बहरागोड़ा में प्रतिद्वंद्वी वही, बस चोला बदल गयाबहरागोड़ा में प्रतिद्वंद्वी वही, बस चोला बदल गया
जिंदगी हर कदम एक नयी जंग है और झारखंड में 20 सीटों के लिए होनेवाला दूसरे चरण का चुनाव तो पाला बदलनेवाले छह दिग्गज नेताओं के लिए जंग के साथ-साथ लिटमस टेस्ट भी है। जमशेदपुर पूर्वी सीट पर रघुवर दास पांच बार जीत दर्ज कर चुके हैं, लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार उनके समक्ष अपनी ही कैबिनेट के एक सहयोगी से भी आमना-सामना है। सरयू राय चुनाव मैदान में उतरने के पहले तक उनकी कैबिनेट में मंत्री थे। सरयू यहां अपनी नाक की लड़ाई लड़ने उतरे हैं। इस सीट पर एक और कांग्रेस प्रत्याशी और एक्सएलआरआइ के प्रोफेसर गौरव वल्लभ मैदान में हैं, तो झाविमो प्रत्याशी अभय सिंह फिर ताल ठोक रहे हैं। रघुवर चूंकि इस सीट से पांच दफा चुनाव जीतकर विधायक बन चुके हैं, इसलिए उनका आत्मविश्वास से लबरेज रहना स्वाभाविक है, वहीं सरयू राय पहली बार निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। इस सीट पर स्ट्रांग एकेडमिक बैकग्राउंड के गौरव वल्लभ के समक्ष अपनी योग्यता और राजनीति में अपनी ताकत साबित करने की चुनौती है। विनम्र स्वभाव के गौरव वल्लभ ने कांग्रेस के राष्टÑीय प्रवक्ता के तौर पर तो अपने आपको स्थापित कर लिया है, पर बतौर उम्मीदवार उन्हें अपना दमखम दिखाना है।
बहरागोड़ा में कुणाल और घाटशिला में प्रदीप की होगी अग्निपरीक्षा
बहरागोड़ा सीट पर कुणाल षाडंÞगी के सामने अपनी ताकत दिखाने की चुनौती है, वहीं समीर मोहंती के लिए यह चुनाव नाक का सवाल है। मुकाबला इसलिए भी दिलचस्प है, क्योंकि यहां प्रतिद्वंद्वी वही हैं, केवल उन्होंने चोला बदल लिया है। बीते चुनाव में झामुमो के टिकट पर कुणाल षाडंÞगी यहां से जीते थे, अब वे भाजपा में आ चुके हैं। वहीं समीर मोहंती पिछली बार झाविमो प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े थे। इस चुनाव के बाद वह भाजपा में शामिल हुए थे। भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो वे झामुमो का सिपाही बनकर जंग के मैदान में हैं।
इधर घाटशिला सीट पर कांग्रेस के राज्यसभा सांसद रहे और अब आजसू के सिपाही बनकर मैदान में उतरे प्रदीप बलमुचू के लिए लिटमस टेस्ट है। यह चुनाव बहुत हद तक उनकी भविष्य की राजनीति का निर्णय कर देगा। बीते चुनाव में यहां से उनकी बेटी सिंड्रेला बलमुचू ने चुनाव लड़ा था और उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इस चुनाव में प्रदीप बलमुचू को अपना दमखम दिखाना ही होगा। इस सीट पर भाजपा ने सीटिंग विधायक लक्ष्मण टुडू का टिकट काटकर नक्सल प्रभावित क्षेत्र गुड़ाबांधा के लखन मार्डी को उम्मीदवार बनाया है। इस सीट के उम्मीदवारों में चाहे आजसू के टिकट पर उतरे प्रदीप बलमुचू हों या फिर झामुमो के रामदास सोरेन, ये सभी मूल रूप से इस क्षेत्र के निवासी नहीं हैं।मुसाबनी में बतौर शिक्षक कार्यरत काकोली मुखर्जी कहती हैं कि बीते कई चुनावों में यहां से जीते विधायकों ने जीत हासिल करने के बाद अपने क्षेत्र की जनता का हाल जानने के लिए बहुत रुचि नहीं ली। जीत हासिल करनेवाले विधायक को यहां रहकर जनता को समय देना चाहिए और उनकी समस्याएं जानकर उन्हें सुलझाने का प्रयास करना चाहिए। इस सीट पर झापीपा के सुप्रीमो सूर्य सिंह बेसरा भी चुनाव के मैदान में हैं।
तमाड़ सीट पर विकास मुंडा के लिए चुनौती हैं कुंदन और राजा पीटर
दूसरे चरण के चुनाव में 20 सीटों में से तमाड़ को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस सीट से आजसू के टिकट पर विकास सिंह मुंडा ने बीते चुनाव में जीत हासिल की थी। आजसू छोड़ने के बाद वह झामुमो के टिकट पर चुनाव के मैदान में हैं। यहां उनका मुकाबला राजा पीटर और नक्सली से नेता बने कुंदन पाहन से है। राजा पीटर पूर्व में इस सीट से जीत हासिल कर झारखंड सरकार में मंत्री रह चुके हैं। वे इस सीट पर विकास सिंह मुंडा के लिए कड़ी चुनौती पेश करेंगे। कुंदन पाहन भी इस सीट पर खुद को स्थापित करने के लिए जोर लगायेगा पर जेल से चुनाव लड़ने के कारण उसके लिए कांटेस्ट थोड़ टफ है। विकास सिंह मुंडा के साथ मुश्किल यह है कि आजसू छोड़ने के बाद पार्टी के कार्यकर्ता उनका साथ छोड़ चुके हैं, वहीं झामुमो के कार्यकर्ता पूरी तरह उनके साथ नहीं आ पाये हैं। इसके अलावा तमाड़ की जनता को एक बार फिर साधने की चुनौती उनके सामने है।
बीते लोकसभा चुनाव में सिंहभूम में गीता कोड़ा के हाथों पराजय का सामना कर चुके भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ इस बार चक्रधरपुर सीट से मैदान में हैं। यह झामुमो की परंपरागत सीट है और यहां उनके सामने दमखम दिखाने की चुनौती है। वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव मेें इस सीट से झामुमो के टिकट पर शशिभूषण सामड ने जीत हासिल की थी। उन्होंने भाजपा के नवमी उरांव को हराया था। वर्ष 2009 में इस सीट पर लक्ष्मण गिलुआ ने जीत हासिल की थी और वर्ष 2005 में झामुमो के सुखराम उरांव ने बाजी मारी थी। इस सीट पर यूं तो दस उम्मीदवार चुनाव के मैदान में हैं, पर मुख्य मुकाबला भाजपा और झामुमो के बीच में है। झामुमो ने यहां से सुखराम उरांव का टिकट दिया है और आजसू ने इस सीट पर रामलाल मुंडा को उतारा है। लोकसभा चुनाव हारने के बाद इस सीट से जीत हासिल करना लक्ष्मण गिलुआ के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। यही वजह है क्षेत्र मेें उन्होंने खुद को झोंक कर रख दिया है। जिस तरह लोहरदगा सीट पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव ने एड़ी-चोटी एक कर दिया था, कुछ उसी तर्ज पर लक्ष्मण गिलुआ यहां अपना पूरा दमखम लगाये हुए हैं। इस सीट पर रिजल्ट क्या होगा, यह भविष्य के गर्भ में है और राजनीति के पंडितों की निगाहें भी इस सीट पर लगी हुई है।
मांडर में खोयी जमीन हासिल करने की लड़ाई लड़ रहे बंधु और देवकुमार
मांडर सीट पर भाजपा ने सीटिंग विधायक गंगोत्री कुजूर का टिकट काटकर देवकुमार धान को उम्मीदवार बनाया है। वे मांडर सीट से एक बार विधायक रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ वक्त से मुख्यधारा की राजनीति में माकूल जगह नहीं बना पा रहे थे। इस बार वह भाजपा में शामिल हुए और पार्टी ने उम्मीदवार भी बनाया। जाहिर है कि इस सीट पर उनके सामने जनता का विश्वास जीतने के साथ भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के भरोसे पर खरा उतरने की भी चुनौती है, क्योंकि भाजपा ने सीटिंग विधायक गंगोत्री कुजूर का टिकट काटकर उन्हें प्रत्याशी
बनाया है। बीते चुनाव में भाजपा के टिकट पर गंगोत्री कुजूर ने सात हजार से अधिक वोटों से जीत दर्ज की थी। इससे पहले के दो चुनावों में बंधु तिर्की यहां से जीते थे। इस बार देवकुमार धान का मुकाबला झाविमो के टिकट पर चुनाव लड़ रहे बंधु तिर्की से है। बंधु पांच दिन पहले जेल से जमानत पर निकले हैं। वह कोशिश करेंगे कि उन्हें जनता की सहानुभूति मिले। देवकुमार धान कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आये हैं तो उनके सामने चुनौती पार्टी के कार्यकर्ताओं को अपने साथ लेने की है। आजसू के टिकट पर हेमलता उरांव के चुनाव के मैदान में होने से यहां मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। झाविमो के टिकट पर बंधु तिर्की के सामने वापसी करने की चुनौती है वहीं देवकुमार धान के लिए यह मुकाबला किसी निर्णायक लड़ाई से कम नहीं है। यही वजह है कि यहां दोनों ने खुद को झोंक दिया है। अब फैसला जनता के हाथ में है।
चुनाव में पाला बदलने वाले छह दिग्गज नेताओं का अंजाम तो जनता तय करेगी पर यह तो साफ है कि इस चुनाव में अपना दमखम दिखाने के लिए सभी ने खुद को क्षेत्र में झोंक दिया है।