वर्ष 2011 के अप्रैल महीने में जब रालेगांव सिद्धी के गांधीवादी अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन किया था, तब पूरा देश उनके साथ खड़ा हो गया था। देश में सत्ता परिवर्तन को उस आंदोलन का परिणाम बताया गया था, लेकिन पिछले चार दिन के दौरान चार घटनाओं ने बड़ा सवाल देश के सामने रख दिया है कि क्या दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में भ्रष्टाचार अपनी जड़ें इतने गहरे जमा चुका है। इन चार घटनाओं ने नौकरशाही, यानी कार्यपालिका के भीतर के सड़ चुके माहौल को ही बेपर्दा कर दिया है। एक आइएफएस अधिकारी लॉकडाउन के दौरान चार्टर्ड विमान पर तीन करोड़ रुपये खर्च करता है और उसके बेटे के खाते में 20 करोड़ रुपये जमा हैं। इसी तरह एक पूर्व आइएएस अधिकारी के पास से 53 करोड़ की संपत्ति बरामद की जाती है। इतना ही नहीं, एक कोयला चोर बताता है कि वह तीन राज्यों के नेताओं को हर महीने दो सौ करोड़ रुपये पहुंचाता है। फिर तमिलनाडु में एक उद्योग समूह के पास से 450 करोड़ रुपये की अघोषित संपत्ति का पता चलता है। ये खबरें आगे बढ़ते भारत की वो स्याह तस्वीर है, जिसके कारण दुनिया भर में इसकी पहचान एक भ्रष्ट देश और समाज के रूप में बन गयी है। आखिर ये नौकरशाह इतने बेशर्म और निडर कैसे हो जाते हैं कि गलत करने में जरा भी नहीं हिचकते। इस सवाल का जवाब तलाशती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
भारतीय आयकर विभाग का सूत्र वाक्य है ‘कोष मूलो दंड’, अर्थात राज्य चलाने के लिए राजस्व सबसे जरूरी चीज है। भारतीय संविधान ने अपने नागरिकों को जो मौलिक अधिकार दिया है, उसमें संपत्ति का अधिकार भी शामिल है। लेकिन पिछले चार दिनों की चार सूचनाओं ने 130 करोड़ लोगों के इस मुल्क को शर्मनाक स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। वैसे तो भारत में भ्रष्टाचार कोई नयी चीज नहीं है, लेकिन अब यह एक कैंसर की तरह देश को खोखला बनाने लगा है।
बात शुरू करते हैं, भ्रष्टाचार की ताजा कहानियों से। शुक्रवार को ओड़िशा के एक आइएफएस अधिकारी के यहां छापामारी में अकूत संपत्ति का पता चला। अभय पाठक नामक इस अधिकारी के बेटे के खाते में 20 करोड़ रुपये जमा हैं। इस अधिकारी के परिवार ने लॉकडाउन के दौरान घूमने के लिए चार्टर्ड विमान पर तीन करोड़ रुपये खर्च किये। इतना ही नहीं, मुंबई के एक होटल में इस परिवार ने 90 लाख रुपये खर्च किये और एक अन्य होटल की बुकिंग के लिए 50 लाख रुपये दिये हैं। दूसरी कहानी छत्तीसगढ़ के एक पूर्व आइएएस अधिकारी की है, जिसने अपने कैरियर के दौरान 53 करोड़ रुपये की संपत्ति जमा कर ली थी। बाबूलाल अग्रवाल नामक इस अधिकारी की देश के हर हिस्से में संपत्ति है, जिनको अटैच कर लिया गया है। इन दोनों अफसरों की करतूत के साथ शनिवार को बंगाल, झारखंड और बिहार में 40 से अधिक जगहों पर छापामारी के दौरान 40 करोड़ रुपये से अधिक अघोषित संपत्ति का पता लगा। यह छापामारी कोयला चोर गिरोह के उस सरगना की निशानदेही पर की गयी, जिसने कहा है कि वह इन तीन राज्यों के नेताओं को हर महीने दो सौ करोड़ रुपये पहुंचाता है। अनुप मांझी उर्फ लाला नामक इस सरगना के अवैध कारोबार की कीमत 20 हजार करोड़ रुपये आंकी गयी है। कहानी यहीं खत्म नहीं होती। तमिलनाडु के कुछ अधिकारियों और एक उद्योग समूह पर रविवार को छापामारी होती है और उसके पास साढ़े चार सौ करोड़ रुपये की अघोषित संपत्ति होने के पता चलता है। इन चार सूचनाओं ने देश को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर इन लोगों को इतनी संपत्ति जमा करने की ताकत कहां से मिलती है। भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान पर नजर रखनेवाली एजेंसियों का कहना है कि देश की कार्यपालिका ही नहीं, लगभग सभी अंग कमोबेश इस अभिशाप से ग्रस्त हो चुके हैं। यह बात अलग है कि कार्यपालिका में यह बीमारी अधिक गंभीर है।
भारत में भ्रष्टाचार की कहानी नयी नहीं है, लेकिन इसके बेलगाम होने का सिलसिला उदारीकरण के बाद शुरू हुआ। वर्ष 1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था को उदारीकरण एवं वैश्वीकरण की विश्वव्यापी राजनीति-अर्थशास्त्र से जोड़ा गया। तब तक सोवियत संघ का साम्यवादी महासंघ के रूप में बिखराव हो चुका था। पूर्वी यूरोप के अधिकांश देश पूंजीवादी विश्व व्यवस्था के अंग बनने की प्रक्रिया में प्रसव-पीड़ा से गुजर रहे थे। साम्यवादी चीन बाजारोन्मुखी पूंजीवादी औद्योगिकीकरण के रास्ते औद्योगिक विकास का नया मॉडल बन चुका था। पहले भ्रष्टाचार के लिए परमिट-लाइसेंस राज को दोष दिया जाता था, पर जब से देश में वैश्वीकरण, निजीकरण, उदारीकरण, विदेशीकरण, बाजारीकरण एवं विनियमन की नीतियां आयी हैं, तब से घोटालों की बाढ़ आ गयी है। इन्हीं के साथ बाजारवाद, भोगवाद, विलासिता तथा उपभोक्ता संस्कृति का भी जबरदस्त हमला शुरू हुआ है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार अनुभव सूचकांक में भारत को दुनिया के 180 देशों में 80वां स्थान मिला है। विश्व आर्थिक मंच की सालाना बैठक के दौरान ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने इस सूचकांक की रिपोर्ट को जारी किया है। विशेषज्ञों और कारोबारी लोगों के अनुसार यह सूचकांक 180 देशों के सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार के स्तर को दिखाता है। सूचकांक में डेनमार्क और न्यूजीलैंड शीर्ष स्थान पर रहे हैं। हाल ही में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशल की एक रिपोर्ट आयी है, जिसमें एशिया के सर्वाधिक भ्रष्ट देशों में भारत पहले स्थान पर है।
विश्व पटल पर इस काली होती तस्वीर को बदलने का वक्त अब आ गया है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को अब उन उपायों को सख्ती से लागू करना होगा, जिसमें काली कमाई करनेवालों को सामने लाया जा सके। भ्रष्टाचार का यह दानव अब पूरे देश को अपने कब्जे में ले चुका है। इसे काबू में करना किसी सरकार या अदालत के वश की बात नहीं है, बल्कि इसके लिए सामाजिक रीति तैयार करनी होगी। भ्रष्टाचार और घूसखोरी को हम चाहे कितना भी कोस लें, यह हकीकत है कि आज यह हमारे सिस्टम का अंग बन गया है। इस अंग को हर हाल में काट कर अलग करना ही होगा। एक तरफ हम विश्व गुरु बनने का सपना देख रहे हैं, तो दूसरी तरफ अभय पाठक और बाबूलाल अग्रवाल जैसे नौकरशाह और लाला जैसे अवैध कारोबारी हैं, जो 130 करोड़ लोगों के इस सपने को इस सड़ांध में डुबोने के लिए तैयार बैठे दिखायी देते हैं।