योद्धा तैयार, महायुद्ध का बिगुल फूंक गया साल 2018
भाजपा को सीएनटी, तो सुदेश और हेमंत को उप चुनाव ने दिया झटका
जाते–जाते झाविमो और कांग्रेस को लाभ पहुंचा गया साल 2018
आज के विशेष में हम बात करेंगे गुजरते हुए साल 2018 में राजनीतिक हलचलों की। इस साल ने झारखंड की राजनीति कई मुकामों से होकर गुजरी। खट्टे–मीठे हालातों से, टेढ़े–मेढ़े रास्तों से होती हुई झारखंड की राजनीतिक की गाड़ी हिचकोले लेकर आगे बढ़ती रही। सत्ता पक्ष और विपक्ष में झकझूमर तो आम बात है, लेकिन सबसे खास बात यह रही कि सत्ताधारी दल भाजपा और उसके सहयोगी आजसू के लिए यह साल झटका देनेवाला रहा, जबकि जाते–जाते हुए इसने विपक्षी झारखंड मुक्ति मोर्चा को भीकोलेबिरा उपचुनाव का करारा झटका दे दिया। इतना ही नहीं, झारखंड की राजनीति ने इस साल यह भीसाफ कर दिया कि व्यक्ति आधारित पार्टियों पर लोगों का भरोसा नहीं रह गया है। इस साल ने कांग्रेस और झाविमो के लिए अच्छा संदेश दिया, क्योंकि झाविमो जहां मजबूत होता दिखा, वहीं कांग्रेस ने कोलेबिरा में धमाकेदार जीत हासिल की।
झारखंड के राजनीतिक सफर में साल 2018 का लेखा–जोखा प्रस्तुत करती आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
झारखंड की राजनीति के लिए साल 2018 बेहद खास रहा। राजनीतिक झंझावातों के साथ कुछ ऐसे मुद्दे भीरहे, जिन्होंने झारखंड की राजनीति को गर्मा कर रखा। पूरे साल के दौरान विभिनमुद्दों को लेकर झारखंड की राजनीतिक खबरें देश भर में सुर्खियां बनती रहीं, जबकि बिहार की राजनीति भीकमोबेश झारखंड में ही केंद्रित रही। इसी दौरान राज्य के तीन विधायकों को अपनी विधायकी तक गंवानी पड़ गयी।
झारखंड में साल 2018 की बात करें, तो साल की शुरूआत ही धमाकेदार रही। छह जनवरी को राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को बहुचर्चित चारा घोटाले के एक मामले में सजा मिलने के बाद रांची के बिरसा मुंडा जेल में रखा गया। वहां स्वास्थ्य में गिरावट के कारण बाद में उन्हें रिम्स में भर्ती करा दिया गया, जहां वह आज भीहैं। करीब पांच महीने तक जेल में रहने के बाद मई महीने में लालू ने अपने बेटे की शादी में हिस्सा लेने के लिए पैरोल पर रिहाई मांगी। उन्हें इलाज के लिए सशर्त जमानत मिली। मुंबई में इलाज कराने के बाद लालू ने सरेंडर कर दिया।
लालू के यहां रहने की वजह से बिहार की राजनीति भीथोड़ा बहुत झारखंड शिफ्ट हुई। लालू यादव की सेहत को लेकर भीपूरे साल राजनीति होती रही। विपक्षी दलों की ओर से सरकार पर लालू का सही इलाज नहीं कराने के आरोप लगते रहे। वहीं, मंत्री सरयू राय ने भीउनके सही इलाज को लेकर सवाल उठाये और मुख्य सचिव को पत्र लिखा।
साल की शुरूआत से ही राजधानी से सटे खूंटी जिले में पत्थलगड़ी की समस्या ने राज्य सरकार के माथे पर बल ला दिये। कई महीनों तक आंदोलन चलता रहा। रुक–रुक कर हो रहे इस आंदोलन को लेकर राज्य सरकार की मशीनरी और वहां के पत्थलगड़ी समर्थकों के बीच झड़प भीहुई। विपक्ष की ओर से इसे लेकर राजनीति भीजमकर हुई। बाद में कोचांग में सामूहिक दुष्कर्म की शर्मनाक घटना हुई, जिसका पूरे राज्य में जम कर विरोध हुआ।
इसके अलावा साल के पहले महीने में ही राज्य के कृषि मंत्री रणधीर सिंह भीविवादों में फंसे, जब उनका एक बयान वायरल हो गया। इसमें वह यह कहते हुए देखे–सुने गये कि उनकी शादी और दोस्ती जनता के साथ हुई है, भाजपा के साथ नहीं। इस बयान वाले वीडियो ने भाजपा के भीतर खूब बवंडर मचाया।
जनवरी महीने में ही गोमिया से झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक योगेंद्र महतो को कोयला चोरी के एक मामले में रामगढ़ की अदालत ने तीन महीने कैद की सजा सुनायी। इसके बाद उनकी विधायकी भीचली गयी। बाद में वहां हुए उप चुनाव में उनकी पत्नी बबीता देवी ने एकतरफा मुकाबले में भाजपा को करारी शिकस्त दी। इसके बाद मार्च महीने में 23 तारीख को सिल्ली के झामुमो विधायक अमित महतो को भीअदालत से दो साल की सजा सुनायी गयी। उन पर सोनाहातू के तत्कालीन सीओ आलोक कुमार पर जानलेवा हमला करने का आरोप था। अदालत से सजा सुनाये जाने के बाद उनकी विधायकी भीचली गयी। सिल्ली में हुए उप चुनाव में उनकी पत्नी सीमा महतो ने आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो को हरा दिया।
इस साल मार्च महीने में ही राज्यसभा की दो सीटों के लिए चुनाव हुए। इस चुनाव में भाजपा और विपक्ष को एक–एक सीट मिलनी तय थी। भाजपा ने दोनों सीटों पर अपना प्रत्याशी उतार कर पिछले चुनाव को दोहराने की कोशिश की, लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली। भाजपा के समीर उरांव और कांग्रेस के धीरज प्रसाद साहू राज्यसभा के लिए चुने गये, जबकि भाजपा के दूसरे उम्मीदवार प्रदीप संथालिया को हार का सामना करना पड़ा।
इस साल पहली बार राज्य में नगर निकाय चुनाव दलगत आधार पर कराये गये। यह चुनाव अप्रैल महीने में कराये गये। इन चुनावों में भाजपा को भारी सफलता मिली। भाजपा उम्मीदवारों ने विजय पताका फहरायी। राज्य के अधिकतर नगर निकायों में भाजपा या उसके समर्थित उम्मीदवार जीते।
मई महीने में झारखंड विधानसभा की दो सीटों सिल्ली और गोमिया में उप चुनाव हुए। पूर्व विधायक अमित महतो की पत्नी सीमा महतो ने सिल्ली से और योगेंद्र महतो की पत्नी बबीता देवी ने गोमिया से जीत दर्ज की। सबसे बड़ी बात यह रही कि सिल्ली से सीमा महतो ने आजसू पार्टी के प्रमुख सुदेश महतो को हराया। गोमिया में भीआजसू उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे।
इस साल भूमि अधिग्रहण कानून भीराजनीति के केंद्र में रहा। जून महीने में राष्ट्रपति ने झारखंड सरकार के भूमि अधिग्रहण बिल में संशोधन संबंधी प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान कर दी। इससे संबंधित फाइल राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को •ोज दी गयी। राज्यपाल की सहमति के बाद इसे लागू कर दिया गया। लेकिन बिल का भारी विरोध शुरू हो गया, जो आज भीलगातार जारी है। यह मुद्दा आज भीविपक्ष की राजनीति के केंद्र में है।
जमीन का मुद्दा झारखंड में हमेशा से सबसे ऊपर रहा है। छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी) और संताल परगना काश्तकारी अधिनियम (एसपीटी एक्ट) में संशोधन का प्रयास राज्य सरकार ने किया, लेकिन इसमें वह नाकाम रही। इसके बाद सरकार ने भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल लाया, जिसका विपक्ष ने जमकर विरोध किया। पूरे साल इसे लेकर विपक्षी दलों का आंदोलन जारी रहा। बाद में सरकार ने सीएनटी–एसपीटी संशोधन विधेयक को वापस ले लिया।
साल की दूसरी छमाही, यानी जुलाई की शुरूआत में एक और विधायक को अपनी विधायकी से हाथ धोना पड़ा। कोलेबिरा से विधायक एनोस एक्का को अदालत ने पारा शिक्षक की हत्या का दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनायी। सजा मिलने के बाद उनकी विधानसभा की सदस्यता समाप्त हो गयी। बाद में साल के अंत में कोलेबिरा में उप चुनाव हुआ। वहां एनोस एक्का की पत्नी मेनन एक्का ने झारखंड पार्टी प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा। उन्हें झामुमो और राजद का समर्थन मिला। उनके मुकाबले कांग्रेस के नमन विक्सल कोंगाड़ी खड़े हुए। उन्हें बाबूलाल मरांडी के झाविमो का समर्थन मिला। कोंगाड़ी ने सभीपूर्वानुमानों को ध्वस्त करते हुए कोलेबिरा में अपनी विजय पताका फहरा दिया। भाजपा को केवल इस बात का संतोष रहा कि बिना किसी अतिरिक्त मेहनत के उसके उम्मीदवार बसंत सोरेंग को दूसरा स्थान मिल गया।
जुलाई महीने में केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा ने रामगढ़ मॉब लिंचिंग मामले में कोर्ट से दोषी करार दिये गये लोगों का जमानत मिलने के बाद माला पहना कर स्वागत किया। इसे लेकर भीपूरे देश में जम कर राजनीति हुई, हालांकि बाद में जयंत सिन्हा ने खेद भीजताया था।
सितंबर महीने में मुख्यमंत्री रघुवर दास चीन दौरे पर गये। वहां उन्होंने चीन के कृषि और विकास के काम को देखा। इस दौरान रांची में होने वाले एग्रीकल्चर समिट के लिए वहां के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया। सीएम के चीन दौरे को लेकर विपक्षी दलों ने सवाल भीउठाया।
नवंबर महीने में राज्य में पहली बार ग्लोबल एग्रीकल्चरल एंड फूड समिट का आयोजन कराया गया। दो दिनों तक चलने वाले इस समिट के दौरान फूड प्रोसेसिंग से जुड़े 50 इंडस्ट्रियल हाउस की साथ ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी भीकी गयी। वहीं विपक्षी दलों ने कहा कि एक तरफ राज्य में किसान आत्महत्या कर रहे हैं और सुखाड़ जैसी स्थिति है, वैसे में राज्य सरकार इस तरह का आयोजन करवा रही है।
साल का अंतिम दो महीना राजनीतिक रूप से बेहद उथल–पुथल भरा रहा। नवंबर महीने में राज्य स्थापना दिवस के मौके पर पारा शिक्षकों द्वारा सीएम को काला झंडा दिखाने और उन्हें रोकने को लेकर हुए लाठीचार्ज के कारण सरकार की काफी किरकिरी हुई। इस मामले में दो सौ से अधिक पारा शिक्षकों को जेल •ोज दिया गया। राज्य के पारा शिक्षक आज भीआंदोलन पर हैं और इस कारण राज्य के ग्रामीण इलाकों में स्कूलों पर ताला लटका हुआ है।
कुल मिला कर झारखंड की राजनीति ने साल 2018 में अलग छाप छोड़ी। भाजपा को केवल इस बात का संतोष रहा कि उसका जनाधार कम नहीं हुआ, तो उसकी सहयोगी आजसू को अपने एक विधायक से हाथ धोना पड़ा। पार्टी नेतृत्व से विभिनमुद्दों पर मतभिन्नता के कारण तमाड़ के आजसू विधायक विकास कुमार मुंडा ने विद्रोही तेवर अपना लिया। इसके बाद आजसू नेतृत्व ने उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया। झामुमो ने उप चुनावों में गोमिया और सिल्ली की अपनी सीटें सुरक्षित रखीं, वहीं कांग्रेस ने झापा से कोलेबिरा सीट छीन कर खुद को एक बार फिर स्थापित किया। झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी हालांकि सीधे तौर पर चुनावी राजनीति में नहीं दिखे, लेकिन पूरे साल उनकी सक्रियता ने पार्टी को निश्चित तौर पर धार दिया।