झरिया सीट पर देवरानी और जेठानी के बीच मुकाबला
बाघमारा में ढूल्लू और जलेश्वर हैं आमने-सामने
बोकारो में बिरंची और श्वेता सिंह के बीच दिलचस्प लड़ाई
निरसा में शहादत की विरासत पर हो रही जंग
झारखंड विधानसभा चुनाव के चौथे चरण में कुल पंद्रह सीटों पर 16 दिसंबर को मतदान होगा। इनमें कोयलांचल की नौ सीटें भी हैं और इन नौ सीटों में से दो सीटें झरिया और बाघमारा पर सबकी निगाहें हैं। झरिया सीट पर जहां मुकाबला जेठानी और देवरानी के बीच है, वहीं बाघमारा में दो दबंग नेताओं, भाजपा के ढुल्लू महतो और गठबंधन के उम्मीदवार जलेश्वर महतो के बीच टक्कर है।
झरिया
झरिया सीट की लड़ाई दो गोतनियों के बीच है। यहां भाजपा ने विधायक संजीव सिंह की पत्नी रागिनी सिंह को टिकट दिया है वहीं उनसे मुकाबला करने के लिए कांग्रेस ने दिवंगत कांग्रेस नेता नीरज सिंह की पत्नी पूर्णिमा सिंह को उम्मीदवार बनाया है। झरिया सीट की राजनीति बाहुबल और बंदूक से संचालित होती है। इस सीट पर धनबाद की चर्चित सिंह मेंशन घराने का कब्जा रहा है। वक्त ने कुछ ऐसी करवटें बदलीं कि सिंह मेंशन एक नहीं रह सका। परिवार भौतिक तौर पर तो बंटा ही, राजनीतिक रूप से भी परिवार में दरारें पैदा हो गयीं। इसका असर बीते चुनाव में ही दिखा था। झरिया सीट पर संजीव सिंह भाजपा प्रत्याशी के रूप में उतरे, जबकि उनके चचेरे भाई नीरज सिंह कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में। चुनाव संजीव सिंह ने जीता था। 2014 से 2019 के बीच लोगों ने इस पारिवारिक-राजनीतिक रंजिश को खूनी लड़ाई में भी तब्दील होते देखा। नीरज सिंह की हत्या हो गयी और इसका आरोप किसी और पर नहीं, उनके चचेरे भाई और विधायक संजीव सिंह पर लगा। नीरज अब दुनिया में नहीं हैं और संजीव जेल में, लेकिन झरिया सीट पर एक बार फिर पारिवारिक युद्ध ठना है। नीरज सिंह की पत्नी पूर्णिमा जेठानी हैं और संजीव सिंह की पत्नी रागिनी देवरानी। दोनों तरफ से आरोप-प्रत्यारोप तो हैं ही, बाहु बल की जोर आजमाईश भी है। झरिया में अपने पति की उपलब्धियां गिनाते हुए रागिनी सिंह कहती हैं कि सिंह मेंशन के सदस्य साल में 365 दिन क्षेत्र के लोगों की सेवा में जुटे रहते हैं, विधायक के जेल में रहने के बावजूद हमने झरिया में नया डिग्री कॉलेज स्वीकृत कराया। जलापूर्ति के लिए योजना मंजूर करायी। कांग्रेस प्रत्याशी पूर्णिमा नीरज सिंह इन दावों को नकारती हैं। उनका कहना है कि विरोधियों की हत्या और रंगदारी ही झरिया विधायक की उपलब्धि है। पिछले पंद्रह वर्षों से मां-बेटा विधायक रहे, पर आरएसपी कॉलेज झरिया से बाहर चला गया और हाईस्कूल बंद हो गया। जनता इस बार बदलाव की कहानी लिखेगी।
बाघमारा
अब बाघमारा की चर्चा, जहां मुकाबला भाजपा प्रत्याशी ढुल्लू महतो और महागठबंधन प्रत्याशी जलेश्वर महतो के बीच है। वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में भी भिड़ंत इन्हीं दोनों के बीच हुई थी, जिसमें ढुल्लू महतो के हिस्से विजयश्री आयी थी। दबंग विधायक के रूप में क्षेत्र में ख्यात 44 साल के ढुल्लू इंटर पास हैं और घोषित तौर पर 3.21 करोड़ की संपत्ति के मालिक। वहीं उनके मुकाबले में 70 साल के जलेश्वर 2.71 करोड़ की घोषित संपत्ति के मालिक हैं। दबंगई में जलेश्वर भी किसी से कम नहीं हैं और यही कारण है कि इस सीट पर कांटे की टक्कर है। दोनों में बाजी किसके हाथ लगती है, वह इससे भी तय होगा कि किसके बाहुबल का असर ज्यादा है।
निरसा
निरसा सीट पर मुकाबला भाजपा की अपर्णा सेनगुप्ता और मासस के टिकट पर चुनाव के मैदान में उतरे अरूप चटर्जी के बीच है। अरूप चटर्जी अपने पिता की राजनीतिक विरासत को बचाने और बढ़ाने के लिए चुनाव के मैदान में हैं। अपने पिता और ख्यात मजदूर नेता गुरुदास चटर्जी की हत्या के बाद उन्होंने राजनीति के मैदान में कदम रखा और तब से अब तक केवल एक बार उन्होंने वर्ष 2005 में ही हार का सामना करना पड़ा। इस विधानसभा क्षेत्र में मजदूर नेताओं का बोलबाला रहा है। वर्ष 1951 में कांग्रेस के टिकट पर मजदूर नेता रामनारायण शर्मा यहां से पहली बार चुनाव जीते। लगतार पांच बार उन्होंने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। वर्ष 1990 के चुनाव में मजदूर नेता गुरुदास चटर्जी ने यहां से जीत हासिल की। 1990 के बाद 1995 और 2000 के चुनाव में भी उन्हें जीत मिली। वर्ष 2000 में उनकी हत्या के बाद उनके बेटे अरूप चटर्जी ने चुनाव उपचुनाव लड़ा और उन्हें जीत मिली। हालांकि वर्ष 2005 में वे यहां से चुनाव हार गये।
वर्ष 2001 में फारवर्ड ब्लॉक के नेता सुशांतो सेनगुप्ता की हत्या के बाद वर्ष 2005 में अपर्णा सेन गुप्ता ने यहां से जीत हासिल की थी। वर्ष 2009 और 2014 के चुनाव में जनता ने अरूप पर भरोसा जताया और वे विधानसभा पहुंचने में सफल रहे।
बोकारो
बोकारो सीट पर भाजपा ने जहां वर्तमान विधायक बिरंची नारायण पर भरोसा जताया है, वहीं कांग्रेस ने समरेश सिंह की पुत्रवधू श्वेता सिंह का चुनाव के मैदान में उतारा है। यहां झाविमो के टिकट पर प्रकाश कुमार चुनाव लड़ रहे हैं। स्टील सिटी के नाम से मशहूर बोकारो में वर्ष 2005 में कांग्रेस के टिकट पर इजरायल अंसारी लड़े थे और चुनाव जीता था। वहीं वर्ष 2009 में समरेश सिंह यहां से चुनाव जीतने में सफल रहे थे। वर्ष 2014 में समरेश सिंह को हराने के बाद बिरंची नारायण को यहां जीत मिली थी। इस बार फिर बिरंची चुनाव के मैदान में हैं और उनके समर्थन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बोकारो सेक्टर फाइव मैदान में चुनावी जनसभा को संबोधित किया है। वहीं बिरंची से मुकाबले के लिए चुनाव के मैदान में उतरी समरेश सिंह की पुत्रवधू श्वेता सिंह राजनीति में नयी होने के बावजूद मुद्दों की समझ रखती हैं और उनकी राजनीति बहुत हद तक अपने ससुर समरेश सिंह की राजनीति से मैच करती है। इस सीट पर भी दिलचस्प
मुकाबला है।