एक (सिल्ली) सीट है। इस बार के विधानसभा चुनाव की खास बात यह है कि कांके को छोड़ कर सभी सीटों पर पुराने प्रतिद्वंद्वी ही मैदान में हैं।

    सिमडेगा जिले में एनोस एक्का बना रहे त्रिकोण
    सिमडेगा जिले की सिमडेगा और कोलेबिरा सीट पर भी अभी कांग्रेस का ही कब्जा है। वहां इस बार भी सीटिंग विधायकों को ही मैदान में उतारा गया है। भाजपा ने भी पुराने प्रत्याशियों को ही टिकट दिया है। कहा जा रहा है कि इन दोनों सीटों पर मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच है, लेकिन पूर्व मंत्री एनोस एक्का त्रिकोण बनाते दिख रहे हैं। उनकी झारखंड पार्टी (एनोस) ने सिमडेगा से उनकी बेटी आइरीन एक्का और कोलेबिरा में बेटे विभव संदेश एक्का को उतार दिया है। दोनों ने त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति पैदा कर दी है। चुनाव के दौरान एनोस एक्का जेल से बाहर हैं। इससे सभी पार्टियों के अंदर बेचैनी दिख रही है। एनोस की इलाके में मजबूत पकड़ है। आय से अधिक संपत्ति मामले में सीबीआइ की विशेष अदालत ने उनको सात साल की सजा सुनायी है। वैसे सिमडेगा का समीकरण भी दिलचस्प है। जब भी गैर-इसाइ मतदाता एकजुट होते हैं, भाजपा चुनाव जीत जाती है। 2014 में भाजपा की विमला प्रधान चुनाव जीती थीं। हालांकि, कोलेबिरा में राज्य गठन के बाद से भाजपा चुनाव नहीं जीत सकी है।

    लोहरदगा-गुमला में भाजपा के पास खोने को कुछ नहीं
    लोहरदगा संसदीय क्षेत्र के तहत दो जिले आते हैं, लोहरदगा और गुमला। इन दोनों जिलों में चार विधानसभा सीटें हैं। इनमें से तीन (गुमला, सिसई और विशुनपुर) पर झामुमो का कब्जा है, जबकि एक (लोहरदगा) पर कांग्रेस का। इन दोनों जिलों में भाजपा के पास खोने के लिए कुछ नहीं है, लेकिन उसने अपने दो पूर्व सांसदों, सुदर्शन भगत और समीर उरांव को क्रमश: विशुनपुर और सिसई से उतार कर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है। लोहरदगा सीट पर आजसू की नीरू शांति भग्त कांग्रेस के सीटिंग विधायक डॉ रामेश्वर उरांव को चुनौती दे रही हैं।

    खूंटी जिले की दो सीटों पर भाजपा का लिटमस टेस्ट
    अब बात खूंटी की, जिसकी दो विधानसभा सीटों, खूंटी और तोरपा पर अभी भाजपा का कब्जा है। 2019 के विधानसभा चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित यही दो सीटें थीं, जिन पर भाजपा को कामयाबी मिली थी। इसलिए इस बार ये सीटें भाजपा के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण हैं। भाजपा ने अपने दोनों सीटिंग विधायकों पर भरोसा जताया है, जबकि झामुमो ने खूंटी से रामसूर्य मुंडा और तोरपा से सुदीप गुड़िया को उतारा है। खूंटी विधानसभा सीट पर पिछले 24 साल से भाजपा का कब्जा है, जबकि तोरपा सीट 2014 में झामुमो को पौलुस सुरीन के हाथों गंवाने के बाद 2019 में कोचे मुंडा ने दोबारा जीती थी।

    दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल का चुनावी इतिहास
    झारखंड राज्य गठन के बाद झारखंड में अब तक चार विधानसभा चुनाव हुए हैं। इनमें से तीन चुनावों में इस प्रमंडल की सबसे ज्यादा सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की है। इसलिए दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल को भाजपा का गढ़ कहा जाने लगा था। लेकिन 2019 में कांग्रेस और झामुमो ने इस गढ़ को भेद दिया था। इस प्रमंडल का राजनीतिक इतिहास बताता है कि 2005 के चुनाव में भाजपा को सात, 2009 में पांच और 2014 में आठ सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस को 2005 और 2009 में तीन-तीन सीटें मिलीं, लेकिन 2014 में एक भी सीट जीतने में उसे कामयाबी नहीं मिली थी। 2019 के विधानसभा चुनाव में यह पूरा खेल पलट गया और इस प्रमंडल में झामुमो-कांग्रेस के गठबंधन ने जोरदार वापसी की। उस बार भाजपा केवल पांच सीट ही जीत सकी, जबकि कांग्रेस ने पांच और झामुमो ने चार सीट जीत कर उसके गढ़ को ध्वस्त कर दिया था। आजसू पार्टी को भी एक सीट मिली थी। 2019 के बाद इस प्रमंडल की दो सीटों, लोहरदगा और कोलेबिरा में उप चुनाव हुए और दोनों बार ही कांग्रेस को सफलता मिली। 2019 के चुनाव में भाजपा ने राज्य की 28 आदिवासी सीटों में से जिन दो सीटों, खूंटी और तोरपा से जीत हासिल की थी, वे दोनों इसी प्रमंडल में हैं।

    प्रमंडल का जातीय समीकरण
    2011 की जनगणना के अनुसार दक्षिणी छोटानागपुर की आबादी 55 लाख से अधिक है। इनमें 72 फीसदी से अधिक आदिवासी हैं, जबकि छह फीसदी अल्पसंख्यक, पांच फीसदी अनुसूचित जाति और ओबीसी और बाकी 17 प्रतिशत सामान्य जाति के हैं। जातियों के राजनीतिक झुकाव को देखने से पता चलता है कि यहां कभी आदिवासी भी भाजपा के समर्थक हुआ करते थे, लेकिन 2014 के बाद हुए पत्थलगड़ी आंदोलन और बाद में तत्कालीन भाजपा सरकार के खिलाफ पैदा हुए आक्रोश ने आदिवासियों को भाजपा से अलग कर दिया। खूंटी, सिमडेगा, गुमला और लोहरदगा जिलों में भाजपा का जनाधार कम होता गया, जबकि झामुमो और कांग्रेस ने लगातार यहां अपनी पैठ बढ़ायी।

    पिछले पांच साल में सत्ता से बाहर रही भाजपा ने इलाके में खूब मेहनत की है और इस बार उसे भरोसा है कि वह परिणाम को अपने पक्ष में कर लेगी।

    2024 का परिदृश्य
    दक्षिण छोटानागपुर प्रमंडल की 15 सीटों पर फिलहाल स्थिति साफ नहीं है। चुनावी मुद्दे तो धीरे-धीरे आकार ले रहे हैं, लेकिन इन मुद्दों पर वोट कितना पड़ेगा, यह अब तक तय नहीं है। सत्तारूढ़ झामुमो-कांग्रेस-राजद का गठबंधन मजबूती से चुनाव मैदान में उतरने के लिए तैयार है और उसके पास पिछले पांच साल की उपलब्धियों का हिसाब भी है। हाल के दिनों में शुरू की गयीं योजनाओं ने चुनावी परिदृश्य को बहुत हद तक प्रभावित किया है। दूसरी तरफ भाजपा और आजसू को दोबारा एक हो जाने के बाद से राजनीतिक परिदृश्य रोचक हो गया है। भाजपा और आजसू ने 2019 में अलग होकर चुनाव लड़ा था, लेकिन इस बार दोनों की संयुक्त ताकत सत्तारूढ़ गठबंधन के सामने बड़ी चुनौती पेश करेगी। पिछले पांच साल में भाजपा ने जिस संकल्प और मजबूती से खुद को जनता के बीच रखने की कोशिश की है, उसका उसे सकारात्मक परिणाम मिलेगा। आजसू पार्टी की ग्रास रूट आधारित राजनीति का लाभ भी दोनों पार्टियों को जरूर मिलेगा।

    इन परिस्थितियों में यह तय है कि आसन्न विधानसभा चुनाव दक्षिण छोटानागपुर की 15 सीटों पर किसी भी दल के लिए आसान नहीं होगा। इन सीटों पर न केवल दलों और प्रत्याशियों का जनाधार तौला जायेगा, बल्कि पिछले पांच साल के दौरान हुए विकास के कामों पर भी लोगों की राय अहम होगी।

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