क्रांति के महानायकों के वंशजों को झेलनी पड़ रही जलालत
आश्चर्य: टिकैत उमरांव के कारण खटंगा में घर-घर पहुंचा पानी
वंशजों ने पानी टंकी के लिए जमीन दी, लेकिन इनके घर ही सप्लाई नहीं
जिनकी वजह से गांव चमका, उनका परिवार ही तंगहाली में
रांची। क्या कभीआपने सोचा है कि किसी शख्सीयत के चलते गांव मॉडल बन जाये। घर-घर में बिजली और पानी पहुंच जाये और उसी शख्स का घर इन सुविधाओं से महरूम रह जाये! निश्चित तौर पर आपका जवाब होगा, ना। लेकिन झारखंड में ऐसा हो रहा है। वह भीझारखंड का कोई साधारण परिवार या घर के साथ ऐसा नहीं हो रहा है, बल्कि जंग-ए-आजादी के महानायकों के वंशजों को यह जलालत झेलनी पड़ रही है। यह दुनिया का आठवां आश्चर्य ही है कि महानायक शहीद टिकैत उमरांव के गांव खटंगा में घर-घर नल से सोलर मशीन के जरिये पानी पहुंचाया जा रहा है, लेकिन शहीद के वंशजों के घर में पानी की सप्लाई का कनेक्शन नहीं दिया गया है। आज भीयह परिवार अपने सहारे पानी पी रहा है। वह भीतब, जब इस गांव की तकदीर और तसवीर इसी महानायक टिकैत उमरांव के कारण बदली है। हुआ यूं कि गांव में पानी टंकी बनाने के बाद घर-घर सप्लाई के लिए सोलर प्लेट लगायी गयी। इसी बीच मुख्यमंत्री का कार्यक्रम तय हो गया। आनन-फानन में मुख्यमंत्री से वाहवाही लूटने के लिए अधिकारियों ने कुछ घरों में नल से पानी की सप्लाई शुरू कर यह घोषणा कर दी कि हर घर में पानी पहुंच गया, लेकिन सच्चाई यह रही कि शहीद के वंशजों के घर में ही पानी का कनेक्शन देना अधिकारी भूल गये। पानी के लिए यह परिवार दौड़-दौड़ कर थक गया, अंतत: उन्होंने बोरिंग करवा कर खुद की व्यवस्था कर ली। यह इसलिए भीमायने रखता है कि पानी की टंकी और गांव में संसद भवन बनाने के लिए वंशजों ने ही 10 डिसमिल जमीन दान दी है। यह वही परिवार है, जिसने तत्कालीन डीसी उदय प्रताप सिंह के कार्यकाल में पांच पक्का मकान लेने से मना कर दिया था। परिवार का तर्क था कि सिर्फ शहीद के वंशज ही पक्के मकान में क्यों रहें, पूरा गांव को पक्का मकान मिले। अंतत: डीसी ने आकलन कर 85 परिवार को घर दिया। शहीद टिकैत उमरांव के वंशज भरत भूषण सिंह, प्रमोद सिंह, पप्पू सिंह कहते हैं कि दौड़-दौड़ कर थक गया, लेकिन पानी नहीं मिला।
जिनकी वजह से गांव को आदर्श बनाया जा रहा है, उनका परिवार ही उपेक्षा का दंश झेल रहा है। शहीद परिवारों का दर्द रविवार को बड़कागढ़ जगन्नाथपुर में छलका। यहां लाल प्रवीर नाथ शाहदेव के घर के सामने बरगद वृक्ष के नीचे झारखंड के तमाम आजादी के महानायकों के वंशज जुटे थे। कमोबेश सबकी एक ही पीड़ा थी कि सरकार वंशजों के परिवार पर भीनजरें इनायत करे।
तेलंगा खड़िया के तमाम वंशज घाघरा में, लेकिन मॉडल बन रहा मुरगू
दूसरी सबसे अचरजवाली बात यह सामने आयी कि महानायक तेलंगा खड़िया के तमाम वंशज घाघरा में रहते हैं, लेकिन कार्यक्रम और सरकारी सुविधाएं मुरगू में मिल रही हैं। घाघरा में बसे वंशज मूलभूत सुविधाओं को तरस रहे हैं। वहीं मुरगू को आदर्श ग्राम बन्कर सरकारी अधिकारी अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। यहां तमाम सुविधाएं हैं, जबकि तेलंगा खड़िया का एक भीवंशज इस गांव में नहीं रहता है। तेलंगा खड़िया के परपोते जोगिया खड़िया बताते हैं कि तेलंगा खड़िया का जन्म जरूर मुरगू में हुआ था, लेकिन उनकी शहादत के बाद ही सभीलोग सुरक्षाकी खातिर घाघरा में बस गये। घाघरा में ही लगभग बारह परिवार रहता है। इस गांव की आबादी तीन सौ से ज्याा है। आज शहीदों के नाम पर पूरा सरकारी आयोजन मुरगू में होता है। वंशजों को बुलाया तक नहीं जाता है। वंशजों ने घाघरा में ही प्रतिमा लगायी है, जहां उनको याद किया जाता है। कहते हैं कि पीने के पानी के लिए सालों भर जंग करनी पड़ती है। कुआं से पानी लाते हैं, लेकिन हल्की गर्मी पड़ते ही वह सूख जाता है। इसके बाद काफी दूर से पानी लाना पड़ता है।
अब अस्तित्व बचाने के लिए करनी पड़ रही है जंग
नीलांबर-पीतांबर के वंशज तेजू सिंह खेरवार भीपहुंचे थे। वह कहते हैं कि अब तो अस्तित्व बचाने के लिए जंग करनी पड़ रही है। गांव का विकास तो हुआ, लेकिन वंशजों को कुछ नहीं मिला। सरकार ने उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने की कोशिश तक नहीं की। आलम यह रहा कि मेडिकल की पढ़ाई के लिए फीस की डिमांड तत्कालीन मधु कोड़ा सरकार से की, लेकिन खूब भाग-दौड़ के बाद भीनतीजा सिफर रहा। आज रांची विश्वविद्यालय से पीजी के बाद भीनौकरी के लिए भटक रहा हूं। गुहार लगायी कि वंशज कमजोर हैं, इन्हें सहयोग और मदद की जरूरत है।
एक बार सरकार मदद कर दे, तो खुद खड़े हो जायेंगे। सवाल है कि जब झारखंड आंदोलनकारी को सरकार तमाम सुविधाएं दे रही हैं, तो झारखंड और देश की रक्षा की खातिर कुर्बानी देनेवाले क्रांतिकारियों के वंशजों को सुरक्षा क्यों नहीं दी जा रही।
गांव की सुध तो ले रहे, लेकिन वंशजों पर नजरें इनायत नहीं
अफसोस इस बात का नहीं है कि अंग्रेज बेरहम थे, उन्होंने अपने खिलाफ उठनेवाली हर आवाज को शांत कर दिया। अफसोस इस बात का है कि आज अपने भीमतलबी हो गये हैं । यहां तक कि सरकार गांव का सुध ले रही है, लेकिन इनके वंशजों पर नजरें इनायत नहीं कर रही है। गुमला में राजा मुंडल सिंह परगनैत थे। 84 गांव में इनकी हुकूमत थी, लेकिन इन्होंने अंग्रेजों को लगान देने से साफ इनकार कर दिया। इसी का नतीजा रहा कि अंग्रेजों ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया। बैठक में इनके वंशज महेंद्र सिंह, रामप्रताप और सावित्री देवी पहुंचे थे। इनका दर्द भीछलका। आज क्रांतिवीर मुंडल सिंह का परिवार गरीबी से जूझ रहा है। रामप्रताप पढ़े-लिखे होने के बावजूद बेरोजगार हैं। किसी तरह घर का गुजारा चलता है। कहते हैं कि महानायकों को सरकार सिर्फ समारोह के जरिये याद करती है, लेकिन इनके वंशजों की तरफ देखना तक नहीं चाहती है।
समारोह से क्या, भूख लगी है भोजन दो, घर नहीं है छत दो
बड़कागढ़ में जुटे शहीद के वंशजों ने दो टूक कहा कि समारोह में लाखों खर्च करने से क्या फायदा। आज जिस महानायक को याद करने के लिए लाखों खर्च किये जा रहे हैं, उनके वंशज पाई-पाई को मोहताज हैं। कहा कि आज हमें भूख लगी है, भोजन दो, घर नहीं है छत दो। सरकार एक बार सहारा बने, हम खुद खड़े हो जायेंगे, फिर कुछ नहीं मांगेंगे। लाल प्रवीर नाथ शाहदेव कहते हैं, सरकार शेर और बाघ के संरक्षण और संवर्द्धन के लिए लाखों रुपये खर्च कर रही है। जंगलों में खर्च किया जा रहा है, लेकिन हम तो असली शेर के बच्चे हैं। इनका संवर्द्धन और संरक्षण नहीं हुआ, तो खत्म हो जायेंगे। अस्तित्व मिट जायेगा। आजाद भारत में भीजब आजादी के महानायकों के वंशज भुखमरी की कगार पर पहुंच गये हैं, तो फिर इस आजादी के क्या मायने। शहीद के वंशज भीएक तरह की विशेष प्रजाति हैं। इन्हें बचाने के लिए भीसरकार को सोचना चाहिए।
महानायक के वंशजों को रास नहीं आती राजनीति
महानायक के वंशजों को राजनीति रास नहीं आती है। बैठक में एक बात उभरकर सामने आयी कि एक बार एक नेता ने शहीद टिकैत उमरांव के वंशज प्रमोद सिंह को राजनीति में आने का आॅफर दिया। उन्होंने साफ इनकार कर दिया। कहा कि शहीद के वंशजों ने संकल्प लिया है कि न तो किसी पार्टी में जायेंगे और न ही राजनीति में कदम रखेंगे। उनके लिए हर दल और हर पार्टी एक जैसी है। बैठक में कमोबेश सबने इस बात को दोहराया कि राजनीति में कदम नहीं रखेंगे। किसी पार्टी में शामिल नहीं होंगे। बस सबने एक सुर से जरूर कहा कि हम मर रहे हैं, हमें बचाइये, वरना भविष्य में वंशज विलुप्त हो जायेंगे। सरकारी समारोह की शोभा बढ़ाने के लिए भीढ़ंूढेÞ नहीं मिलेंगे।